(कुशान सरकार)
नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) रविचंद्र अश्विन ने अपने अंतरराष्ट्रीय संन्यास से पहले भारतीय कप्तान रोहित शर्मा से कहा कि अगर इस समय श्रृंखला में मेरी जरूरत नहीं है तो मेरे लिए खेल को अलविदा कहना ही बेहतर होगा। उन्होंने 14 साल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के बाद संन्यास का फैसला भी अपने समय पर लिया।
ऐसा माना जा रहा है कि न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू श्रृंखला के बाद से ही उनके दिमाग में संन्यास का विचार था। इस श्रृंखला में भारत को 0-3 से हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने टीम प्रबंधन को यह स्पष्ट कर दिया था कि अगर ऑस्ट्रेलिया श्रृंखला के दौरान उन्हें एकादश में जगह नहीं मिलती है तो वह ऑस्ट्रेलिया नहीं जाएंगे।
भारत ने पर्थ में अश्विन पर वाशिंगटन सुंदर को तरजीह दी जिसके बाद इस अनुभवी ऑफ स्पिनर ने रोहित के आग्रह पर गुलाबी गेंद के टेस्ट के लिए एकादश में वापसी की।
रविंद्र जडेजा ब्रिसबेन टेस्ट में खेले और जैसा कि रोहित ने गाबा में ड्रॉ हुए तीसरे टेस्ट के बाद कहा, कोई नहीं जानता कि मेलबर्न और सिडनी में होने वाले बाकी दो मैचों के लिए टीम कैसी होगी।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के एक वरिष्ठ सूत्र ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर पीटीआई को बताया, ‘‘चयन समिति की ओर से कोई संकेत नहीं मिला। अश्विन भारतीय क्रिकेट में एक दिग्गज हैं और उन्हें अपना फैसला खुद लेने का अधिकार है।’’
अगली टेस्ट श्रृंखला इंग्लैंड में (जून से अगस्त) है जहां शायद भारत दो से अधिक विशेषज्ञ स्पिनरों को साथ नहीं ले जाए जो बल्लेबाज भी हों। भारत की अगली घरेलू टेस्ट श्रृंखला अक्टूबर-नवंबर में है।
दस महीने लंबा समय है और एक बार जब यह विश्व टेस्ट चैंपियनशिप चक्र समाप्त हो जाएगा तो नजरें 2027 पर होंगी। अश्विन तब तक 40 वर्ष के हो चुके होंगे और उम्मीद है कि भारतीय क्रिकेट में बदलाव का दौर पूरा हो चुका होगा।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रृंखला समाप्त होने तक इंतजार नहीं करने के अश्विन के फैसले से यह भी संकेत मिला कि पर्थ में शुरुआती मैच उन पर सुंदर को तरजीह दिए जाने की उनके फैसले में अहम भूमिका रही।
मैदान पर और मैदान के बाहर खेल को पढ़ने में सक्षम अश्विन ने शायद यह अनुमान लगा लिया होगा कि आगे क्या होने वाला है और शायद इससे उनके लिए फैसला लेना आसान हो गया।
अश्विन ने भारतीय टीम की जर्सी को बहुत गर्व के साथ पहना। उन्होंने 537 टेस्ट विकेट लिए और 38 साल की उम्र में अश्विन रिजर्व खिलाड़ी की तरह सिर्फ ड्रेसिंग रूम में नहीं बैठना चाहते।
न्यूजीलैंड श्रृंखला में स्पष्ट रूप से इसके संकेत मिले थे जब उन्होंने तीन मैच में नौ विकेट लिए जिसमें से दो मुकाबले पुणे और मुंबई में स्पिन की अनुकूल पिच पर खेले गए। इसकी तुलना में सुंदर ने पुणे में 12 विकेट लिए जबकि अश्विन को पांच विकेट मिले।
पर्थ में जब अंतिम एकादश को अंतिम रूप दिया गया था तब रोहित मौजूद नहीं थे और यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह कोच गौतम गंभीर थे जिन्होंने यह तय किया था कि आगे चलकर भारत का नंबर एक ऑफ स्पिनर कौन होगा और वह अश्विन नहीं थे।
टीम से जुड़ने के बाद रोहित को अश्विन को एडीलेड में खेलने के लिए मनाना पड़ा।
भारतीय कप्तान ने खुलासा किया, ‘‘जब मैं पर्थ पहुंचा तो हमने इस बारे में बात की और मैंने किसी तरह उसे गुलाबी गेंद के टेस्ट मैच के लिए रुकने के लिए मना लिया और उसके बाद, यह बस हो गया…उसे लगा कि अगर अभी श्रृंखला में मेरी जरूरत नहीं है तो मेरे लिए खेल को अलविदा कह देना ही बेहतर होगा।’’
रोहित ने कहा, ‘‘यह महत्वपूर्ण है कि जब उसके जैसा खिलाड़ी, जिसने भारतीय टीम के साथ इतने सारे पल देखे हों और वह हमारे लिए एक बड़ा मैच विजेता रहा हो, तो उसे अपने दम पर ये फैसले लेने की अनुमति दी जाए और अगर यह अभी है, तो ऐसा ही हो।’’
पूर्व ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह को लगता है कि चेन्नई के इस खिलाड़ी को श्रृंखला के बाद तक इस घोषणा को टालना चाहिए था।
उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘आंकड़े झूठ नहीं बोलते और उसका रिकॉर्ड बहुत शानदार है। मैं चाहता था कि वह अंतिम दो टेस्ट के लिए रुक जाए क्योंकि वह सिडनी में भूमिका निभा सकता था। लेकिन यह एक व्यक्तिगत निर्णय है।’’
हरभजन ने कहा, ‘‘जब नाम अश्विन जितना बड़ा हो तो फैसला खिलाड़ी का होता है।’’
एक विचारधारा यह भी है कि यदि परिस्थितियां अनुमति देती और भारत सिडनी में दो स्पिनरों के साथ उतरता तो जडेजा को वाशिंगटन के साथ मौका मिलता क्योंकि ये दोनों एसईएनए (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) देशों में अधिक सक्षम बल्लेबाज माने जाते हैं।
भाषा सुधीर
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