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Friday, 22 November, 2024
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UP BJP ने मायावती को उनके ही मैदान में चुनौती देने के लिए इस महिला दलित नेता को क्यों चुना

भाजपा ने उच्च जातियों, गैर-जाटव दलितों और गैर-यादव ओबीसी का सामाजिक समीकरण बनाकर अपनी स्थिति मजबूत की है. अब नजर जाटवों पर है.

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नई दिल्ली: भाजपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों में उच्च जातियों, गैर-जाटव दलितों और गैर-यादव ओबीसी का सामाजिक समीकरण साधकर जबर्दस्त जीत हासिल की थी.

भाजपा ने 2022 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक कदम और आगे बढ़ने का फैसला किया है और अब वह जाटव मतदाताओं को लुभाकर अपनी संभावनाएं और मजबूत करने की कोशिश में जुटी है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती इस जाटव समुदाय से ही आती है और यह उनका सबसे विश्वसनीय वोट-बैंक भी है.

भाजपा सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि यूपी में पार्टी नेताओं के आकलन से पता चलता है कि मोदी सरकार की बेहद लोकप्रिय प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना- जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) वालों को एलपीजी कनेक्शन दिया जाता है- के कारण जाटवों का एक वर्ग, खासकर महिलाएं, भाजपा के लिए वोट कर सकता है.

भाजपा नेताओं का मानना है कि अगर पार्टी जाटवों के साथ भावनात्मक रिश्ते मजबूत कर ले तो उनका एक बड़ा हिस्सा पार्टी की ओर आकृष्ट हो सकता है.

पार्टी ने यह रणनीति पहले ही बना ली थी और इसके केंद्रबिंदु में हैं उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, जो जाटव समुदाय से ही आती हैं.

यूपी में चुनाव नजदीक आने के साथ, मौर्य को इस महीने की शुरुआत में ही उत्तराखंड के राज्यपाल के पद से इस्तीफा दिला दिया गया लेकिन पार्टी ने उन्हें अपनी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घोषित करने में ज्यादा समय नहीं लगाया.

अब, भाजपा ने आगरा की रहने वाली मौर्य को अपने स्टार प्रचारकों की सूची में रखने का फैसला किया है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘पार्टी में एक महिला दलित चेहरे की कमी थी जो दलित महिलाओं के बीच पार्टी को मजबूत कर सके. बेबी रानी मौर्य इस कमी को पूरा करेंगी. वह न केवल जाटवों के बीच बल्कि पूरे दलित महिला समुदाय के बीच भी भाजपा का जनाधार बढ़ाएंगी.’

यूपी भाजपा के एक महासचिव के मुताबिक, राज्य के हर एक जिले में मौर्य की रैलियां आयोजित करने का फैसला लिया गया है.

महासचिव ने कहा, ‘योजना के मुताबिक, बेबी रानी मौर्य न केवल सभी 75 जिलों में रैलियां करेंगी, बल्कि भाजपा की तरफ से जाटव समुदाय को ध्यान में रखकर तीन महीने के भीतर की जाने वाली सौ से ज्यादा रैलियों में हिस्सा लेकर जाटव समुदाय के वोटबैंक में सेंध लगाने की दिशा में भी काम करेंगी.’


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स्टार प्रचारक

बेबी रानी मौर्य पिछले हफ्ते दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिली थीं. सूत्रों ने बताया कि उन्हें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संपर्क में रहने का निर्देश दिया गया था और इसके अलावा भाजपा के यूपी चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने भी मौर्य के साथ एक बैठक करके जाटव वोट-बैंक में सेंध लगाने की रणनीति पर चर्चा की.

सूत्रों ने बताया कि यूपी की महासचिव प्रियंका रावत को मौर्य की चुनावी रैलियों का रणनीतिक खाका तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है. ये बैठकें अगले महीने से शुरू होने वाली हैं और इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्र के प्रमुख दलित नेताओं सहित पार्टी के कई बड़े नेता भी शामिल होंगे.

बेबी रानी मौर्य ने दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में भी ऐसी रणनीति अमल में लाए जाने की पुष्टि की.

उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में मुझे एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसके अलावा राज्यपाल के तौर पर मेरी नियुक्ति के बाद से ही जाटव समुदाय काफी उत्साहित है.’

उन्होंने कहा, ‘दलित समुदाय को पार्टी से जोड़ने की जरूरत है और इसलिए मुझे पूरे राज्य का दौरा करने को कहा गया है. पार्टी की तरफ से दौरे का कार्यक्रम तैयार किया जा रहा है. अगले तीन महीनों में मैं समुदाय के लोगों को मोदी सरकार की उपलब्धियों के साथ-साथ राज्य सरकार के कामकाज से भी अवगत कराऊंगी.’

उन्होंने यह भी कहा कि उनका मुख्य कार्य जाटवों को हिंदुत्व के दायरे में लाना है.

उन्होंने कहा, ‘मेरा सैद्धांतिक विचार जाटव समुदाय को हिंदुत्व से जोड़ना है. उनके बीच अभी बहुत विभाजन है. हिंदुत्व के जरिये उन्हें जोड़ना निश्चित तौर पर एक बड़ा काम है.’

बेबी रानी मौर्य को कई सालों से लगातार आगे बढ़ाया जा रहा है. जुलाई 2018 में उन्हें राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य नियुक्त किया गया था. हालांकि, उनके कार्यभार संभालने से पहले ही अगस्त 2018 में भाजपा ने उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल नियुक्त कर दिया. यह नियुक्ति 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ही की गई थी.

रणनीति के तहत, खासकर जाटव महिलाओं को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने मेरठ में मेयर का चुनाव हारने वाली एक अन्य महिला दलित नेता कांता कर्दम को राज्य सभा भेजा है.

कर्दम ने दिप्रिंट को बताया कि जाटव समुदाय अब मायावती का साथ छोड़ने लगा है.

कर्दम ने कहा, ‘अगर मायावती ने जाटवों के कल्याण के लिए इतना ही काम किया है तो फिर आज उनकी हालत इतनी खराब क्यों है? वे सब इस बात से वाकिफ हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना के कारण एलपीजी गैस कनेक्शन भी मिला. कोरोनावायरस महामारी के दौरान मुफ्त राशन भी मिल रहा है और शौचालय योजना के लिए पैसा मिला है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मोदी और योगी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं सबके लिए हैं. इसलिए जाटव समुदाय के बीच संदेश के लिए हम राज्य स्तर पर विभिन्न सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं, जो उन्हें भाजपा की नीतियों से जोड़ेंगे.’

भाजपा ने जी.एस. धर्मेश सहित अन्य जाटवों को भी राज्य मंत्री के तौर पर पदोन्नत किया है.


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यूपी में जाटव समीकरण

उत्तर प्रदेश की आबादी में लगभग 21 प्रतिशत दलित हैं और उनमें से करीब आधे (लगभग 10 प्रतिशत) जाटव हैं, जो उत्तर प्रदेश में दलितों की लगभग 66 उप-जातियों में से हैं.

बेबी रानी मौर्य के गृह जिले आगरा में दलित आबादी लगभग 22 प्रतिशत है.

यूपी विधानसभा की 403 सीटों में से लगभग 85 विधानसभा क्षेत्र एससी समुदाय के लिए सुरक्षित हैं. 2017 में भाजपा ने इनमें से 71 सीटें जीती थीं.

पश्चिमी यूपी में, मेरठ से सहारनपुर तक, लगभग 40 विधानसभा क्षेत्रों में जाटव मतदाताओं की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से अधिक है.

उन्होंने 2007 के चुनावों में मुसलमानों के साथ मिलकर मायावती को सत्ता में पहुंचाने में एक अहम भूमिका निभाई थी.

हाल के वर्षों में मायावती के घटते जनाधार और सत्ता में उनकी संभावित वापसी को लेकर अनिश्चितता के बीच भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व वाले एजेंडे और विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के जरिये दलितों तक पहुंचने की कोशिश जैसे फैक्टर पहले से ही अहम भूमिका निभा रहे हैं.

कुछ दलित उप-जातियों जैसे कोरी और पासी आदि ने पहले ही मायावती से छिटककर भाजपा के साथ अपनी निष्ठा जता दी है.

हालांकि, पार्टियों को अब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर के साथ भी मुकाबला करना होगा, जो कि खुद जाटव समुदाय से ही आते हैं.

आंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख शशि कांत पांडेय ने कहा, ‘युवा जाटव वोटर पहले ही चंद्रशेखर के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि वह कितने वोट काट पाते हैं. मायावती की समाज के प्रमुख नेताओं को पार्टी से हटाने और नई ऊर्जा के साथ भाजपा के साथ मुकाबला न करने की रणनीति का जाटव समुदाय पर काफी असर पड़ा है.’

उन्होंने कहा, ‘अभी तक जाटव समुदाय ने मायावती का साथ नहीं छोड़ा है लेकिन भाजपा इस समुदाय के बीच यह धारणा बनाने की कोशिश कर रही है कि उन्होंने न केवल सत्ता में दलित समुदाय की उचित भागीदारी सुनिश्चित की है, बल्कि उनके कल्याण के लिए कई योजनाएं भी शुरू की हैं, जिनका लाभ उन तक पहुंच रहा है.’

हालांकि, पांडे ने आगे कहा कि जाटव किस आधार पर वोट करेंगे यह काफी हद तक कोविड महामारी से निपटने में योगी सरकार की भूमिका पर भी निर्भर करेगा.

उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी के दौरान दिहाड़ी मजदूरी करने वाले या फिर छोटे-मोटे काम करके अपनी जीविका चलाने वाले तमाम दलित और जाटव बुरी तरह प्रभावित हुए थे. यह तो बाद में ही पता चलेगा कि उनमें से कितने वास्तव में भाजपा को वोट देंगे, लेकिन पार्टी अपने हिंदुत्व एजेंडे के जरिये दलितों के पूरे समूहों को अपने पाले में लाने की रणनीति पर कड़ी मेहनत कर रही है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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