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Wednesday, 24 April, 2024
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JEE एडवांस कितना कठिन है? डेटा बताता है कि 2021 में 90% IIT उम्मीदवारों ने आधे सवाल गलत किए

दुनिया की सबसे कठिन स्नातक प्रवेश परीक्षाओं में से एक माना जाने वाला जेईई एडवांस्ड आईआईटी के लिए ‘टेस्ट ऑफ एलिमिनेश’ है. नया डेटा बताता है कि इसमें कितने कठिन सवाल पूछे जाते हैं.

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नई दिल्ली: यह बात तो हर कोई जानता है कि प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के लिए क्वालीफाइंग टेस्ट को क्रैक करना एक कठिन काम है, लेकिन प्रवेश परीक्षा कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले निकाय की तरफ से जारी डेटा बताता है कि आखिरकार यह परीक्षा कितनी ज्यादा कठिन होती है.

ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (जेईई) एडवांस 2021 में 90 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवारों ने 114 प्रश्नों में से 75 का गलत उत्तर दिया था. छह सवाल ऐसे थे जिनका दो फीसदी से भी कम छात्र सही जवाब दे पाए.

जेईई एडवांस 2021 की ज्वाइंट इम्प्लीमेंटेशन कमेटी की तरफ से ये आंकड़े पिछले साल के गणित, केमेस्ट्री और फिजिक्स के पेपर के विश्लेषण के आधार पर जारी किए गए हैं. विश्लेषण में पेपर 1 और पेपर 2 दोनों शामिल थे, जिनमें प्रत्येक गणित, फिजिक्स और केमेस्ट्री में योग्यता का टेस्ट लेने वाला होता है.

जेईई एडवांस को दुनिया की सबसे कठिन स्नातक प्रवेश परीक्षाओं में एक माना जाता है. इसमें बैठने की योग्यता हासिल करने के लिए छात्रों को सबसे पहले तो पहले जेईई मेन्स में टॉप स्कोर करना होता, जो इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर में विभिन्न अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम में प्रवेश के लिए होने वाली एक परीक्षा है.

समिति की तरफ से जारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जेईई मेन्स में शामिल लगभग 9 लाख छात्रों में से 1,41,699 ही अंततः जेईई एडवांस में बैठने योग्य पाए गए. इनमें से 41,862 या लगभग 29 प्रतिशत छात्रों ने आईआईटी में सीट पाने की अर्हता हासिल की. लेकिन अंतत: केवल 16,296 यानी लगभग 12 प्रतिशत को ही प्रवेश की पेशकश की गई.

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दिप्रिंट के साथ बात करने वाले कुछ आईआईटी प्रोफेसरों के मुताबिक, डेटा इन विषयों में उम्मीदवारों की योग्य होने से अधिक यह बताता है कि यह प्रश्नपत्र कितना कठिन होता है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रतियोगी परीक्षा चयन के बजाये एलिमेशन यानी कम योग्य छात्रों को इससे बाहर करने की प्रक्रिया पर आधारित है.

पूर्व में जेईई एडवांस के लिए प्रश्नपत्र सेट करने में शामिल रहे आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर (जो नाम के साथ कोई सरनेम नहीं लगाते) शलभ ने कहा, ‘प्रतिस्पर्धा का स्तर इतना अधिक है कि हम सरल प्रश्न नहीं रख सकते. हमारे पास ऐसा पैटर्न होना चाहिए जो केवल सबसे अच्छे छात्र ही हल कर पाएं. हम एक सीमित संख्या में ही छात्रों को चुन सकते हैं, इसलिए प्रश्नपत्र उसी के अनुरूप होना चाहिए.’

हालांकि, शलभ ने कहा कि इतने कठिन होने के बावजूद सभी प्रश्न केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और अन्य बोर्डों के निर्धारित ‘बुनियादी’ स्कूल पाठ्यक्रम के कॉन्सेप्ट पर आधारित थे. उन्होंने कहा, ‘जिन छात्रों को इनका बेसिक क्लियर होगा, उन्हें सवालों के जवाब देने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए.’

‘प्रश्न पत्र कठिन होने चाहिए’

कुल मिलाकर, डेटा दर्शाता है कि 60 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवारों ने 15 प्रश्नों को बिना प्रयास के छोड़ दिया था.

इन 15 प्रश्नों में से 10 गणित के थे. गणित के एक बहुविकल्पीय प्रश्न (एमसीक्यू) का 72.72 प्रतिशत यानी करीब 1,03,049 छात्रों ने कोई जवाब नहीं दिया. इस प्रश्न का जवाब देने वालों में से केवल 6.72 प्रतिशत छात्र ही सही उत्तर दे पाए.

10 प्रतिशत से भी कम अभ्यर्थियों ने गणित के 22 प्रश्नों के सही जवाब दिए. वही केमेस्ट्री के 20 और फिजिक्स के 12 प्रश्नों के मामले में भी यही स्थिति रही. केमेस्ट्री के दो सवालों का एक प्रतिशत से भी कम उम्मीदवार सही जवाब दे पाए.

केमिस्ट्री का एक और सवाल छात्रों के लिए काफी कठिन साबित हुआ. कुल मिलाकर, 1,04307 छात्रों (73.61 प्रतिशत) ने इसका उत्तर देने का प्रयास ही नहीं किया. इसका प्रयास करने वालों में से केवल 2.16 प्रतिशत ही सही उत्तर देने में सक्षम हो पाए.

आईआईटी-कानपुर के एक अन्य प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल ने कहा, ‘हमें पूरी लॉट में से कितने छात्रों का चयन करना है, इसे देखते हुए प्रश्नपत्र कठिन होने चाहिए.’

इन परीक्षाओं के दबाव को लेकर आलोचना के बीच आईआईटी के प्रतिनिधियों की राय भी ऐसी ही रही है. उदाहरण के तौर पर, 2018 के एक इंटरव्यू में आईआईटी दिल्ली के पूर्व निदेशक वी. रामगोपाल राव ने कहा था कि परीक्षा ‘मुश्किल और जटिल’ है क्योंकि इसे ‘उम्मीदवारों को खारिज करने के लिए तैयार किया गया था, न कि उनका चयन करने के लिए.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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