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Saturday, 2 November, 2024
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मिज़ोरम चुनाव: क्या भाजपा पूर्वोत्तर में कांग्रेस का आखिरी किला ढहा पाएगी?

पूर्वोत्तर में कांग्रेस के आखिरी गढ़ मिज़ोरम में भाजपा पहली बार राज्य की 40 में से 39 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

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नई दिल्ली: महज दस लाख की आबादी वाले और 40 सदस्यीय मिज़ोरम विधानसभा के लिए 28 नवंबर को वोटिंग है. लेकिन इस राज्य का महत्व इसकी आबादी और जनसंख्या से ज़्यादा है. पूर्वोत्तर के राज्यों को देखें तो 1987 में बने इस छोटे से राज्य में ही कांग्रेस की सरकार है. अगर मिज़ोरम भी हाथ से फिसल गया तो फिर कांग्रेस का पूरे नॉर्थ-ईस्ट से सफाया हो जाएगा.

पिछले दो सालों में असम, त्रिपुरा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई है जबकि मेघालय और नागालैंड में भी बीजेपी दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता में साझीदार हो गई है. इस बार मिज़ोरम में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी पार्टी मिज़ोरम नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के बीच है. कांग्रेस ने जहां इस बार इस पर्वतीय राज्य में सत्ता की तिकड़ी बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है वहीं विपक्षी एमएनएफ भी 10 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए कमर कस चुका है. दूसरी ओर, तमाम सीटों पर मैदान में उतर कर भाजपा मुकाबले को तिकोना बनाने का प्रयास कर रही है.

इस चुनाव में कांग्रेस बार-बार मुख्य विपक्षी दल एमएनएफ पर यह आरोप लगाकर इस तरह का माहौल बना रही है कि चुनाव बाद एमएनएफ भाजपा के साथ जा सकती है. कांग्रेस का आरोप है कि एमएनएफ ने बीजेपी के साथ अपने समझौते को गुप्त रखा है. उसने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा इसलिए की है क्योंकि बीजेपी का ईसाई समुदाय के दबदबे वाले मिज़ोरम में बड़ा आधार नहीं है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को ईसाई बहुल मिज़ोरम में एक रैली के दौरान भाजपा और संघ पर आरोप लगाया कि वे राज्य की संस्कृति को खत्म करने पर तुले हैं. राहुल गांधी का यह बयान उस रणनीति को दिखा रहा है जिसके तहत वो नॉर्थ-ईस्ट के अपने आखिरी किले को ध्वस्त होने से बचा लेना चाहते हैं.

साथ ही कांग्रेस का दावा है कि मिज़ोरम के आर्थिक हालात काफी सुधर चुके है और यह देश के सबसे शांत प्रदेशों में से एक है. वह इसका श्रेय अपने पिछले 10 साल के कार्यकाल को देती है.

वहीं, दूसरी ओर मिज़ोरम में तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा के साथ कोई तालमेल कर ईसाई भावनाओं व चर्च की नाराज़गी मोल लेने का खतरा नहीं उठाना चाहते. यही कारण है कि एमडीए और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस (नेडा) में उसके सहयोगी मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) तक ने मिज़ोरम में उनके साथ गठबंधन नहीं किया है.

मिज़ो नेशनल फ्रंट और सात क्षेत्रीय दलों को मिला कर गठित जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) ने साफ कह दिया है कि वे भाजपा से कोई संबंध नहीं रखेंगे. एमएनएफ प्रमुख और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा है कि वे चुनाव से पहले या बाद में भाजपा के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे.

हालांकि इन सबके बीच भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष जेवी लूना ने यह बयान देकर सियासी हलचल तेज़ कर दी कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में हम कांग्रेस के साथ सरकार बना सकते हैं. इस बयान के बाद से सत्तारूढ़ कांग्रेस और मुख्य विपक्षी एमएनएफ दोनों अपनी ‘बीजेपी विरोधी’ पहचान साबित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं.

इन सबसे इतर भाजपा ईसाई बहुल इस राज्य में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने के लिए योजनाबद्ध तरीके से प्रचार अभियान में जुटी है. बीजेपी नेता मिज़ोरम को अपने कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर अभियान में अंतिम मोर्चे के रूप में देख रहे हैं.

गौरतलब है कि मिज़ोरम में चुनावी अभियान की शुरुआत होने के साथ ही भाजपा ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपने पाले में मिलाना शुरू कर दिया था. चुनाव की घोषणा के साथ मिज़ोरम विधानसभा के अध्यक्ष व कांग्रेस नेता हिफेई और पूर्व मंत्री व कांग्रेस के ही कद्दावर नेता बुद्ध धन चकमा ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. यह दिखाता है कि भाजपा किसी भी हाल में यहां पर कुछ सीटें हासिल करना चाहती है, ताकि त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में वह सत्ता में शामिल होने को लेकर मोलभाव कर सके.

हाल ही में मंगलवार को अमित शाह चुनाव प्रचार के सिलसिले में दूसरी बार मिज़ोरम के दौरे पर थे. राज्य में बीजेपी के आला नेताओं का जमावड़ा और आक्रामक चुनाव प्रचार करना यह दिखा रहा है कि पार्टी की कोशिश कांग्रेस को मिज़ोरम की सत्ता से भी बाहर करने की है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के यहां पिछले महीने एक रैली में कहा था कि वह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि भाजपा सरकार के अंतर्गत मिज़ोरम में क्रिसमस मनाया जाएगा.

पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यहां चुनावी रैली कर बदलाव का अगला ठिकाना मिज़ोरम को बताते हुए बीजेपी को सत्ता में लाने की अपील की. वहीं, 22 नवंबर को खुद पीएम नरेंद्र मोदी बीजेपी की तरफ से इस पर्वतीय राज्य में मोर्चा संभालेंगे.

पार्टी अध्यक्ष और पीएम मोदी के साथ-साथ बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री यहां चुनाव प्रचार के लिए उतरेंगे. इसमें केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के अलावा आने वाले दिनों में नितिन गडकरी, निर्मला सीतारमण, जितेंद्र सिंह, किरण रिजिजू सहित कई नाम हैं. इसके अलावा कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी चुनाव प्रचार में उतरेंगे.

भाजपा ने मंगलवार को ही मिज़ोरम विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणा पत्र भी जारी किया. घोषणा पत्र जारी करने के साथ ही पार्टी ने वादा किया कि प्रदेश की राजकीय भाषा मिज़ो को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा. घोषणा पत्र में पार्टी ने सरकार बनने पर एक रुपये प्रति किलोग्राम चावल, प्रत्येक बेघर परिवार को मकान और तीन साल के भीतर यातायात की समस्या से मुक्त आइज़ोल देने की घोषणा की है.

इसी के साथ घोषणा पत्र में अगले छह महीने में हर मौसम में इस्तेमाल वाली गड्ढे मुक्त सड़कें देने का वादा किया गया है. भाजपा ने मिज़ोरम में अगले पांच साल में 50 हज़ार नौकरियां सृजित करने, दो मेडिकल कॉलेज स्थापित करने, तीन इंजीनियरिंग कॉलेज का निर्माण करने और कई नर्सिंग प्रशिक्षण संस्थान शुरू करने का भी वादा किया है.

आपको बता दे पूर्वोत्तर का राज्य मिज़ोरम 1987 में अस्तित्व में आया था और यहां पहली बार वर्ष 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी थी, जो लगातार दो बार सत्ता में रही. फिर दो बार मिज़ो नेशनल फ्रंट की सरकार रही. वर्ष 2008 से कांग्रेस फिर सत्ता में है. यहां विधानसभा कुल 40 सीटे हैं. वर्ष 2013 के चुनाव में कांग्रेस को 34, एमएनएफ को 5 और और एमपीसी को 1 सीट मिली थी. इस बार चौथे दल के रूप में भाजपा भी चुनाव में चुनौती को तैयार है.

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