चेन्नई, 23 सितंबर (भाषा) भारत के शतरंज खिलाड़ी डी गुकेश ने स्कूल में पाठ्यक्रम से इतर की गतिविधि के तौर पर इस खेल को अपनाया जो बाद में उनका जुनून बन गया और उसी का परिणाम है कि आज इस 18 वर्षीय खिलाड़ी को दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों में शुमार किया जाता है।
ग्रैंडमास्टर गुकेश ने रविवार को बुडापेस्ट में ओपन वर्ग में भारत को पहली बार शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
गुकेश के बचपन के कोच वी भास्कर ने वेलाम्मल विद्यालय में तब उनकी प्रतिभा को पहचाना जब वह सिर्फ सात साल के थे।
भास्कर ने कहा,‘‘हमने तब शुरुआत की जब वह (गुकेश) वेलाम्मल विद्यालय में कक्षा एक में था। वह पाठ्यक्रम से इतर की गतिविधियों में भाग लेता था। जब वह सात साल का था तब मैंने उसमें एक ललक देखी और उसे व्यक्तिगत प्रशिक्षण के लिए आने को कहा। हमने कई वर्षों तक उसके खेल को निखारने पर काम किया।’’
शतरंज की दुनिया में तीसरे सबसे युवा ग्रैंड मास्टर गुकेश इस साल के अंत में विश्व खिताब के लिए चीन के डिंग लिरेन के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करेंगे।
भास्कर ने कहा कि गुकेश वास्तव में प्रतिभाशाली बच्चा था जिसे शुरुआती दिनों से ही अपने खेल के साथ प्रयोग करना पसंद था।
उन्होंने कहा,‘‘उसने छोटी उम्र से ही अपने खेल में काफी प्रयोग करने शुरू कर दिए थे और मुझे तब बहुत खुशी हुई कि वह दुनिया का तीसरा सबसे कम उम्र का ग्रैंडमास्टर बना। मुझे बहुत खुशी हुई जब उसने टोरंटो में कैंडिडेट्स जीता और इस साल के अंत में सिंगापुर में विश्व चैंपियन डिंग को चुनौती देने का अधिकार हासिल किया।’’
भाषा पंत आनन्द
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