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Thursday, 28 March, 2024
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छोटी दाढ़ी, स्लिपर्स और घटा हुआ वज़न, ‘पप्पू’ का ठप्पा हटाना चाहते हैं चंद्रबाबू के बेटे नारा लोकेश

नारा लोकेश स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र हैं जिनके पास उनके पिता के आंध्र प्रदेश सीएम के कार्यकाल में पंचायत राज और ग्रामीण विकास के अलावा आईटी मंत्रालय भी था.

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हैदराबाद: कांग्रेस नेता राहुल गांधी और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) नेता नारा लोकेश की उम्र में 13 साल का अंतर हो सकता है लेकिन उनके बीच एक से अधिक समानताएं हैं. दोनों वंशवादी हैं. दोनों वास्तव में पार्टी प्रमुख हैं, भले ही कमान उनके पेरेंट्स के हाथ में हो. विपक्ष में रहते हुए दोनों, अपनी ‘पप्पू छवि’ को ख़त्म करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे उनके राजनीतिक विरोधियों ने बनाया है.

पूर्व आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के 38 वर्षीय बेटे नारा लोकेश को एक फायदा है. गांधी के उलट, युवा टीडीपी नेता एक प्रशासक के तौर पर अपना अनुभव और कुशाग्रता साबित कर चुके हैं और अब ज़मीनी स्तर पर पसीना बहाने के लिए तैयार हैं. लोकेश अब अपनी छवि बदलने पर काम कर रहे हैं- क्लीन शेव लुक छोड़कर छोटी दाढ़ी, जूते छोड़कर चप्पल और अपनी तेलुगु में सुधार.

उन्होंने पिछले दो सालों में 24 किलोग्राम वज़न भी घटा लिया है.

उनकी टीम के अनुसार, कम से कम पिछले छह महीने से वो युवा नेता के बारे में स्थापित धारणा को फिर से बनाने पर काम कर रहे हैं.

एक अंदरूनी रणनीतिकार ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि सबसे ज़्यादा ज़ोर ज़मीनी स्तर पर लोगों के साथ बेहतर जुड़ाव और उनकी एक जन नेता की छवि बनाने पर दिया जा रहा है. रणनीतिकार ने आगे कहा कि अभी तक उनकी एक अलग तरह की छवि रही है.

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नारा लोकेश स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र हैं जिनके पास उसके पिता के आंध्र प्रदेश सीएम के कार्यकाल (2014-2019) में पंचायत राज और ग्रामीण विकास के अलावा आईटी मंत्रालय भी था.

आईटी मंत्री के तौर पर उनकी दिनचर्या ज़्यादातर आलीशान एयरकंडीशंड कमरों में बैठकर, कॉरपोरेट जगत के नुमाइंदों के साथ बातचीत करना थी.

अपने नए अवतार में वो सड़कों पर उतर रहे हैं और ख़ुद को एक ज़मीनी नेता के तौर पर स्थापित करने के लिए घर-घर का दौरा कर रहे हैं. बीते दिनों के पॉलिश किए हुए जूतों की जगह चप्पलों ने ले ली है. तूफान-प्रभावित क्षेत्रों के उनके दौरों की तस्वीरों में उन्हें अपनी पतलून ऊपर चढ़ाए, पानी भरे खेतों से गुज़रते हुए देखा जा सकता है.

हैदराबाद-स्थित इमेज कंसल्टेंट चैतन्या सीएच जिनका लोकेश के साथ पहला प्रोजेक्ट उनकी छवि को बदलना है वो दिप्रिंट से कहती हैं, ‘वो गांवों में जा रहे थे ऐसा लगना चाहिए था कि वो बहुत सुलभ हैं और ज़ाहिर है कि उनके पहले के पहनावे के साथ ये मुमकिन नहीं था’.

उन्होंने आगे कहा, ‘इसलिए हमने उन्हें जूतों की जगह चप्पल पहनाए. पहले वो हमेशा क्लीन शेव रहते थे- लेकिन सार्वजनिक अपील बढ़ाने के लिए हमने थोड़ा खुरदुरे लुक का सुझाव दिया. उनके पहनावे में भी बदलाव किया गया. हमने सुनिश्चित किया कि वो थोड़ा खुरदुरे लेकिन पूरी तरह ख़ुद के नियंत्रण में दिखें. हम लोगों को एक संदेश देना चाहते थे, स्थिति पूरी तरह उनके नियंत्रण में है’.

उनकी शर्ट के किनारों तक की बारीकियों पर ध्यान दिया गया है.

उन्होंने कहा, ‘हमने ख़याल रखा कि उनकी शर्ट्स के किनारे भी घुमावदार न हों बल्कि बिल्कुल सीधी लाइनें हों. हमने ऐसी कमीज़ों का सुझाव दिया जो उनकी एक लंबाई वाली छवि पेश करें- जिसे वो आक्रामक दिखें. घुमावदार किनारों से ऐसा नहीं लगता. उनका घटा हुआ वज़न इस स्टाइलिंग के साथ बहुत अच्छे से मेल खा गया’.

नेता के एक क़रीबी सूत्र ने बताया कि पिछले दो सालों में लोकेश ने क़रीब 24 किलो वज़न घटाया है.

दिप्रिंट से बात करते हुए लोकेश ने अपने बदलाव की बात स्वीकार की. उन्होंने कहा कि ‘दुनिया भर में’ हो रहा है कि ‘फिज़िकल बदलाव अपना प्रभाव डालते हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘आक्रामकता वही है लेकिन ऐसा लगता है कि जब आपकी फिज़िकल छवि बदलती है तो लोगों की धारणा भी बदल जाती है. विपक्षी नेता मुझे बहुत सी बातों के लिए ट्रोल करते थे बॉडी शेमिंग भी उसी का हिस्सा थी’. उन्होंने ये भी कहा कि अब वो अपने भाषणों में ‘तेलुगु की बोलचाल भाषा’ पर ख़ास ध्यान देते हैं.


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पप्पू सहगान

लोकेश 2014 में टीडीपी महासचिव बने थे. 2017 में वो छह साल के लिए आंध्र प्रदेश विधायिका में विधान परिषद (उच्च सदन) के सदस्य के तौर पर शामिल हुए और 2019 तक राज्यमंत्री के रूप में काम किया.

उसी साल के विधानसभा चुनावों में वो पहली बार मंगलागिरी सीट से मैदान में उतरे लेकिन वाईएस जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस से 5,000 से अधिक मतों से हार गए. टीडीपी 1985 से उस सीट पर नहीं जीती थी.

2019 चुनाव के दौरान ही ‘पप्पू’ का सहगान ज़्यादा तेज़ हुआ और प्रचार अभियान के दौरान लोकेश को ‘आंध्र के पप्पू’ का उपनाम मिला. मक़सद ये था कि लोकेश को नादान और अज्ञानी जैसा दिखाया जाए, एक ऐसा प्रचार जिसे राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर झेलना पड़ा है.

आंध्र प्रदेश मुख्यमंत्री जगन की बहन वाईएस शर्मिला जिन्होंने 2019 चुनावों के दौरान उनके लिए प्रचार किया और वो एक नारा लेकर आईं जो प्रचार के दौरान काफी लोकप्रिय हुआ. यह नारा था ‘बाइ बाइ बाबू (चंद्रबाबू नायडू) और बाइ बाइ पप्पू’.

ऊपर हवाला दिए गए अज्ञात रणनीतिकार ने कहा, ‘2019 में, विपक्षी नेता लोकेश की तेलुगु का मज़ाक उड़ाया करते थे, वो कहते थे कि लोकेश धारा प्रवाह नहीं हैं, कुछ हकलाते हैं और बोलचाल के कुछ शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाते- इन सब को दुरुस्त करने से उस समय भी मदद मिलेगी जब वो लोगों के बीच जाकर उनसे बात करेंगे. आख़िर लोगों को लगना चाहिए कि वो उन्हीं के बीच से हैं’.


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‘TDP को अतिविश्वास था कि लोग स्कीमों को याद रखेंगे

ऐसा माना जाता है कि चंद्रबाबू नायडू की पूर्व सरकार के खिलाफ विरोधी लहर पैदा करने के लिए राजधानी शहर ‘अमरावती’ पर फोकस करना था, जिसे 2014 में आंध्र के बटवारे के बाद हैदराबाद की जगह लेनी थी.

मुख्यमंत्री ने वादा किया था कि वो सिंगापुर की तरह का एक ‘वर्ल्ड-क्लास’ स्मार्ट सिटी बनाएंगे लेकिन वो परियोजना ठीक से शुरू ही नहीं हो पाई. नए राज्य में ढांचागत विकास और नौकरियों का अभाव जैसी शहरी क्षेत्र के लिए अन्य शिकायतें भी थीं.

ये भी माना जाता है कि नायडू जिन्हें एक कॉरपोरेट सीएम के तौर पर प्रचारित किया जाता था. वो अमरावती पर ज़्यादा फोकस करने की वजह से ग्रामीण मतदाताओं के बीच अपनी अपील खो बैठे हैं क्योंकि कुछ लोगों को लगा कि अमरावती पर फोकस गांवों की क़ीमत पर था.

इस बीच, जगन की एक प्रमुख प्रचार रणनीति थी ‘पदयात्रा’- पूरे प्रांत में 3,000 किलोमीटर की एक विशाल पैदल यात्रा, जहां बहुत सी कल्याण योजनाओं के वायदों के साथ उन्होंने घर-घर का दौरा किया.

विधानसभा चुनावों में टीडीपी कुल 23 सीटें जीत पाई जबकि स्वर्गीय पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस चंद्रशेखर रेड्डी के बेटे जगन ने 175 में से 151 सीटें हासिल करके एक भारी जीत दर्ज की.

वहीं, लोकेश अपने पिता की सरकार की आलोचना को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि उनकी सरकार राज्य में दक्षिण कोरियाई कंपनी किया मोटर्स का पहला भारतीय कारख़ाना लगवाने में सफल रही.

लोकेश ने कहा, ‘सरकार अपनी स्कीमों को लागू करने में इतनी व्यस्त थी कि उसने ज़मीनी स्तर पर लोगों से जुड़ाव ही नहीं किया और विपक्षी नेता उस ख़ालीपन में घुसकर अपनी सियासत बघारने में कामयाब हो गए. टीडीपी को कुछ ज़्यादा ही विश्वास था कि लोग स्कीमों को याद रखेंगे और उसे वोट देंगे और मुझे लगता है कि इसी कारण हम चुनाव हार गए’.

अज्ञात रणनीतिकार ने ये भी कहा कि लोकेश एक पदयात्रा की भी योजना बना रहे हैं- जो 2024 के असेम्बली चुनाव से पहले के साल में होगी.

अगस्त में, लोकेश गुंटूर में एक 20 वर्षीय दलित लड़की के परिवार से मिलने गए थे जिसकी कथित तौर पर किसी सोशल मीडिया परिचित ने बेरहमी से हत्या कर दी थी और ये हत्या सीसीटीवी में क़ैद हो गई थी. उसके बाद के दिनों में वो एक मुसलमान लड़की के परिवार से मिलने ग, जिसकी पिछले साथ कुर्नूल ज़िले में कथित यौन हमले के बाद हत्या कर दी गई थी.

रणनीतिकार ने आगे कहा, ‘एसी कमरों में बैठे उनकी छवि को ख़त्म करना होगा ताकि लोग एक जन नेता के तौर पर उनके साथ जुड़ सकें. उसके लिए हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि वो ज़मीन पर ज़्यादा दिखें परिवारों से मिलें, मुद्दों को उठाएं और ज़मीनी आंदोलनों में शरीक हों. अब हमारा फोकस यही है’.

लोकेश ने कहा कि पार्टी अब ‘युवा पीढ़ी’ के नेताओं को अग्रिम पंक्ति में लाने की कोशिश कर रही है. 2020 में जबसे महामारी शुरू हुई तब से पार्टी प्रमुख नायडू नेताओं के साथ काफी हद तक ऑनलाइन ही बातचीत कर रहे हैं.

ये पूछने पर कि क्या वो अब अपने 71 वर्षीय पिता के हाथ से कमान संभालने को तैयार हैं? लोकेश ने कहा कि ‘अभी समय है’. उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल पार्टी का सारा ज़ोर ‘हमारे नेता का समर्थन’ करने पर है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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