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Wednesday, 22 January, 2025
होमरिपोर्टट्रंप 2.0 को लेकर पाकिस्तान 'सतर्क', पीटीआई को इमरान खान की रिहाई की उम्मीद

ट्रंप 2.0 को लेकर पाकिस्तान ‘सतर्क’, पीटीआई को इमरान खान की रिहाई की उम्मीद

विशेषज्ञ अमेरिकी राष्ट्रपति के दूसरे कार्यकाल को 'आशा और चिंता' के साथ देख रहे हैं. हालांकि चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन एक अधिक व्यावसायिक और अनिश्चित वैश्विक माहौल को समझदारी से अपनाना पाकिस्तान के लिए जरूरी होगा.

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नई दिल्ली: पाकिस्तानियों को डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल को लेकर सतर्कता है, लेकिन उनका मानना है कि देश “राष्ट्रपति की प्राथमिकताओं में ऊंचा स्थान नहीं रखता.”

विश्लेषकों और संपादकीयों ने उनके कार्यकाल को “उम्मीद और डर” के साथ देखा है. आम सहमति यह है कि हालांकि दांव ऊंचे हैं, लेकिन अधिक लेन-देन आधारित और अप्रत्याशित वैश्विक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठाने की देश की क्षमता आने वाले वर्षों में अपने राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण होगी.

“कुछ लोग भूल नहीं सकते कि ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में कितने विघटनकारी हो सकते हैं. हालांकि उनका कल का भाषण कुछ हद तक राजनेता जैसा था, लेकिन कई लोग यह देखने के लिए ट्रंप पर नजर रखेंगे कि क्या वह वास्तव में बदल गए हैं,” डॉन संपादकीय में कहा गया.

पीटीआई और इसकी उम्मीदें

इमरान खान के समर्थकों के लिए उम्मीद यह है कि ट्रंप का राष्ट्रपति कार्यकाल पूर्व प्रधानमंत्री की रिहाई के लिए एक मजबूत आधार देगा. तर्क सरल है: अमेरिका का पाकिस्तान पर, खासकर सैन्य मामलों में, अभी भी गहरा प्रभाव है, और ट्रंप इस प्रभाव का उपयोग खान की बहाली के लिए दबाव बनाने में कर सकते हैं.

अमेरिका और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक संबंध सैन्य सहयोग पर आधारित रहे हैं, जिसमें पेंटागन और पाकिस्तानी सेना के बीच के संबंध द्विपक्षीय रिश्ते का सबसे स्थायी पहलू रहे हैं. अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली महत्वपूर्ण सैन्य सहायता को देखते हुए, यह समझना आसान है कि क्यों खान के समर्थक आशावादी हैं कि ट्रंप उनकी रिहाई के लिए दबाव डाल सकते हैं. हालांकि, यह दृष्टिकोण बहुत ही सरल हो सकता है, पाकिस्तानी राजनीतिक विश्लेषक उमर कुरैशी ने दि फ्राइडे टाइम्स में लिखा.

उन्होंने लिखा, “इमरान खान के समर्थक ट्रंप के दूसरे कार्यकाल को उनकी रिहाई के लिए एक संभावित प्रोत्साहन मानते हैं, लेकिन अमेरिकी विदेश नीति में पाकिस्तान की घटती प्राथमिकता सीमित प्रभाव का संकेत देती है. सुरक्षा पर निर्भरता के बजाय आर्थिक संबंधों को प्राथमिकता देनी होगी. अगले चार वर्षों में अमेरिका के साथ संबंधों को लेकर पाकिस्तान को सतर्क रहना होगा.”

ट्रंप के अधीन अमेरिकी विदेश नीति की वास्तविकता कहीं अधिक जटिल हो सकती है.

कुरैशी ने जोड़ा, “पाकिस्तान को बेहद सतर्क और सावधान रहना होगा, क्योंकि कई भारतीय अमेरिकी, जो मोदी और भाजपा के प्रति सहानुभूति रखते हैं, को आगामी अमेरिकी सरकार में वरिष्ठ पदों पर नामित किया गया है. साथ ही, नए उपराष्ट्रपति की पत्नी भारतीय मूल की हैं.”

‘अब पुरानी यादों पर आधारित नहीं’

पाकिस्तानी व्यवस्था के लिए, घरेलू मामलों में बाहरी हस्तक्षेप का डर बड़े पैमाने पर बना हुआ है. एक पैनल चर्चा में पाकिस्तानी पत्रकार आमिर जिया ने कहा कि जहां अमेरिका के लिए ईरान, भारत और चीन के साथ पाकिस्तान की सीमाएं रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनी हुई हैं, वहीं वाशिंगटन द्वारा पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक परिदृश्य पर दबाव डालने की संभावना को लेकर चिंता बनी हुई है. डर यह है कि ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ऐसे तरीकों से हस्तक्षेप कर सकता है जो पाकिस्तान की घरेलू नीतियों को जटिल बना दें, विशेष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता और मानवाधिकार जैसे क्षेत्रों में.

अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को फिर से परिभाषित करने में एक अहम वजह है वैश्विक मंच पर पाकिस्तान का घटता दर्जा. हाल के वर्षों में, वाशिंगटन पर पाकिस्तान का प्रभाव कम हुआ है, विशेष रूप से अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ, जो अमेरिका-पाकिस्तान सहयोग का एक प्रमुख आधार था.

पूर्व राजदूत तौकीर हुसैन ने डॉन में लिखा, “ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के आसार के साथ, अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों को फिर से परिभाषित करने की आवश्यकता है, जिसमें गलत धारणाओं, पुरानी यादों और भावनात्मक पूर्वाग्रहों से परे, एक व्यावहारिक और हित-आधारित दृष्टिकोण अपनाया जाए.” उन्होंने आगे यह भी कहा, “लेन-देन आधारित अमेरिका-पाकिस्तान संबंध अब लेन-देन आधारित ट्रंप के हाथों में होंगे.”


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