नई दिल्ली : गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगांग त्सो के कुछ अग्रिम इलाकों को छोड़कर लद्दाख में चीनियों की मौजूदगी इस साल मई से बढ़ी है. सैटेलाइट इमेजरी विशेषज्ञों के मुताबिक इसमें अतिरिक्त रक्षा उपकरणों की तैनाती के साथ मौजूदा ठिकानों के पास खाई और बैरियर आदि रक्षात्मक ढांचे तैयार करना शामिल है.
यह सब दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर कई बार बातचीत के बावजूद हुआ है, जिसमें कोर कमांडर स्तर की चार वार्ता, और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच चर्चा शामिल है.
रक्षा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और उनके चीनी समकक्ष मेजर जनरल लिन लियू के बीच 14 जुलाई को हुई कोर कमांडर स्तर की अंतिम दौर की वार्ता के बाद भी चीनी तैनाती की स्थिति में कतई बदलाव नहीं आया है.
आखिरी वार्ता के बाद, सेना ने कहा था कि दोनों पक्ष लद्दाख से ‘पूर्ण वापसी’ पर चर्चा के लिए सहमत हुए हैं, लेकिन साथ ही कहा था कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य वापसी की प्रक्रिया जटिल होगी और इसके पूरी तरह सत्यापन की जरूरत पड़ेगी.
फोर्स एनालिसिस और स्टैटफोर से जुड़े बेल्जियम के एक सैन्य विश्लेषक सिम टैक ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि पिछले कुछ महीनों में लद्दाख में चीनी मौजूदगी में लगातार वृद्धि नजर आई है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इसका मतलब है कि मौजूदा ठिकानों पर खाई और बैरियर जैसे रक्षात्मक ढांचे को मजबूत करने के साथ-साथ नए शिविरों का निर्माण और अतिरिक्त उपकरणों की तैनाती हमारी नजर में आई है.’
उन्होंने आगे कहा कि चीन अब भी इन ठिकानों को जोड़ने वाली सड़कों को बेहतर बनाने के काम में तेजी से लगा है, जिससे भविष्य में तैनाती और आसानी होगी.
साथ ही यह भी जोड़ा, ‘जिन जगहों पर इसके उलट ट्रेंड नजर आया उनमें केवल गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगांग त्सो के अग्रिम इलाके शामिल हैं, जहां पारस्परिक सहमति से वापसी के तहत चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के कई किलोमीटर के भीतर तक अपने सैन्य निर्माण को हटाया है.’
हालांकि, कुछ सैन्य विशेषज्ञ इस तरह के चीनी सैन्य विस्तार को ‘दिखावा’ और अपनी क्षमता का प्रदर्शन मानते हैं जबकि कुछ को संदेह है कि यह कोई ‘चालबाजी’ हो सकती है.
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‘सैटेलाइट तस्वीरों का प्रदर्शन के लिए इस्तेमाल संभव’
कुछ सैन्य विशेषज्ञों ने महसूस किया कि हो सकता है कि चीन ने मनोवैज्ञानिक अभियान के तहत कॉमर्शियल ग्रेड वाली सैटेलाइट के कैमरों में कैद कराने के लिए इन तस्वीरों का इस्तेमाल किया हो.
14वीं कोर के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पी.जे.एस. पन्नू ने दिप्रिंट को एक इंटरव्यू में बताया कि उपग्रह से मिली तस्वीरों का विश्लेषण करते समय विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा.
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर एक सैटेलाइट का रिजोल्यूशन एक मीटर होने की स्थिति में भी आप पता नहीं लगा सकते कि किसी जगह पर कोई सैनिक खड़ा है या अथवा कोई अन्य वस्तु या पत्थर है.’
उन्होंने कहा, ‘तथ्य यह भी है कि ये सैटेलाइट घूमते रहे हैं और वे उस समय तस्वीरें लेते हैं जब उस क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहे हों और क्षेत्र के ऊपर से गुजरने के दौरान एक समान कोण भी नहीं होता है.’
पन्नू ने कहा कि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) जैसी पेशेवर सेना के संदर्भ में, जिस तरह से इन तस्वीरों को टीवी पर दिखाया गया, ऐसा लगता था कि इन्हें छिपाने से ज्यादा दिखाने (उपकरणों का प्रदर्शन) की कोशिश हो रही थी.
उन्होंने कहा, ‘सामान्य युद्ध की स्थिति में सेना में हर कोई इतना सचेत होता है कि सैटेलाइट को यह पता लगाने में सक्षम नहीं होना चाहिए कि वे कहां हैं। अगर पीएलए के टैंकों, टेंट और ट्रक इतने खुले तौर पर नजर आ रहे हैं तो यह दिखावे की कोशिश ज्यादा नजर आती है….हम नहीं जानते कि ये सब कितना वास्तविक हैं और क्या डमी है.’
उन्होंने कहा कि चीनी, सुरंग बनाने और अपने इरादों और सैन्य बलों को छिपाने में उस्ताद हैं
उन्होंने कहा, ‘वे इसे क्यों दिखाना चाहेंगे? इसलिए, मैं उन चीजों को देखना चाहूंगा, जो सैटेलाइट तस्वीरों में नहीं आई हैं. बजाये उनके जो कि व्यावसायिक श्रेणी के सैटेलाइट में इतनी आसानी से उपलब्ध हैं’
सैन्य ऑपरेशन्स के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त) ने कहा कि सैटेलाइट इमेजरी निश्चित रूप से इनपुट दे सकती है लेकिन उसकी विभिन्न खुफिया स्रोतों से पुष्टि करने की जरूरत होती है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जहां तक चीन की बात है तो यह वास्तविक सैन्य विस्तार और दिखावे का मिला-जुला रूप हो सकता है.’
उन्होंने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि दिन के समय में सैन्य गतिविधियां सामान्यत: नहीं होती हैं, और छद्मावरण इतनी आसानी से सैटेलाइट की नजर में आना संभव नहीं है.
उन्होंने आगे कहा. ‘लेकिन इस मामले में, यह संभवतः वाणिज्यिक सैटेलाइट के जरिये इन चीजों को नजर में लाना चाहता है.’
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टेंट, वाहन, ढांचागत उपकरण इस्तेमाल में होना संभव’
हालांकि, अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर नजरों को धोखा देने की कोशिश मुश्किल ही है.
एक अनाम सैटेलाइट इमेजरी विश्लेषक, जो @detresfa नाम से ट्विटर हैंडल का उपयोग करते हैं, ने कहा कि एयरबेस, अनुसंधान और विकास सुविधाओं में इस तरह की चालबाजी का इस्तेमाल आम होता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, हमने अक्साई चिन में चीनी ठिकानों से जुड़ा जो अधिकांश डाटा देखा है उसमें विभिन्न टेंट, वाहन और इन्फ्रास्ट्रक्चर उपकरण चालू हालत में होने और इस्तेमाल में लाए जा रहे नजर आ रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि देश के आधार पर तो सैन्य श्रेणी के सैटेलाइट ही बेहतर जानकारी दे सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर अमेरिका को ले सकते हैं जहां राष्ट्रपति ट्रम्प के 2019 में एक ट्वीट के जरिये ईरान के इमाम खुमैनी स्पेस सेंटर की अमेरिकी जासूसी उपग्रहों से ली गई तस्वीर दिखाई थी, जिसके बारे में बहुत से लोग नहीं जानते थे.’
टैक ने बताया कि वाणिज्यिक सैटेलाइज इमेजरी बहुत सटीक है, और उन्हें इमेजरी के विभिन्न स्रोतों (जैसे प्लेनेट, मैक्सर, और एयरबस) पर पूरा भरोसा है जिन्होंने विशेष तैनाती के अध्ययन के लिए 30 सेमी तक का रिजोल्यूशन उपलब्ध कराया है.
उन्होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर चालबाजी को असली दिखाने की क्षमता होती है, और यही वो चीज है जिसे हम अपनी विश्लेषणात्मक विशेषज्ञता सिद्धांतों और चीनी सेना की गतिविधियों के आधार पर सैटेलाइट तस्वीरों के अपने विश्लेषण में उजागर करने की कोशिश करते हैं. इसमें ‘सजीवता के पहलू’ से भी विश्लेषण किया जाता है जिसमें संबंधित ठिकानों पर वाहनों और उपकरणों की निरंतर आवाजाही व अन्य गतिविधिया देखी जाती हैं.’
टैक ने कहा कि चीन के बहुत सारे छद्मावरणों में एक लाल रंग नजर आता है, जिसका उद्देश्य सैटेलाइज तस्वीरों में स्पष्ट तौर पर नजर आना हो सकता है.
उन्होंने कहा कि एक तरफ सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण की सीमाएं हैं तो धोखेबाजी की संभावना को भी कभी पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता. ‘लेकिन लद्दाख की मौजूदा स्थिति में हमारा मानना है कि जिस स्तर की गतिविधियां चल रही हैं, वो ये दर्शाती हैं कि यह व्यापक स्तर पर धोखा देने का प्रयास तो नहीं ही है.’
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सैटेलाइट तस्वीरों के आकलन में ‘खामियां’
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने कहा कि मौजूदा समय में उपलब्ध व्यावसायिक डाटा रिजोल्यूशन और सटीकता के लिहाज से काफी अलग-अलग है, जिसमें कुछ स्पाटियल रिजोल्यूशन, रेडियोमेट्री और सटीक जगह पता लगाने के संदर्भ में काफी बेहतर है.
रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘हालांकि, तस्वीरों के सैन्य स्तर पर आकलन की समझ और एलएसी के वास्तविक संरेखण की जानकारी के अभाव में इन सैटेलाइट तस्वीरों के आकलन में खामियां हैं.’
सैटेलाइट इमेजरी पर काम करने वाले सूत्र ने कहा कि उपग्रह से मिली तस्वीरों की व्याख्या एक विशेषज्ञता वाली गतिविधि है जिसके लिए आला दर्जे का कौशल और वर्षों का अनुभव जरूरी होता है.
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भारत सरकार को भारी पैमाने पर वायु सेना का साजो समान और और लड़ाकू विमान बड़ी तेजी से खरीदने और अपने देश में ही बनाने के लिए रक्षा बजट कम से कम 10 गुना बड़ा देना चाहिए और जैसे ही स्थिति मजबूत हो जाती है चीन को पीछे हटने की चेतावनी दे देनी चाहिए और यदि वह निर्धारित समय सीमा में पीछे नहीं हटता तो वहां तैनात उसकी सारी फौज को बमबारी के द्वारा नेस्तनाबूद कर देना चाहिए जिससे चीन की सरकार में भय उत्पन्न हो जाए और वह हमारे देश की जमीन पर कब्जा करने की सपने में भी सोचना छोड़ दें
हमारे देश का प्रशासनिक एवम् राजनैतिक सिर्स नेतृव अपनी कर्तित्व की चरम सीमा पर है ।विश्व में अभूत पूर्व घटना दर्ज होने जा रही परिपक्वता स्पस्ट है