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Sunday, 3 November, 2024
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में महिलाएं कितनी अहम भूमिका में हैं?

मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए नामांकन भरने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. भाजपा ने 27 और कांग्रेस ने 25 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है.

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नई दिल्ली: अगर हम आंकड़ों की बात करें तो महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में मध्य प्रदेश शीर्ष स्थान पर बना हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक 2017 में मध्य प्रदेश में 4,882 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना दर्ज हुई. यही नहीं, नाबालिग बालिकाओं के साथ बलात्कार के मामले में भी मध्यप्रदेश में सबसे ज़्यादा हुए. मध्य प्रदेश में इस तरह के 2,479 मामले दर्ज किये गये.

क्या है महिलाओं की स्थिति?

मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी भाजपा सरकार के खिलाफ 40 दिन 40 सवाल अभियान के तहत तीसरा सवाल महिलाओं पर केंद्रित रखा था. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने 9 बिंदुओं का हवाला देकर पूछा कि मां-बहन और बेटियों का जीवन अंधकार में क्यों धकेल दिया.

केंद्रीय गृह मंत्रालय, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, ऑडिटर जनरल और एनएफएचएस-4 के आंकड़ों का हवाला देकर उन्होंने प्रदेश में महिलाओं की स्थिति की एक भयावह तस्वीर खींची.

ट्विटर पर उन्होंने सवाल पूछा, मामा राज के 13 वर्षों में 2,41,535 महिलाएं अपराधियों का शिकार हुईं. मामा के सत्ता में आने के बाद 2004 से 2016 में महिला अपराधों में 74.99 प्रतिशत वृद्धि हुई. महिलाओं के अपहरण की घटनाओं में 755 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2004 में 584 अपहरण होते थे, वे बढ़कर 2016 में 4994 प्रतिवर्ष होने लगे 25,566 महिलाएं अपहरण का शिकार हुई हैं. मामा राज में नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार 249 प्रतिशत बढ़ गए. 2004 में 710 बलात्कार से 2016 में 2479 बलात्कार प्रतिवर्ष. 17986 नाबालिग बच्चियां बलात्कार की शिकार. मामा राज (2004- 2016) में 46317 बलात्कार.


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कमलनाथ के सवाल थे, मामा राज के 13 वर्षों में अराजक तत्वों, अवसाद और आर्थिक तंगी की वजह से 27 हज़ार 457 महिलाओं ने आत्महत्या कर ली. मामा राज में 93 हज़ार 479 महिलाएं छेड़छाड़ का शिकार हुईं. मामा के राज में बहनों के साथ अन्याय में वृद्धि हुई-1168 प्रतिशत. वर्ष 2004 में महिलाओं के प्रति हुए अपराधों के अदालत में लंबित मामले-6 हज़ार 733. 2016 में महिलाओं के प्रति हुए अपराधों के अदालत में लंबित मामले-85,383.

कितनी है महिलाओं की राजनीतिक हिस्सेदारी?

मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों के लिए नामांकन भरने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. भाजपा ने 27 और कांग्रेस ने 25 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. यानी प्रदेश की प्रमुख पार्टियों भाजपा-कांग्रेस ने सिर्फ 10 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए हैं.

इससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 28 महिलाओं को टिकट दिया था. इनमें से 22 विधायक बनीं. कांग्रेस ने 21 को टिकट दिया था, 6 जीतीं.

वहीं, 2008 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 22 महिलाएं मैदान में उतारी थीं. इनमें से 15 जीतीं. कांग्रेस की 11 महिलाएं विधायक बनीं थीं.

महिलाओं को लेकर कांग्रेस की क्या है रणनीति?

महिलाओं की स्थिति को लेकर भाजपा सरकार को घेरने वाले मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी किए जाने संबंधी सवाल पूछे पर वो भड़क गए. कांग्रेस दफ्तर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कमलनाथ ने कहा, ‘कांग्रेस ने चुनाव जीतने वाली महिलाओं को टिकट दिया है न कि कोटा और सजावट के आधार पर.’

हालांकि इसके अलावा कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में जारी अपने वचन पत्र में महिलाओं को लेकर तमाम वादे किए हैं.


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इसमें प्रमुख हैं- बेटियों के विवाह के लिए 51 हजार रुपए की मदद दी जाएगी. महिला सुरक्षा की दृष्टि से 17 से 45 साल की महिलाओं को निशुल्क स्मार्ट फोन और इसमें आत्मरक्षा के लिए ऐप इंस्टॉल होगी. महिला स्व सहायता समूहों का कर्ज माफ किया जाएगा. निराश्रित महिलाओं की पेंशन 300 से बढ़ाकर 1000 की जाएगी. पुलिस फोर्स में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी. घर की रसोई सस्ती हो, इसके लिए रसोई गैस पर 100 रुपये की छूट दी जाएगी. छात्राओं को स्कूल से पीएचडी तक की मुफ्त पढ़ाई.

क्या है भाजपा का आधी आबादी से संकल्प?

महिला अपराध को लेकर चौतरफा आरोपों से घिरी भाजपा ने विधानसभा चुनाव में महिलाओं के लिए अलग से घोषणा पत्र लाकर जता दिया है कि महिला सुरक्षा और उसकी प्रगति उनकी प्राथमिकता में है.

हालांकि जिस दौरान भाजपा ने ‘नारी शक्ति संकल्प पत्र’ जारी किया. उस समय मंच पर एक भी महिला नेता या पदाधिकारी नहीं थी. मंच पर केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, थावर चंद्र गहलोत, नरेंद्र सिंह तोमर, प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह, उपाध्यक्ष प्रभात झा, डॉ. विनय सहस्त्रबुद्घे, प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा, महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, ‘दृष्टि-पत्र’ बनाने वाली समिति के प्रमुख विक्रम वर्मा सहित अन्य लोग मौजूद थे. लेकिन एक भी महिला पदाधिकारी नज़र नहीं आई. लिहाजा भाजपा के इस संकल्प पर ही कई लोग सवाल उठ रहे हैं.


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फिलहाल भाजपा द्वारा नारी शक्ति संकल्प पत्र में किए गए कुछ प्रमुख वादे ऐसे हैं- बेटियों के लिए शुरू की गई स्वागतम लक्ष्मी योजना को और मज़बूत किया जाएगा. इसे शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी अहम योजनाओं के साथ जोड़ा जाएगा. 12वीं क्लास में 75 फीसद से ज़्यादा अंक लाने पर कॉलेज जाने वाली छात्राओं को सरकार स्कूटी देगी. इन गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन का खर्चा भी सरकार ही उठाएगी. इसके अलावा छात्राओं के लिए हॉस्टल सुविधाएं बढ़ाई जाएगी. अगले पांच साल में लड़कियों के आवासीय स्कूलों और कॉलेज हॉस्टल की क्षमता दोगुनी की जाएगी.

साथ ही महिलाओं के स्व सहायता समूह को बढ़ावा दिया जाएगा. उत्पाद की मार्केटिंग सरकार करेगी. मदद के लिए अलग से कोष बनाया जाएगा. महिला ग्रामीण आईटी सेंटर्स बानए जाएंगे. इसके अलावा लड़कियों के हॉस्टल में विजया लर्निंग सेंटर शुरू किए जाएंगे. इसके ज़रिए कॉलेजों में इंटरनेट कनेक्शन दिए जाएंगे. वहीं, स्कूलों में नैपकिन वेंडिंग मशीनें लगाई जाएंगी. हर ज़िले में महिला कौशल परामर्श केंद्र खोले जाएंगे.

क्या हैं इसके मायने?

किसी भी जवाबदेह लोकतंत्र के लिए पुरुषों के बराबर महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी एक आधारभूत शर्त है. मध्य प्रदेश में पंचायत राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए पहले से ही पचास प्रतिशत आरक्षण लागू है लेकिन विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी महिला वर्ग की राजनीतिक प्रतिनिधित्व की दयनीय स्थिति मुंह चिढ़ाती है. हालांकि राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को लेकर तमाम वादे किए जाते हैं लेकिन वो चुनाव के बाद शायद ही पूरे होते हैं.

वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं, ‘महिलाओं को पर्याप्त राजनीतिक प्रतिनिधित्व न देने की दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस की नीति बहुत बुरी है. भाजपा और कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व के लेवल पर महिलाओं की संख्या खासी कम है. इसकी भरपाई इन्हें विधानसभा चुनावों में महिलाओं को टिकट बांटकर करनी चाहिए. एक ऐसा राज्य जहां पर महिलाओं के साथ अपराध की दर बहुत ज़्यादा हैं और जहां का समाज महिलाओं को लेकर सामंतवादी सोच से बाहर नहीं आया है. लेकिन स्थिति को सुधारने के बजाय वहां पर महिलाओं को कम टिकट देकर इन दलों ने इसी सामंतवादी सोच को ही बढ़ावा दिया है.’

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