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Wednesday, 20 November, 2024
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पहाड़ी लोगों को ST का दर्जा देना J&K चुनाव में BJP को बैकफायर करेगा? गुज्जर-बकरवाल वोटों पर सभी की निगाहें

गुज्जर-बकरवाल मुख्य रूप से मुस्लिम हैं, जबकि पहाड़ी समुदाय में ज्यादातर ऊंची जाति के हिंदू हैं. एसटी का दर्जा देकर भाजपा ने चरवाहे समुदाय के एक बड़े हिस्से को अलग-थलग कर दिया.

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राजौरी: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चुनावी वादे कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (J&K) के परिवारों को ईद और मुहर्रम के मौके पर दो सिलेंडर मुफ्त दिए जाएंगे, पर कांग्रेस पार्टी ने कटाक्ष किया.

जबकि पार्टियां चुनावों के दौरान मतदाताओं को इस तरह की सौगात देती हैं, भले ही इससे राज्य की वित्तीय स्थिति पर असर पड़े, लेकिन भाजपा के लिए मुस्लिम समुदाय के लिए इस तरह के वादे करना असामान्य बात है.

पिछले हफ़्ते पुंछ में की गई इस घोषणा ने कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर तंज कसने का मौक़ा दिया, जो विपक्षी दलों पर “तुष्टीकरण की राजनीति” करने का आरोप लगाती है. हालांकि, शाह द्वारा यह टिप्पणी अचानक नहीं की गई थी.

राजौरी और पुंछ के विधानसभा क्षेत्रों में जहाँ 25 सितंबर को मतदान हो रहा है, भाजपा ने चुनाव प्रचार के दौरान गुज्जर-बकरवालों तक पहुँच बनाने का एक ठोस प्रयास किया. यह एक चरवाहा खानाबदोश समुदाय है जो केंद्र शासित प्रदेश में अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का सबसे बड़ा हिस्सा है.

एक निर्वाचन क्षेत्र से दूसरे निर्वाचन क्षेत्र में अलग-अलग तरीके से लोगों तक पहुंचने का यह कैंपेन भाजपा द्वारा 1991 से अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत पहाड़ी भाषाई समूह गुज्जर-बकरवालों के एक वर्ग के बीच गुस्से को शांत करने का प्रयास था.

शाह की घोषणा मुस्लिम समुदाय को आकर्षित करने के भाजपा के व्यापक प्रयासों का हिस्सा थी. ज़मीनी स्तर पर, इसके उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं ने ऐसे मुद्दे उठाए जो पीर पंजाल घाटी में स्थानीय लोगों के साथ जुड़ सकते थे.

उदाहरण के लिए, राजौरी में, भाजपा उम्मीदवार और पूर्व एमएलसी विबोध कुमार गुप्ता लोगों के पास गए और सरकारी नौकरियों में अंतर-जिला भर्ती पर प्रतिबंध हटाने के अपने प्रयासों पर प्रकाश डाला, जिसे 2010 में लागू किया गया था, जब तत्कालीन राज्य में सरकार का नेतृत्व नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) कर रही थी.

गुप्ता ने सोमवार को जम्मू-पुंछ हाईवे पर स्थित भाजपा के राजौरी कार्यालय में दिप्रिंट से कहा, “श्रीनगर स्थित राजनीतिक अभिजात्य वर्ग द्वारा गुज्जर-बकरवालों को वंचित करने के लिए प्रतिबंध लगाया गया था. मैंने राजौरी पुंछ यूनाइटेड फ्रंट नामक एक मंच बनाकर उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए जी-जान से लड़ाई लड़ी. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद उस प्रतिबंध को हटा दिया गया. एमएलसी के रूप में, मैंने कभी भी धर्म के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया. यह कभी मेरा दृष्टिकोण नहीं रहा.”

भाजपा द्वारा पूरे क्षेत्र में वितरित किए गए पैम्फलेट में, पार्टी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे एसटी कोटा के विस्तार से गुज्जर और पहाड़ी समुदायों के छात्रों को NEET के माध्यम से MBBS पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने में लाभ हुआ.

गुज्जर-बकरवाल, जो मुख्य रूप से मुसलमान हैं, के विपरीत, पहाड़ी मुख्य रूप से ब्राह्मणों और राजपूतों सहित उच्च जाति के हिंदुओं से बने हैं. शर्मा और गुप्ता जैसे उपनाम वाले पहाड़ी भी एसटी श्रेणी में आते हैं.

उन्हें एसटी के रूप में वर्गीकृत करके, भाजपा ने पहाड़ियों की एक लंबे समय से लंबित मांग को पूरा किया, जिसका एक बड़ा हिस्सा राजौरी-पुंछ बेल्ट में पार्टी के समर्थन में लामबंद हो रहा है, जहां यूटी में गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ियों की सबसे अधिक संख्या है.

राजौरी जिले के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “हालांकि, ऐसा करके भाजपा ने गुज्जर-बकरवालों के एक बड़े हिस्से को अलग-थलग कर दिया, जो पहाड़ियों को एसटी के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग के सख्त खिलाफ थे. अगर गुज्जर-बकरवाल पूरी तरह से उनके खिलाफ हो जाते हैं, तो किसी भी पार्टी के लिए इस बेल्ट में सीटें जीतना मुश्किल है.”

यह जिला जम्मू शहर से NH144A के माध्यम से चार घंटे की ड्राइव पर है, जिसका बड़ा हिस्सा निर्माण गतिविधियों के कारण खोदा गया है. केंद्र में सरकार बनाने के बाद से ही भाजपा ने अपने लोकप्रिय नेताओं के ज़रिए गुज्जर-बकरवालों के बीच एक आधार बनाने की कोशिश की, जो प्रमुख कश्मीरी मुस्लिम जातीयता से अलग हैं. 2022 में, पहली बार जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एसटी के लिए नौ सीटें आरक्षित करने के कदम को ऐसे ही एक प्रयास के रूप में देखा गया.

‘गुज्जरों और बकरवालों की जनसांख्यिकी, सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ, जम्मू और कश्मीर की एक केस स्टडी’ शोधपत्र में, शिक्षाविद मोहम्मद तुफैल ने लिखा है कि मध्य एशिया में मूल निवासी गुज्जर-बकरवाल, 5वीं और 6वीं शताब्दी में जम्मू और कश्मीर में आए थे जब वर्तमान राजस्थान और गुजरात में भयंकर अकाल पड़ा था.

शोधपत्र में कहा गया है, “उनकी संस्कृति अलग है जो जम्मू और कश्मीर के अन्य समुदायों से मेल नहीं खाती है. उनके त्यौहार, उनकी शादी की प्रथाएं, ड्रेस कोड और शादियों के दौरान किए जाने वाले कई अन्य समारोह राज्य में उनकी एक अलग छवि बनाते हैं.”

एसटी के लिए आरक्षित नौ सीटों में से राजौरी, थन्नामंडी, सुरनकोट, मेंढर, बुधल और गुलाबगढ़ जम्मू संभाग में आते हैं. गुलाबगढ़ में पहले चरण में 18 सितंबर को मतदान हुआ था.

हालांकि, पहाड़ी, पद्दारी, गड्डा ब्राह्मण और कोली समुदायों को शामिल करके एसटी सूची का विस्तार करने के फैसले ने गुज्जर-बकरवालों को नाराज कर दिया. भाजपा ने नए शामिल समूहों के लिए एसटी श्रेणी के तहत एक उप-समूह बनाकर समुदाय को शांत करने की कोशिश की.

परिणामस्वरूप, गुज्जर-बकरवाल और पहाड़ी लोगों को नौकरियों और शिक्षा में मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण के बीच कोई ओवरलैप नहीं है. राजौरी शहर में वकील के रूप में काम करने वाले योगेश कुमार शर्मा, जो खुद भी एक पहाड़ी हैं, ने कहा, “विपक्ष ने अफवाह फैलाने की कोशिश की कि हम गुज्जरों के अधिकार छीन रहे हैं. लेकिन ऐसा नहीं है. उन्हें इतने सालों तक आरक्षण का लाभ मिला है. हमने इस पर कोई आपत्ति नहीं की. मुझे यकीन है कि अगर हमारे समुदाय को भी उनके हिस्से में से कुछ भी खाए बिना इसका लाभ मिलता है, तो उन्हें कोई समस्या नहीं होगी.”

लेकिन इन तर्कों से गुज्जर-बकरवाल लोगों को संतुष्ट करने में कोई मदद नहीं मिली, जो राजनीतिक आरक्षण से विशेष रूप से लाभ उठाने की उम्मीद कर रहे थे.

गुज्जर-बकरवाल समन्वय समिति ने चुनाव आयोग से यह मांग की थी कि अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित नौ सीटों पर केवल समुदाय के सदस्यों को ही उम्मीदवार उतारने की अनुमति दी जाए. लेकिन चुनाव आयोग ने पहाड़ी सहित अनुसूचित जनजातियों के रूप में वर्गीकृत सभी समुदायों के लिए सीटें खुली रखीं.

भाजपा की योजना पानी फिर गया?

अब भाजपा को डर है कि गुज्जर-बकरवाल समुदाय के बीच पार्टी के लिए अच्छी भावना पैदा करने के उसके प्रयास विफल हो सकते हैं. 2024 के लोकसभा चुनावों में, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अनंतनाग राजौरी में बड़े अंतर से जीत हासिल की, जिसमें जम्मू में छह एसटी आरक्षित सीटें शामिल हैं, जबकि पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) दूसरे स्थान पर रही. भाजपा समर्थित अपनी पार्टी तीसरे स्थान पर रही. भाजपा का समर्थन करने वाले प्रमुख गुज्जर चेहरों में से एक सेवानिवृत्त सर्जन डॉ. निसार चौधरी ने आरोप लगाया कि राजौरी में पूर्व न्यायाधीश जुबैर अहमद रजा सहित दो गुज्जर उम्मीदवारों ने भाजपा के खिलाफ गुज्जर-बकरवाल वोटों को एकजुट करने के लिए कांग्रेस के इशारे पर अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली.

थन्नामंडी निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा पदाधिकारी सुरेंद्र शर्मा ने कहा, “हमें पता है कि अगर गुज्जर-बकरवाल हमारे खिलाफ एकजुट हो गए तो यहां सीटें जीतना मुश्किल होगा; इसलिए पार्टी कांग्रेस और एनसी द्वारा भाजपा को सांप्रदायिक करार देने के प्रयासों को विफल करने की कोशिश कर रही है. क्योंकि इतिहास गवाह है कि गुज्जर-बकरवाल को कश्मीरी राजनीतिक आभिजात्य वर्ग द्वारा दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में माना जाता रहा है.”

हालांकि यह आरोप कि गुज्जर-बकरवाल को कश्मीरी राजनीतिक आभिजात्य वर्ग और प्रमुख मुस्लिम समूहों के हाथों भेदभाव का सामना करना पड़ा, निराधार नहीं है.

अपने शोधपत्र ‘जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-पहाड़ी के बीच की दरार को समझना’ में राजनीतिक टिप्पणीकार जफर चौधरी तर्क देते हैं कि गुज्जर, जिन्हें सुरक्षा बलों का साथ देने के कारण उग्रवादियों के हाथों बहुत कष्ट सहना पड़ा, “आर्थिक रूप से जम्मू-कश्मीर में समाज का शायद सबसे वंचित वर्ग हैं”.

वह यह भी बताते हैं कि कैसे राजपूतों के घरों में गुज्जर घरेलू नौकरों के रूप में बड़ी संख्या में काम करते हैं, जबकि कोई भी राजपूत, यहाँ तक कि सबसे गरीब भी, सबसे अमीर गुज्जरों के लिए काम नहीं करता.

उन्होंने कहा कि गुज्जरों को एसटी का दर्जा दिए जाने से सामाजिक विभाजन और भी बढ़ गया, क्योंकि सकारात्मक कार्रवाई ने उन्हें तहसीलदार के पद तक पहुंचने या पुलिस बल में वरिष्ठ पदों पर आसीन होने के माध्यम से सामाजिक उच्चता हासिल करने में मदद की, खासकर उन क्षेत्रों में भी जहां मुख्य रूप से राजपूतों और ब्राह्मणों का बोलबाला है.

चौधरी लिखते हैं, “चूंकि गुज्जरों को एसटी में शामिल करने का निर्णय वापस नहीं लिया जा सकता था, इसलिए उन्होंने (पहाड़ियों ने) अनुसूचित जनजाति में खुद को शामिल करने के लिए आंदोलन शुरू किया. इस उद्देश्य के लिए राजपूतों, सैयदों और ब्राह्मणों सहित सभी गैर-गुज्जर लोगों को पहाड़ी भाषी पहचान के तहत एकीकृत किया गया और इस प्रकार भाषा के आधार पर एक पहचान बनाई गई.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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