नई दिल्ली: विधानसभा चुनाव 2020 की दहलीज पर खड़ी दिल्ली के तीनों मुख्य राजनीतिक दल आप, भाजपा और कांग्रेस, 2019 में खुद को जनता के सबसे बड़े हितैषी साबित करने की होड़ में लगे रहे.
दिल्ली में सत्तारूढ़ आप के समक्ष अपने जनाधार को बरकरार रखने की चुनौती है, जबकि कांग्रेस और भाजपा, पिछले विधानसभा चुनाव में अपने खिसक चुके जनाधार को फिर से हासिल करने की जद्दोजेहद में साल भर जुटे रहे. कुल मिलाकर, दिल्ली के सियासी अखाड़े में तीनों दलों ने एक दूसरे को पटखनी देने के सभी संभव दांव-पेच अपनाते हुये खुद को जनता का सबसे बड़ा शुभचिंतक साबित करने के सभी तरीके आजमाये.
सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के लिये रही, जो 2015 के विधानसभा चुनाव में शून्य के आंकड़े पर पहुंच चुकी है. विधानसभा चुनाव में शून्य के आंकड़े पर सिमट चुकी कांग्रेस, इस साल लोकसभा चुनाव में भी दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जमानत गंवा बैठी.
वहीं, भाजपा ने इस साल मई जून में हुये लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सात सीटों पर लगातार दूसरी बार अपना कब्जा बरकरार रख आगामी विधानसभा चुनाव में अपना जनाधार वापस हासिल करने की कार्यकर्ताओं में उम्मीद बढ़ाई. उल्लेखनीय है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटों पर जीत का परचम लहराया था.
लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार भाजपा से मुंह की खाने के बाद ‘आप’ के लिये दिल्ली में अपनी लोकप्रियता का ग्राफ बरकरार रखने की चुनौती बढ़ गयी है. हालांकि आप ने साल के शुरू में लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में अपनी सियासी जमीन को दरकने से बचाने के लिये कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिश भी की लेकिन यह कोशिश कारगर नहीं हो पायी और इसका चुनावी फायदा भाजपा के खाते में गया.
आप ने लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की भी कोशिश की लेकिन चुनाव में जनता द्वारा इस मुद्दे को नकार दिये जाने के बाद पार्टी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है.
आप ने दिल्ली में अपने जनाधार को बरकरार रखने के लिये मुफ्त पानी और बिजली पर सब्सिडी की कवायद को मुख्य हथियार बनाया है. साथ ही दिल्ली को वाईफाई युक्त बनाने के अपने प्रमुख चुनावी वादे को भी इस साल लागू कर युवा मतदाताओं में अपनी पैठ को कायम रखने की कोशिश की है.
आप ने 70 सदस्यीय विधानसभा के 2015 के चुनाव में 67 सीटें जीतने का अपना ही रिकॉर्ड आगामी चुनाव में ध्वस्त कर ‘अबकी बार 67 पार’ के नारे के साथ चुनावी समर में उतरने का ऐलान किया है. आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटें जीतने के संकल्प के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं से चुनावी अभियान में शामिल होने का आह्वान किया है.
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये आप ने चुनावी रणनीति के विशेषज्ञ प्रशांत किशोर की भी सेवायें लेने का फैसला किया है.
आप के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कहा, ‘हम सामाजिक सौहार्द के संदेश के साथ सकारात्मक राजनीति में यकीन करते हैं और इसी प्रकार की सकारात्मक राजनीति हम दिल्ली में भी कर रहे हैं.’
आप की मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा, लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों को जीतने से उत्साहित जरूर है लेकिन दिल्ली की सत्ता से दो दशक से बाहर चल रही पार्टी के लिये 2020 में चुनावी जीत सुनिश्चित करने की चुनौती है.
आप की मुफ्त पानी और सस्ती बिजली के दांव को नाकाम करने के लिये भाजपा ने केन्द्र सरकार के माध्यम से दिल्ली की अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने का दांव चलकर आप और कांग्रेस को बैकफुट पर लाने की कोशिश की है.
अनधिकृत कालोनियों में आप के मजबूत किले को ध्वस्त करने के लिये भाजपा की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने हाल ही में खत्म हुये संसद के शीतकालीन सत्र में इन कालोनियों में संपत्ति का मालिकाना हक देने के लिये कानून पारित करने की पहल की. इन कालोनियों में संपत्ति के पंजीकरण की अनुमति देने वाले कानूनी विधेयक को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी दी गयी.
आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा पेश विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने संपत्ति के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है. हालांकि आप और कांग्रेस इसे भाजपा का छलावा करार दे कर दलील दे रहे हैं कि इससे कालोनियां नियमित नहीं होंगी, सिर्फ लोगों की संपत्ति को पंजीकृत करने और खरीद फरोख्त की अनुमति मिली है.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का मानना है कि दिल्ली की 1731 अनधिकृत कालोनियों में संपत्ति का मालिकाना हक मिलने से इन कालोनियों के लगभग 40 लाख लोगों को लाभ मिलेगा. तिवारी ने सकारात्मक कार्यों को ही भाजपा की जनता में बढ़ती विश्वसनीयता का एकमात्र कारण बताते हुये कहा कि इसी के बलबूते लोकसभा चुनाव में पार्टी को अप्रत्याशित जीत मिली और इसे विधानसभा चुनाव में भी पार्टी दोहरायेगी. उन्हें भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में कम से कम 45 सीटें मिलने का भरोसा है. भाजपा की विधानसभा में अभी मात्र तीन सीटें हैं.
इन कालोनियों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 22 दिसंबर को रामलीला मैदान में हुयी रैली से भी स्पष्ट हो गया है कि भाजपा, अनधिकृत कालोनियों के चार दशक पुराने मसले का समाधान निकालने को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनायेगी.
वहीं, कांग्रेस के लिये दिल्ली में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने की चुनौती को देखते हुये पार्टी ने पिछले पांच साल में तीन प्रदेश अध्यक्षों को बदलने का प्रयोग किया है. पिछले विधानसभा चुनाव के बाद अरविंदर सिंह लवली की जगह अजय माकन को पार्टी की कमान सौंपी गयी. जबकि लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों में दिया गया.
दीक्षित के इस साल निधन के बाद पार्टी ने सुभाष चोपड़ा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. चोपड़ा के लिये पार्टी कार्यकर्ताओं के कमजोर मनोबल को नयी ऊर्जा देने और पार्टी नेताओं को एकजुट करने की चुनौती है. इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और चांदनी चौक से चार बार विधायक रहे प्रह्लाद सिंह साहनी और झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय कुमार ने हाल ही में आप का दामन थामकर कांग्रेस को झटका दिया है.