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शुक्रवार, 20 जून, 2025
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ओलंपिक पदक नहीं जीतने की कसक हमेशा रहेगी: अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहने के बाद वंदना

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… सौमोज्योति एस चौधरी …

(फाइल तस्वीरों के साथ) नयी दिल्ली, एक अप्रैल (भाषा) भारतीय हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के लिए समाज की रूढ़िवादी सोच और जातिवाद से जूझना कभी आसान नहीं था लेकिन दिवंगत पिता के समर्थन से वह भारत की सबसे बेहतरीन महिला हॉकी खिलाड़ियों में से एक बनने के साथ वह अपने गांव की लड़कियों को भी इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित करने में सफल रही। वंदना को सबसे बड़ी निराशा ओलंपिक पदक जीतने से चूकने की है लेकिन वह देश की सबसे ज्यादा मैच खेलने वाली महिला खिलाड़ी बन कर उभरी। इस 32 साल की खिलाड़ी ने मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय करियर को अलविदा कह दिया। उन्होंने भारत के लिए 320 मैचों में 158 गोल किये। वंदना को हालांकि हॉकी मैदान के बाहर भी कई तरह की चुनौतियों से निपटना पड़ा। तोक्यो ओलंपिक खेलों के दौरान सेमीफाइनल में भारत के अर्जेंटीना से हारने के बाद विजय पाल नामक एक व्यक्ति और उसके दोस्तों ने वंदना के घर के बाहर हंगामा किया और  उसके परिवार के सदस्यों को ‘दलित’ समुदाय से होने के कारण जाति सूचक गालियां दी। वंदना ने अंतरराष्ट्रीय हॉकी से संन्यास की घोषणा करने के बाद ‘पीटीआई’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘जब मैंने रोशनाबाद (हरिद्वार में) से हॉकी शुरू की तो ऐसी मानसिकता थी कि लड़कियां घर से बाहर नहीं जा सकतीं, करियर में कुछ नहीं कर सकतीं। हमारे पड़ोसी और रिश्तेदार मेरे पिता से कहते थे कि आप उसे बाहर क्यों भेज रहे हैं लेकिन उन्होंने कभी उन लोगों की बात पर ध्यान नहीं दिया और मेरा समर्थन किया, इसलिए वे मेरी प्रेरणा थे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह वास्तव में एक संघर्ष था, कई बार मैंने हार मानने के बारे में सोचा लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया और उन आलोचकों को जवाब देने में कामयाब रही। अब मेरे गांव से बहुत सारे खिलाड़ी हॉकी खेल रहे हैं और वहां एक एस्ट्रो-टर्फ भी है।’’ अग्रिम पंक्ति की इस खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मेरे पिता हमेशा मेरे साथ थे, उन्होंने हर स्थिति का सामना किया। वह मेरा सबसे बड़ा सहारा थे। तोक्यो ओलंपिक से ठीक पहले उनका निधन हो गया और यह मेरे लिए वास्तव में कठिन समय था। मैं भी चोट से उबर रही थी लेकिन मेरा हॉकी परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा रहा।’’ वंदना ने कहा कि संन्यास का फैसला आसान नहीं था लेकिन उन्हें लगा कि यह ऐसा करने का सही समय है। उन्होंने कहा, ‘‘ यह मेरे लिए वास्तव में काफी मुश्किल फैसला रहा लेकिन मैं लंबे समय से खेल रही हूं। मुझे लगा कि कई जूनियर खिलाड़ी आ गए हैं और उन्हें मौका देने का समय आ गया है। वे अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे और पिछले दो-तीन दिनों से मैं अच्छा महसूस नहीं कर रही थी, इसलिए मैंने अपना मन बनाया और निर्णय लिया।’’ वंदना ने कहा, ‘‘ मैं अभी भी फिट हूं, मेरी फिटनेस में कोई समस्या नहीं है लेकिन मैं अच्छा महसूस नहीं कर रही हूं, इसलिए यह निर्णय लिया।’’ वंदना ने भारत के लिए 2009 में पदार्पण करने के बाद से टीम की कई सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तोक्यो ओलंपिक में हैट्रिक बनाने वाली पहली और एकमात्र भारतीय महिला बनीं। उन्होंने कहा, ‘‘ इस लंबे सफर में हर खिलाड़ी ओलंपिक पदक जीतने का सपना देखता है। यह पछतावा हमेशा रहेगा लेकिन अब यह मेरे लिए एक नयी यात्रा है।’’ वंदना ने कहा कि वह शुरू में खो-खो खिलाड़ी थी लेकिन उसकी बहनों ने उसे हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं खो-खो खेलती थी, फुटबॉल और एथलेटिक्स भी खेलती थी लेकिन मेरा मुख्य खेल खो-खो था। मेरी बहनें रीना कटारिया और अंजलि कटारिया हॉकी खेलती थीं, इसलिए एक दिन मैंने उनकी स्टिक उठाई और खेलना शुरू कर दिया।’’ वंदना ने कहा, ‘‘कुछ अनुभवी खिलाड़ियों ने मुझे देखा और कहा कि तुम हॉकी अच्छी खेलती हो, इसे जारी रखो। उसके बाद मैं मेरठ स्पोर्ट्स हॉस्टल गई और फिर लखनऊ चली गई। अगर आपको अपने परिवार, टीम के साथियों और सहयोगी स्टाफ का समर्थन मिले तो उतार-चढ़ाव के बीच भी आप कुछ भी हासिल कर सकते हैं।’’ वंदना ने कहा कि उन्होंने अपने भविष्य के बारे में ज्यादा सोचा नहीं था लेकिन वह अब इस खेल को वापस कुछ देना चाहती है। उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अभी कुछ सोचा नहीं है, मेरे दिमाग में कुछ भी नहीं चल रहा है लेकिन निश्चित तौर पर मैं इस खेल को वापस कुछ देना चाहूंगी। मैं युवाओं को खेल और कौशल में सुधार करने में मदद करना चाहूंगी।’’ भाषा आनन्द नमितानमिता

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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