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Wednesday, 8 January, 2025
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राष्ट्रीय चैंपियन किरण पाहल ने कहा, पिता की यादें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी

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(फिलेम दीपक सिंह)

चेन्नई, 12 जून (भाषा) हरियाणा की एथलीट किरण पाहल के लिये राष्ट्रीय चैंपियनशिप में महिलाओं की 400 मीटर का स्वर्ण पदक जीतना एक भावनात्मक क्षण था क्योंकि इसके बाद वह अपने दिवंगत पिता की याद में खो गयी, जिन्होंने पुरुष प्रधान समाज में सामाजिक विरोध के बावजूद खेलों में भाग लेने के लिये अपनी बेटी का पूरा समर्थन किया।

हरियाणा के सोनीपत जिले के गनौर गांव की रहने वाली 21 वर्षीय किरण ने उन संघर्षों को भी याद किया, जिनसे उन्हें गुजरना पड़ा था क्योंकि उनका परिवार बहुत गरीब था।

किरण के पिता ओम प्रकाश का पिछले महीने लंबी बीमारी (फेफड़ों की समस्या) के बाद निधन हो गया था। वह सोनीपत जिले की एक तहसील में मुंशी थे। उनकी मां माया देवी गृहिणी हैं।

किरण ने शनिवार को स्वर्ण पदक जीतने के बाद पीटीआई से कहा, ‘‘मेरे पिता घर में अकेले कमाने वाले सदस्य थे। मैं तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी हूं। हमारे परिवार के लिये यह मुश्किल दौर था। हमने वित्तीय परेशानियों के कारण बहुत संघर्ष किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पिता ने गांव के लोगों और पड़ोसियों ताने मारने के बावजूद एथलेटिक्स में बने रहने के लिये मेरा समर्थन किया। मेरे गांव वाले कहते थे कि लड़कियों को नहीं खेलना चाहिए। अगर मैं खेलती रही तो मुझसे कोई शादी नहीं करेगा।’’

किरण ने कहा, ‘‘मैंने अपने पिता के कारण एथलेटिक्स में कदम रखा लेकिन वह अब हमारे बीच नहीं रहे। हमारे पास उनका इलाज अच्छे अस्पताल में कराने के लिये पैसे नहीं थे। मुझे इसका पछतावा है और मैं इस समय उन्हें याद कर रही हूं।’’

पिछले महीने राज्य चैंपियनशिप में 51.84 सेकेंड के समय के साथ सत्र का दूसरा सबसे तेज समय निकालने वाली किरण ने राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 52.47 सेकेंड के समय के साथ महिलाओं का स्वर्ण पदक जीता, जबकि उत्तर प्रदेश की रूपल चौधरी ने 52.72 के समय के साथ रजत पदक और तमिलनाडु की आर विथ्या रामराज ने 53.78 सेकेंड के साथ कांस्य पदक हासिल किया।

किरण अब भारतीय रेलवे में काम करती हैं लेकिन उनकी आर्थिक परेशानियां अभी कम नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं प्रति माह 25,000 रुपये कमाती हूं लेकिन मुझे परिवार चलाने के लिये लगभग सारी धनराशि अपनी मां को भेजनी पड़ती है।’’

किरण ने कहा, ‘‘जब मैंने 10वीं कक्षा में एथलेटिक्स शुरू की थी तब मेरे पास दौड़ने के जूते और किट खरीदने के लिये पैसे नहीं थे। अभी मेरे कोच आशीष मेरी मदद कर रहे हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने इतनी वित्तीय परेशानियों के कारण कई बार खेल छोड़ने के बारे में सोचा। लेकिन मैं अब इसे नहीं छोड़ूंगी। मैं अपने पिताजी के लिये कुछ बड़ा हासिल करना चाहती हूं। मेरी उपलब्धि की वजह मेरे पिताजी हैं और वह मेरी प्रेरणा हैं।’’

भाषा पंत

पंत

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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