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Thursday, 25 April, 2024
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योगी आदित्यनाथ- ‘जिज्ञासु लड़का’ जो फायरब्रांड नेता बनकर उभरा और दोबारा UP का CM बन इतिहास रच दिया

2017 के चुनावों में योगी को पहले दो चरणों के चुनाव में भाजपा की तरफ से स्टार प्रचारक तक घोषित नहीं किया गया था. लेकिन बाद में मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम का ऐलान कर दिया गया.

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लखनऊ: योगी आदित्यनाथ जिनका मूल नाम अजय मोहन बिष्ट है, कई मायनों में एक अलग तरह के राजनेता हैं. एक ऐसे व्यक्ति जिसका नाम 2017 के चुनावों में भाजपा के स्टार प्रचारकों की सूची तक में नहीं था, लेकिन 37 सालों बाद यूपी में पार्टी के पहले सीएम बने और अब लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार दिख रहे हैं. संन्यासी से राजनेता बने 49 वर्षीय योगी आदित्यनाथ ने एक लंबा राजनीतिक सफर तय किया है.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में एक निम्न मध्यमवर्गीय फॉरेस्ट रेंजर के घर में जन्मे, ‘स्मार्ट बॉय’ अजय एक बार अपने एक रिश्तेदार के कहने पर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल हो गए थे, लेकिन फिर उन्होंने महसूस किया कि इसकी विचारधारा उन्हें रास नहीं आ रही. यूपी के सीएम की जीवनी ‘द मंक हू बिकम सीएम’ लिखने वाले शांतनु गुप्ता बताते हैं कि इसके बाद वह आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हो गए.

गुप्ता ने योगी को ‘गपशप से दूर रहने वाले एक जिज्ञासु लड़के’ के तौर पर वर्णित किया है, जो गोरखपुर मठ के दूसरे महंत अवैद्यनाथ से उस समय मिले थे जब रामजन्मभूमि आंदोलन चल रहा था. उन्होंने महंत अवैद्यनाथ को इस कदर प्रभावित किया कि उन्होंने आदित्यनाथ को 1993 में मठ के प्रमुख की अगली पंक्ति में शामिल करने के संकेत दे दिए. उन दिनों धार्मिक संगठन से जुड़े लोग आदित्यनाथ को ‘छोटे महंत’ के नाम से जानते थे.

गुप्ता ने बताया कि ‘यद्यपि धार्मिक स्तर पर सत्ता का हस्तांतरण 1994 में हुआ,लेकिन राजनीति में उनका उदय 1998 में शुरू हुआ जब महज 26 साल की उम्र में योगी आदित्यनाथ सांसद बने.

यूपी के मुख्यमंत्री पर ‘यदा यदा ही योगी’ नामक उनकी एक और जीवनी के लेखक विजय त्रिवेदी कहते हैं कि इस बीच, आदित्यनाथ की छवि एक तेजतर्रार, मुस्लिम विरोधी हिंदू नेता के रूप में बन चुकी थी. किताब में उनके ध्रुवीकरण पर केंद्रित कुछ भाषणों को संकलित किया गया है.

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उन्होंने बताया, ‘मठ योगी के पूर्ववर्ती महंतों दिग्विजय नाथ और अवैद्यनाथ के नेतृत्व में 60 से अधिक सालों से रामजन्मभूमि आंदोलन का केंद्र बिंदु बना हुआ था, लेकिन योगी आदित्यनाथ के आगमन और दक्षिणपंथी संगठन हिंदू युवा वाहिनी (एचवाईवी) के गठन के साथ हिंदुत्व पर उनके आक्रामक दृष्टिकोण को नई पहचान मिली. जनवरी 2007 के सांप्रदायिक दंगों के बाद पूर्वी यूपी की राजनीति में उनकी भूमिका और उसके बाद की घटनाओं ने उनकी इस छवि को ही और मजबूत करने में मदद की. मठ में कभी बड़ी संख्या में मुसलमानों का आना-जाना रहता था लेकिन योगी के नेतृत्व में उसमें काफी गिरावट नजर आने लगी.’

योगी की हिंदू युवा वाहिनी, जो खुद को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के लिए समर्पित एक संगठन बताती है, गोरक्षा के एजेंडे से जुड़ी है, ‘लव जिहाद’ के खिलाफ लड़ रही है और ‘घर वापसी’ का अभियान भी चला रही है. इन्हीं ज्यादातर बातों को बाद में भाजपा के संकल्प पत्र में जगह मिली और इसी ने 2017 के चुनावों का नैरेटिव तय किया जिसमें भाजपा ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था.


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बागी सदस्य से लेकर यूपी में पार्टी के चेहरे तक

भाजपा सदस्य होने के बावजूद पार्टी के भीतर योगी आदित्यनाथ के शुरुआती साल काफी कठिन थे. कहा जाता है कि उनके भाजपा में कई लोगों के साथ रिश्ते सौहार्दपूर्ण नहीं थे, जिसका संकेत 2002 के विधानसभा चुनावों के दौरान गोरखपुर में उनकी तरफ से कैबिनेट मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला के बजाये हिंदू महासभा के उम्मीदवार राधा मोहन दास का समर्थन किए जाने से मिलता है.

विजय त्रिवेदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘योगी के भाजपा से कभी अच्छे संबंध नहीं रहे. दरअसल, वह तो पूर्व में भाजपा के आलोचक भी रहे हैं. जब 2006 में लखनऊ में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी, उन्होंने एक तरह से अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए गोरखपुर में एक विराट हिंदू महासम्मेलन का आयोजन किया. 2007 में संसद में अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि उन्हें खतरा है और वह अपना पद छोड़ने के लिए तैयार हैं.’

लेकिन गोरखपुर में योगी की अपील बेजोड़ रही है, जहां उनकी तेजतर्रार छवि के प्रशंसकों की खासी तादात है.

त्रिवेदी याद दिलाते हैं कि 2007 में यूपी में धार्मिक अशांति के दौरान निषेधाज्ञा के उल्लंघन पर योगी को जब पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था तो उन्हें महज डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित पुलिस स्टेशन तक लाने में पुलिस को पांच घंटे से ज्यादा समय लग गया था.

उन्होंने कहा, ‘गोरखपुर शहर में जबर्दस्त जाम देखा गया और योगी के पुलिस थाने की ओर कदम बढ़ाते ही सब कुछ एकदम थम गया.’


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स्टार प्रचारकों की सूची में नाम न होने से लेकर सीएम की कुर्सी तक

राजनीतिक विश्लेषक यह बात खास तौर पर रेखांकित करते हैं कि 2017 के चुनावों के दौरान पहले दो चरणों में तो भाजपा ने योगी का नाम स्टार प्रचारकों की सूची तक में नहीं रखा था.

त्रिवेदी ने बताया, ‘केशव मौर्य—जिनका खासकर इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद भाजपा के प्रभाव बढ़ गया था—और वरिष्ठ नेता मनोज सिन्हा, दोनों को सीएम पद की रेस में माना जा रहा था. हालांकि, जब मीडिया चैनल इन दोनों चेहरों को दिखा रहे थे, तभी भाजपा ने सीएम पद के लिए योगी आदित्यनाथ के नाम की घोषणा कर दी.’

अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि कैसे ‘लव जिहाद’, ‘तीन तलाक’, बूचड़खानों पर प्रतिबंध लगाने जैसा योगी का पसंदीदा एजेंडा बाद में पार्टी का एजेंडा बन गया.

तमाम राजनीतिक विशेषकों की तरफ से यह बात रेखांकित की गई है कि योगी आदित्यनाथ एक ‘सख्त’ नेता हैं, जो पूर्वी यूपी में एक ‘पंथ’ के तौर पर उभरे हैं, साथ ही वे उनकी छवि के बारे में भी बात करते हैं, जिसमें नरम रुख की कमी है और उन पर ‘ध्रुवीकरण’ के आरोप भी लगते रहे हैं.

जीबी पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक बद्री नारायण ने दिप्रिंट से कहा कि 2022 के यूपी चुनावों के नतीजे भाजपा के भीतर आदित्यनाथ की स्थिति को और मजबूत ही करने वाले हैं.

नारायण ने कहा, ‘वह एक तेजतर्रार हिंदुत्ववादी नेता हैं, लेकिन केंद्र में किसी बड़ी भूमिका के लिए उन्हें लचीला रुख अपनाने की जरूरत है और कुछ समझौतों के लिए भी तैयार रहने की जरूरत है, जो राजनीति के लिहाज से आवश्यक है. यह लचीलापन अब तक उनके कामकाज की शैली से गायब है. वह उस बारे में ज्यादा नहीं सोचते जो आसपास हो रहा है, और अपने फैसलों पर भरोसा करते हैं.’

इस बीच, जब पार्टी के तमाम लोगों ने यूपी के सीएम पद पर उनकी अपेक्षित वापसी को लेकर जश्न मनाना शुरू कर दिया है—योगी राज्य में 37 सालों के बाद पहले ऐसे मुख्यमंत्री होंगे जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए जनादेश हासिल किया है.

भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, ‘पांच साल के कार्यकाल के बावजूद योगीजी ने कभी लॉबिंग नहीं की, कभी सत्ता की कोई भूख नहीं दिखाई और उन्हें ‘कठोर’ नेता के तौर पर देखा जाता है.’ उन्होंने कहा, ‘सभी ने देखा कि कैसे उन्होंने अपने कर्तव्यों को आगे रखते हुए अपने पिता के अंतिम संस्कार तक में हिस्सा नहीं लिया. वह वही नेता है जिसने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों (लखनऊ में) के खिलाफ पोस्टर लगाने का आदेश दिया था, वह जोखिम लेते हैं. जहां तक सवाल फ्लेक्सिबिलिटी का है, योगीजी के पास शासन के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है और उनकी कोई राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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