नई दिल्ली: यूरोपीयन यूनियन के अर्थ ऑब्जरवेशन प्रोग्राम (पृथ्वी अवलोकन कार्यक्रम) कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि 2024 पहला ऐसा साल था जब औसत ग्लोबल टेंपरेचर औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 1.5°C ज्यादा था. यह वही सीमा है जो 2015 में पेरिस समझौते के तहत तय की गई थी.
हालांकि, एक साल का तापमान इस सीमा से अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया ने इसे आधिकारिक रूप से पार कर लिया है, लेकिन रिपोर्ट के लेखक चिंतित हैं कि हम इस खतरनाक सीमा के बहुत करीब पहुंच रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, 2024 का औसत वैश्विक तापमान 15.10°C था, जो इसे अब तक का सबसे गर्म साल बना देता है. इसने 2023 का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया. 17 जुलाई 2024 को, दुनिया का 44 प्रतिशत हिस्सा गंभीर या अत्यधिक गर्मी के दबाव (हीट स्ट्रेस) में था, जो अब तक का नया वार्षिक रिकॉर्ड है.
2015 से 2024 के बीच का दशक अब तक का सबसे गर्म दशक रहा है, और इसका मुख्य कारण मानव-जनित (मनुष्य द्वारा उत्पन्न) जलवायु परिवर्तन बताया गया है.
सी3एस की रिपोर्ट, जो 10 जनवरी को प्रकाशित हुई, के अनुसार फॉसिल फ्यूल्स (जीवाश्म ईंधन) से निकलने वाली बढ़ी हुई ग्रीनहाउस गैसिस सीधे तापमान को बढ़ा रही हैं.
ऑस्ट्रेलोपिथेकस दौड़ने में कैसा था?
लिवरपूल यूनिवर्सिटी ने अपनी एक स्टडी में यह विश्लेषण करने का प्रयास किया कि शुरुआती मानव पूर्वज ऑस्ट्रलोपिथेकस अफारेन्सिस दौड़ने में कितने अच्छे थे.
करंट बायोलॉजी में इस हफ्ते प्रकाशित एक पेपर में, उन शुरुआती मानवों की दौड़ने की क्षमता का कंप्यूटर सिमुलेशन तैयार किया गया, जिसमें सबसे प्रसिद्ध ऑस्ट्रलोपिथेसीन जीवाश्म लुसी के कंकाल का इस्तेमाल किया गया.
लुसी 1973 में खोजी गई एक शुरुआती ऑस्ट्रलोपिथेसीन है, जिसे कम से कम तीन मिलियन साल पुराना माना जाता है. एथियोपिया में उसके कंकाल की खोज ने यह सिद्ध किया कि शुरुआती मानव दो पैरों पर चलते थे, लेकिन क्या वे आधुनिक मनुष्यों की तरह दौड़ सकते थे, यह अब तक रहस्य बना हुआ था.
लिवरपूल के वैज्ञानिकों ने लुसी की डिजिटल पिक्चर का सिमुलेशन करके यह निष्कर्ष निकाला कि ऑस्ट्रलोपिथेकस की दौड़ने की क्षमता “बहुत सीमित” थी, जो लगभग 11 मील प्रति घंटे के आसपास थी. जबकि आधुनिक मानव 20 मील प्रति घंटे तक दौड़ सकते हैं.
इस अध्ययन ने यह भी बताया कि ऑस्ट्रलोपिथेकस से होमो सैपियंस तक के विकास में ऐसी शारीरिक संरचनाओं का विकास हुआ, जो दौड़ने में मदद करती हैं.
WHO रिपोर्ट: भारत में टीबी के सबसे ज्यादा मामले
ज़ूनोज़ जर्नल में प्रकाशित एक नई अध्ययन ने वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट 2024 के परिणामों का विश्लेषण किया. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब भी टीबी के मामले में दुनिया में सबसे ऊपर है, और यह वैश्विक स्तर पर 26 प्रतिशत मामलों का हिस्सा है. भारत में 2023 में कुल टीबी के मामले 2015 से 5 प्रतिशत बढ़ गए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में दुनिया भर में 10.5 मिलियन नए टीबी मामले दर्ज किए गए और 1.25 मिलियन टीबी से संबंधित मौतें हुईं. ये आंकड़े पिछले दो वर्षों के मुकाबले थोड़ा सा कम हुए हैं.
हालांकि, दुनिया भर में दवाइयों से प्रतिरोधी टीबी के मामलों में वृद्धि हो रही है, और 2023 में सभी नए टीबी मामलों में से 3.7 प्रतिशत मल्टी-ड्रग-रेसिस्टेंट (MDR) थे. विशेष रूप से चीन में दवाइयों से प्रतिरोधी तपेदिक सामान्य है. चीन में दुनिया भर के 7 प्रतिशत से ज्यादा ड्रग-रेसिस्टेंट टीबी के मामले हैं.
हालांकि, इस अध्ययन में यह भी कहा गया कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन टीबी को समाप्त करने के लिए प्रयासों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है, और 2023 में एक नया पांच साल का पहल शुरू की गई है. इस पहल के तहत, हर साल कम से कम एक नया टीबी वैक्सीन मंजूरी पाने का लक्ष्य रखा गया है. अगस्त 2024 तक, दुनिया भर में कम से कम 15 अलग-अलग प्रकार के टीबी वैक्सीन्स का विकास और परीक्षण किया जा रहा है.
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अंतरिक्ष प्रदूषण के लिए एसडीजी
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के स्पेस में बढ़ते मलबे से बचाने के लिए एक नया संयुक्त राष्ट्र सस्टेनेबिलिटी डेवलेपमेंट गोल (एसडीजी) प्रस्तावित किया है.
वन अर्थ में प्रकाशित इस अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने उपग्रहों के पर्यावरण पर बढ़ते प्रभावों को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि 1950 के दशक से अब तक करीब 20,000 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जा चुके हैं. जब उपग्रहों को छोड़ दिया जाता है, तो वे अंतरिक्ष मलबा बन जाते हैं और टकराव का खतरा बढ़ाते हैं.
अध्यान में स्पेस सस्टेनेबिलिटी को मॉडल करने के लिए एसडीजी18 प्रस्तावित किया गया है, जो एसडीजी14 (समुद्री प्रदूषण रोकथाम) के आसपास आधारित होगा. इसका मतलब है कि एसडीजी18 अंतरिक्ष मलबे के प्रबंधन के लिए वैश्विक समझौते स्थापित करने का लक्ष्य रखेगा, और समुद्री संरक्षण से सबक लेगा. यह लक्ष्य मौजूदा एसडीजी को पूरा करेगा, जो वर्तमान में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हैं लेकिन पर्यावरणीय खतरों को नजरअंदाज करते हैं.
यह नया अध्ययन, जिसे डॉ. इमोजेन नैपर (यूनिवर्सिटी ऑफ प्लिमाउथ) ने नेतृत्व किया, समन्वित कार्रवाई की तुरंत जरूरत पर जोर देता है. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि उपग्रहों को बिना नियंत्रण के भेजने से समुद्री प्रदूषण जैसी समस्याएं हो सकती हैं, जो पृथ्वी के कक्षा के वातावरण को खतरे में डाल सकती हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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