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Friday, 22 November, 2024
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12वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हित्ती साम्राज्य के पतन के रहस्य को खोलते ट्री रिंग्स

कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और साइप्रस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने जुनिपर टिम्बर्स के बारे में संभावना जताई कि लगातार कई बार सूखा पड़ना साम्राज्य के पतन का कारण हो सकता है.

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नई दिल्ली: 1200 ईसा पूर्व के आसपास राजधानी हट्टुसा से शासकों के चले जाने से पहले सेंट्रल अनातोलिया में हित्ती साम्राज्य कांस्य युग की प्रमुख शक्तियों में से एक बन चुका था. हालांकि, हट्टुसा को यूं छोड़कर जाना लंबे समय से ऐतिहासिक जांच का एक प्रमुख विषय रहा है, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनका शहर से जाना साम्राज्य को पतन की ओर ले गया था. फिलहाल पुरातत्व स्थलों पर मिली जुनिपर लकड़ी 3,200 वर्षों पहले हुए इस रहस्यमय पतन का जवाब देती नज़र आ रही है.

नेचर पत्रिका में बुधवार को प्रकाशित एक स्टडी में शोधकर्ताओं ने पाया कि 1198 और 1196 ईसा पूर्व के आसपास लगातार कई बार सूखा पड़ा था और हो सकता है कि इसी वजह से साम्राज्य का पतन होता चला गया हो. रिसर्च से पता चलता है कि चरम जलवायु परिवर्तन ने आबादी को उनकी सदियों पुरानी प्रथाओं से परे धकेलने का काम किया और उनकी मौसम को झेलने की शक्ति को कम कर दिया था, जिसकी वजह से हो सकता है कि उन्हें हट्टुसा को छोड़ना पड़ा हो.

वर्तमान तुर्की में मौजूद अर्ध-शुष्क सेंट्रल अनातोलिया में केंद्रित हित्ती साम्राज्य को पूर्वी भूमध्यसागरीय और निकट पूर्व की प्रमुख शक्तियों के रूप में मान्यता प्राप्त थी. यह साम्राज्य 1650 और 1200-ईसा पूर्व के बीच काफी फल-फूल रहा था.

स्टडी के मुताबिक, साम्राज्य लंबे समय से खुद को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और यहां तक कि पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे सूखे के खतरे से संघर्ष कर रहा था. लगभग 1200 ईसा पूर्व के बाद साम्राज्य का पतन हो गया. यह लगभग उसी समय हुआ जब कई अन्य प्रमुख सभ्यताओं का पतन हुआ, जिसे कांस्य युग पतन के रूप में जाना जाता है.

हट्टुसा से आबादी के चले जाना ऐतिहासिक जांच का एक प्रमुख विषय रहा है. लंबे समय से यह माना जाता रहा था कि एक सैन्य हमले के कारण शहर बरबाद हुआ था. हालांकि, अब पुरातात्विक जांच से संकेत मिलते हैं कि शहर को शाही प्रशासन ने खाली कर दिया था और उसे छोड़कर चला गया था. उसके बाद इसे नष्ट कर दिया गया था.

संयुक्त राज्य अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी और एगलैंडजिया, साईप्रस में साईप्रस इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों की टीम ने हित्ती साम्राज्य के पतन में सूखे की भूमिका का आकलन करने के लिए मध्य अनातोलिया में समकालीन जुनिपर पेड़ों के तनों की रिंग के बारे में स्टडी की थी.

पेड़ों के तने से मिले रिंग्स से नमी की मात्रा के मापन से शोधकर्ताओं को 1198 और 1196 ईसा पूर्व के बीच होने वाले असामान्य रूप से गंभीर, लगातार पड़े सूखे की पहचान करने में मदद मिली.

Wooden structure inside Midas Mound Gordion, central Anatolia | Courtesy: springernature.com
मिडास माउंड गॉर्डियन, केंद्रीय अनातोलिया के अंदर लकड़ी की संरचना | क्रेडिट : springernature.com

टीम के अनुसार, इस भीषण सूखे के कारण लंबे समय तक भोजन की कमी बनी रही. मुख्य हित्ती क्षेत्र के लैंडलॉक क्षेत्र क्षेत्रीय अनाज उत्पादन और पशु खेती पर निर्भर थे. यह इलाके खासतौर पर सूखे की चपेट में आए थे.

स्टडी में कहा गया है कि हो सकता है कि खाने की कमी के चलते राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अशांति के साथ-साथ बीमारी का प्रकोप भी हुआ हो, जो आखिरकार साम्राज्य को पतन की ओर ले गया हो.

हालांकि, इस अवधि के आसपास एक शुष्क, ठंडी जलवायु में 300 साल का बदलाव पूर्वी भूमध्यसागरीय और निकट-पूर्व में कई प्राचीन सभ्यताओं के पतन के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मानव इतिहास में घटनाओं के बीच की कड़ी का सटीक विवरण पूरी तरह से साफ नहीं है.


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सूखा एकमात्र कारण नहीं

अनातोलिया के लिए बारिश का न होना और सूखा पड़ना कोई नई बात नहीं थी. यह इस क्षेत्र की विशेषता थी. एक पीढ़ी का कम से कम एक बार अपने जीवन में दो लगातार शुष्क मौसम से सामना हो जाता था, लेकिन भयंकर सूखे के कारण फसल का इस तरह से बर्बाद होने का मंजर दुर्लभ था. स्टडी के मुताबिक, शायद एक सदी में सिर्फ एक बार या ज्यादा से ज्यादा दो बार ऐसा हुआ होगा.

शोधकर्ताओं द्वारा इकट्ठा किए गए साक्ष्य बताते हैं कि 1198 और 1196 ईसा पूर्व के बीच लगातार तीन सालों तक पड़े भयंकर सूखे की वजह से सेंट्रल अनातोलिया में फसल बर्बाद हो गई थी. हो सकता है कि भयंकर सूखे और फसल में कमी ने साम्राज्य के मौजूदा अनुकूलन और उससे निपटने की रणनीतियों को चुनौती दी होगी.

लगातार पड़ा सूखा इसकी एक वजह हो सकता है, लेकिन साम्राज्य के पतन का एकमात्र कारण नहीं था.

शोधकर्ताओं ने दावा किया कि जलवायु परिवर्तन, आबादी के यहां से वहां जाने, व्यापार के पुनर्विन्यास और राजनीतिक विखंडन ने 1200 ईसा पूर्व के आसपास पुरानी दुनिया में हुए परिवर्तनों में एक भूमिका निभाई थी. हो सकता है कि अनपेक्षित और लगातार कई सालों तक मौसमी चरम घटनाओं ने इंसान के झेलने की क्षमता को कम किया हो और उन्हें काफी हद तक प्रभावित किया हो.

उन्होंने कहा कि ये चरम मौसमी घटनाएं इंसान की झेलने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं. वर्तमान जलवायु परिवर्तन की तरह यह आज और इतिहास दोनों में लागू हो सकती हैं.

अमेरिका में टेंपल यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता मुगे डुरुसु-टैनरियोवर ने कहा कि अध्ययन एक प्रमुख जलवायु घटना की उपस्थिति को साबित करता है. यह इसकी सटीक तारीखों की पहचान भी करता है, जो पहले संभव नहीं था. डुरुसु-टैनरियोवर इस स्टडी का हिस्सा नहीं थे.

उन्होंने कहा, ‘‘स्टडी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें एक ठोस सुराग की तरफ ले जा रहा है और बता रहा है कि हट्टुसा को उसे शासक और आबादी क्यों छोड़कर चले गए थे. भविष्य के शोध से पता चल सकता है कि क्या 1198-1196 ईसा पूर्व की चरम जलवायु घटना केंद्रीय अनातोलिया तक ही सीमित थी या इसका असर पूर्वी भूमध्यसागरीय पर भी था. यह जानकारी हित्तियों के मामले से परे अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है.’’

(अनुवादः संघप्रिया | संपादनः फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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