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शुक्रवार, 27 जून, 2025
होमरिपोर्टयुवाओं ने थामा विकास का हाथ, गांवों में होमस्टे, घाटियों में सैलानी — बस्तर की बदल रही है तस्वीर

युवाओं ने थामा विकास का हाथ, गांवों में होमस्टे, घाटियों में सैलानी — बस्तर की बदल रही है तस्वीर

जगदलपुर के डीएम जिले की सांस्कृतिक विविधता को और मजबूत बनाना चाहते थे. उनका सपना था कि बस्तर के लोक संगीत की खूबसूरती को कोक स्टूडियो जैसी पेशकश के ज़रिए रिकॉर्ड किया जाए. इसी सोच से ‘जादू बस्तर’ की शुरुआत हुई.

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बस्तर: जगदलपुर के ठीक बीच में स्पेशल टास्क फोर्स यूनिट स्नेक चार्मर्स की पूर्व चौकी है. यह 2022 तक इंद्रावती नामक एक्टिव कैंप था, जहां हर समय नक्सलियों के खिलाफ बंदूकधारी पहरा देते थे, लेकिन अब यह एक पर्यटक स्थल है.

लाल गलियारे की परत हटते ही अब इसके नीचे छिपी हरियाली दिखने लगी है — जो अब देशभर से आने वाले जिज्ञासु पर्यटकों को अपनी ओर खींच रही है. यह ऐसा बदलाव है जिसकी कल्पना भी दस साल पहले किसी ने नहीं की थी. कभी यह इलाका नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे देश की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती बताया था. दिल्ली में होने वाली हर सुरक्षा बैठक में यही चर्चा होती थी कि इससे निपटने का तरीका क्या हो — क्या यहां भी कश्मीर की तरह सेना भेजी जाए? क्या ड्रोन का इस्तेमाल किया जाए?

आज, बस्तर रील, रॉक म्यूजिक और नदियों का स्वर्ग है. यहां देखने के लिए प्राचीन मंदिर और घूमने के लिए गुफाएं हैं.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बस्तर में पर्यटकों की संख्या में 40 गुना वृद्धि देखी गई है. 2021 में, एक लाख से कुछ ज़्यादा लोगों ने इस क्षेत्र का दौरा किया. 2024 में यह संख्या 40 लाख को पार कर गई. अप्रैल 2025 तक 15 लाख लोग पहले ही यहां आ चुके थे.

एसटीएफ इंद्रावती कैंप को 2022 में पर्यटक स्थल में बदल दिया गया | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
एसटीएफ इंद्रावती कैंप को 2022 में पर्यटक स्थल में बदल दिया गया | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

जगदलपुर और आसपास का बस्तर इलाका तेज़ी से एक नए पर्यटन केंद्र के रूप में उभर रहा है. अब कई पढ़े-लिखे बस्तरिया युवा अपने घर लौट रहे हैं, ताकि वे इस इलाके के विकास की कहानी का हिस्सा बन सकें. पर्यटकों की बढ़ती संख्या और सरकार की कोशिशों से बस्तर की संस्कृति को बाहर तक पहुंचाने का जो काम हो रहा है, वह यह दिखाता है कि यहां के युवा अब नक्सलवाद की छाया और संघर्ष के पुराने डर को पीछे छोड़कर एक नई पहचान गढ़ना चाहते हैं.

इस क्षेत्र को 2024 में संयुक्त राष्ट्र पर्यटन ने वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर जगह दी थी. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित दुधमरस गांव को संयुक्त राष्ट्र के ग्रामीण पर्यटन विकास कार्यक्रम के लिए चुना गया है. अब यह गांव पर्यटन से जुड़ी सुविधाएं विकसित करने के लिए छोटे अनुदान के ज़रिए मदद पाने की तैयारी में है.

बस्तर की सांस्कृतिक पहचान भी अब दूर-दूर तक पहुंच रही है — देशभर के कैफे में बस्तरिया लोकगीतों के पश्चिमी फ्यूजन संस्करण बज रहे हैं. यहां तक कि 2026 में 5 करोड़ रुपये की लागत से ‘बस्तर ओलंपिक’ के आयोजन की भी योजना है.

बस्तर के युवा अब एक बेहतर और उज्जवल भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, साथ ही वे अपनी सांस्कृतिक विरासत और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा को भी उतनी ही गंभीरता से ले रहे हैं.

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, “बस्तर की पहचान अब एक बड़े और सकारात्मक बदलाव से गुज़र रही है. जो इलाका कभी सिर्फ संघर्ष और नक्सलवाद के लिए जाना जाता था, वह आज अपनी खूबसूरत प्रकृति, समृद्ध संस्कृति और तरक्की की नई तस्वीर के रूप में उभर रहा है. माओवादी गतिविधियां अब बहुत कम हो गई हैं और बस्तर अब शांति और विकास की एक नई कहानी लिख रहा है.”

मार्च 2026 तक राज्य से नक्सलवाद खत्म करने के केंद्र सरकार के लक्ष्य ने राज्य सरकार को पूरी तरह सतर्क कर दिया है. इसका असर बजट पर भी दिखा — इस बार का सबसे बड़ा जोर बस्तर क्षेत्र में तेज़ विकास कार्यों पर रहा. इसी के साथ सरकार ने एक नया नारा दिया: ‘विकसित बस्तर की ओर’.

अब बस्तर सिर्फ शांति की ओर नहीं, बल्कि समृद्धि और पहचान की ओर भी बढ़ रहा है. इसका एक उदाहरण है नारायणपाल मंदिर — एक हज़ार साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर, जो अब एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
अब बस्तर सिर्फ शांति की ओर नहीं, बल्कि समृद्धि और पहचान की ओर भी बढ़ रहा है. इसका एक उदाहरण है नारायणपाल मंदिर — एक हज़ार साल पुरानी ऐतिहासिक धरोहर, जो अब एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन चुका है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

बस्तर का जादू

जगदलपुर के जिला कलेक्टर रजत बंसल बस्तर की सांस्कृतिक पहचान को मज़बूत करने के लिए पूरी तरह जुटे हुए थे. उनका सपना था कि बस्तर के लोकसंगीत के रंग में रंगा हुआ एक कोक स्टूडियो जैसा गाना रिकॉर्ड किया जाए, जो देशभर में छा जाए. इस ख्वाब का नतीजा निकला — एक शानदार म्यूज़िक एल्बम ‘जादू बस्तर’, जिसने भारत में तहलका मचा दिया.

जगदलपुर के रहने वाले गिटारिस्ट अनुराग जोस को तब बहुत खुशी हुई जब उनका पसंदीदा इंडी म्यूज़िक बैंड ‘दायरा’ साल 2022 में बस्तर म्यूज़िक फेस्टिवल के दौरान जगदलपुर आया. उस दौरान बैंड के सदस्यों की मुलाकात स्थानीय कलाकारों, जिनमें जोस भी शामिल थे, से हुई. फिर शुरू हुआ पांच दिनों का जुगलबंदी और आइडिया शेयर करने का सिलसिला.

बैंड ने मित्रता, जुड़ाव और महत्वाकांक्षा जैसे विषयों पर पांच लोकगीतों को चुना और इन पर आधारित ‘जादू बस्तर’ नाम से एक छोटा एल्बम (EP) बनाया. इसमें बस्तर के पारंपरिक लोकसंगीत को वेस्टर्न रॉक म्यूज़िक के साथ मिलाकर पेश किया गया. 2024 में रिलीज़ हुए इस एल्बम को यूट्यूब पर लाखों बार देखा गया.

अनुराग जोस को अब देशभर से दोस्तों के कॉल और मैसेज आ रहे हैं, जो इस म्यूज़िक एल्बम की तारीफ कर रहे हैं. उनके लिए म्यूज़िक सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि बस्तर की संस्कृति को देश-दुनिया तक पहुंचाने का ज़रिया है. उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट बस्तर की छवि को पूरी तरह बदल सकते हैं.

बैंड ‘दायरा’ के एक सदस्य ने कहा, “जादू बस्तर, दायरा के 10 साल के सफर का सबसे अहम हिस्सा है. इस एल्बम के ज़रिए हमें बस्तर की अनोखी कला और समृद्ध विरासत को जानने और दिखाने का मौका मिला.”

बस्तर का चित्रकोट झरना आज भी यहां आने वाले पर्यटकों के बीच एक बेहद लोकप्रिय जगह है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
बस्तर का चित्रकोट झरना आज भी यहां आने वाले पर्यटकों के बीच एक बेहद लोकप्रिय जगह है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

“अब बस्तर का आदिवासी लोकसंगीत वर्ल्ड म्यूज़िक से जुड़ गया है”. अनुराग जोस ने कहा, “आदिवासी लोकसंगीत की धुन अब वर्ल्ड म्यूज़िक की संरचना से मिल चुकी है. एक ही एल्बम में साइकेडेलिक रॉक, सॉफ्ट रॉक जैसे पांच अलग-अलग तरह के म्यूज़िक स्टाइल हैं. यह एक ऐसा मेल है, जिसमें बहुत बड़ी म्यूज़िक पावर छिपी है.”

वह उत्साह से बताते हैं कि उनके दोस्त अब देश के अलग-अलग शहरों में अपनी कारों में ये गाने जोर से चला रहे हैं.

अब यही दोस्त बस्तर घूमने की इच्छा जता रहे हैं. जोस ने कहा, “पहले बस्तर का नाम लेते ही लोगों को सिर्फ नक्सलवाद याद आता था, लेकिन इन गानों के ज़रिए अब लोग असली बस्तर को समझने लगे हैं.”

एल्बम का सबसे मशहूर गाना है ‘बैलाडीला’, जिसे यूट्यूब पर 20 लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है. यह एक पारंपरिक आदिवासी गीत है, जो बस्तर की खूबसूरती का वर्णन करता है. इस गाने को गाया है लोकगायक लखेश्वर खुदराम ने.

बैंड ‘दायरा’ ने इस गाने में एक हिंदी कविता जोड़ी है, जिसमें एक बस्तर के युवक की कहानी है — जो बड़ा नाम कमाने के लिए शहर चला जाता है, लेकिन बस्तर के जादू को याद करता रहता है.

खुदराम इस गाने को तेज़ बीट पर गाते हैं, बिल्कुल रैप की तरह. उन्होंने कहा, “हम हल्बी और दूसरी आदिवासी भाषाओं में इसी तेज़ रफ्तार में गाते हैं. यही हमारा पारंपरिक अंदाज़ है.”

लखेश्वर खुदराम और उनके साथी कलाकार पिछले कुछ समय से बस्तर के संगीत को छत्तीसगढ़ में फैलाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कुछ गाने स्थानीय रेडियो स्टेशनों पर रिलीज़ किए हैं, लेकिन यह पहला मौका था जब 60 साल की उम्र में उन्होंने किसी म्यूज़िक एल्बम (EP) पर काम किया.

उन्होंने कहा, “यह तो बस शुरुआत है. हम लोकगायक अभी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बस्तर का संगीत बाहर की दुनिया तक कैसे पहुंचाया जाए. ये लोकगीत धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हैं. इन्हें बचाने का एक ही तरीका है — इन्हें फैलाना, सहेजना और अगली पीढ़ी को सिखाना.”

कांगेर घाटी में बने टूरिस्ट स्पॉट्स के साइनबोर्ड अब नए बस्तर की पहचान बन चुके हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
कांगेर घाटी में बने टूरिस्ट स्पॉट्स के साइनबोर्ड अब नए बस्तर की पहचान बन चुके हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

घर पर पर्यटकों का स्वागत

मान सिंह बघेल ने बचपन से ही अपने कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी महसूस की है. कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के भीतर बसे अपने छोटे से गांव से कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने वाले वे पहले व्यक्ति थे और तभी से उनके मन में गांववालों के लिए कुछ अच्छा करने की भावना थी. 32 साल के बघेल का सपना था कि वे अपने गांव के लोगों की ज़िंदगी बेहतर बनाएं.

उनकी यह यात्रा 2016 में शुरू हुई, जब उन्हें पहली बार पता चला कि होमस्टे एक ऐसा तरीका हो सकता है जिससे आम लोग भी पर्यटन के ज़रिए कमाई कर सकते हैं. बस इतना करना था कि पर्यटकों को अपने घर में रुकने की जगह देनी थी. उन्होंने अपने घर के बाहर एक खुले मैदान में एक छोटा कमरा बनवाया और उसका नाम रखा ‘दुर्वा होमस्टे’, लेकिन इसे पूरी तरह शुरू करने में उन्हें करीब 10 साल लग गए और 2024 में जाकर होमस्टे का काम चालू हो पाया.

बघेल ने कहा, “पहले जब पर्यटक हमारे गांव आते थे, तो वे रुकने की जगह पूछते थे, लेकिन कोई इंतजाम न होने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता था. गांव के लोगों की सोच भी ऐसी थी कि पर्यटकों को घर बुलाना ठीक नहीं. मुझे ये सोच बदलनी पड़ी. मैंने सबको समझाया कि इससे हमारी आमदनी बढ़ेगी और अब धीरे-धीरे चीज़ें बदल गई हैं.”

आज मान सिंह बघेल और उनका परिवार, दुर्वा होमस्टे में आने वाले पर्यटकों का गर्मजोशी से स्वागत करता है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
आज मान सिंह बघेल और उनका परिवार, दुर्वा होमस्टे में आने वाले पर्यटकों का गर्मजोशी से स्वागत करता है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

मान सिंह बघेल को वन विभाग ने अपने होमस्टे की शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया था. अब सरकार खुद भी ग्रामीण होमस्टे नीति के ज़रिए पर्यटक स्थलों पर ऐसे प्रयासों को बढ़ावा दे रही है.

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने दिप्रिंट से कहा, “हम बस्तर की अनोखी संस्कृति और जैव विविधता को बचाते हुए यहां की बुनियादी सुविधाएं और पहुंच बेहतर बना रहे हैं. इसके साथ ही हम एक नई होमस्टे नीति पर काम कर रहे हैं ताकि ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा मिले और स्थानीय परिवारों को नियमित आमदनी मिल सके. हम निजी एजेंसियों के साथ मिलकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर बस्तर को वैश्विक स्तर पर दिखाने और पर्यटक स्थलों को मैप करने का काम भी कर रहे हैं.”

बघेल ने 2023 में अपने खेत में तीन नए कमरे बनाए, जिन्हें अब फोन कॉल के ज़रिए बुक किया जा सकता है. बीते साल सर्दियों में उनका बिज़नेस तेजी से बढ़ा — हर हफ्ते 5-6 बुकिंग्स आने लगीं.

अब तो उम्मीदें और बढ़ गई हैं, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने बघेल के गांव दुधमरस को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर शामिल कर लिया है. गांव के पास बहने वाली कांगेर नदी में एडवेंचर टूरिज्म (जैसे कयाकिंग, बोटिंग) के अवसर भी सामने आ रहे हैं.

इसके अलावा, पर्यटकों के आकर्षण के लिए यहां कोटुमसर, कैलाश और दंडक गुफाएं, तीरथगढ़ झरना और भैंसा दरहा जैसे स्थल भी हैं.

बघेल अपने होमस्टे में आने वाले मेहमानों के लिए गाइड की भूमिका भी खुद निभाते हैं.

कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में कयाक और बांस की नावें अब पर्यटकों को नए रोमांच का अनुभव दे रही हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में कयाक और बांस की नावें अब पर्यटकों को नए रोमांच का अनुभव दे रही हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

बस्तर में बढ़ते पर्यटन ने गांव के युवाओं के लिए रोज़गार के नए रास्ते खोल दिए हैं. अब उन्हें काम की तलाश में महाराष्ट्र, तेलंगाना या गोवा जैसे राज्यों में पलायन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती, जैसा पहले होता था.

इस बदलाव का एक अच्छा उदाहरण हैं समनाथ नायक. 27-वर्षीय समनाथ ने कांगेर नदी पर पर्यटकों को सैर कराने के लिए बांस की नावें (राफ्ट) बनाईं हैं. उन्होंने दिसंबर 2024 में यह काम शुरू किया था.

वह बताते हैं, “हम नाव चलाने वाले लोगों ने खुद ही बांस खरीदा और इन राफ्टों को तैयार किया. हमें इसका आइडिया पास के गांव दुर्गा डेरा से मिला, जहां पहले से पर्यटक आते थे.”

अब हर वीकेंड उनके गांव में करीब 20 कारों में भरकर पर्यटक आते हैं और राफ्टिंग का आनंद लेते हैं.

नायक ने कहा, “इस काम से मुझे बहुत खुशी मिलती है, क्योंकि अब मैं अपने गांव में ही रहकर कमाई कर सकता हूं. गांव की महिलाएं भी अब छोटे-छोटे स्टॉल लगाकर जंगल से मिलने वाले उत्पादों को पर्यटकों को बेचती हैं.”

बांस की नाव चलाकर समनाथ नायक को अपने ही गांव के पास काम मिल गया है — यह अब बस्तर के बदलते भविष्य की नई कहानी है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
बांस की नाव चलाकर समनाथ नायक को अपने ही गांव के पास काम मिल गया है — यह अब बस्तर के बदलते भविष्य की नई कहानी है | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

सस्टेनेबल टूरिज्म की ओर बस्तर का कदम

बस्तर में पर्यटन अभी शुरुआती दौर में है. यहां होटल, रिसॉर्ट और कैफे पिछले दो-तीन सालों में ही बनना शुरू हुए हैं, लेकिन यही चीज़ इसे खास बनाती है — यहां अब भी जंगल का असली सौंदर्य सबसे ऊपर है.

शाम होते ही यहां तेज़ म्यूज़िक की जगह झींगुरों की आवाज़ सुनाई देती है. प्लास्टिक कचरा बहुत कम है और आम पर्यटन स्थलों की तरह मैगी पॉइंट्स भी नहीं दिखते. उनकी जगह गांव की आदिवासी महिलाएं आम चाट और ब्रेड पकौड़े जैसे देसी खाने के स्टॉल चलाती हैं.

स्थानीय लोग इस बात को लेकर बहुत सजग हैं कि अगर बिना सोचे-समझे पर्यटन को बढ़ावा दिया गया, तो इससे यहां की प्राकृतिक पारिस्थितिकी को नुकसान हो सकता है. इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता है कि यह पर्यटन मॉडल समुदाय आधारित हो — यानी इसका लाभ सीधा स्थानीय लोगों को मिले.

वे यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि प्लास्टिक प्रदूषण न फैले और पर्यटक भी इस जिम्मेदारी को समझें.

बस्तर में आदिवासियों द्वारा लगाए गए छोटे-छोटे दुकानों पर खरीदारी करते पर्यटक अब इस बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट
बस्तर में आदिवासियों द्वारा लगाए गए छोटे-छोटे दुकानों पर खरीदारी करते पर्यटक अब इस बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं | फोटो: शुभांगी मिश्रा/दिप्रिंट

तीरथगढ़ झरना, जो 2003 से ही एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल रहा है, वहां अब ग्राम पंचायत के सदस्य जगह-जगह तैनात रहते हैं ताकि कोई भी पर्यटक कचरा न फैलाए. वे पर्यटकों के बैग की जांच करते हैं और प्लास्टिक की बोतलें या रैपर वॉटरफॉल तक ले जाने की अनुमति नहीं देते.

इस प्रयास के लिए फंडिंग, हर आने वाली कार से 30 रुपये शुल्क लेकर की जाती है.

इस पूरे समुदाय-आधारित पर्यटन मॉडल की अगुवाई कर रहे हैं जीत सिंह आर्य, जिन्होंने 2016 में ‘अनएक्सप्लोर्ड बस्तर’ नाम से एक ट्रैवल कंपनी शुरू की थी. उनका उद्देश्य था बस्तर में ऐसा पर्यटन विकसित करना जो स्थानीय समुदायों और सरकार दोनों को साथ लेकर चले.

आर्य ने दिप्रिंट को बताया, “जब मैं गुरुग्राम में एमबीए कर रहा था, तो लोगों के मन में बस्तर को लेकर बहुत नकारात्मक सोच थी. इसे बदलने के लिए मैंने 2010 में एक फेसबुक पेज बनाया, जो बाद में 2016 में एक कंपनी बन गई. मैं खुद बस्तर का रहने वाला हूं, इसलिए वापस आकर अपने इलाके के लिए कुछ करना चाहता था. मुझे यहां संभावनाएं दिखीं. यहां स्किल्ड लोगों की ज़रूरत थी और मैं उनमें से एक था — इसलिए लौट आया,”

आर्य मानते हैं कि स्थानीय कला और शिल्प में पर्यटकों की दिलचस्पी ने यहां के समुदायों को अपना गौरव लौटाने में मदद की है.

इसी कड़ी में आता है ‘गोदना टैटू’, जो बस्तर की पारंपरिक टैटू आर्ट है. 2021 में छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासी युवाओं — लड़कों और लड़कियों — को इस पारंपरिक कला में प्रशिक्षण देना शुरू किया.

इसी प्रशिक्षण की बदौलत धरुजय बघेल आज गोदना टैटू आर्टिस्ट बन पाए.

उन्होंने बादल स्कूल में एक महीने का प्रशिक्षण लिया, जिसके बाद सरकार से टैटू किट मिली. इसी किट की मदद से उन्होंने चित्रकोट झरने के पास अपना काम शुरू किया.

चित्रकोट में अपने स्टूडियो में एक ग्राहक को टैटू बनाते धरुजय बघेल | फोटो: शुभांगी मिश्रा
चित्रकोट में अपने स्टूडियो में एक ग्राहक को टैटू बनाते धरुजय बघेल | फोटो: शुभांगी मिश्रा

धरुजय बघेल बताते हैं, “जब मुझे सरकार से टैटू किट मिली, तो मैंने चित्रकोट झरने के सामने बैठकर लोगों को धीरे-धीरे गोदना टैटू बनवाने के लिए आमंत्रित करना शुरू किया. काम करते-करते बहुत कुछ सीखा.”

अब उन्होंने झरने के पास ही एक छोटी दुकान किराए पर ले ली है. यह उनके लिए कमाई का अच्छा ज़रिया बन गया है — एक ग्राहक को टैटू बनाकर ही वो अपने पूरे महीने का किराया निकाल लेते हैं. साथ ही, उन्हें इस बात का गर्व भी है कि वे बस्तर की पारंपरिक गोदना कला को बचाने में योगदान दे रहे हैं.

बघेल ने कहा, “यहां के लोग खुश होते हैं जब वे देखते हैं कि पर्यटक उनकी संस्कृति की सराहना करते हैं. उन्हें लगता है कि उनकी परंपराएं दुनिया के लिए भी अहम और सम्माननीय हैं. लोग सोचते हैं कि बस्तर असुरक्षित जगह है, लेकिन ऐसा नहीं है. अगर बस्तर की एक अच्छी छवि बनाई जाए, तो यह पर्यटकों के मन में इस जगह को लेकर भरोसा पैदा करेगी.”

जीत सिंह आर्य का मानना है कि अगर यहां मेघालय या केरल जैसे पर्यटन मॉडल को अपनाया जाए, तो बस्तर को बड़ा फायदा हो सकता है.

लेकिन बघेल जैसे लोग यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि पर्यटक जब बस्तर आएं तो संवेदनशीलता और जिम्मेदारी से पेश आएं.

बघेल ने कहा, “अक्सर पढ़े-लिखे लोग ही यह नहीं समझते कि प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. हम उनसे बस इतना ही कहते हैं कि प्लास्टिक यहीं न फेंकें, वापस शहर ले जाएं.”

इसी बीच पर्यटक बांस की नावों में बैठकर सैर कर रहे हैं, झरने के पास फोटो खिंचवा रहे हैं और अपनी इंस्टाग्राम रील्स में ‘बैलाडीला’ गाने का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे एक ऐसी शांति का अनुभव कर रहे हैं, जिसकी उन्होंने बस्तर से कभी उम्मीद नहीं की थी.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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