श्रीनगर: सुरक्षा का अभाव, फंड्स जारी होने में देरी, ख़राब आवास. ये केवल कुछ चिंताएं हैं जिन्हें कश्मीर के श्रीनगर में होटलों के अंदर बंद किए गए पंचायत राज संस्थाओं (पीआरआई) के सदस्य, रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जम्मू-कश्मीर दौरे के दौरान उठाना चाहते हैं, अगर उन्हें मौक़ा दिया जाए.
मोदी का जम्मू दौरा 24 अप्रैल को पंचायत राज दिवस के अवसर पर होना है. इस दौरे पर उनका पंचायत राज संस्थाओं के सदस्यों से बातचीत, औद्योगिक निवेशों की शुरुआत और विकास परियोजनाओं का उदघाटन करने का कार्यक्रम है.
पीआरआईज़ ने दिप्रिंट से कहा कि वो पीएम से ‘केवल घोषणाओं’ से ज़्यादा की अपेक्षा करते हैं.
बहुत से पीआरआई सदस्यों को, जिनमें सरपंच, पंच, पार्षद, और ज़िला विकास परिषदों, डीडीसी) के सदस्य शामिल हैं, श्रीनगर के होटलों और लॉज में ठहराया गया है, जहां चौबीसों घंटे सुरक्षा है. अगर उन्हें अपने इलाक़ों में काम के लिए जाना हो, तो स्थानीय पुलिस को सूचित करना होता है और सुरक्षा मांगनी होती है. एक पुलिस वाहन उन्हें उनके संबंधित चुनाव क्षेत्रों में लेकर जाता है और फिर वापस ले आता है. इनमें से अधिकतर लोगों को (2020 मे डीडीसी चुनावों के बाद से) यहां रहते हुए तीन साल से ऊपर हो गए हैं.
पिछले कुछ सालों में पंचायत नुमाइंदों पर हमलों में इज़ाफा देखा गया है. पुलिस आंकड़ों के अनुसार, पिछले छह महीनों में उग्रवादी छह पंचायत सदस्यों की हत्या कर चुके हैं.
2019 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने के बाद केंद्र ने जम्मू-कश्मीर पंचायत राज अधिनियम, 1989 में संशोधन करके डीडीसीज़ का गठन किया और जेएंडके यूटी में शासन की नई इकाइयां बनाईं.
राजबाग़ की एक पार्षद शाहीन भट्ट ने, जो एक महीने से अधिक से श्रीनगर के एक होटल में रह रही हैं, दिप्रिंट से कहा कि उन्हें अपनी सुरक्षा नाकाफी लगती है.
उन्होंने कहा, ‘मैं (उग्रवादियों के) निशाने पर हूं, लेकिन मुझे उचित सुरक्षा नहीं दी गई है. सिर्फ अपने परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, मुझे इस गंदे सो लॉज में रहना पड़ रहा है. मैं एक महीने से घर नहीं गई हूं.’
उन्होंने कहा कि चुनावों से पहले प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने वादा किया था कि अगर हम चुनाव लड़ें तो हमें सुरक्षा दी जाएगी. उन्होंने कहा, ‘वो सिर्फ एक प्रलोभन था. चुनावों के बाद हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया गया. पीएम से ये सब सवाल कौन करेगा?’
नौगाम डीडीसी के उपाध्यक्ष बिलाल अहमद भट्ट, पिछले सात महीने से एक होटल में रह रहे हैं.
भट्ट ने कहा, ‘चुनाव लड़ने के लिए हमने अपनी जान दांव पर लगाई है. हमसे सुरक्षा का वादा किया गया था, लेकिन अब यहां कुछ नहीं है. मैं हिट लिस्ट पर हूं, लेकिन मैंने पीएम की बात सुन ली, जब उन्होंने कहा कि ‘चुनाव में खड़े होईए, हम आपके साथ हैं’. ‘क्या सुरक्षा का मतलब ये है कि हमें होटल के कमरों में बंद रखा जाए? अगर हम यहीं बैठे रहे तो काम कैसे कर पाएंगे?’
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‘हमसे जो बन पड़ता है वो उन्हें मुहैया कराते हैं’
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक़, कश्मीर के 10 ज़िलों में कुल 13,761 पंचायत नुमाइंदे हैं- 11,477 पंच, 1,014 सरपंच, 121 डीडीसी अध्यक्ष, 521 नगर पार्षद, और 628 अन्य सदस्य हैं.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, कि उन सब को अलग अलग सुरक्षा मुहैया कराना मुमकिन नहीं था.
अधिकारी ने समझाया, ‘जो लोग श्रीनगर के क़रीब रहते हैं, उनके लिए हमने वहीं पर इंतज़ाम किए हैं. जो लोग बहुत दूर रहते हैं उनके लिए क्लस्टर्स बनाए गए हैं, और उन्हें वहां ठहरने के लिए कहा जाता है. उन क्लस्टर्स में चौबीसों घंटे सुरक्षा रहती है’.
‘क्लस्टर्स’ ऐसे आवास हैं जहां दो या तीन ज़िलों के लोग एक साथ रहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमसे जो बन पड़ता है वो उन्हें मुहैया कराते हैं. जब भी उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र में जाना होता है, तो एक पुलिस वाहन सुरक्षा के साथ उनके संग जाता है, लेकिन उन्हें अपने आवास पर लौटना होता है. हर बार बाहर जाने के लिए उन्हें एंट्री करनी होती है. ऐसा इसलिए है कि वो हमारी ज़िम्मेदारी है.’
कभी कभी इसमें चुनौतियां आ जाती हैं- मसलन, जब वो घर जाने के लिए चुपके से होटलों से निकल जाते हैं. लेकिन, जैसे ही कहीं किसी सरपंच या किसी पार्षद पर हमला होता है, तो होटलों के ये आवास फिर से भर जाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘जब भी कोई हमला होता है, तो वो सब वापस आ जाते हैं, क्योंकि उनकी समझ में आ जाता है कि ये उन्हीं की हिफाज़त के लिए है’.
‘बेहतर रिहाइश, ज़्यादा आज़ादी’
होटलों के अंदर रहने वालों के लिए, हालात बिल्कुल भी अच्छे नहीं हैं.
श्रीनगर के खिंबर के सरपंच मजीक नायकू होटल के एक तंग से होटल में बैठे हैं, जो सिर्फ इतना बड़ा है कि उसमें एक डबल बेड है, जिसपर एक गंदी सी चादर पड़ी है.
नायकू ने कहा, ‘इस कमरे में चार लोग रहते हैं, और हमें बाहर जाने की इजाज़त नहीं है, ख़ासकर इस वजह से कि हाल में पंचायत नेताओं की हत्याओं में इज़ाफा हुआ है. ज़रा इस कमरे की हालत देखिए, इस गंदे बाथरूम को देखिए’.
उन्होंने स्वीकार किया कि कभी कभी वो चुपके से निकलकर घर चले जाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘क्या हमने वो चुनाव इसलिए लड़े थे, कि अपने घर छोड़ दें और इन गंदे कोनों में बंद हो जाएं? इसके लिए किसी स्थायी समाधान की ज़रूरत है’.
आवास ख़राब हैं और खाना भी अच्छा नहीं है.
शाहीन भट्ट ने पूछा, ‘क्या चुनावों में खड़े होकर हमने कोई जुर्म कर दिया है?’
मज़दूर लोग भी परेशान हैं. नायकू ने कहा, ‘एक दिन हेडमास्टर ने मुझे बुलाया और कहा कि उन्हें मिड-डे मील की मंज़ूरी के लिए मेरे दस्तख़त की ज़रूरत है. मैं नहीं कर सका क्योंकि मैं यहां बंद था. मुझे सुरक्षा दीजिए ताकि मैं अपने इलाक़े में रहकर काम कर सकूं, मुझे यहां क्यों रखा हुआ है?’
फिर कुछ ज़्यादा नियमित चिंताएं भी हैं- विकास निधियों का देरी से जारी होना.
बटमालू के एक पार्षद हनीफ भट्ट ने कहा, ‘अगर हमें कोई बदलाव लाना है तो विकास कार्यों की रफ्तार को बढ़ाने की ज़रूरत है. मैं अथॉरिटीज़ को लिखता रहता हूं, लेकिन कुछ नहीं होता’.
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