नई दिल्ली: स्मृति ईरानी जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व को बढ़ाना चाहती हैं लेकिन वह किसी उम्मीदवार को टिकट देने के मानदंड के रूप में लिंग के मुकाबले जीतने की क्षमता को प्राथमिकता देती हैं. वह पत्रकार निधि शर्मा की पुस्तक शी, द लीडर के विमोचन के अवसर पर बोल रही थीं. ईरानी किताब में शामिल 17 नेताओं में से एक हैं.
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित चर्चा राजनीतिक सीमाओं से परे थी. ईरानी के अलावा, बीआरएस की के. कविता, सीपीआई (एम) के जॉन ब्रिटास और कांग्रेस के मनीष तिवारी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी और महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए.
एलेफ द्वारा प्रकाशित, यह पुस्तक चार खंडों में विभाजित है, जिसमें इंदिरा गांधी, जयललिता, सुषमा स्वराज, मायावती और ममता बनर्जी सहित 17 प्रमुख महिला राजनेताओं के जीवन और राजनीतिक यात्राओं का विवरण दिया गया है. लेखिका ने बताया कि उनकी इस पहली किताब ने महामारी के दौरान आकार लिया.
जमीनी स्तर की भागीदारी
दर्शकों में शामिल कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर और स्मृति ईरानी ने एक जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे जिसमें जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व में वृद्धि का महत्व पर बात रखी. उन्होंने इसे राष्ट्रीय स्तर पर सांसदों की गिनती को पार करते हुए, राजनीति में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के सच्चे प्रमाण के रूप में देखा.
हालांकि, ईरानी के लिए, यह जीतने की क्षमता की कसौटी है जो सबसे ज्यादा मायने रखती है. उन्होंने कहा, “मैं टिकट पाना पसंद करूंगी क्योंकि मैं एक जीतने योग्य उम्मीदवार हूं, इसलिए नहीं कि मैं एक महिला हूं.”
शर्मा के काफी समझाने के बावजूद ईरानी ने महिला आरक्षण विधेयक पर संसद में कानून लाने की संभावना पर स्पष्ट जवाब देने से इनकार कर दिया. लेकिन उन्होंने कहा कि जब इसे राज्यसभा में पेश किया गया था तब विपक्ष में रही भाजपा ने इसका समर्थन किया था.
उन्होंने कहा, “विधानसभा और मिड लेवल पर इसे बढ़ाने की जरूरत है. फोकस मुख्य रूप से संसद पर रहा है. हमें यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि राजनीतिक शक्ति मूलतः क्या है. महिलाएं एक महत्वपूर्ण वोट बैंक के रूप में उभरी हैं, जो एक बड़ा बदलाव ला रही हैं.”
सबसे अधिक चाह वाला पेशा
इस मौके पर तेलंगाना विधान परिषद की सदस्य के कविता ने कहा कि राजनीति में आना उनकी पहली इच्छा नहीं थी. उन्होंने इससे दूर रहने का फैसला काफी हद तक अपने पिता के.चंद्रशेखर राव की पारिवारिक प्रतिबद्धताओं के साथ राजनीतिक जिम्मेदारियों को संतुलित करने के प्रयासों को देखने के बाद लिया था.
कविता ने कहा, “मैंने बिजनेस में कुछ नया करने के बारे में सोचा था. जिसकी वजह से मैंने कंप्यूटर साइंस को अपने लिए चुना था. हालांकि, तेलंगाना आंदोलन, हमारे क्षेत्र के इतिहास में एक निर्णायक क्षण था, जिसने व्यापक भागीदारी को प्रज्वलित किया और तभी मेरी राजनीतिक यात्रा शुरू हुई. ”
ईरानी, जो किसी राजनीतिक परिवार से नहीं आती हैं, ने कहा कि इस वजह से उन्हें अक्सर निशाना बनाया जाता है.
उन्होंने कहा, “मुझे याद है एक बार एक एमीनेंट शिक्षाविद् ने मुझसे कहा था – लोग तुम्हें अशिक्षित कहेंगे. मेरे विश्वविद्यालय आओ और मेरे साथ एक फोटो खिंचवाओ, तब तुम्हारा सम्मान किया जाएगा.”
केरल से राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने कहा कि जब तक भारत की संसद और निर्णय लेने वाली संस्थाओं में महिला सदस्य नहीं होंगी, बदलाव असंभव है. “जब तक आप महिला आरक्षण विधेयक नहीं लाएंगे, बाहुबल और धनबल कायम रहेगा और संसद में महिलाओं की संख्या या तो स्थिर रहेगी या कम हो जाएगी.” लेकिन फिर शर्मा ने ब्रिटास पर एक सवाल दागा – सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो में केवल दो महिलाएं क्यों हैं? हालांकि इसके लिए उनके पास कोई साफ उत्तर नहीं दिया.
के कविता ने कहा कि राजनीतिक दल हमारे समाज का प्रतिबिंब हैं, चाहे वह सीपीआई (एम), बीआरएस, कांग्रेस या भाजपा हो. उन्होंने कहा, “महिलाओं को बिना जरूरत के शामिल किए जाने के बिना, देश की प्रगति स्थिर रहती है; कोई भी राजनीतिक दल स्वेच्छा से परिवर्तन को स्वीकार नहीं करता. जीतने की क्षमता के कारक हमारे चेहरे पर उछाला जाएगा. केवल राजनीतिक संबद्धता वाली महिलाएं ही भाग लेने और चुनाव लड़ने के लिए आगे बढ़ेंगी.”
कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा कि 2004 में, उन्होंने पुरुषों को बैठकों में चुनी गई महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते देखा था, लेकिन वह समय बदल गया है.
उन्होंने कहा, “हम तब से एक लंबा सफर तय कर चुके हैं. यह इवोल्यूशन प्रोडक्ट है, यदि आपके पास महिला आरक्षण बिल होगा, तो यह निश्चित रूप से विकास को बल देगा. आपके पास बड़ी संख्या में महिलाएं आगे आ रही हैं और सार्वजनिक जीवन में भाग ले रही हैं. ”
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