लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने नेपाल सीमा के पास स्थित लगभग 4,200 मकतबों (गैर-आवासीय इस्लामिक प्राथमिक विद्यालयों) के वित्तपोषण स्रोतों की जिला प्रशासन द्वारा नए सिरे से जांच शुरू की है. यह कदम यूपी के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में सरकार द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा यूपी के मदरसों द्वारा विदेशी दान के दुरुपयोग के आरोपों की एक साल तक चली जांच के बाद उठाया गया है.
एसआईटी द्वारा नेपाल सीमा के पास 4,191 गैर-मान्यता प्राप्त मकतबों को सूचीबद्ध करने के कुछ दिनों बाद, राज्य अल्पसंख्यक मामलों के विभाग ने 21 अक्टूबर को एक पत्र में सभी जिला अल्पसंख्यक अधिकारियों (डीएमओ) को जिला-स्तरीय एटीएस फील्ड यूनिट अधिकारियों के साथ समन्वय करके उनके वित्तपोषण स्रोतों की जांच करने के लिए कहा. अब, जिला-स्तरीय समितियां यह भी जांच करेंगी कि स्कूल कब अस्तित्व में आए और सरकार ने अब तक स्कूलों को मान्यता क्यों नहीं दी है.
उल्लेखनीय है कि यूपी एटीएस ने अब तक स्कूलों के वित्त पोषण स्रोतों की जांच का नेतृत्व किया है, लेकिन अब वह केवल जिला प्रशासन के अधिकारियों, डीएमओ और उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) की सहायता करेगा.
जिला स्तरीय समितियां जो 4,191 स्कूलों की नए सिरे से जांच करेंगी, उनमें स्थानीय एसडीएम और डीएमओ, एटीएस के एक उप अधीक्षक या एडिशनल एसपी रैंक के अधिकारी और यदि किसी जिले में फील्ड यूनिट है तो एटीएस फील्ड यूनिट अधिकारी शामिल होंगे.
निदेशक (अल्पसंख्यक मामले) जे. रीभा ने 21 अक्टूबर को डीएमओ, अतिरिक्त मुख्य सचिव (अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ) तथा एटीएस अधिकारियों को लिखे पत्र में बताया कि एडीजी एटीएस नीलाब्जा चौधरी ने मकतबों के सत्यापन के लिए जिला स्तरीय टीमें गठित करने के निर्देश दिए हैं.
दिप्रिंट के पास मौजूद पत्र में कहा गया है, “एडीजी एटीएस ने निर्देश दिया है कि फील्ड यूनिट इंचार्ज द्वारा गहन जांच/सत्यापन के बाद विस्तृत जांच रिपोर्ट उनके कार्यालय को सौंपी जाए. इसलिए गठित टीम के साथ समन्वय स्थापित कर एडीजी एटीएस के निर्देशानुसार कार्रवाई करें.”
संपर्क करने पर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि एसआईटी जांच की तरह जिला स्तरीय जांच भी मकतबों के वित्तपोषण के स्रोत का पता लगाने पर केंद्रित होगी.
उन्होंने कहा, “इसका उद्देश्य इन मकतबों के वित्तपोषण स्रोत की जांच करना है, जिन्हें विदेशों से धन प्राप्त हुआ है. जांच करने के लिए गठित टीमों के बारे में सभी डीएमओ को जानकारी है. डीएमओ अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के फील्ड अधिकारी हैं – यही वजह है कि वे जिला स्तरीय टीमों में हैं.”
‘एसआईटी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई’
विपक्ष ने राज्य में नए सिरे से जांच शुरू करने को दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से पहले सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने का प्रयास बताया है.
दिप्रिंट से बात करते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बिहार के राष्ट्रीय सचिव शाहनवाज आलम, जो यूपी कांग्रेस के अल्पसंख्यक विभाग का प्रभार भी संभाल रहे हैं, ने कहा कि जांच का विचार सबसे पहले तब आया जब आरपी गुप्ता यूपी के मुख्यमंत्री थे.
उन्होंने कहा, “उस समय सरकार ने कहा था कि नेपाल से लगी सीमा पर मदरसे फल-फूल रहे हैं और इन पर संदिग्ध गतिविधियों का आरोप लगाया गया था. उस समय मुस्लिम समाज ने सरकार से अपने दावों को साबित करने के लिए रिपोर्ट जारी करने की मांग की थी. जब राजनाथ सिंह सीएम बने, तो हमने ऐसी शिकायतों पर श्वेत पत्र की मांग को लेकर धरना दिया था. हमने कहा था कि सरकार को अपने दावों को साबित करने के लिए रिपोर्ट पेश करनी चाहिए, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी.”
उन्होंने कहा, “फिर पिछले साल सरकार ने कहा कि एटीएस मदरसों के वित्तपोषण की जांच करेगी, लेकिन एसआईटी की रिपोर्ट कभी जारी नहीं की गई. यह कोई नई बात नहीं है – योगी (आदित्यनाथ) यही कर रहे हैं. पहले भी भाजपा सरकारें ऐसा करती रही हैं. अगर मदरसों पर निष्कर्षों में कुछ संदिग्ध है, तो प्रवर्तन निदेशालय को इसमें शामिल क्यों नहीं किया गया? यह सब आगामी उपचुनावों के कारण हो रहा है,”
योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार सीएम बनने के कुछ महीनों बाद, अगस्त 2022 में यूपी सरकार ने 15 अक्टूबर 2022 तक गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया. इस कदम की राज्य भर के मुस्लिम नेताओं ने व्यापक आलोचना की थी.
सर्वेक्षण के लिए 12 बिंदुओं में मदरसों के वित्तपोषण का स्रोत भी शामिल था. फिर, जनवरी 2023 में, सरकार ने नेपाल की सीमा से लगे यूपी के सभी जिलों के जिलाधिकारियों को मामले की जांच करने का आदेश दिया. अक्टूबर 2023 में, सरकार ने विदेशी दान के कथित दुरुपयोग की जांच के लिए एडीजी एटीएस, एसपी (साइबर क्राइम) और निदेशक (अल्पसंख्यक कल्याण) सहित एसआईटी का गठन किया.
जांच के बाद सरकार ने मकतबों और मदरसों को अलग-अलग कर दिया और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि नेपाल सीमा से लगे जिलों बहराइच, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, बलरामपुर, श्रावस्ती, संत कबीर नगर आदि में करीब 4,000 मकतब हैं. एसआईटी की रिपोर्ट हालांकि सार्वजनिक नहीं की गई, लेकिन इसकी एक सिफारिश यह है कि 8,449 गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को तत्काल बंद किया जाए, क्योंकि स्कूलों की संख्या अल्पसंख्यक आबादी के अनुपात में नहीं है.
गृह मंत्रालय के अधीन सशस्त्र सीमा बल ने भी नेपाल सीमा के 15 किलोमीटर के भीतर मदरसों और मस्जिदों की बड़ी संख्या को चिन्हित किया था.
‘शिक्षा के केंद्र से जांच के केंद्र’
गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों/मकतबों के वित्तपोषण की जांच फिर से शुरू करने वाली यूपी सरकार पर टिप्पणी करते हुए, यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद जावेद, जिन्होंने तीन साल तक इस पद पर काम किया, ने दिप्रिंट से कहा कि “शिक्षा के केंद्र से मदरसे जांच के केंद्र बन गए हैं.”
उन्होंने कहा, “पिछले नौ सालों में यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड ने किसी भी मदरसे को नई मान्यता नहीं दी है. मेरे तीन साल के कार्यकाल में आठ बोर्ड मीटिंग हुईं और हर मीटिंग में इच्छुक मदरसों को मान्यता देने का मुद्दा उठा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. तीन साल पहले करीब 5,000 मदरसे मान्यता चाहते थे, लेकिन प्रक्रिया कभी शुरू नहीं हुई. मान्यता चाहने वाले मदरसों की संख्या अब बढ़कर 8,000 हो गई होगी.”
उन्होंने कहा, “एक तरफ मदरसे मान्यता चाहते हैं और मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन प्रक्रिया रुक जाती है. दूसरी तरफ, मान्यता न मिलने के कारण उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.”
हालांकि, अल्पसंख्यक मामलों के विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई मदरसे सरकार से मान्यता प्राप्त करने के योग्य नहीं हैं क्योंकि वे आवश्यक मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं.
अधिकारी ने कहा, “कुछ मानदंड हैं, जैसे कि मदरसा भवन का क्षेत्रफल, कक्षाओं की संख्या, प्रिंसिपल रूम, स्टाफ रूम आदि. कई मदरसे इन मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं और इसलिए उन्हें मान्यता नहीं मिल पाती है. किराए पर चलने वाले मदरसों को केवल अस्थायी मान्यता मिल सकती है.”
जब उनसे पूछा गया कि क्या सरकार ऐसे मदरसों को मान्यता देने का इरादा रखती है, तो यूपी के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ओपी राजभर ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है, वह सिर्फ गलत कामों को रोकना चाहती है.
उन्होंने कहा, “नेपाल सीमा पर शिक्षा केंद्रों के नाम पर आवासीय इमारतें और होटल जैसी संरचनाएं बन गई हैं. हम जांच कर रहे हैं कि बाहरी लोग वहां क्यों आकर रह रहे हैं. करीब 513 मदरसों ने मान्यता छोड़ दी है, जबकि 700 और मदरसे मान्यता छोड़ने के लिए तैयार हैं.”
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