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Monday, 23 December, 2024
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जीत, हार या कमजोर विपक्ष – BJP ने राज्यसभा, MLC चुनावों में अतिरिक्त उम्मीदवार क्यों उतारे?

महाराष्ट्र में BJP ने एमएलसी चुनावों में पांच उम्मीदवार उतारे हैं जबकि वह अपने संख्या बल के दम पर चार सीटों पर जीत हासिल कर सकती है.

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मुंबई: 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधान परिषद की 10 खाली सीटों के लिए सोमवार को मतदान हो रहा है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस ‘एक और बम गिराएंगे?’ जैसा कि राज्य भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने भविष्यवाणी की है.

भाजपा ने पांच उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है हालांकि उसके पास केवल चार को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या है. उधर, राज्य में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस ने दो-दो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.

एक उम्मीदवार को जीत हासिल करने के लिए 26 या 27 वोटों की जरूरत होती है और यह वोट डालने वाले विधायकों की संख्या पर निर्भर करता है.

106 विधायकों के साथ  भाजपा के पास अपने चार उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त संख्या है. ऐसे में अपने पांचवें दावेदार को जीत दिलाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस – भाजपा के मुख्य रणनीतिकार – को 29 विधायकों का समर्थन की जरूरत होगी, जो या तो निर्दलीय हैं या फिर छोटे दलों के विधायक.

10 जून के राज्यसभा चुनावों में भाजपा अपने उम्मीदवारों के लिए वोट देने के लिए 123 विधायकों (अपने स्वयं के, निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों से संबंधित सहित) को जुटाने में सफल रही थी. अगर ये सभी विधायक महाराष्ट्र एमएलसी चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों को वोट देते हैं, तो भी पार्टी के पांचवें दावेदार के लिए तकरीबन एक दर्जन वोटों की कमी हो सकती है.

शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) कुल मिलाकर अपने दोनों उम्मीदवारों को अपने-अपने संख्या बल पर निर्वाचित करा सकती हैं. तो वहीं, कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार मुंबई इकाई के अध्यक्ष भाई जगताप को जीतने के लिए अपनी पार्टी के बाहर लगभग 10 विधायकों के वोट और चाहिए.

तो क्या इस चुनाव में भाजपा आगे बढ़ रही है? राज्यसभा चुनावों में भी पार्टी ने उन सभी चार राज्यों में अतिरिक्त उम्मीदवारों को खड़ा किया या समर्थन किया था, जिनमें चुनाव हुए थे – महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा और कर्नाटक. राजस्थान को छोड़कर पार्टी सभी में सफल रही.

महाराष्ट्र और दिल्ली में भाजपा के सूत्रों का कहना है कि पार्टी का गेम प्लान सिर्फ दूसरी सीट छीनने तक सीमित नहीं है. भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों का मानना है कि उनका एक बड़ा उद्देश्य है. वो है हर चुनाव को एक उच्च-दांव की लड़ाई में बदलना, न केवल विरोधियों को कमजोर करना और गठबंधन के भीतर भ्रम पैदा करना, बल्कि गैर-भाजपा दलों शिकार करना भी है जिनके पास सबसे ज्यादा संसाधनों की कमी है.

भाजपा महाराष्ट्र के प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘चुनाव फंड पर नहीं लड़ा जाता है. वे इच्छा शक्ति पर लड़े जाते हैं. लोकतंत्र में आपको लोगों के पास जाना पड़ता है और विश्वास पैदा करना होता है. सच तो यह है कि लोग आपको स्वीकार नहीं कर रहे हैं. उनकी (प्रतिद्वंद्वी दलों की) अपनी समस्याएं हैं जो ऐसे चुनावों में सामने आती हैं और यही कारण है कि वे लोगों को गुमराह करने के लिए इस तरह के बयान देते हैं.’


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‘चौबीसों घंटे चुनावी मोड में बीजेपी’

दिल्ली के एक वरिष्ठ कांग्रेस पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘यह बुद्धि और संसाधनों की लड़ाई है’ उन्होंने आगे कहा, ‘वे जानते हैं कि कांग्रेस के लिए फंड एक समस्या है. चुनावों में भाजपा को मात देने के लिए जहां निर्दलीय और छोटे दल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, कांग्रेस को अपने संसाधनों में गहराई से उतरना होगा. इसलिए जीते या हारे, कांग्रेस ज्यादा गरीब है.’

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार में एनसीपी के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा चौबीसों घंटे चुनावी मोड में रहती है. भाजपा के संसाधनों और पार्टी हर चुनाव में उनका किस हद तक इस्तेमाल करने को तैयार है, इसकी तुलना करना हमारे लिए असंभव है. ऐसा कोई मोर्चा नहीं है जहां हम उनसे लड़ सकें.’

इसके अलावा मंत्री ने कहा, राज्यसभा चुनाव में महाराष्ट्र की छठी सीट के लिए एमवीए को शर्मनाक हार के बाद, एमवीए पार्टियों के भीतर भाजपा ने ‘अनावश्यक संदेह के बीज बोए हैं.’

यह पूछे जाने पर कि आरएस और एमएलसी चुनावों में अतिरिक्त उम्मीदवार उतारने के पीछे भाजपा के प्रतिद्वंद्वियों की ‘वास्तविक रणनीति’ क्या है, दिल्ली भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने इस सवाल पर हंसते हुए कहा, ‘जब वे हार को देखते हैं तो साजिश रचने लगते हैं.’

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप अस्बे ने दिप्रिंट को बताया, ‘भाजपा के पास फंड भी है और उसके नियंत्रण में केंद्रीय एजेंसियां भी हैं. अगर पार्टी के पास केंद्र में सरकार नहीं होती, तो उसके पास जो शक्ति है वो नहीं होती.’

सत्ता और संसाधनों की लड़ाई

महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने तीन उम्मीदवार खड़े किए थे हालांकि उसके पास केवल दो को जिताने की ताकत थी. अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस और राकांपा, साथ ही कुछ छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के अतिरिक्त वोटों के आधार पर, शिवसेना ने भी दो उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. जबकि उसके पास सिर्फ एक उम्मीदवार को जिताने की संख्या थी.

चुनाव से कुछ दिन पहले, एमवीए ने ताकत का प्रदर्शन किया और  शिवसेना के लिए छठी सीट जीतने को लेकर एकजुट और उत्साहित दिखे.

आखिरकार महाराष्ट्र की छह राज्यसभा सीटों में से भाजपा और एमवीए ने तीन-तीन पर जीत हासिल की. इसमें से छठी सीट बीजेपी को मिली. पार्टी के उम्मीदवार धनंजय महादिक ने शिवसेना के संजय पवार को हरा दिया था.

एमवीए नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने अपने संसाधनों और केंद्रीय एजेंसियों के राजनीतिक नियंत्रण का इस्तेमाल कुछ निर्दलीय और छोटे दलों को अपने पक्ष में वोट देने के लिए किया है.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि भाजपा ने महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव पर उदारता से खर्च किया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया , ‘कांग्रेस ने साफ कर दिया था कि हमारे पास ऐसा चुनाव लड़ने के लिए साधन नहीं हैं. शिवसेना और एनसीपी ने चुनाव में अधिकांश जरूरी वित्तीय भार की जिम्मेदारी ली थी.’

कांग्रेस नेता ने कहा कि चुनाव से पहले पांच सितारा होटलों में विधायकों की रिंग फेंसिंग की प्रक्रिया में एमवीए पर ही लगभग 60 लाख रुपए खर्च हुए.

एमवीए के कई स्रोतों ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें विशेष रूप से हितेंद्र ठाकुर के नेतृत्व वाले बहुजन विकास अघाड़ी (बीवीए) के तीन वोट हारने का संदेह है. ठाकुर अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं.

पिछले साल ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में ठाकुर के चिरायु समूह की 34 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क की थी.

राज्यसभा चुनाव के बाद शिवसेना नेता, संजय राउत पार्टी के एकमात्र विजयी उम्मीदवार ने संवाददाताओं से कहा, ‘अगर ईडी का नियंत्रण हमारी पार्टी को दिया जाता है, तो देवेंद्र फडणवीस भी शिवसेना को ही वोट देंगे.’

10 एमएलसी सीटों के चुनाव के लिए भाजपा कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला होता दिख रहा है क्योंकि कांग्रेस ने दो उम्मीदवार – चंद्रकांत हंडोरे और भाई जगताप – को मैदान में उतारा है और अपने दूसरे उम्मीदवार के लिए उसे दस वोट कम पड़ रहे हैं.

पहले वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी मंत्री बालासाहेब थोराट को इस कमी को दूर करने की रणनीति बनाने का काम सौंपा गया है. उन्होंने कहा. ‘लेकिन कुल मिलाकर, यह हमारे दूसरे उम्मीदवार जगताप की जिम्मेदारी है कि वे इसके लिए प्रचार करें. उन्हें वोट चाहिए और वह आर्थिक रूप से मजबूत हैं.’


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राज्यसभा चुनाव में एकजुट, एमएलसी चुनाव के लिए बंटे

एमएलसी चुनावों से पहले के दिनों में एमवीए ने ताकत का कोई एकजुट प्रदर्शन नहीं किया.

गठबंधन की तीनों पार्टियों ने दो-दो उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य विधान परिषद में 288 सदस्य हैं. लेकिन पिछले महीने शिवसेना विधायक की मृत्यु होने के बाद इसकी प्रभावी ताकत 287 ही है.

एमवीए पार्टियों को भी अपने सभी सदस्यों को एक साथ रखने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि एमएलसी चुनाव गुप्त मतदान के जरिए कराए जाएंगे.

एनसीपी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कोई भी गठबंधन की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. राज्यसभा चुनाव ने हमारी रणनीति की कमी और भ्रम को उजागर कर दिया.’

उन्होंने सवाल किया कि कैसे उनकी अपनी पार्टी के राज्यसभा उम्मीदवार प्रफुल्ल पटेल को एमवीए पार्टियों की सहमति के बावजूद एक वोट अधिक मिला, जबकि कांग्रेस के इमरान प्रतापगढ़ी को दो अतिरिक्त वोट मिले.

इसी तरह से कांग्रेस के एक वरिष्ठ विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि राज्यसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत लगाकर भाजपा को कई अंक हासिल करने थे: ‘पार्टी को राज्यसभा की सीट मिली, जो बहुत महत्वपूर्ण है. उसे उद्धव ठाकरे को अपमानित करना पड़ा. उसे कोल्हापुर से एक सांसद होने के कारण पश्चिमी महाराष्ट्र में अपना प्रभाव बढ़ाना पड़ा और वह एमवीए के भीतर अविश्वास पैदा करने में कामयाब रही’

उन्होंने कहा, ‘दूसरी ओर एमवीए ने अपनी रणनीति में गड़बड़ी की और सहयोगियों के समर्थन को लेकर ही संदेह बढ़ गया.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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