देहरादून: उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन (सीएयू) पदाधिकारियों के खिलाफ जबरन वसूली और आपराधिक रूप से धमकाने की एफआईआर दर्ज कराने के एक महीने के बाद, रणजी खिलाड़ी और पूर्व अंडर-19 बल्लेबाज़ आर्य सेठी के पिता वीरेंद्र सेठी ने कहा है, कि उन्हें अभी भी बेटे की जान का ख़तरा है.
दिप्रिंट से बात करते हुए वीरेंद्र सेठी ने आरोप लगाया कि परिवार को जान से मारने की धमकियां मिली हैं और उन्होंने अपने बेटे आर्य से उसकी ख़ुद की सुरक्षा की ख़ातिर, आगे की पढ़ाई देश से बाहर करने के लिए कहा है. सेठी ने कहा, ‘हमें खुले तौर पर बाहर निकलने में डर लगता है, और घर से बाहर निकलकर हम किसी को पता नहीं चलने देते कि हम कहां हैं. मेरा बेटा यहां सुरक्षित नहीं है. किसी को बताना मुश्किल है कि हम किस सदमे से गुज़र रहे हैं. पुलिस को सब कुछ मालूम है, लेकिन मैं जल्द ही उन्हें लिखित में अपनी स्थिति से अवगत कराउंगा’.
उन्होंने आगे कहा कि उन्हें नहीं लगता कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लिए सात साल से अधिक समय तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने के बावजूद, उनके बेटे का भारत में कोई भविष्य है.
आर्य सेठी एक पूर्व अंडर-19 इंडिया चैलेंजर ट्रॉफी खिलाड़ी और उत्तराखंड रणजी ट्रॉफी टीम का सदस्य रहा है.
देहरादून के वसंत विहार थाने में 20 जून को दर्ज कराई गई एक आफआईआर में, वीरेंद्र सेठी ने आरोप लगाया कि पिछले साल दिसंबर में राजकोट में विजय हज़ारी ट्रॉफी के दौरान, कोच ने उनके बेटे की पिटाई की थी. उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने सीएयू सचिव माहिम वर्मा से शिकायत की, तो सीएयू के कई पदाधिकारियों ने उनके और आर्य के खिलाफ, उत्पीड़न और जबरन वसूली के प्रयास का अभियान छेड़ दिया.
वीरेंद्र सेठी ने आरोप लगाया कि उसके बाद के महीनों में स्थिति और बिगड़ गई है.
गढ़वाल के पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) करन सिंह नागन्याल ने कहा कि इस मामले में जांच चल रही है. ‘उनमें से तीन के बयान दर्ज किए जा चुके हैं, जबकि अन्य को भी जल्द बुलाया जाएगा. अभियुक्तों की गिरफ्तारी जांच अधिकारियों द्वारा एकत्र की गई जानकारी पर निर्भर करती है’.
सेठी परिवार को सुरक्षा की कथित धमकी पर डीआईजी ने कहा: ‘शिकायतकर्त्ता अभी इसे हमारे संज्ञान में नहीं लाए हैं. अगर वो मांग करते हैं तो उचित कार्रवाई की जाएगी, जिसमें उन्हें सुरक्षा मुहैया कराना भी शामिल है’.
इस बीच सीएयू अपने रुख़ पर क़ायम है कि आरोप निराधार हैं, और आर्य अभी भी उत्तराखंड रणजी टीम का सदस्य है. सीएयू प्रवक्ता संजय गुसाईं ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस विषय पर ज़्यादा बात करना उचित नहीं होगा, क्योंकि जांच अभी चल रही है और हम सब उसमें सहयोग कर रहे हैं. किसी ने भी आर्य सेठी या उसके पिता को धमकी नहीं दी है, ना ही उनसे पैसे की मांग की है, जैसा कि कहा जा रहा है’.
सीएयू को लेकर उठने वाला ये कोई पहला विवाद नहीं है. पिछले हफ्ते ख़बर आई थी कि 30 मार्च 2021 की एक ऑडिट रिपोर्ट में पता चला है, कि क्रिकेट बॉडी ने 1.74 करोड़ रुपए खाने और केटरिंग पर ख़र्च किए थे, जिनमें केलों पर 35 लाख रुपए का ख़र्च दिखाया गया था.
‘वो लोग गैंग्सटर्स की तरह हैं’
सेठी की ओर से दर्ज एफआईआर के अनुसार, 11 दिसंबर 2011 के ट्रेनिंग के दौरान उसके कोच मनीष झा ने आर्य के साथ बदसलूकी करते हुए उसकी पिटाई की थी. क्रिकेटर के पिता ने आरोप लगाया कि तब उन्होंने सीएयू सचिव माहिम वर्मा से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. शिकायतकर्त्ता ने कहा कि उसकी बजाय जल्द ही उन्हें झा, टीम मैनेजर नवनीत मिश्रा, और वीडियो एनलिस्ट पीयूष रघुवंशी की ओर जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं.
वीरेंद्र सेठी ने कहा, ‘तीनों ने ही खुलेआम एक बृजेश सिंह के ज़रिए मेरे बेटे को गोली मार देने की धमकी दी, जिसे पीयूष रघुवंशी ने अपना चाचा बताया था. जब मैं फिर से माहिम वर्मा के पास गया तो उन्होंने कहा कि मुझे 10 लाख रुपए देने पड़ेंगे, वर्ना मेरे बेटे का करियर ख़त्म हो जाएगा. दूसरों ने भी यही मांग रखी. एफआईआर में इसका उल्लेख है’.
मनीष झा, माहिम वर्मा, पीयूष रघुवंशी, और नवनीत मिश्रा के अलावा, एफआईआर में सीएयू प्रवक्ता संजय गुसाईं और दो स्टाफ सदस्यों, पारुल और सत्यम वर्मा को भी नामज़द किया गया है.
इन सभी पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120बी (आपराधिक षडयंत्र), 323 (नुक़सान पहुंचाना), 384 (जबरन वसूली), 504 (शांति भंग के लिए उकसाने की मंशा से अपमान), और 506 (आपराधिक रूप से धमकाना) के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया है.
एफआईआर में नामज़द सीएयू पदाधिकारियों के बारे में बात करते हुए, सेठी ने आरोप लगाया: ‘वो गैंग्सटर्स की तरह पेरेंट्स को निशाना बनाते हैं, और उन्होंने राज्य में कई युवा क्रिकेटर्स का भविष्य तबाह कर दिया है. अतीत में भी पेरेंट्स ने उनके खिलाफ जबरन वसूली की शिकायतें दर्ज कराईं थीं’.
CAU आरोपों को ‘निराधार’ बताती है
संजय गुसाईं का कहना है कि सीएयू और उसके पदाधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोप ‘निराधार’ हैं ‘जिनका मक़सद एसोसिएशन की साख को नीचा दिखाना है’.
गुसाईं ने कहा, ‘आर्य के पिता ने दिसंबर 2021 में पहली बार पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी. लेकिन एक महीने बाद, आर्य ने लिखकर दे दिया कि उन्हें सीएयू और उसके पदाधिकारियों से कोई शिकायत नहीं है. वो रणजी कैंप में शरीक हुआ और उसे टीम में शामिल किया गया. वो अभी भी टीम का सदस्य है. अब कोई ऐसे खिलाड़ी से पैसा क्यों मांगेगा जो पहले से ही टीम में है?’
सीएयू अध्यक्ष जोत सिंह गुंसोला ने दिप्रिंट से कहा कि ‘एसोसिएशन के किसी भी पदाधिकारी का किसी से पैसा मांगने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता’. उन्होंने आगे कहा, ‘सीएयू इन आरोपों का कोर्ट में जवाब देगी और मामला सुलझ जाने के बाद सार्वजनिक रूप से बात करेगी’.
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‘धार्मिक पूर्वाग्रह’, 35 लाख के केले
विवादों ने तभी से सीएयू का पीछा लिया हुआ है, जब से उसे अगस्त 2019 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की सदस्यता मिली थी. उत्तराखंड के चार संघ बीसीसीआई संबंद्धता के लिए होड़ में थे.
पिछले साल फरवरी में, पूर्व भारतीय टेस्ट ओपनर और सीएयू कोच वसीम जाफर की, सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के आरोपों के चलते अनौपचारिक रूप से विदाई हो गई थी.
नवनीत मिश्रा ने आरोप लगाया था कि जाफर ने धार्मिक आधार पर खिलाड़ियों को चुना था, जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जांच का आदेश दे दिया था. जाफर ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन उससे पहले उन्होंने सांप्रदायक आरोपों को ‘नीचता’ क़रार दिया, और आरोप लगाया कि सीएयू ने ‘अयोग्य खिलाड़ियों’ को आगे बढ़ाया, और चयन में दख़लअदाज़ी की.
एक और बड़ा विवाद जिसने सीएयू की छवि पर दाग़ लगाया, वो था उसके पहले ही साल में कथित तौर पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए बिल, जब कोविड की वजह से कई महीने तक उसका कामकाज बंद रहा था.
मार्च 2021 में एक सीएयू ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया, कि भोजन पर 1.74 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए, जिनमें केलों पर 35 लाख, और पानी पर 22 लाख रुपए का ख़र्च दिखाया गया था.
ऑडिट रिपोर्ट में ये भी इशारा किया गया, कि खिलाड़ियों के दैनिक भत्तों पर 50 लाख रुपए से अधिक ख़र्च हुए. ख़ासकर इस दावे को कुछ क्रिकेटर्स ने चुनौती दी है.
उत्तराखंड रणजी टीम के लिए एक दिल्ली-स्थित गेस्ट प्लेयर रॉबिन बिष्ट ने कहा, ‘हमें 1,500 रुपए दैनिक भत्ता दिया जाना था, लेकिन उन्होंने सिर्फ 100 रुपए दिए. जब उन्होंने मुझसे टीम में शामिल होने के लिए कहा था, तो उन्होंने आश्वासन दिया था कि वो दिल्ली से देहरादून तक के मेरे ईंधन के बिल का भुगतान कर देंगे, लेकिन क़रीब आठ महीने हो गए हैं और उन्होंने अभी तक पैसा नहीं दिया है. अब मैंने भी उम्मीद छोड़ दी है’.
बिष्ट ने, जो पहले राजस्थान और दूसरे राज्यों के लिए खेल चुके हैं, आगे कहा: ‘सीएयू अधिकारियों ने एसोसिएशन को तबाह करके रख दिया है. खिलाड़ी जब खेलने के लिए बाहर जाते हैं, तो उन्हें भोजन और भत्तों के बिना छोड़ दिया जाता है. यहां पर पूरी तरह अव्यवस्था का आलम है. बीसीसीआई को दख़ल देने की ज़रूरत है’.
कथित रूप से बढ़ाकर बनाए गए बिलों का मामला निर्दलीय विधायक उमेश कुमार ने उत्तराखंड असेम्बली के जून के सत्र में भी उठाया.
कुमार ने मांग की थी कि सरकार सदन को बताए, कि सीएयू ने महामारी के दौरान प्रोफेशनल फीस के तौर पर खिलाड़ियों को 6.5 करोड़ रुपए कैसे बांट दिए, जबकि माहामारी से पहले ये रक़म केवल 2.75 करोड़ रुपए थी. कुमार ने ये भी सवाल उठाया कि लंच और डिनर पर 1.27 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए, और महामारी के दौरान 12 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया गया, जबकि उससे पहले सीएयू का खुला सालाना ख़र्च कभी भी 12 करोड़ से अधिक नहीं रहा था.
कथित वित्तीय अनियमितताओं के बारे में बात करते हुए, सीएयू उपाध्यक्ष संजय रावत ने आरोप लगाया कि संस्था के कुछ पदाधिकारी ‘पैसे की हेराफेरी’ कर रहे हैं.
रावत ने आरोप लगाया, ‘उन्होंने करोड़ों रुपए अपनी सनक और शौक़ के हिसाब से ख़र्च कर दिए. सीएयू 11 करोड़ रुपए के सालाना बजट पर चलती है, जो बीसीसीआई की ओर से उपलब्ध कराए जाते हैं, लेकिन सचिव ने ये सोचने की ज़हमत गवारा नहीं की, कि अगर बीसीसीआई ने हमारे खर्च पर सवाल खड़े कर दिए तो क्या होगा. बजट पास कराने के लिए बहुमत जुटाने में उन्होंने हमेशा तीन मनोनीत सदस्यों का सहारा लिया. ये तब था, जब मनोनीत सदस्यों के पास वोटिंग का कोई अधिकार नहीं था. किसी ने अभी तक उनसे सवाल नहीं किया है, एसोसिएशन की ओर से हायर की गई ऑडिट एजेंसी ने भी नहीं’.
इस बीच गुसाईं ने दावा किया कि सीएयू के पास 35 लाख रुपए के केलों का कोई बिल नहीं था, और एसोसिएशन के सभी ख़र्च बिल्कुल स्पष्ट थे. उन्होंने कहा, ‘बीसीसीआई ने 2019 में सीएयू को 110 पृथम श्रेणी मैच दिए, और हमने उन्हें संतोषजनक तरीक़े से पूरा कराया. 100 से अधिक मैचों के लिए 1.74 करोड़ रुपए के ख़र्च को बहुत बड़ा ख़र्च नहीं कहा जा सकता, जैसा कि आरोप है’.
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