बेंगलुरू: कर्नाटक में उन दोनों सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की है जहां 3 नवंबर को उपचुनाव हुए थे. कड़े मुकाबले वाली सिरा और राजराजेश्वरी नगर (आरआर नगर) सीटों पर क्रमशः एक नए प्रत्याशी डॉ. राजेश गौड़ा और कांग्रेस के बागी एन. मुनिरत्ना ने जीत हासिल की है.
शाम 5 बजे तक गौड़ा कांग्रेस के टी.बी. जयचंद्र से 12,949 वोटों से आगे चल रहे थे. बी. सत्यनारायण, जिनके निधन के कारण खाली हुई इस सीट पर उपचुनाव कराने की जरूरत पड़ी, की पत्नी और जनता दल (सेक्युलर) की प्रत्याशी अमामजम्मा तीसरे स्थान पर रहीं.
बेंगलुरू की आरआर नगर सीट के लिए घोषित अंतिम परिणामों के मुताबिक मुनिरत्न 58,113 वोटों से जीते हैं. कांग्रेस प्रत्याशी एच. कुसुमा 67,798 मतों के साथ दूसरे स्थान पर जेडीएस के कृष्णमूर्ति तीसरे स्थान पर रहे.
दो सीटों पर जीत के साथ मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के उन आलोचकों के मुंह संभवत: बंद हो जाएंगे जो गाह-बगाहे ऐसी अफवाहों को बल देते रहते हैं कि सरकार का नेतृत्व उनसे छिन सकता है. इस तरह की अटकलों के पीछे उनकी बढ़ती उम्र (77 वर्ष), येदियुप्पा के मनमाने रवैये वाली कार्यशैली को लेकर भाजपा नेतृत्व की ‘नाराजगी’, उनके खिलाफ स्थानीय भाजपा में कायम असंतोष, खासकर उनके बेटे और कर्नाटक भाजपा उपाध्यक्ष वी.वाई, विजयेंद्र के सरकार भीतर एक पावर सेंटर के तौर पर उभरने के बाद, आदि फैक्टर गिनाए जाते हैं.
चुनाव नतीजों के बाद विजयेंद्र ने कहा, ‘दोनों सीटों पर हमारी जीत येदियुरप्पा जी के नेतृत्व और भाजपा के प्रति लोगों के अटूट विश्वास का परिणाम है. वे समझ गए हैं कि केवल हमारी पार्टी ही बदलाव और विकास की राह पर चलती है और कर्नाटक की जनता की बेहतरी के लिए काम करती है. कमल एक बार फिर खिल गया है और, इस बार यह कभी नहीं मुरझाएगा.’
दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे कर्नाटक सरकार को मजबूत ही करेंगे, जिसने दिसंबर 2019 के उपचुनावों के बाद ही विधानसभा में बहुमत हासिल कर लिया था.
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येदियुरप्पा की तरफ से एक संदेश
विजयेंद्र को सिरा में भाजपा के प्रचार का काम सौंपा गया था, जहां 84.5 प्रतिशत मतदान हुआ था. आरआर नगर में मतदान काफी कम 45.2 प्रतिशत ही रहा था.
सिरा सीट की जीत विजयेंद्र के संगठनात्मक कौशल की परिचायक है, जिन्हें पिछले साल केआर पेटे उपचुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय भी दिया गया था.
हालांकि, इन दो उपचुनावों के बीच एक बड़ा अंतर था. केआर पेटे येदियुरप्पा की जन्मस्थली है और भाजपा ने अपने अभियान में आक्रामक रूप से इस संबंध को भुनाया था. वहीं, सिरा एक ऐसी सीट है जिसे भाजपा ने पहले कभी नहीं जीता था.
सिरा और आरआर नगर दोनों क्षेत्रों में कर्नाटक की प्रमुख जातियों में से एक वोक्कालिगा जाति के मतदाताओं का वर्चस्व है जो पारंपरिक रूप से पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा की जनता दल (सेक्युलर) या कांग्रेस के लिए वोट करते रहे हैं. यहां पर भाजपा की जीत उन सीटों पर उसकी बढ़ती स्वीकार्यता का संकेत है, जहां कभी भी उसके पक्ष में मतदान नहीं होता था.
आरआर नगर में भाजपा की जीत येदियुरप्पा की तरफ से उनके राजनीतिक आकाओं को एक मजबूत संदेश भी देती है जो कांग्रेस और जेडीएस के बागियों को मंत्री पद के वादे के साथ पार्टी में शामिल किए जाने से कथित तौर पर नाराज थे.
कांग्रेस के लिए यह उपचुनाव इसलिए साख का सवाल था क्योंकि राज्य में पार्टी के नए प्रमुख के तौर पर डी.के. शिवकुमार, जिन्हें पार्टी का संकटमोचक कहा जाता है, के नेतृत्व में यह पहला चुनाव था. आरआर नगर बेंगलुरू ग्रामीण संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है, जिसका प्रतिनिधित्व शिवकुमार के भाई डी.के. सुरेश करते हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अधिकांश उपचुनाव आमतौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में जाते हैं.
उन्होंने कहा, ‘लेकिन उम्मीद थी कि लोग डी.के. शिवकुमार के नेतृत्व में एक बदलाव देखेंगे. वोक्कालिगा जाति से ही ताल्लुक रखने वाले शिवकुमार हमें पुनर्संगठन और विश्वास बढ़ाने का एक मौका देंगे.’
एक अन्य कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट को बताया कि शिवकुमार ने 2015 में आत्महत्या करने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी डी.के. रवि की पत्नी को आरआर नगर में प्रत्याशी बनाने का फैसला कथित तौर पर ज्योतिषियों की सलाह से प्रभावित होकर किया था जिनका कहना था कि एक महिला उम्मीदवार पार्टी की जीत में मददगार होगी. उन्होंने कहा, ‘स्पष्ट तौर पर ज्योतिषीय सलाह पर दांव लगाना कांग्रेस को भारी पड़ा है.’
इस बीच, जेडीएस के लिए यह चुनाव जनाधार सिकुड़ने और वोक्कालिगा समुदाय पर उसकी पारंपरिक पकड़ कमजोर पड़ने का संकेत देने वाला साबित हुआ है.
नतीजों पर टिप्पणी करते हुए राजनीतिक विश्लेषक संदीप शास्त्री ने कहा, ‘स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ पार्टी भारी पड़ रही है और इससे भी अहम बात यह है कि कांग्रेस और जेडीएस एकजुट होकर काम नहीं कर पा रहे हैं.’
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