नई दिल्ली: भाजपा के योगी आदित्यनाथ, सीपीएम के पिनाराई विजयन और आप के भगवंत मान, भले ही अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा से जुड़े हों, लेकिन उनमें एक बात समान है – मुख्यमंत्रियों के रूप में उन्होंने अपने राज्यों के ज्यादा से ज्यादा विभागों को अपने पास रखा हुआ है.
भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पिछले महीने दूसरी बार शपथ लेने वाले योगी आदित्यनाथ के पास 34 विभाग हैं.
विजयन, केरल के सीएम के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. वहीं मान पंजाब के पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं. दोनों में से हर एक के पास 27 पोर्टफोलियो हैं.
इसी तरह, उत्तराखंड के सीएम और भाजपा के सदस्य पुष्कर सिंह धामी, ने 23 विभागों को अपने पास रखा है. जबकि कांग्रेस की सहयोगी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के पास 19 विभाग हैं. भाजपा के हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर के पास 16, जबकि राजस्थान के अनुभवी कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने 10 विभागों को संभाला हुआ है.
एक चीज और भी इन मुख्यमंत्रियों में कॉमन है वह यह है कि मनोहर लाल खट्टर को छोड़कर इन सभी के पास गृह विभाग है. देश में कुल 17 मुख्यमंत्रियों के पास यह विभाग है जो कि पुलिस पर इन्हें सीधा नियंत्रण देती है.
ऐसी वो कौन सी वजह हैं जो मुख्यमंत्रियों को इतने विभागों की जिम्मेदारी अपने ऊपर रखने के लिए प्रेरित करती है? जबकि उन्हें तमाम अन्य विभाग और विभिन्न सरकारी कामकाज भी देखने होते हैं. और वे कैसे तय करते हैं कि कौन से पोर्टफोलियो उन्हें अपने पास रखना है?
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के अनुसार, ‘अधिकतम विभागों को संभालने वाला मुख्यमंत्री असुरक्षा की भावना और चीजों पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की उसकी चाह को दिखाता है.’
उन्होंने दिप्रिंट को बताया: ‘कुछ सीएम अपने पास 30 से 40 पोर्टफोलियो रखना पसंद करते हैं और शायद ही कैबिनेट के साथ कोई महत्वपूर्ण विभाग साझा करते हैं. दरअसल ये तानाशाही वाला व्यक्तित्व है जो भीड़ पर नियंत्रण रखना चाहता है. यहां तक कि गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार ने भी यही किया था. उन्होंने ढेरों राज्य मंत्री होने के बावजूद अधिकांश विभागों को अपने पास रखा.’
चव्हाण ने कहा, ‘कोई भी इतने विभागों को अपने पास रख कर उनके कामकाज के साथ न्याय नहीं कर सकता. आप बस अन्य सहयोगियों को आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं.’
एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और पूर्व मुख्य सचिव ने कहा, ‘ किसी विशेष राज्य में जो भी विभाग महत्वपूर्ण होगा, आमतौर पर मुख्यमंत्री उसे अपने पास ही रखना पसंद करते हैं.’
वह आगे कहते है, ‘उद्योग गुजरात में एक महत्वपूर्ण विभाग है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसकी इतनी अहमियत नहीं है. वित्त एक ऐसा विभाग है जिसे ज्यादा पसंद नहीं किया जाता है. क्योंकि इसके कामकाज के साथ बहुत सी तकनीकी बारीकियां चीजें जुड़ी हुई हैं. यह ज्यादातर पुन: आवंटन और वितरण का एक काम है.’
लेकिन वहीं दूसरी ओर दिल्ली के अरविंद केजरीवाल (आम आदमी पार्टी), तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव (तेलंगाना राष्ट्र समिति) और अरुणाचल प्रदेश के पेमा खांडू (भाजपा) जैसे मुख्यमंत्री भी हैं, जिन्होंने अपने पास कोई विभाग नहीं रखा है.
अन्य आईएएस अधिकारियों ने बताया कि विभागों के बटवारें राज्य के आकार, गठबंधन की राजनीति की मजबूरियों, व्यावहारिक कारणों और विचाराधीन विभाग की संवेदनशीलता के आधार पर किए जाते हैं.
एक अन्य रिटायर आईएएस अधिकारी ने कहा, ‘एक मुख्यमंत्री के पास कितने पोर्टफोलियो हैं, वह राजनीतिक पृष्ठभूमि और एक मुख्यमंत्री के पास किस तरह के कैबिनेट मंत्री हैं जैसे कई कारणों पर निर्भर करता है. यह ‘सभी पर फिट’ बैठने वाला कोई एक फार्मूला नहीं है.’
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पसंदीदा जिम्मेदारियां
अधिकांश मुख्यमंत्री जिन विभागों को अपने पास रखना पसंद करते हैं उनमें गृह, सामान्य प्रशासन, सतर्कता, वित्त और कार्मिक शामिल हैं.
18 मुख्यमंत्रियों ने सामान्य प्रशासन का प्रभार संभाला हुआ है, जबकि 11 ने वित्त विभाग को अपने पास रखा हुआ है. कार्मिक विभाग – राज्य सेवा अधिकारियों और अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों की भर्ती, नियुक्ति, पदोन्नति और पोस्टिंग से संबंधित है. इस विभाग को 14 मुख्यमंत्रियों ने संभाला हुआ है. जबकि छह मुख्यमंत्रियों के पास गृह और वित्त दोनों विभाग हैं.
कुछ मुख्यमंत्री ‘सभी महत्वपूर्ण नीतियों’ को भी अपने अधिकार क्षेत्र में रखते हैं. केरल में विजयन, गुजरात में भूपेंद्र पटेल और त्रिपुरा में बिप्लब कुमार देब इस विशेष पोर्टफोलियो के प्रभारी हैं. इसे प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने पास रखा है.
प्रधानमंत्री के अन्य विभागों में कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग और अन्य वो सभी विभाग शामिल हैं जो किसी भी मंत्री को आवंटित नहीं किए गए हैं.
पहले रिटायर आईएएस अधिकारी ने बताया था, ‘गृह मंत्रालय किसी भी राज्य सरकार का प्रमुख घटक है. ज्यादातर मुख्यमंत्री इसे अपने पास रखना पसंद करते हैं. गुजरात में तो कुछ ऐसा है कि सीएम का काम दूसरे नंबर पर आता है. उनका पहला काम गृह विभाग से संबंधित दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से जुड़ा होता है.’
अधिकारी ने बताया, ‘जब मोदी गुजरात में मुख्यमंत्री थे, तो उन्होंने अमित शाह (अब केंद्रीय गृह मंत्री) को गृह राज्य मंत्री बनाया हुआ था. यह विभाग सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इसमें कानून- व्यवस्था और लोगों की सुरक्षा शामिल है. क्योंकि राज्य के प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री अपने दिन-प्रतिदिन के प्रशासनिक कार्यों में बहुत व्यस्त होता है, इसलिए वह अपने सबसे भरोसेमंद व्यक्ति को नंबर दो के रूप में रखता है, जो सीएम की ओर से काम करता है.’
आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एल.वी. सुब्रमण्यम ने सामान्य प्रशासनिक विभाग को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इसे भी ज्यादातर मुख्यमंत्री अपने पास रखना पसंद करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर, सामान्य प्रशासन विभाग अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों से जुड़ा है और मुख्यमंत्री इस पर अपना नियंत्रण रखते हैं. केंद्र-राज्य के विषय भी मुख्यमंत्री के पास होते हैं. और साथ ही योजना विभाग भी. वैसे भी राज्य के कैबिनेट मंत्रियों को किसी भी नई नीतिगत पहल की मंजूरी के लिए सीएम के पास आना ही पड़ता है.’
वित्त जैसे कुछ विभागों का आवंटन व्यावहारिक कारणों के मद्देनजर किया जाता है..
सुब्रमण्यम ने कहा, ‘वित्त सभी विभागों के लिए केंद्रीय विषय है, इसलिए वित्त विभाग रखने वाले व्यक्ति को सभी मंत्रियों के साथ बातचीत करनी होती है. और जिस भी प्रस्ताव को मंजूरी दी जाती है, उसका वित्तीय प्रभाव होता है’ ‘इसलिए, कुछ मुख्यमंत्री वित्त विभाग को अपने पास रखने से बचते हैं क्योंकि इससे उनका कामकाज और जिम्मेदारियां काफी बढ़ जाती हैं. अगर वित्त विभाग मुख्यमंत्री के पास है तो ऐसे में उसको जितनी बैठकों में भाग लेना होता है, उनकी संख्या भी बढ़ जाती है.’
मुख्यमंत्री राज्य की भौगोलिक स्थिति से जुड़े और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण विभागों को भी अपने पास रखना चाहते हैं. उदाहरण के लिए, झारखंड में सोरेन के पास खान और खनिज विभाग हैं, जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री के पास उद्योग हैं. विजयन ने तटीय नौवहन और अंतर्देशीय नौवहन को अपने पास रखा हुआ है.
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कुछ मुख्यमंत्रियों के पास बहुत कम या फिर कोई विभाग नहीं
कुछ मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिनके पास किसी भी विभाग की जिम्मेदारी नहीं है. दिल्ली में केजरीवाल ने अपने पास कोई भी मंत्रालय नहीं रखा है. वहीं तेलंगाना के राव और अरुणाचल प्रदेश के खांडू ने भी किसी विभाग की जिम्मेदारी नहीं ली हुई है.
बीजू जनता दल (बीजद) के ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के पास केवल दो विभाग हैं – गृह और सामान्य प्रशासन – जबकि असम के भाजपा के हिमंत बिस्वा सरमा ने तीन, गृह, कार्मिक और लोक निर्माण विभाग रखे हुए हैं.
ओडिशा के सीएम के बारे में बात करते हुए, दूसरे रिटायर आईएएस अधिकारी ने बताया, ‘नवीन पटनायक सिर्फ दो या तीन विभागों को अपने पास रखकर खुश हो सकते हैं क्योंकि उनके मंत्रिमंडल में कुछ सक्षम मंत्री हैं. या फिर लंबे समय तक सीएम रहने के कारण उन्होंने एक ऐसा माहौल बना दिया है जहां वह कम से कम विभागों को अपने अधीन रखकर भी निश्चिंत होकर काम-काज देख सकते हैं.’
पूर्व आईएएस अधिकारी ने कहा कि राज्य के आकार पर बहुत कुछ निर्भर करता है. ‘छोटे राज्यों में छोटे मंत्रिमंडल हैं, लेकिन सरकारी विभागों की संख्या कमोबेश उतनी ही है. ऐसे में एक कैबिनेट मंत्री के पास हमेशा एक से अधिक विभाग होंगे और यहां तक कि मुख्यमंत्री के पास भी एक से अधिक विभागों की जिम्मेदारी होगी. काम के बंटवारे की जरूरतों के चलते ये जरूरी भी है.’
सीएम संवेदनशील विभागों को भी अपने पास रखना पसंद करते हैं, खासकर छोटे राज्यों में. सेवानिवृत्त सिविल सेवक ने कहा कि राज्य की भौगोलिक स्थिति के आधार पर कुछ प्रमुख ढांचागत विभाग भी मुख्यमंत्री अपने नियंत्रण में रखते हैं.
2010 से 2014 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे चव्हाण ने विभागों के आवंटन में गठबंधन और गैर-गठबंधन सरकारों की राजनीति को भी एक कारक बताया.
उन्होंने कहा, ‘गठबंधन में कई मुश्किलें हैं. अगर आप गठबंधन की प्रमुख पार्टी के रूप में नियंत्रण रखना चाहते हैं, तो सीएम को अपने पास गृह, वित्त और अन्य प्रमुख विभागों को रखना होगा. कई मुख्यमंत्री गृह और वित्त को अपने पास या अपने मुख्य सहयोगियों के पास ही रखना पसंद करते हैं.’
कांग्रेस नेता चव्हाण ने कहा, ‘महाराष्ट्र के मौजूदा सीएम (उद्धव ठाकरे) गठबंधन (महा विकास अघाड़ी) सरकार का हिस्सा होने के बावजूद कानून, न्यायपालिका और सामान्य प्रशासन के अलावा कोई विभाग नहीं रखते हैं’ ‘जब मैं मुख्यमंत्री था, यह एक गठबंधन सरकार (राकांपा-कांग्रेस) थी और हमारे पास न तो गृह था और न ही वित्त. मुझे लगता है कि ये एक बड़ी गलती थी , जो अस्थिर सरकार का एक कारण बनी.’
केरल के दो बार के पूर्व सीएम ओमन चांडी ने कहा कि शुरू में कई विभागों को संभालना उनके लिए आसान था, लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने सामान्य प्रशासन और विकास गतिविधियों पर ज्यादा फोकस देने के लिए गृह विभाग को छोड़ दिया.
उन्होंने कहा, ‘बड़ा हो या छोटा, हर पोर्टफोलियो महत्वपूर्ण होता है. कर्मचारियों और लोगों के सहयोग से हर विभाग में अच्छे काम की गुंजाइश है.’
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