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Saturday, 16 November, 2024
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कभी एक दलदली ज़मीन रहा बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स कैसे बना मुंबई का प्रमुख व्यवसायिक केंद्र

बहुत सारी बहुराष्ट्रीय सेवा कंपनियों, महंगे रोस्टोरेंट्स, रिहाइशी इलाक़ों, और विदेशी वाणिज्य दूतावासों के साथ, बीकेसी का विशेष रूप से पिछले दशक में बहुत तेज़ी से विकास हुआ है.

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मुम्बई: सिर्फ 30 साल पहले बांद्रा और कुर्ला के बीच की जगह मिथी नदी के साथ लगी एक दलदली ज़मीन थी. उसके बाद के सालों में इसे मुम्बई के एक अग्रणी व्यवसायिक केंद्र में तब्दील कर दिया गया है.

मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) की परिकल्पना की परिणति बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) में, अब सभी प्रकार की सेवा-क्षेत्र बहुराष्ट्रीय कंपनियां तथा विदेशी वाणिज्य दूतावास काम कर रहे हैं.

महंगे रेस्टोरेंट्स जाने वालों के लिए भी ये एक लोकप्रिय मंज़िल बन चुका है. एमएमआरडीए के अनुसार ये परिसर अब 2 लाख से अधिक नौकरियां उपलब्ध कराता है.

कैसे हुई शुरुआत

एमएमआरडीए के अनुसार, ये 1948 की एक स्टडी मोडक-मेयर रिपोर्ट थी, जिसने सबसे पहले बॉम्बे द्वीप से भीड़ को कम करने, और दक्षिण की ओर जाने वाले ट्रैफिक के प्रवाह को हल्का करने के लिए, बांद्रा-कुर्ला इलाक़े की ज़मीन को एक नए गतिविधि केंद्र के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया था. लेकिन इस विचार को स्वीकार किए जाने में कुछ दशकों का समय लग गया.

1964 की बॉम्बे विकास योजना में भी इस इलाक़े को एक व्यवसायिक परिसर के तौर पर विकसित करने का सुझाव दिया गया, और यही काम बॉम्बे मेट्रोपॉलिटन रीजन प्लान, 1970-1991 ने किया- जिसे 1973 में महाराष्ट्र सरकार ने स्वीकार कर लिया.

उसके बाद एमएमआरडीए को इस क्षेत्र के विकास के लिए विशेष योजना प्राधिकरण बना दिया गया, और उसने इसके लिए योजनाएं बनानी शुरू कर दीं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, एमएमआरडीए मेट्रोपॉलिटन कमिश्नर एसवीआर श्रीनिवास ने कहा, ‘पहले यहां पर नरीमन प्वॉइंट अकेला वित्तीय ज़िला हुआ करता था, लेकिन वहां (भीड़-भाड़ की) समस्याएं थीं, इसलिए क़रीब 47 साल पहले हमने बीकेसी को विकसित करना शुरू कर दिया. बल्कि, 2025 में हम बीकेसी की सिल्वर जुबली मनाएंगे’.

370 हेक्टेयर की नीची ज़मीन पर बनने वाला ये परिसर एक ग्रीनफील्ड प्रोजेक्ट था- जिसमें पिछले निर्माण की लगाई बंदिशें नहीं थीं. रिहाइशी, व्यवसायिक, और सरकारी उद्देश्यों के लिए अलग अलग ब्लॉक्स की योजना बनाई गई.

दिप्रिंट टीम

शुरू में ये कार्य बहुत चुनौती भरा लगता था. सिटी प्लानर सुलक्षणा महाजन ने दिप्रिंट से कहा, ‘दलदली ज़मीन और ख़राब कनेक्टिविटी की वजह से, शुरू में कोई इस जगह आना नहीं चाहता था’.

कनेक्टिविटी बरसों तक यहां एक चुनौती बनी रही, भले ही इस इलाक़े में आयकर कार्यालय और परिवार अदालतें जैसी सरकारी सुविधाएं खोल दी गईं थीं.

शहर के एक इतिहासकार भरत गोठोस्कर के अनुसार, जो मुम्बई और उसके ऐतिहासिक स्थलों पर टुअर्स ले जाते हैं, ‘सरकारी अधिकारियों के लिए ये किसी सज़ा तैनाती की तरह था’.

उन्होंने कहा, ‘लोग यहां आने में झिझकते थे. मुझे याद ही कि 2003 तक, यहां सिर्फ एक या दो फूड स्टॉल थे, और ये जगह बिल्कुल ख़ाली हुआ करती थी’.

श्रीनिवास ने कहा, ‘जब हमने इसे शुरू किया तो भूमि उद्धार को लेकर समस्याएं थीं. लेकिन इस आकार और स्तर के किसी भी वित्तीय ज़िले को परिपक्व हेने में समय लगता है. इसे रातों-रात विकसित नहीं किया जा सकता. शुरू में यहां कोई ईको-सिस्टम नहीं था. हमने उसे विकसित किया’.

किराएदार आने शुरू

यहां के एंकर किराएदार- जो किसी परिसर में किराए पर जगह लेने वाली पहली कंपनी को कहते हैं- आईसीआईसीआई बैंक और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) थे.

धीरे धीरे सदी के बदलाव के साथ, बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी इधर का रुख़ करने लगीं. नब्बे के दशक के अंत तक दुनिया के सबसे बड़े हीरा एक्सचेंज- भारत डायमंड बोर्स ने बीकेसी में अपना ठिकाना जमा लिया, और उसी के साथ यूके, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, और नीदरलैण्ड्स के वाणिज्य दूतावास भी यहां पहुंच गए.

और बीकेसी को आख़िरकार एक बड़ी उपलब्धि तब हासिल हुई, जब 2011 में अमेरिकी कॉन्सुलेट ने दक्षिण मुम्बई के ब्रीच कैण्डी को छोड़कर, अपना दफ्तर यहां शिफ्ट कर लिया.

मुंबई में बांद्रा कुर्ला परिसर का एक दृश्य | फोटो: पूर्वा चिटणीस/ दिप्रिंट

इसने क्यों काम किया

भारत डायमंड बोर्स के क़दम की चर्चा करते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘शुरू में, बहुत लोग यहां आने को तैयार नहीं थे. मुझे याद है कि एक दशक से भी पहले जब मैं एएमसी (अतिरिक्त म्युनिसिपल कमिश्नर) था, तो भारत डायमंड बोर्स यहां आने को तैयार नहीं था. दक्षिण मुम्बई में उनकी एक विरासत है. वहां उनका एक पूरा ईकोसिस्टम है.

‘यहां सब कुछ तैयार था लेकिन वो आने को तैयार नहीं थे. हमने उनकी चिंताओं को दूर किया. उन्हें मनाने में काफी प्रयास लगा, और वो आ गए’.

बीकेसी की बढ़ती अपील में एक प्रमुख कारक थी यहां पर बहुत सारी जगह की उपलब्धता.

एक रियल एस्टेट कंपनी लायसेस फॉरस के संस्थापक पंकज कपूर ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये वो समय था जब बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं, और बीमा क्षेत्र (बीएफएसआई) तेज़ी से फलफूल रहे थे, और जेपी मॉर्गन, स्टैण्डर्ड चार्टर्ड, तथा एचएसबीसी जैसी बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, जिनके दफ्तर नरीमन प्वॉइंट में थे उन्हें बड़ी जगह की दरकार थी. और बीकेसी ने वो उपलब्ध करा दी’.

महाजन ने कहा कि मुम्बई एयरपोर्ट भी क़रीब है, और सदी के बदलने के साथ बीकेसी का महत्व बढ़ गया, जब लोगों ने व्यवसाय या अन्य कारणों से, ज़्यादा से ज़्यादा सफर करना शुरू कर दिया.

कपूर ने ये भी कहा कि बीकेसी एक ग्रीनफील्ड परियोजना थी, जबकि लोअर परेल ब्राउनफील्ड था जहां जगह सीमित थी, और नरीमन प्वॉइंट पहले ही भरा हुआ था.

लोअर परेल को क़रीब दो दशक पहले, एक ब्राउनफील्ड प्रोजेक्ट के तौर पर विकसित किया गया था. मिलों की ज़मीनों और चॉल्स के साथ, ये एक पुराना इलाक़ा था जिसे डेवलपर्स ने ख़रीद लिया, और देखते ही देखते यहां लग्ज़री टावर्स, मॉल्स, और दफ्तर नज़र आने लगे. लेकिन चूंकि ये इलाक़ा पहले ही अव्यवस्थित सा था, इसलिए यहां कनेक्टिविटी में सुधार की ज़्यादा गुंजाइश नहीं थी, और यहां पर ट्रैफिक अभी भी एक समस्या है. इस बीच, बीकेसी में विकल्प खुल गए.

कपूर ने आगे कहा, ‘और चूंकि बहुत से लोग नरीमन प्वॉइंट के उत्तर में रहते थे, इसलिए बांद्रा तक आना उनके लिए सुविधाजनक हो गया’.


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विकास में तेज़ी

पिछले दशक में, बीकेसी के विकास ने और तेज़ी पकड़ ली है. इलाक़ा अब एक ज़्यादा हाईब्रिज नेचर इख़्तियार करने लगा है, और जगह जगह आलीशान अपार्टमेंट परिसर और उनसे जुड़े स्कूल तथा दूसरी सुविधाएं खड़ी हो गई हैं. 2016 में सीबीआई ने भी यहां अपना एक ऑफिस खोल लिया.

ऊषा औरंगे और पुष्पा जाधव जिन्होंने 10 साल तक, महाराष्ट्र सरकार की महिला सशक्तीकरण स्कीम (महिला औद्योगिक उत्पादक) के अंतर्गत कॉम्प्लेक्स में भोजन का एक स्टॉल चलाया है, इस बदलाव की गवाही दे सकती हैं.

बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में अपने फूड स्टॉल पर उषा औरंग और पुष्पा जाधव | फोटो: पूर्वा चिटणीस/ दिप्रिंट

औरंगे ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय ये बिल्कुल ख़ाली हुआ करता था. सरकार ने हमें ये फूड स्टॉल लगाने के लिए प्रोत्साहित किया, क्योंकि इस जगह पर मुश्किल से ही कोई रेस्टोरेंट था. उस समय यहां कोई शौचालय नहीं था’.

जाधव ने कहा, ‘हमारे लिए बहुत मुश्किलें थीं लेकिन पिछले एक दशक में यहां दो शौचालय बन गए. लोगों की भीड़ बढ़ गई और उसके साथ ही हमारा कारोबार भी’. शुरू में 4,000-5,000 रुपए महीना से बढ़कर अब उनकी कमाई तक़रीबन 20,000 रुपए हो गई है.

रिलायंस की दो पेशकश जो इस साल और पिछले साल खुलीं- जियो वर्ल्ड ड्राइव मॉल और एक कनवेंशन सेंटर- बीकेसी का ताज़ा आकर्षण हैं, और पूरे शहर के लोगों को यहां खींचती हैं.

30 वर्ष से कुछ अधिक की भविष्या राव ने, जो चेंबूर के पूर्वी उपनगर में रहती हैं, दिप्रिंट से कहा कि पहले वो घूमने के लिए दक्षिण मुम्बई के लोअर परेल जाया करतीं थीं, लेकिन अब पिछले तीन वर्षों से वो बीकेसी की तरफदार हो गई हैं.

राव ने कहा, ‘इस जगह आसानी से पहुंचा जा सकता है. ये बहुत बीच में है, परिवार के अनुकूल है, और यहां स्टारबक्स से लेकर भोजन करने की फैंसी जगहों तक सब कुछ मौजूद है. और जियो वर्ल्ड के खुल जाने के बाद से, ये पालतू जानवरों के लिए भी बहुत अनुकूल हो गया है’.

राव ने आगे कहा कि ये जगह सुरक्षित भी है, और इलाक़े में बहुत सारे गार्ड्स और पुलिस कर्मी मौजूद रहते हैं.

आगे के विकास की बात करते हुए श्रीनिवास ने कहा, ‘बीकेसी में अभी भी पुनर्विकास की गुंजाइश है. और अधिक क्लब तथा मनोरंजक गतिविधियां हो सकती हैं. इस जगह का परिपक्व होना ज़रूरी है, जिसके लिए सरकार को बीच में आते हुए बहु-हितधारक प्रबंधन भूमिका निभानी होगी. लोअर परेल और बीकेसी में यही अंतर है. बीकेसी का ज़्यादा अच्छे से पालन-पोषण हुआ है’.

सामाजिक इनफ्रास्ट्रक्चर में सुधार

पहले बीकेसी की समस्या इसकी कनेक्टिविटी थी. नियमित यात्री, ख़ासकर ऑफिस जाने वाले, कॉम्प्लेक्स पहुंचने के लिए केवल ऑटोरिक्शा और टैक्सियों के सहारे थे, चूंकि बसें मुश्किल से ही नज़र आतीं थीं. ख़ासकर आख़िरी किलोमीटर चुनौती भरा होता था.

लेकिन कनेक्टिविटी के मामले में, बीकेसी अब शहर के बीच में आ चुका है. जहां तक आख़िरी किलोमीटर का सवाल है, यात्री अब ई-स्कूटर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिन्हें एमएमआरडीए ने दो-तीन किलोमीटर दूर स्थित बांद्रा और कुर्ला स्टेशनों से, किफायती दरों पर कॉम्प्लेक्स पहुंचने के लिए शुरू किया है.

बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स | फोटो: पूर्वा चिटणीस/ दिप्रिंट

जो लोग पूर्वी उपनगरों से आते हैं वो सांताक्रूज़-चेंबूर लिंक रोड, या नया खुला बीकेसी-चूनाभट्टी फ्लाइओवर लो सकते हैं, जो ईस्टर्न एक्सप्रेसवे हाईवे पर है. इसी सिलसिले की ताज़ा कड़ी है कलानगर फ्लाईओवर, जो बीकेसी को बांद्रा-वर्ली सी लिंक, और उससे आगे दक्षिण मुम्बई से जोड़ता है.

गोठोस्कर ने कहा, ‘लेकिन फिर भी, कॉम्प्लेक्स तक पहुंचना थोड़ा कठिनाई भरा है. जो चीज़ बीकेसी को असली मायनों में बदलेगी, वो है आने वाली मेट्रो लाइन. दो मुख्य मेट्रो लाइनें बीकेसी पर एक दूसरे से मिलेंगी. यहां पर सबसे ज़्यादा यात्री जुटेंगे, और बहुत बड़ी संख्या में लोगों के लिए यहां पहुंचना वास्तव में सुगम हो जाएगा’.

कॉम्प्लेक्स में रिहाइशी इलाक़े भी हैं, और रियल एस्टेट कंपनियां एक प्रमुख स्थान के तौर पर इसकी मार्केटिंग कर रही हैं, जहां कई नामी-गिरामी स्कूल और एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट तथा वोकहार्ड मल्टी स्पेशिएलिटी जैसे अस्पताल मौजूद हैं. सटे हुए इलाक़े भी इसी जाल में आ जाते हैं- उन्हें ‘बीकेसी एनेक्सी’ कहकर बेंचा जा रहा है.

एस्टेट एजेंसी और कंसल्टेंसी नाइट फ्रेंक इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 2021 के दौरान मुम्बई मेट्रोपेलिटन रीजन में ऑफिस बाज़ार के किराया मूल्यों में प्रतिवर्ष 8 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. लेकिन, ग्रेड-ए (सबसे ऊंची क्वालिटी) वाली ऑफिस जगहों की सीमित सप्लाई, और बढ़ती मांग की वजह से, बीकेसी के किराया मूल्यों में कोई बदलाव नहीं आया.

गोठोस्कर ने कहा, ‘मेरे विचार में अगले दो दशकों तक ये सबसे प्रीमियम और प्रमुख व्यवसाय केंद्र बना रहेगा, जब तक कि बीपीटी (मुम्बई पोर्ट ट्रस्ट) की ज़मीन पर एक बिज़नेस सेंटर नहीं बन जाता, जिसकी लंदन के कैनरी वार्फ से तुलना की जा सके. तभी उसमें बीकेसी की जगह लेने की क्षमता हो पाएगी’.

बीकेसी के आसपास के इलाक़े, जैसे कुर्ला और चेंबूर भी फलफूल रहे हैं. कपूर ने कहा, ‘लोग अपने कार्य-स्थलों के पास ही रहना चाहते हैं, और यही कारण है कि कुर्ला जैसी लो प्रोफाइल जगहों में, रियल एस्टेट तेज़ी से फलफूल रहा है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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