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Sunday, 22 December, 2024
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‘सेक्युलर’ शिवराज ने ‘लव जिहाद’, गाय और दूसरे मुद्दों पर क्यों अपना लिया है आक्रामक हिंदुत्व

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने दिप्रिंट से कहा कि ये चौहान का इस बात की नुमाइश का अपना तरीक़ा है कि उनका एजेंडा केंद्र के एजेंडा से अलग नहीं है.

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भोपाल: शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के उन गिने चुने मुख्यमंत्रियों में हुआ करते थे, जिनकी एक सेक्युलर छवि थी- गोल टोपी पहनने से लेकर इफ्तार पार्टियां आयोजित करने तक. 2005 से 2018 के बीच उनकी सरकारों द्वारा आगे बढ़ाया गया हिंदुत्व, देश के दूसरे हिस्सों के मुक़ाबले, कहीं ज़्यादा हल्का था.

लेकिन मध्य प्रदेश विधान सभा उपचुनावों में, 19 सीटें जीतने और स्पष्ट बहुमत हासिल करने के कुछ ही दिनों के भीतर, ऐसा लगता है कि चौहान ने कुछ विवादास्पद मुद्दों पर, कट्टर हिंदुत्व को अपना लिया है. उनकी सरकार ने एक क़ानून प्रस्तावित किया है, जिसमें लव जिहाद के लिए कड़ी सज़ा रखी गई है, एक सीरीज़ अ सूटेबल ब्वॉय में मंदिर के अंदर चुंबन के दृश्य दिखाने पर, नेटफ्लिक्स के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई शुरू की गई है, और गाय के संरक्षण के लिए, कई क़दम उठाने की घोषणा की गई है.

20 नवंबर को, चौहान ने जल्दी से एक प्रेस वार्ता बुलाकर, गुपकर घोषणा के लिए पीपुल्स अलायंस की निंदा की, जो जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दलों का बनाया हुआ एक संगठन है. उन्होंने पूछा कि दिल्ली में 2008 की बटला हाउस मुठभेड़ को लेकर, सोनिया गांधी ‘रात भर क्यों रोती रहीं थीं’. भी तक की उनकी सामान्य भाषा और लहजे से, ये एक बड़ा बदलाव था, और उन्होंने दूसरे मुद्दों पर सवाल लेने से भी मना कर दिया.

धर्मनिर्पेक्षता को रखते थे आगे

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चंद्रप्रकाश शेखर ने आरोप लगाया, कि चौहान और बीजेपी ‘हमेशा बांटने वाली सियासत करते हैं, ताकि समुदायों के बीच तनाव पैदा हो’, लेकिन 61 वर्षीय चौहान ने कभी विरले ही आक्रामक मुद्रा दिखाई है. चार बार सीएम रहे चौहान, कभी अपनी सेक्युलर छवि को आगे रखते हुए, इफ्तार पार्टियों में शामिल होते थे, मुख्यमंत्री आवास पर उन्हें आयोजित करते थे, और ऐसे मौक़ों पर गोल टोपी पहनते थे जबकि अधिकांश दूसरे बीजेपी नेता उससे बचते थे.

2013 के विधान सभा चुनावों से पहले, चौहान अपनी सेक्युलर छवि को इतनी गंभीरता से लेने लगे थे, कि उन्होंने भोपाल उत्तर चुनाव क्षेत्र को ‘गोद लेते हुए’ उसका प्रभार अपने कांधों पर ले लिया, जहां मुसलमानों की अच्छी ख़ासी आबादी है. बीजेपी फिर भी इस सीट पर कांग्रेस के आरिफ अक़ील से हार गई, लेकिन उसने मुक़ाबले में ख़ूब टक्कर दी.

चौहान बहुत महीन तरीक़े से हिंदुत्व को बढ़ावा देते थे, वो ख़याल रखते थे कि दूसरे समुदाय आहत न हों. हिंदू समुदाय के लिए उनकी पहलक़दमियों ने, एक उदार नेता की उनकी छवि को प्रभावित नहीं किया. विरोध का ज़रा सा आभास होते ही, वो अपने ऐसे किसी भी रुख़ को हल्का कर देते थे, जो आपत्तिजनक हो सकता था.


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लेकिन उनके अचानक आक्रामक हुए हिंदुत्व के लहजे ने, अफवाहों को जन्म दे दिया है- क्या वो बीजेपी की वैचारिक पालक आरएसएस को ख़ुश कर रहे हैं, या फिर आलाकमान को संदेश दे रहे हैं?

चौहान का एजेंडा अलग नहीं

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने दिप्रिंट से कहा कि ये चौहान का इस बात की नुमाइश का अपना तरीक़ा है कि उनका एजेंडा केंद्र के एजेंडा से अलग नहीं है.

शंकर ने कहा, ‘एक अवधारणा है कि कभी कभी, वो एक अलग एजेंडा चलाने लगते हैं. वो इस बात पर बल देना चाहते हैं, कि वो न सिर्फ मूल एजेंडा का पालन कर रहे हैं, बल्कि ऐसा करते हुए दिख भी रहे हैं.

एक बीजेपी नेता ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा: ‘आक्रामक हिंदुत्व हमारी मूल राजनीति है, और ये (चुनावी रूप से) सफल भी है. हाल ही में (लव जिहाद की) कुछ घटनाएं हुई हैं, और बीजेपी उन्हें भुना रही है, क्योंकि लोगों को ऐसे भावनात्मक मुद्दे पसंद आते हैं’.

बीजेपी नेता पंकज चौधरी ने आगे कहा: ‘लव जिहाद एक गंभीर सामाजिक मुद्दा है, और इसे नियंत्रित करने की ज़रूरत है. लव जिहाद दुर्भावना और षडयंत्र का नतीजा होता है. बीजेपी हार्ड या सॉफ्ट हिंदुत्व में यक़ीन नहीं रखती, लेकिन सनातन धर्म के प्रति उसका एक नैतिक दायित्व है. इसमें कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है’.

बीजेपी के एक पूर्व प्रवक्ता ने भी, नाम छिपाने की शर्त पर कहा: ‘सॉफ्ट हिंदुत्व की अपनी छवि को बदलने के अलावा, चौहान पार्टी के मूल एजेंडा का पालन कर रहे हैं. आरएसएस की ओर से हमेशा दबाव रहता है. इसका मतलब ये ज़रूरी नहीं, कि इससे उनके भाव बढ़ जाएंगे, लेकिन ऐसे उपायों से माहौल बन जाता है. वो ख़बरों में बने रहना चाहते हैं, वरना सिंधिया सुर्ख़ियों में आ जाएंगे. वो एक संदेश देना चाहते हैं, कि वो योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं से कम नहीं हैं’.

विश्लेषक ने कहा कि गौ-राजनीति जानबूझकर खड़ी की गई है, लेकिन दूसरे हिंदुत्व समर्थक क़दम या तो केंद्र से निर्देशित हैं, या ये महज़ एक संयोग हैं. उन्होंने आगे कहा कि ‘लव जिहाद क़ानून’ की घोषणा ऐसे समय हुई है, जब ये अवधारणा बन रही थी, कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रॉं की इस्लाम पर टिप्पणी के विरोध में, कांग्रेसी विधायक आरिफ मसूद ने जो विरोध प्रदर्शन आयोजित कराए थे, चौहान सरकार उनके साथ नर्मी से पेश आई थी.

भोपाल देश के कुछ गिने चुने स्थानों में से एक था, जहां अक्तूबर के अंत में विशाल विरोध प्रदर्शन हुए थे.

फिर ‘सबसे क़द्दावर नेता’

2008 और 2013 के विधान सभा चुनावों में व्यापक जीत के बाद, बीजेपी में चौहान का ग्राफ ऊपर उठ रहा था, लेकिन 2018 के विधान सभा नतीजों ने उसपर ब्रेक लगा दिया, हालांकि उनकी हार का अंतर, उस हार से कम था, जो बीजेपी सरकारों को राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखनी पड़ी थी. बीजेपी को वोट तो कुछ ज़्यादा मिले, लेकिन कांग्रेस की 114 सीटों के मुकाबले, उसकी सिर्फ 109 सीटें रह गईं.

इस साल मार्च में, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस सरकार गिराई, और कांग्रेस से 22 विधायक लेकर बीजेपी में शामिल हो गए, तो सीएम पद के लिए चौहान अकेले दावेदार नहीं थे. वो दूसरे उम्मीदवारों पर भारी पड़ गए, लेकिन सदन में संख्या को देखते हुए, उनकी स्थिति नाज़ुक ही बनी रही- मार्च के अंत से चौहान सदन में केवल 107 सदस्यों के साथ सरकार के मुखिया बने हुए थे, जिनकी संख्या इस्तीफों और मौतों की वजह से घटती रही. 230 सदस्यों के सदन में, बीजेपी सदस्यों की संख्या अब बढ़कर 126 हो गई है.

विश्लेषक गिरिजा शंकर ने इस बात पर बल दिया, कि उपचुनावों के बाद, ‘चौहान एक बार फिर एमपी में बीजेपी के सबसे क़द्दावर नेता बन गए हैं’.

उन बीच के महीनों में, चौहान के मुक़ाबले गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, सत्ता का एक वैकल्पिक केंद्र बन गए. वो पहले भी सीएम पद के मज़बूत दावेदार रहे थे, और फिर उस भूमिका में आ गए, जहां वो ‘लव जिहाद’ के खिलाफ क़ानून लाने और अ सूटेबल ब्वॉय मंदिर चुंबन विवाद में एफआईआर दर्ज करने की ज़रूरकत पर बीजेपी सरकार के रुख़ को अभिव्यक्ति देने लगे थे. लेकिन चौहान ने उससे कुछ दिन पहले ही घोषणा कर दी, कि ‘लव जिहाद’ पर एक नया क़ानून लाया जा रहा है.

उपचुनावों से पहले ये भी क़यास लगाए जा रहे थे, कि चौहान को किसी और के लिए जगह ख़ाली करनी होगी, और केंद्र में जाकर मंत्री बनना होगा. लेकिन अपनी सार्वजनिक और निजी बातचीत में, वो हमेशा स्पष्ट करते थे, कि मध्य प्रदेश छोड़ने में वो सहज नहीं हैं.

लेकिन, चौहान की सरकार अब एक मज़बूत ज़मीन पर खड़ी हो सकती है, लेकिन अब उन्हें सत्ता के एक और केंद्र से निपटना है- सिंधिया- जिनके कई वफादार अब मंत्री बन गए हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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