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Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशएक्सपर्ट पैनल प्रमुख बोले- सरकारी फर्म की ‘अक्षमता’ प्रवासी श्रमिकों और रोजगार सर्वेक्षणों में देरी की वजह बनी

एक्सपर्ट पैनल प्रमुख बोले- सरकारी फर्म की ‘अक्षमता’ प्रवासी श्रमिकों और रोजगार सर्वेक्षणों में देरी की वजह बनी

मोदी सरकार की तरफ से गठित समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.पी. मुखर्जी कहते हैं, जिस मिनीरत्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम बेसिल को प्रमुख अखिल भारतीय सर्वेक्षणों का काम सौंपा गया है, उसमें ‘अनुभव की कमी’ दिखाई दे रही है.

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नई दिल्ली: लेबर ब्यूरो ने फील्ड वर्क, डेटा जुटाने और प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र में रोजगार पर सर्वेक्षण के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप करने का काम जिस सरकारी फर्म को सौंपा है, वह केंद्र की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति के प्रमुख की नजर में ये जिम्मेदारी निभाने में ‘अक्षम’ है.

कलकत्ता यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर और विशेषज्ञ समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर एस.पी. मुखर्जी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि यही वजह है कि इन सर्वेक्षणों को पूरा करने में लगातार देरी हो रही है. समिति का गठन अखिल भारतीय सर्वेक्षणों की निगरानी और तकनीकी मार्गदर्शन के लिए किया गया था.

सवालों में घिरी फर्म ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड (बेसिल) है. 1995 में स्थापित ये फर्म केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत भारत सरकार का आईएसओ 9001:2008 प्रमाणित मिनीरत्न सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है.

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से जुड़े लेबर ब्यूरो ने मार्च 2021 में प्रवासी कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण और आल इंडिया क्वार्टरली एस्टैबलिसमेंट-बेस्ड एम्पलॉयमेंट सर्वे (एक्यूईईएस) के लिए बेसिल के साथ एक सर्विस-लेवल समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसमें पहला एक बार होने वाला सर्वेक्षण है, जबकि दूसरा पांच साल के लिए हर तिमाही में किया जाना है.

बेसिल को सर्वेक्षण के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने, फील्ड वर्क करने, डेटा जुटाने, उसे सारणीबद्ध करने और डेटा के आधार पर रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया है. लेबर ब्यूरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इसके लिए 50 करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए गए हैं.

प्रो. मुखर्जी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उसने (बेसिल) इन जिम्मेदारियों को निभाने में अक्षमता और अनुभव की कमी दिखाई है.’

उन्होंने आगे कहा कि शुरू में तो कोविड-19 महामारी के कारण देरी हुई थी, लेकिन बाद में बेसिल के ‘खराब एचआर प्रबंधन की वजह से मैनपॉवर में कमी’ और ‘सॉफ्टवेयर में तकनीकी गड़बड़ियों’ के कारण तय समय पर यह काम नहीं हो पाया.

विशेषज्ञ समिति के एक अन्य सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘कंपनी को इस तरह का अखिल भारतीय सर्वेक्षण करने का कोई आइडिया ही नहीं है. उसके पास अनुभव का अभाव है.’

प्रवासी कामगारों पर सर्वेक्षण जारी है और इस पर एक रिपोर्ट अक्टूबर तक पूरी होने की संभावना है. जहां तक एक्यूईईएस का सवाल है, सिर्फ दो तिमाहियों (अप्रैल-जून 2021 और जुलाई-सितंबर 2021) की रिपोर्ट जारी की गई है.

वहीं, बेसिल के एक प्रवक्ता ने कहा कि सर्वेक्षण शेड्यूल के मुताबिक चल रहे हैं. उनके मुताबिक, ‘एक्यूईईएस के लिए सभी चार तिमाहियों (मार्च 2022 तक) का डेटा श्रम ब्यूरो की तरफ से निर्धारित समयसीमा के भीतर जुटा लिया गया है. दो तिमाहियों की रिपोर्ट प्रकाशित हो चुकी हैं. प्रवासी कामगारों पर सर्वेक्षण की लगभग 80 प्रतिशत लिस्टिंग पूरी हो चुकी है और हम इसके समयसीमा के भीतर ही पूरा होने की उम्मीद करते हैं.

दिप्रिंट ने लेबर ब्यूरो के महानिदेशक आई.एस. नेगी से फोन कॉल और ईमेल के जरिये और केंद्रीय श्रम सचिव सुनील बर्थवाल से ईमेल के जरिये प्रतिक्रिया जाननी चाहिए, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.


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आखिर किस बारे में हैं ये सर्वेक्षण

अप्रैल 2021 में केंद्र ने श्रम ब्यूरो को पांच प्रमुख अखिल भारतीय सर्वेक्षणों का जिम्मा सौंपा था, प्रवासी श्रमिकों का अखिल भारतीय सर्वेक्षण, घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण, परिवहन क्षेत्र में उत्पन्न रोजगार पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण, पेशेवरों द्वारा सृजित रोजगार का अखिल भारतीय सर्वेक्षण और एक्यूईईए.

श्रम मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि वित्त मंत्रालय की तरफ से आवश्यक बजट मंजूर नहीं दिए जाने के बाद परिवहन क्षेत्र और पेशेवरों से जुड़े सर्वेक्षणों को बाद में हटा दिया गया था. अधिकारी ने कहा कि कुल मिलाकर वित्त मंत्रालय ने बाकी तीन सर्वेक्षणों के लिए 120 करोड़ रुपये मंजूर किए थे.

एक्यूईईए का उद्देश्य 10 या उससे अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों के साथ-साथ नौ या उससे कम श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों के लिए रोजगार अनुमान प्रदान करना है. अप्रैल 2021 में जारी श्रम मंत्रालय के एक बयान के मुताबिक, यह सर्वेक्षण ‘तिमाही आधार पर चयनित क्षेत्रों में रोजगार की स्थिति में बदलाव पर महत्वपूर्ण डेटा’ उपलब्ध कराएगा.

एक्यूईईए के दो हिस्से थे—एक त्रैमासिक रोजगार सर्वेक्षण जो 10 या उससे अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठानों के संदर्भ में रोजगार अनुमान प्रदान करता, और दूसरा डेटा-आधारित श्रम कल्याण नीतियां बनाने के उद्देश्य के साथ एरिया फ्रेम एस्टैबलिसमेंट सर्वे (एएफईएस). एएफईएस की जिम्मेदारी भी बेसिल के पास ही है.

ऊपर उद्धृत ब्यूरो के अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि बेसिल को शुरू में घरेलू कामगारों पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण भी करना था. हालांकि, श्रम ब्यूरो ने सितंबर 2021 में समीक्षा बैठक के बाद अपने काम का दायरा बदल दिया.

इन सर्वेक्षणों को श्रम ब्यूरो ने विशेषज्ञ समूह के तकनीकी मार्गदर्शन में डेवलप और डिजाइन किया है, जिसमें अर्थशास्त्री, सांख्यिकीयविद, सरकारी अधिकारी और श्रम ब्यूरो के अधिकारी शामिल हैं. जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पूर्व प्रोफेसर अमिताभ कुंडू समिति के सह-अध्यक्ष हैं.

‘अपनी प्रतिबद्धता निभाने से चूके’

विशेषज्ञ समूह के सदस्यों ने मार्च के शुरू में एक बैठक के दौरान भी बेसिल के अपना काम पूरा करने से ‘चूकने’ का मुद्दा उठाया था. दिप्रिंट को हासिल बैठक के मिनट्स के मुताबिक, अध्यक्ष ने कहा था, ‘बेसिल निश्चित तौर पर अपनी प्रतिबद्धता निभाने से चूक गया है और उसका संगठनात्मक कौशल खराब रहा है.’

हालांकि, अध्यक्ष ने बैठक में यह भी स्पष्ट किया था कि अभी जारी सर्वेक्षण को पूरा करने में और देरी से बचने के लिए ‘इस मुकाम पर आकर किसी अन्य एजेंसी को शामिल करने से बचा जा सकता है.’ लेकिन विशेषज्ञ समूह के सदस्यों ने एक्यूईईएस की चौथी तिमाही पूरी होने के बाद एक नए ‘एजेंसियों के पैनल’ को शामिल करने का सुझाव दिया था.

श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि वे पांचवें दौर से तिमाही सर्वेक्षण के लिए किसी अन्य एजेंसी या एजेंसियों के पैनल को जिम्मेदारी सौंपने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है. हालांकि, अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

‘फ्रेम सर्वेक्षण समयसीमा के भीतर पूरा होगा’

बताया जा रहा है कि एएफईएस पर 800 से अधिक कर्मी काम कर रहे हैं. ऊपर उद्धृत बेसिल प्रवक्ता ने कहा था, ‘इस सर्वेक्षण को पूरा करने के लिए हमारे पास 3-4 महीने हैं. हम यह काम समयसीमा के भीतर पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं.’

प्रवक्ता ने बताया कि अक्टूबर 2021 से पहले ही (जब संशोधित करार पर हस्ताक्षर किए गए थे) लेबर ब्यूरो ने फील्ड टेस्टिंग, सॉफ्टवेयर टेस्टिंग, 2,000 से अधिक कर्मियों के प्रशिक्षण और जांच बिंदुओं को अंतिम रूप देने के साथ सभी सर्वेक्षणों का एक सॉफ्ट लॉन्च शुरू किया था.

प्रवक्ता ने कहा, ‘यह पहली बार है कि भारत में कोई आईटी-बेस्ड प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जिसमें उन्नत डैशबोर्ड, जियो-टैगिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एनालिटिक्स सहित एंड-टू-एंड टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा रहा है.’

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