लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लॉकडाउन के चलते उद्योगों के आगे आई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए श्रम अधिनियमों से 1000 दिन (तीन साल) की छूट देने का फैसला किया है. इसके तहत सरकार द्वारा बीते बुधवार को अध्यादेश भी पास किया गया जिसके मुताबिक तीन अधिनियम व एक प्रावधान के अलावा सभी श्रम अधिनियमों को निष्प्रभावी कर दिया गया है. इस पर विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए इसे मजदूर विरोधी अध्यादेश बताया है.
यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के मुताबिक, ‘श्रमिकों के मूलभूत हितों की रक्षा के लिए श्रम कानूनों में जो उनको संरक्षण प्राप्त है, वह यथावत रहेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘इनमें बंधुआ श्रम व उत्पादन अधिनियम, भवन सन्निर्माण अधिनियम (भवन निर्माण में जुटे मजदूरों का पंजीकरण), कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम (किसी आपात स्थिति मे मजदूरों को मुआवजे से संबंधित) व बच्चों व महिलाओं के नियोजन संबधित श्रम अधिनियम (गर्भावस्था और चाइल्ड लेबर लॉ) पूरे लागू रहेंगे. वेतन अधिनियम के तहत वेतन भुगतान की व्यवस्था यथावत रहेगी. वेतन संदाय अधिनियम 1936 की धारा -5 के तहत तय समय सीमा के अंदर वेतन भुगतान का प्रावधान भी लागू रहेगा.’
श्रमिकों को मिले रोजगार इसलिए दी सहूलियतें
यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि जिन कारखानों व मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के कार्यालय बंद पड़े हैं उन्हें खोलने के लिए यह छूट दी गई है ताकि बाहर से जो प्रवासी श्रमिक प्रदेश में लाए जा रहे हैं उन्हें बड़े स्तर पर काम मिल सके. ये छूट अस्थाई है.
श्रम मंत्री ने कहा, ‘यूपी में 38 श्रम कानून लागू हैं लेकिन अध्यादेश के बाद किसी भी उद्योग के खिलाफ लेबर डिपार्टमेंट एनफोर्समेंट नियम के तहत कार्रवाई नहीं की जाएगी. इस दौरान श्रम विभाग का प्रवर्तन दल श्रम कानून के अनुपालन के लिए अगले तीन साल तक कारखाने और फैक्ट्री में छापेमारी या जानकारी के लिए नहीं जाएगा.’
विपक्ष और एक्टिविस्ट ने सरकार पर साधा निशाना
कांग्रेस के यूपी चीफ अजय कुमार लल्लू ने गुरुवार को इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये मजदूरों के साथ विश्वासघात है. कोरोना की आड़ में तीन सालों के लिए श्रम क़ानून स्थगित करने का सरकार का फैसला पूंजीपतियों के आगे मजदूरों को ‘बंधुआ’ की तरह सौंप देना है.
लल्लू आगे कहते हैं, ‘ऐसे नाजुक वक्त में मजदूरों को राहत देने के बजाय सरकार ने उनपर अपना तानाशाही फैसला थोपा है.’
समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह ने भी इसे सरकार की मनमानी बताते हुए इसे ‘मजदूरों के अधिकारों का हनन’ बताया है.
उदयवीर सिंह के मुताबिक, ‘श्रमिकों को लेकर योगी सरकार देर से जागी और उसके बाद उन्हें यूपी में ही रोजगार देने का बहकावा देकर श्रम कानून में उद्योगो को छूट दे दी.’
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कई अहम श्रमिक कानून निष्प्रभावी
यूपी के लेबर लॉ एडवोकेट काशीनाथ मिश्रा बदले हुए श्रमिक कानून पर कहते हैं, ‘ये अध्यादेश श्रमिकों के हितों के खिलाफ हैं. इससे कई अहम श्रमिक कानून अब निष्प्रभावी हो गए हैं.’
वह आगे कहते हैं, ‘इनमें मिनिममवेज (न्यूनतम मजदूरी) एक्ट काफी अहम है जिसके मुताबिक एक तय अमाउंट मजदूरों को देना कंप्लसरी (आवश्यक) किया जाता है. सभी उद्योग इसी के तहत ही श्रमिक व मजदूरों का पेमेंट करते हैं लेकिन अब सब अपनी सुविधानुसार करेंगे.’
इस कानून में किए गए बदलाव को लेकर लेबर लॉ एडवोकेट काशीनाथ कहते हैं, ‘इसके अलावा ट्रेड यूनियन एक्ट, इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट, इक्वल रिम्यूनिरेशन (समान पारिश्रमिक) एक्ट, जर्नलिस्ट एक्ट, बोनस एक्ट, प्रोविडेंट फंड से संबंधित एक्त समेत तमाम अहम एक्ट अब निष्प्रभावी हो गए हैं जिससे मजदूरों के हितों की रक्षा कैसे होगी. उनके खान-पान, स्वास्थ्य से संबंधित कानून भी निष्प्रभावी कर दिए गए हैं. लेबर लॉ में लाए गए अध्यादेश को मंजूरी राष्ट्रपति की ओर से मिलती है. सरकार इसे अब राष्ट्रपति को भेजेगी.’
यूपी कांग्रेस के लीगल सेल के इंचार्ज एडवोकेट गंगा सिंह ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ये
‘मजदूरों के अधिकारों पर हमला’ है.
‘श्रमिकों के हित के सारे अहम नियम तो निषप्रभावी कर दिए गए. न तो पीएफ, न बोनस, न हेल्थ सिक्योरिटी.’ अब किसी को उसके काम के बदले पहले जैसा पेमेंट नहीं दिया जाएगा.’
वह आगे कहते हैं, ‘श्रमिकों को समय से पैसा मिलेगा भी या नहीं इसकी भी अब गारंटी नहीं. उद्योग मालिक सरकार की नाक के नीचे जितनी चाहे उतनी मनमानी कर सकेंगे.’
दिप्रिंट से बातचीत में वह कहते हैं, इससे ज्यादा किसी सरकार को उद्योग की मनमानी के आगे झुकता देखा.’
सीएम ने कहा था- रोजगार की व्यवस्था करें
पिछले दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि जो भी श्रमिक दूसरे प्रदेशों से वापस यूपी आ रहे हैं उनके लिए यहीं पर ‘रोजगार की व्यवस्था’ की जाए. इसके बाद सरकार की ओर मनरेगा के तहत बाहर से आए श्रमिकों को रोजगार देने के लिए सभी डीएम व सीडीओ को सभी के जॉब कार्ड बनवाने का आदेश दिया था.
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सरकार से जुड़े एक सूत्र ने बताया, ‘लाखों श्रमिक दूसरे प्रदेशों से लौटे हैं जिनमें अधिकतर वापस नहीं जाना चाहते. ऐसे में सबको यूपी में ही रोजगार मुहैया कराना आसान नहीं. वहीं दूसरी ओर से लॉकडाउन के कारण उद्योगों को नुकसान हो रहा था. ऐसे में कहीं न कहीं सरकार पर उन्हें छूट देने का दबाव भी था.’
अध्यादेश को हाइलाइट करने से बचती दिखी सरकार
इस अध्यादेश को पारित किए जाने के बीच खास बात ये रही कि बुधवार को ये पारित किया गया लेकिन सरकार की ओर से इसे ‘हाइलाइट’ नहीं किया गया जिस तरह से महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश को किया गया था.
यहां तक की सरकार के किसी प्रवक्ता की ओर से भी इस पर कोई बयान नहीं दिया गया, वहीं स्थानीय मीडिया में भी मजदूरों के अधिकारों के रक्षा के इतर चर्चा ‘महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश’ की ही रही.
बुधवार को कांग्रेस व सपा नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया जिसके बाद ये चर्चा का विषय बना. सरकार से जुड़े सूत्रों की मानें तो लॉकडाउन के दौर में सरकार की इमेज श्रमिकों के हित काम करने की बनाने का प्रयास है. ऐसे में इस अध्यादेश को अधिक हाइलाइट करने से सभी प्रवक्ताओं को रोका गया.