नई दिल्ली: नवनियुक्त केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तो अपने नए घर भाजपा में गर्मजोशी और बेहतरीन तालमेल के साथ दोस्त बना रहे हैं, यहां तक कि एबीवीपी और आरएसएस जैसे संबद्ध संगठनों के अंदर भी. लेकिन उनकी बुआ और एक पुरानी भाजपा नेता यशोधरा राजे सिंधिया की शिवराज सिंह चौहान कैबिनेट के साथ कोई घनिष्ठता नहीं बढ़ पा रही है.
इसी महीने मध्य प्रदेश की खेल और तकनीकी शिक्षा मंत्री का अपने तीन कैबिनेट सहयोगियों के साथ टकराव हुआ, जिसमें एक घटना तो मुख्यमंत्री की उपस्थिति में ही हुई.
ताजा घटना इस हफ्ते कैबिनेट बैठक के दौरान हुई जब यशोधरा का वन मंत्री विजय शाह और सहकारिता मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया के साथ एक मामूली बात पर विवाद हो गया.
एक सूत्र ने कहा, ‘यशोधरा इस वजह से विजय शाह से नाराज हो गई थीं क्योंकि उनका कुर्ता पायजामा ठीक नहीं था. उन्होंने कहा कि आपके पीछे दो महिलाएं बैठी हैं, आपको ठीक से कपड़े पहनने चाहिए.’
भदौरिया भी इस बातचीत के बीच में कूद पड़े और उन्होंने शाह से कहा कि उन्हें संभलकर रहना चाहिए क्योंकि ‘वह महाराजा (शाही परिवार से) हैं और आप प्रजा हैं.’
इस टिप्पणी पर यशोधरा भड़क गईं और उन्होंने भदौरिया से कहा कि ‘जुबान संभालकर बात करें, आप मेरा अपमान कर रहे हैं.’ उन्होंने कहा कि वह उन्हें घूरे नहीं और यह कहते हुए बैठक छोड़कर चली गई. कुछ देर बाद जब चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने मंत्रियों के बीच मध्यस्थता की तब वह लौटीं.
मुख्यमंत्री की मौजूदगी में दिखाई नाराजगी
इसी महीने की शुरुआत में यशोधरा राजे सिंधिया ने कैबिनेट बैठक के दौरान एक और मंत्री को डांट दिया था.
बिजली मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर राज्य में किसानों को बिजली सब्सिडी पर प्रेजेंटेशन दे रहे थे और इसे घटाने की वकालत कर रहे थे. यशोधरा सहित कई मंत्रियों ने बढ़े बिलों का मुद्दा उठाते हुए प्रस्ताव से असहमति जताई. इस पर तोमर के जवाब ने उन्हें संतुष्ट नहीं किया.
सूत्रों के मुताबिक, यशोधरा ने तब तोमर से पूछा, ‘आपने अपने विभाग की दक्षता का जिक्र नहीं किया. आप इसका घाटा कैसे कम करेंगे?’
पिछले महीने की एक घटना जब तोमर एक हाईटेंशन बिजली के खंभे को साफ करने के लिए उस पर चढ़ गए थे, का हवाला देते हुए यशोधरा ने चुटकी ली, ‘आप पोल पर चढ़कर समस्या का समाधान नहीं कर सकते.’
तोमर ने उनसे कहा कि पहले उन्हें अपना प्रेजेंटेशन पूरा करने दें, लेकिन प्रेजेंटेशन देने के दौरान उनकी नजरें मंत्री पर ही टिकी हुई थीं. इससे यशोधरा नाराज हो गईं, उन्होंने तोमर को फटकारते हुए पूछा, ‘क्या आप मुझे डराना चाहते हैं?’ तब मुख्यमंत्री ने दखल दिया और तोमर से कहा कि वह अपने मंत्रालय के कामकाज पर भी चर्चा करें.
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सूत्रों ने कहा कि तोमर ने डबडबाई आंखों के साथ प्रेजेंटेशन पूरा किया.
दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिये टिप्पणी के लिए यशोधरा से संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.
तोमर ने दिप्रिंट से कहा कि यह कैबिनेट का आंतरिक मामला है, साथ ही यह कहते हुए कि किसी भी परिवार में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है, जोड़ा, ‘लेकिन हम बाहर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.’ भदौरिया ने भी अपनी प्रतिक्रिया में यही बात कही.
‘अच्छा पोर्टफोलियो नहीं मिलने की हताशा’
मध्य प्रदेश सरकार के एक कैबिनेट मंत्री के मुताबिक, ‘यशोधरा जी के साथ समस्या यह है कि उन्हें लगता है कि वह अभी भी राजा हैं और हम उनकी प्रजा. उनकी राजशाही की भावना बनी रहती है. वह वरिष्ठ हैं, लेकिन आप अन्य मंत्रियों का मजाक तो नहीं उड़ा सकतीं.’
यशोधरा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाने वाले तोमर पर निशाना साधा था. पूर्व कांग्रेसी नेता 2020 में सिंधिया के साथ भाजपा में शामिल हुए थे. तोमर के साथ यशोधरा की लड़ाई पुरानी है, क्योंकि वह उसी ग्वालियर क्षेत्र से विधायक हैं जहां से वह चुनाव लड़ती हैं.
एक दूसरे कैबिनेट मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘वह वरिष्ठ मंत्रियों में से एक हैं, लेकिन उनकी हताशा यह है कि ‘राजमाता’ (विजया राजे सिंधिया) की बेटी होने के बावजूद उन्हें अच्छे मंत्रालय नहीं मिलते हैं, जबकि कनिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को बड़े विभाग मिल रहे हैं. जैसे तोमर ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे हैं, और पहली बार मंत्री बने भदौरिया के पास सहकारी विभाग है, वह अपना आपा खो बैठती हैं.’
दूसरे मंत्री ने कहा, ‘एक अन्य बैठक में ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अवैध खनन पर उनका एक अन्य मंत्री के साथ सीएम की उपस्थिति में ही झगड़ा हुआ था.’ साथ ही जोड़ा कि चौहान के साथ भी यशोधरा के संबंध सहज नहीं हैं, लेकिन सरकार के अगुआ होने के नाते हर किसी की बात सुनना और उसे समायोजित करना उनके लिए जरूरी है.
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले यशोधरा द्वारा भाजपा की एक चुनावी सभा का बहिष्कार किए जाने की खबर सुर्खियों में रही थी. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि मंच पर राजमाता की कोई तस्वीर नहीं थी, जबकि श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य की तस्वीरें लगी हुई थीं.
भाजपा में उनका सफर इतना आसान नहीं रहा है. कुछ दशक पहले जहां पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें दरकिनार करने की कोशिश की, वहीं चौहान ने भी उन्हें छोटे-मोटे विभाग भी दिए हैं.
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