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Friday, 31 October, 2025
होमरिपोर्टहिमालय में गूंजी जशपुर की गूंज: आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक पर खोला नया पर्वतारोहण मार्ग

हिमालय में गूंजी जशपुर की गूंज: आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक पर खोला नया पर्वतारोहण मार्ग

यह ऐतिहासिक अभियान सितंबर 2025 में जशपुर प्रशासन और पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से आयोजित हुआ. अभियान को हीरा ग्रुप सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का सहयोग मिला.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले के आदिवासी युवाओं ने भारतीय पर्वतारोहण इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है. इन युवाओं की टीम ने हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊंची जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोला है, जिसे मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल के सम्मान में ‘विष्णु देव रूट’ नाम दिया गया है.

यह दल केवल 12 घंटे में बेस कैंप से शिखर तक पहुंचा और वह भी आल्पाइन शैली में — यानी बिना फिक्स रोप, सपोर्ट स्टाफ या पूर्वनिर्धारित मार्ग के. यह शैली पर्वतारोहण की सबसे कठिन और जोखिमभरी विधाओं में मानी जाती है.

यह ऐतिहासिक अभियान सितंबर 2025 में जशपुर प्रशासन और पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से आयोजित हुआ. अभियान को हीरा ग्रुप सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का सहयोग मिला.

यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि इस दल के पांचों पर्वतारोही पहली बार हिमालय पहुंचे थे. सभी को जशपुर प्रशासन द्वारा विकसित ‘देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया’ में प्रशिक्षण दिया गया — यह भारत का पहला प्राकृतिक प्रशिक्षण क्षेत्र है जो पूरी तरह एडवेंचर खेलों को समर्पित है.

प्रशिक्षण कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया गया. इसमें बिलासपुर के पर्वतारोही स्वप्निल राचेलवार, न्यूयॉर्क (अमेरिका) के रॉक क्लाइम्बिंग कोच डेव गेट्स, और रनर्स XP के निदेशक सागर दुबे शामिल रहे. इन विशेषज्ञों ने दो महीने की कठोर ट्रेनिंग और 12 दिन के अभ्यास पर्वतारोहण के बाद टीम को तैयार किया.

अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार ने बताया कि मौसम बेहद खराब था, दृश्यता सीमित थी और ग्लेशियरों में छिपी दरारें चुनौती बन रही थीं. उन्होंने कहा, “फिर भी हमारी टीम ने बिना किसी फिक्स रोप या सपोर्ट टीम के यह चढ़ाई पूरी की. यही आल्पाइन स्टाइल की असली पहचान है.”

स्पेन के प्रसिद्ध पर्वतारोही और वर्ल्ड कप कोच रह चुके टोती वेल्स, जो अभियान की तकनीकी कोर टीम का हिस्सा थे, ने कहा, “इन युवाओं ने, जिन्होंने जीवन में कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है. यह साबित करता है कि अगर सही प्रशिक्षण और अवसर मिले तो भारत के ग्रामीण और आदिवासी पर्वतारोही भी विश्व स्तर पर चमक सकते हैं.”

अभियान का नेतृत्व स्वप्निल राचेलवार ने किया, जबकि राहुल ओगरा और हर्ष ठाकुर सह-नेता रहे. पर्वतारोही दल में रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक शामिल थे. प्रशासनिक सहयोग डॉ. रवि मित्तल (IAS), रोहित व्यास (IAS), शशि कुमार (IFS) और अभिषेक कुमार (IAS) ने दिया.

तकनीकी मार्गदर्शन डेव गेट्स, अर्नेस्ट वेंटुरिनी, मार्टा पेड्रो (स्पेन), केल्सी (अमेरिका) और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने दिया. डॉक्यूमेंटेशन और फोटोग्राफी कॉफी मीडिया की टीम (ईशान गुप्ता) द्वारा की गई.

मुख्य सहयोगी संस्थानों में पेट्ज़ल, एलाइड सेफ्टी इक्विपमेंट, रेड पांडा आउटडोर्स, रेक्की आउटडोर्स, अडवेनम एडवेंचर्स, जय जंगल प्राइवेट लिमिटेड, आदि कैलाश होलिस्टिक सेंटर, गोल्डन बोल्डर, क्रैग डेवलपमेंट इनिशिएटिव और मिस्टिक हिमालयन ट्रेल शामिल रहे.

सीएम ने उपलब्धि पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “यह सिर्फ एक पर्वतारोहण सफलता नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक है कि भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊंचाइयों तक पहुंच सकता है.”

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