मुंबई: वर्ष 2023 में महाराष्ट्र के राजनीतिक परिदृश्य पर आरक्षण की राजनीति हावी रही और इसे लेकर साल के अधिकांश समय सामाजिक तनाव बना रहा.
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व किया, लेकिन इसके कारण ओबीसी नेताओं को भी यह कहना पड़ा कि मराठों को आरक्षण देते समय मौजूदा ओबीसी आरक्षण प्रभावित नहीं होना चाहिए.
कोटा आंदोलन में अचानक उस समय तेजी देखी गई, जब पुलिस ने एक सितंबर को लातूर जिले में जरांगे के गांव में उनके अनशन स्थल पर प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लाठीचार्ज किया.
पुलिस की कार्रवाई के बाद आंदोलन तेज हो गया, जिससे सरकार को जरांगे के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर होना पड़ा. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दिसंबर में आश्वासन दिया था कि जरूरत पड़ने पर मराठा समुदाय को आरक्षण देने के लिए विधानमंडल का एक विशेष सत्र आयोजित किया जाएगा.
वर्ष 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद शिवसेना विभाजित हो गई थी और बागी धड़े ने भाजपा के साथ गठबंधन में सरकार बनाई, इसी तरह 2023 में अजित पवार अपने चाचा एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) संस्थापक शरद पवार को झटका देते हुए शिवसेना-भाजपा के साथ राज्य की गठबंधन सरकार में शामिल हो गए.
जुलाई 2023 में अजित पवार और कई राकांपा नेता शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हुए और अजित भाजपा के देवेंद्र फडणवीस के अलावा दूसरे उपमुख्यमंत्री बने.
इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम ने लोकसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मंच तैयार किया है.
महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें हैं, जो उत्तर प्रदेश के बाद देश में दूसरी सबसे अधिक सीटें हैं.
शरद पवार के खिलाफ बगावती तेवर दिखाने से पहले, अजित पवार ने निर्वाचन आयोग को एक पत्र दिया था जिसमें कहा गया था कि (शरद पवार नहीं) वह राकांपा के अध्यक्ष हैं.
इससे कानूनी विवाद शुरू हो गया कि कौन सा गुट ‘असली’ राकांपा है और ये मुद्दा निर्वाचन आयोग के समक्ष विचाराधीन है.
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