नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में “बाहुबली (मजबूत व्यक्ति)”, “पहलवानजी”, “स्थानीय डॉन” और “विशाल राजनीतिक ताकत और सद्भावना वाले व्यक्ति” – ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनसे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता पार्टी सांसद और पूर्व भारतीय कुश्ती महासंघ के (WFI) के अध्यक्ष, बृज भूषण शरण सिंह को संबोधित करते हैं. 66 वर्षीय बृजभूषण शरण सिंह पर भारत के शीर्ष पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है.
जबकि पहलवानों का एक समूह वर्तमान में सिंह की गिरफ्तारी की मांग को लेकर नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठा है, पार्टी के नेताओं ने दिप्रिंट से स्वीकार किया कि केंद्र की भाजपा नीत मोदी सरकार इस बात को लेकर असमंजस में है कि उसके साथ क्या किया जाए.
यूपी में गोंडा, कैसरगंज और बलरामपुर निर्वाचन क्षेत्रों से छह बार के लोकसभा सांसद – वर्तमान में कैसरगंज से लोकसभा सांसद – सिंह के बारे में माना जाता है कि वह राज्य के पांच लोकसभा क्षेत्रों में बोलबाला रखते हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी के लिए उनको छोड़ना मुश्किल माना जा रहा है.
दिप्रिंट ने जिन बीजेपी नेताओं से बात की उन्होंने सिंह के दबदबे, बाहुबल, यूपी में शैक्षणिक संस्थानों की एक चेन और वैचारिक रूप से बीजेपी के वैचारिक संस्थान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से उनके संबंधों के बारे में बताया जो कि उनकी ताकत को बढ़ाता है.
दूसरी ओर, उनके खिलाफ विश्व चैंपियनशिप पदक विजेता विनेश फोगाट और ओलंपिक पदक विजेता बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक द्वारा आरोप लगाए गए हैं, जिन्होंने उन्हें “शिकारी (Predator)” कहा है और उन पर महिला पहलवानों के “यौन उत्पीड़न” का आरोप लगाया है.
यूपी के गोंडा के एक स्थानीय बीजेपी नेता ने दिप्रिंट को बताया, “पांच लोकसभा क्षेत्रों गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, कैसरगंज और श्रावस्ती में राजनीति और टिकट बंटवारे पर पहलवानजी हुक्म चलाते हैं. उन्हें चुनाव जीतने के लिए किसी की जरूरत नहीं है, हर पार्टी उन्हें टिकट देने के लिए तैयार है और यह बृजभूषण हैं जो उनका प्रस्ताव स्वीकार करके उनका सम्मान करते हैं.”
भाजपा के पास वर्तमान में इन पांच सीटों में से चार हैं, जबकि श्रावस्ती बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पास है.
नेता के दबदबे के बावजूद, पार्टी में कुछ लोगों को डर है कि जिन विवादों से वह घिरे हैं वह पार्टी के हितों के खिलाफ काम कर सकता है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, दिल्ली के एक दूसरे वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘पार्टी के पास सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने का समय निकला जा रहा है’ और ‘विरोध करने वाले पहलवान चुनाव के समय में हमारी सरकार के राजनीतिक नैरेटिव को नुकसान पहुंचा सकते हैं.’
नेता ने कहा: “सिंह की राजनीतिक ताकत के बावजूद, पूरी कहानी भाजपा के पक्ष में नहीं जा रही है. एक तरफ हम कहते हैं ‘बेटी बचाओ’ और ‘बेटी पढ़ाओ’ और दूसरी तरफ ये आरोप हैं. अगर कार्रवाई नहीं की गई तो हम युवाओं को क्या संदेश देंगे?”
सिंह के विरोध पर टिप्पणी करने के लिए दिप्रिंट ने यूपी बीजेपी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी से फोन पर संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
कुछ समय के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) का भी हिस्सा रहे सिंह, ने उत्पीड़न के आरोपों से भी इनकार किया और उन्हें राजनीति से प्रेरित करार देते हुए प्रदर्शनकारियों पर कांग्रेस के प्यादे होने का आरोप लगाया. वह तब से आरोपों से इनकार कर रहे हैं.
गुरुवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश डाला, जिसमें कहा गया था: “दोस्तों, जिस दिन मैं अपने जीवन पर विचार करता हूं, मैंने क्या पाया और क्या खोया, जिस दिन मुझे लगता है कि मेरे पास लड़ने की ताकत नहीं है, जिस दिन मैं खुद को असहाय महसूस करता हूं, मैं उस तरह का जीवन जीना पसंद नहीं करूंगा. ऐसा जीवन जीने के बजाय, मैं चाहूंगा कि मृत्यु मुझे गले लगा ले.”
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उस दिन मुझे फांसी दी जा सकती है’
डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष पद से सिंह को हटाने की मांग को लेकर पहलवानों ने पहली बार जनवरी में सिंह के खिलाफ प्रदर्शन किया था.
विरोध तभी समाप्त हुआ जब सिंह के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) और भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) ने कदम आगे बढ़ाया. खेल मंत्रालय ने इस मामले की जांच करने और डब्ल्यूएफआई के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का प्रबंधन करने के लिए ओलंपियन मैरी कॉम की अध्यक्षता में एक निरीक्षण समिति (ओसी) का गठन किया. सिंह को 2011 से सम्हाल रहे उनके पद को छोड़ने के लिए कहा गया था.
सूत्रों ने पहले दिप्रिंट को बताया था कि समिति ने इस महीने अपनी रिपोर्ट सौंपी है, लेकिन इसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इसकी वजह से दूसरी बार विरोध शुरू हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एथलीटों ने आरोप लगाया है कि उन्होंने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर और आयोजन समिति के सदस्यों को फोन करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
पहलवान अब सिंह के खिलाफ एफआईआर की मांग कर रहे हैं.
जहां सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बीजेपी नेता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया, वहीं इस मामले की सुनवाई आज होनी है.
इस मामले में बीजेपी ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है.
आरोपों के पहले दौर के बाद, सिंह ने मीडिया से कहा था: “क्या कोई कह रहा है कि डब्ल्यूएफआई ने किसी पहलवान का यौन उत्पीड़न किया है? केवल विनेश (फोगट) ने ही यह कहा है. क्या किसी (और) ने आगे आकर कहा कि उनका यौन उत्पीड़न किया गया? यहां तक कि अगर एक पहलवान भी सामने आता है और कहता है कि उसे परेशान किया गया है, तो उस दिन मुझे फांसी दी जा सकती है.”
विरोध का नेतृत्व कर रहे पहलवान विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के अनुसार तब से, सात महिला पहलवानों, जिनमें से एक नाबालिग है, ने दिल्ली के कनॉट प्लेस पुलिस स्टेशन में सिंह के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराई है.
फोगाट ने कहा है कि शिकायतकर्ताओं की पहचान उजागर नहीं की गई है क्योंकि वे जूनियर एथलीट हैं और उनकी पहचान उजागर करने से उनका करियर बर्बाद हो सकता है.
मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं की पहचान उजागर न हो इसके लिए उनके नाम न्यायिक रिकॉर्ड से सेंसर किए जाएंगे.
यूपी में सिंह का पलड़ा भारी
गोंडा से लेकर कैसरगंज तक और स्थानीय सपा से लेकर भाजपा नेता और राजनीतिक विशेषज्ञ – सभी इस बात पर एकमत हैं कि यूपी में सिंह का दबदबा सिर्फ उनकी राजनीतिक शक्ति का नतीजा नहीं है, बल्कि कुश्ती जगत में बिताए वर्षों, उनके शिक्षण संस्थान, स्पष्ट सद्भावना और एक मजबूत व्यक्ति की छवि का भी परिणाम है.
गोंडा में लाल बहादुर शास्त्री डिग्री कॉलेज के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ ऋषिकेश सिंह ने कहा, “गोंडा के कौशलेंद्र दत्त राम [एक पूर्व शाही परिवार के सदस्य] ने बृजभूषण शरण सिंह [यूपी के डॉ आरएमएल अवध विश्वविद्यालय से कानून स्नातक] को राजनीति में सक्रिय रूप से प्रवेश करने की सलाह दी थी.”
सिंह ने गोण्डा निर्वाचन क्षेत्र से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और 1991 में पहली बार व 1999 में दूसरी बार गोंडा से जीत हासिल की. उन्होंने 2004 में बलरामपुर से, और 2009, 2014 और 2019 में कैसरगंज से लोकसभा चुनाव जीते. वह कथित तौर पर हमेशा भाजपा के उम्मीदवार रहे हैं, 2009 को छोड़कर जब उन्होंने सपा के टिकट पर चुनाव जीता था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह 1989 में राम जन्मभूमि आंदोलन से भी जुड़े थे. 1990 के दशक के मध्य में, उन्हें गैंग्स्टर दाऊद इब्राहिम के सहयोगियों की कथित रूप से मदद करने के लिए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत गिरफ्तार किया गया था, और तिहाड़ जेल में कई महीने बिताने पड़े थे.
2004 में, जब पार्टी ने सिंह को बलरामपुर से टिकट दिया तो इनके स्थान पर गोंडा से भाजपा ने घनश्याम शुक्ला को अपना उम्मीदवार बनाया. लेकिन चुनाव परिणाम आने के पहले ही शुक्ला की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी, जिसे कुछ लोगों ने “हत्या” करार दिया था. स्क्रॉल.इन को दिए एक साक्षात्कार में, सिंह को यह कहते हुए उद्धृत किया गया था कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें फोन किया था और कहा था “मरवा दिया (आपने उसे मार डाला था)”.
अयोध्या के एक तीसरे भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया कि “न केवल वह (सिंह) 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं एल.के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और कल्याण सिंह, के साथ गिरफ्तार होने वाले प्रमुख चेहरों में से एक थे बल्कि वह वीएचपी और आरएसएस से जुड़े लोगों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे.
सिंह को भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के बाद संसद में 2008 के विश्वास मत के दौरान मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पक्ष में मतदान करने के लिए भी जाना जाता है. वह तब भाजपा में थे, जिसने इस मुद्दे पर सरकार का विरोध किया था, और क्रॉस वोटिंग करने के लिए उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था.
इसके बाद ही वह सपा में शामिल हुए थे.
वर्तमान में उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह गोंडा जिला पंचायत की अध्यक्ष हैं और उनके पुत्र प्रतीक भूषण सिंह गोंडा सदर सीट से विधायक हैं.
शिक्षण संस्थानों की रीढ़ की हड्डी
सिंह यूपी के बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या और श्रावस्ती जिलों में स्कूलों और कॉलेजों सहित 50 से अधिक शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं, जिन्हें राज्य में उनकी ताकत का एक और जरिया माना जाता है.
एक चौथे भाजपा नेता ने दिप्रिंट को बताया: “सिंह की मुख्य ताकत कुश्ती है, जो उनका प्यार है. शिक्षण संस्थान सद्भावना फैलाने और राजनीतिक आधार बनाने का एक साधन है जिसके माध्यम से वह अपने प्रभाव का प्रयोग करते हैं. उनके संस्थानों में कम से कम एक लाख छात्र फार्मेसी, कानून, कृषि और अन्य पाठ्यक्रमों का अध्ययन करते हैं.
“हर साल सिंह के जन्मदिन (8 जनवरी) पर, प्रतिभा खोज के माध्यम से चुने गए छात्रों को स्कूटी, मोटरसाइकिल और नकद के साथ पुरस्कृत किया जाता है. इस साल केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी पुरस्कार वितरण कार्यक्रम में शामिल हुए थे. सिंह हर साल हजारों छात्रों की फीस भी माफ कर देते हैं.’
गोंडा के एक स्थानीय सपा नेता ने शिक्षण संस्थानों को सिंह की “रीढ़ की हड्डी” बताया, जिसने भाजपा को यूपी के निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दिलाने में मदद की.
“उनके संस्थानों में पढ़ने वाले छात्र और उनके परिवार बृजभूषण के पहले मतदाता बनते हैं, जबकि वहां कार्यरत हजारों प्रोफेसर और शिक्षक चुनाव से पहले अपने राजनीतिक कार्य को पूरा करने के लिए (भाजपा) पन्ना प्रमुख बन जाते हैं. इस तरह, सिंह को जीतने के लिए किसी अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता नहीं है. वह कई सीटों के लिए उम्मीदवार भी तय करते हैं और हर पार्टी उनकी ताकत का सम्मान करती है.’
‘राजनीतिक लाभ न देखे BJP’
सार्वजनिक और निजी तौर पर, सिंह को स्पष्टवादी और अपने मन की बात कहने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, उन्होंने अपनी पार्टी को भी नहीं बख्शा. पिछले अक्टूबर में, उन्होंने मानसून में बाढ़ से निपटने के तरीके को लेकर यूपी में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा था, “लोगों को देवताओं की दया पर छोड़ दिया गया था.”
पिछले साल मई में, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने कथित तौर पर जून के लिए निर्धारित अयोध्या की यात्रा को रद्द कर दिया था, जब सिंह ने चेतावनी दी थी कि उन्हें शहर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब तक कि वह उत्तर भारतीयों के खिलाफ कथित तौर पर की गई टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगते.
सिंह ने पिछले साल दिसंबर में अपने पतंजलि ब्रांड के तहत “नकली घी” बेचने के लिए कथित तौर पर योग गुरु रामदेव की भी आलोचना की थी, जिन्हें भाजपा आलाकमान के साथ अच्छे संबंध के लिए जाना जाता है और रामदेव को “मिलावट का राजा” कहा था.
चल रहे विवाद में, राजनीतिक विशेषज्ञों का विचार है कि सिंह के बाहुबल और प्रभाव के बावजूद, “केंद्र को यूपी में छोटे राजनीतिक लाभों को नहीं देखना चाहिए” और उत्पीड़न के आरोपों के मद्देनजर सिंह के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर संजय गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया, “प्रधानमंत्री ने गंदगी को साफ करने के लिए स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की, लेकिन सरकार को खेल निकाय (डब्ल्यूएफआई) में भी इस कैंपेन का उपयोग करना चाहिए जहां सफाई की आवश्यकता है. यह विडंबना है कि केंद्र खेलों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है, जबकि भारत को गौरवान्वित करने वाले खिलाड़ी कह रहे हैं कि उनका यौन उत्पीड़न किया गया और वे विरोध कर रहे हैं.”
अगर सरकार ने इस मामले पर ध्यान नहीं दिया, तो यह उनके खिलाफ जाएगा, गुप्ता ने सलाह दी, “संदेश भेजा जा रहा है कि सरकार खिलाड़ियों के साथ खड़ी नहीं है. केंद्र को यूपी में छोटे राजनीतिक लाभ को नहीं देखना चाहिए, बल्कि यह विचार करना चाहिए कि अगर सिंह के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो महिलाएं और युवा क्या सोचेंगे.”
उन्होंने कहा कि जब भाजपा ने विधायक कुलदीप सिंह सेंगर (उन्नाव में नाबालिग से बलात्कार के दोषी) को निष्कासित कर दिया था, “तो सिंह के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की?”
2018 में, एमजे अकबर, जो मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री थे, को महिला पत्रकारों द्वारा उत्पीड़न के आरोपों के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. इसी तरह, कर्नाटक के जल संसाधन मंत्री रमेश जारकीहोली ने मार्च 2021 में येदियुरप्पा कैबिनेट से अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया.
लेकिन दिप्रिंट से बात करते हुए, यूपी के बीजेपी नेताओं ने बताया कि “सिंह पार्टी या कैबिनेट में कोई पद नहीं रखते हैं”.
उनमें से एक ने कहा, “एक सांसद के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा सकती है? केवल अदालत ही हमें बचा सकती है,”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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