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Thursday, 9 January, 2025
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SAD के पतन के साथ एक ‘कट्टरपंथी’ अकाली दल उभर रहा है, पंजाब की राजनीति के लिए इसके क्या मायने हैं

नई पार्टी की शुरुआत जेल में बंद सांसद अमृतपाल सिंह के पिता तरसेम सिंह कर रहे हैं. हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि कट्टरपंथी राजनीति हमेशा से राज्य के मतदाताओं को पसंद नहीं आई है.

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चंडीगढ़: पंजाब के पुराने राजनीतिक संरक्षक की किस्मत चमकने के साथ ही एक नया राजनीतिक खिलाड़ी मैदान में उतरने के लिए तैयार है.

पिछले हफ्ते, खडूर साहिब के सांसद और जेल में बंद विवादास्पद सिख अलगाववादी अमृतपाल सिंह के पिता तरसेम सिंह ने पंजाब में “पंजाब और सिख पंथ” को बचाने के लिए एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की.

नई पार्टी, जिसका नाम संभवतः शिरोमणि अकाली दल (आनंदपुर साहिब) रखा जाएगा, को पंजाब की नई “क्षेत्रीय” पार्टी और शिरोमणि अकाली दल (SAD) के विकल्प के रूप में पेश किया जा रहा है, जो राज्य में एक बार प्रमुख ताकत थी, जो अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.

तरसेम सिंह ने गुरुवार को मीडिया को बताया कि नई पार्टी की औपचारिक घोषणा 14 जनवरी को मुक्तसर में माघी मेले में की जाएगी.

तरसेम सिंह ने कहा, “नई पार्टी पंजाबियों और सिख समुदाय को वह नेतृत्व प्रदान करेगी जिसकी बहुत ज़रूरत है क्योंकि अन्य पार्टियां विफल हो गई हैं. हमारी पार्टी सिखों और पंजाबियों के मुद्दों को केंद्र के समक्ष उठाएगी और राज्यों के लिए अधिक अधिकारों के लिए लड़ेगी.”

उन्होंने कहा कि नई पार्टी अकाली दल की जगह लेगी, जो खुद को सुधारने में विफल रहने के कारण “पूरी तरह से खत्म” होने की राह पर थी.

अमृतपाल के पिता ने कहा, “अगर अकाली दल खुद को सुधारने और नए नेताओं को लाने में कामयाब हो जाता तो हम यह रास्ता (राजनीति का) नहीं अपनाते, लेकिन ऐसा लगता है कि बादल अकाली दल और उसकी विरासत को खत्म करने पर आमादा हैं. यही वजह है कि हमें यह फैसला लेना पड़ा. बहुत से लोग अकाली दल के कामकाज से नाखुश हैं और वह उन लोगों से जुड़ना चाहते हैं जो सिख समुदाय, पंजाब और पंजाबियत के लिए सही मायने में काम करने जा रहे हैं. सभी समान विचारधारा वाले लोगों का हमारे साथ जुड़ने का स्वागत है.”

तरसेम सिंह ने कहा कि नई पार्टी विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के चुनाव लड़ने की तैयारी करेगी.

फरीदकोट के आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से सांसद, 45-वर्षीय सरबजीत सिंह खालसा — जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दो हत्यारों में से एक बेअंत सिंह के बेटे हैं — नई पार्टी चलाने वालों में से होंगे.

दुबई से लौटे 32-वर्षीय सिख कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह ने राजनीतिक प्रमुखता हासिल की, जब उसने जेल में रहने के बावजूद खडूर साहिब से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 2 लाख से अधिक मतों के रिकॉर्ड अंतर से 2024 का संसदीय चुनाव जीता.

उसे अप्रैल 2023 में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत हिरासत में लिया गया और वह असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है. उसकी अनुपस्थिति में उसके माता-पिता सहित परिवार ने उसकी ओर से प्रचार किया था.

2022 में पंजाब लौटने से पहले अमृतपाल दुबई में अपने चाचा की ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम कर रहा था. वह अमृतधारी सिख बन गया और पंजाब के गांवों में घूमना शुरू कर दिया, शुरुआत में बड़े पैमाने पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग और सिख युवाओं को अमृत छकने की ज़रूरत के बारे में बोलता रहा. समय के साथ, उसने खालिस्तान के मुद्दे को भी उठाना शुरू कर दिया.

स्वयंभू प्रचारक ने खुले तौर पर घोषणा की कि वह भारत के संविधान में विश्वास नहीं करता. जल्द ही, पुलिस ने अमृतपाल और उसके साथियों पर कार्रवाई की, उसके सैकड़ों समर्थकों और करीबी सहयोगियों को गिरफ्तार किया गया. पिछले साल 23 अप्रैल को एक महीने की तलाशी के बाद अमृतपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सवाल यह है कि क्या नई पार्टी अकाली दल से मुकाबला कर पाएगी?

चंडीगढ़ के सेक्टर-26 स्थित एसजीजीएस कॉलेज के इतिहास विभाग के प्रोफेसर हरजेश्वर सिंह ने दिप्रिंट से कहा कि नई राजनीतिक पार्टी के गठन से अकालियों को नुकसान होगा, लेकिन कट्टरपंथी राजनीति हमेशा पंजाब के मतदाताओं को पसंद नहीं आई है.

उन्होंने कहा, “यह तो साफ है कि नई पार्टी अकाली दल की घटती पकड़ के बाद खाली हो रही जगह पर कब्ज़ा करने के लिए बनाई जा रही है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से, कट्टरपंथी राजनीति ने कभी भी पंजाब में जनाधार नहीं बनाया है. राज्य में उग्रवाद के चरम के दौरान भी सिमरनजीत सिंह मान, जो 1980 और 1990 के दशक में एक कट्टरपंथी आवाज़ रहा, पंजाब की राजनीति में केवल एक छोटी सी जगह बनाने में कामयाब रहा.”

हरजेश्वर सिंह ने कहा, “पंथिक वोट बैंक आमतौर पर एक भावनात्मक वोट बैंक होता है जो सामूहिक रूप से वोट करता है या बिल्कुल भी नहीं हिलता. यही कारण है कि अमृतपाल को चुनावों में इतने सारे वोट मिले, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके द्वारा बनाई गई राजनीतिक पार्टी को भी वही प्रतिक्रिया मिलेगी. हालांकि, इस बात पर कोई संदेह नहीं है कि इस नई राजनीतिक पार्टी के निर्माण से अकालियों को नुकसान होगा और इससे निश्चित रूप से सिखों और हिंदुओं के बीच ध्रुवीकरण होगा, जिससे कुछ हद तक भाजपा को फायदा हो सकता है.”


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शक्ति प्रदर्शन

माघी मेले में नई पार्टी की घोषणा कट्टरपंथी समूहों द्वारा शक्ति प्रदर्शन के रूप में की जा रही है, ताकि पारंपरिक दलों, खासकर शिअद के साथ अपनी अपील को अलग किया जा सके.

शिअद की चुनावी किस्मत 2017 के बाद से खराब होती जा रही है, जब गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी के मामलों से निपटने में कांग्रेस के कारण उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी.

संसदीय चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद इसकी मुश्किलें और बढ़ गईं, जिसके चलते पार्टी के एक अलग गुट ने अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को हटाने की मांग की.

यह मामला सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त तक पहुंच गया था, जिसने बादल को ‘तनखैया’ (सिख समुदाय का पापी) घोषित किया और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाते हुए धार्मिक दंड भुगतने का आदेश दिया.

अपनी सज़ा के दौरान पिछले महीने बादल की हत्या का प्रयास किया गया, जिसके बाद अकाल तख्त ने पार्टी को उन्हें नेतृत्व से हटाने के लिए अतिरिक्त समय दिया था.

सज़ा पूरी होने के बाद पार्टी ने घोषणा की कि वह पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए माघी मेले में अकाली सम्मेलन आयोजित करेगी.

हालांकि, कट्टरपंथी समूह की घोषणा के साथ, माघी मेले में दो समानांतर सम्मेलनों के “उदारवादी” अकाली दल और “कट्टरपंथी” अकाली दल के बीच टकराव में बदलने की उम्मीद है.

माघी मेला पंजाब के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक समारोहों में से एक है, जो 1705 में मुक्तसर की लड़ाई में सिखों के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी के 40 योद्धाओं के बलिदान को चिह्नित करने के लिए प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है.

तरसेम सिंह ने कहा कि नई पार्टी का नाम माघी मेले में घोषित किया जाएगा.

उन्होंने मीडिया से कहा, “एक नई राजनीतिक पार्टी के गठन की घोषणा करने के अलावा, हम माघी मेला सभा में पार्टी और इसके विभिन्न विंग के नाम और संविधान को अंतिम रूप देने के लिए एक समिति भी गठित करेंगे. शुरुआत में, मैं कार्यकारी अध्यक्ष रहूंगा और अमृतपाल सिंह के जेल से बाहर आने के बाद, नाम पर विचार करने के लिए समिति को दिया जाएगा.”

पार्टी से शुरू में जुड़े अन्य लोगों में दिवंगत मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालरा की पत्नी परमजीत कौर खालरा, इंदिरा गांधी की हत्या करने वाले दूसरे हत्यारे सतवंत सिंह का परिवार, तथा सिख आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के सहयोगी अमरीक सिंह का परिवार शामिल हैं.

माघी मेले में नई पार्टी की घोषणा करने वाले पोस्टरों में जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीरें है, जिस पर लिखा है “पंजाब बचाओ, पंथ बचाओ रैली”.

राजनीतिक विश्लेषक धीरे-धीरे कमज़ोर हो रहे ‘उदारवादी’ अकाली दल द्वारा पैदा किए गए खालीपन को भरने के लिए बड़े पैमाने पर ‘कट्टरपंथी’ समूह द्वारा नई पार्टी के गठन पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं.

विशेषज्ञ नई पार्टी के गठन के समय के महत्व की ओर इशारा करते हैं.

चंडीगढ़ के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के चेयरपर्सन डॉ. प्रमोद कुमार ने कहा, “जहां तक ​​अकाली दल का सवाल है, आम धारणा है कि वह हार चुके हैं और अकाल तख्त द्वारा दी गई सज़ा के बाद आने वाले महीनों में इसके फिर से उभरने की संभावना है. अगर किसी दूसरे अकाली दल की घोषणा करनी है, तो उनके दृष्टिकोण से यह सही समय है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अन्य दलों में कई ऐसे लोग हैं जो उनके साथ जुड़ना चाहते हैं.”

डॉ. कुमार ने कहा कि पंजाब में भाजपा ने भी पंजाब में यही रणनीति अपनाई है.

उन्होंने कहा, “बीते एक साल से भाजपा जो कर रही है, वह बहुत अलग नहीं है. वह अकाली दल की ताकत कम करने के विचार से अन्य दलों से सिख चेहरों को निकाल कर भाजपा में शामिल कर रहे हैं, लेकिन यह सब सैद्धांतिक रूप से काम कर सकता है, लेकिन इसे ज़मीन पर लागू करने के लिए पंजाब के मतदाताओं को गहराई से समझना होगा. पंजाब के लोग व्यावहारिक हैं जो किसी भी अतिवादी से प्रभावित नहीं होने वाले हैं.”

“साथ ही, पंजाब के लोगों ने 1980 और 1990 के दशक के अनुभव से सीखा है और वह अपनी गलती को नहीं दोहराएंगे.”

चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर डॉ. कंवलप्रीत कौर ने दिप्रिंट को बताया कि नई कट्टरपंथी पार्टी के गठन का समय अच्छी तरह से सोचा गया था क्योंकि सिख किसानों के भीतर पहले से ही कुछ बेचैनी थी, जो अकाली दल का मुख्य वोट बैंक है.

उन्होंने कहा, “2020 में शुरू हुआ किसान आंदोलन पंजाब में समाप्त नहीं हुआ. किसान नेताओं के किसी न किसी वर्ग द्वारा आंदोलन को पुनर्जीवित किया जाता रहता है. परिणामस्वरूप, किसान निरंतर उतार-चढ़ाव की स्थिति में हैं.”

कौर ने कहा कि प्रमुख किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की भूख हड़ताल, जो 40 दिनों से अधिक समय तक चली, राजनीतिक ध्यान आकर्षित करने लगी है.

उन्होंने कहा, “शुरू में, उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया, लेकिन अब उनका आंदोलन राजनीतिक रूप से ध्यान आकर्षित कर रहा है और जनता का भी ध्यान आकर्षित कर रहा है और जो संदेश जा रहा है वह यह है कि केंद्र किसानों से बात करने के लिए तैयार नहीं है, जिसके कारण डल्लेवाल को अपना अनशन जारी रखने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.”

कौर ने आगे कहा, “एक कट्टरपंथी पार्टी के लिए जो क्षेत्रवाद की बात करती है और केंद्र के साथ सिखों के अधिकारों के लिए लड़ती है, जिस तरह से केंद्र ने पंजाब और सिखों के साथ अनुचित व्यवहार किया है, उनके लिए यह एक तैयार और जीवंत उदाहरण है. इस पार्टी के गठन का समय सुनियोजित है.”

कौर ने कहा कि यह कहना जल्दबाजी होगी कि पार्टी चुनावी रूप से कैसा प्रदर्शन करेगी.

उन्होंने कहा, “लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले, पार्टी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के चुनाव में भाग लेगी. इन चुनावों के नतीजे अमृतपाल की पार्टी के भविष्य के लिए निर्णायक होंगे.”

एसजीपीसी के चुनाव अगले कुछ महीनों में होने की उम्मीद है. मतदाता सूची को पूरा करने की प्रक्रिया 15 दिसंबर को समाप्त हो गई.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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