scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमराजनीतिक्यों एक दुखद विवाह वाले जोड़े की तरह साथ रहने को मजबूर हैं नीतीश कुमार और BJP ?

क्यों एक दुखद विवाह वाले जोड़े की तरह साथ रहने को मजबूर हैं नीतीश कुमार और BJP ?

ऐसा लगता है कि नीतीश को कई मुद्दों पर अपने प्रतिद्वंद्वी दलों की तुलना में भाजपा से कहीं अधिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है, और इसमें से अधिकांश मामले में दोनों पक्षों द्वारा इसे छुपाने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है.

Text Size:

पटना/नई दिल्ली: जैसा कि एक मुहावरे में कहा जाता है, ‘तलाक का मुख्य कारण शादियां ही होती हैं’, लेकिन कई बार मजबूरियां इस फैसले को टाल सकती हैं. राजनीति के लिए भी यही बात सच है. बिहार में सत्तारूढ़ सहयोगी दलों – जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी – के बीच का एक ऐसा ही ‘असहज राजनीतिक विवाह’ और उनके बीच का एक उतना ही ‘असहज समझौता’ पिछले कई महीनों से स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है.

2013 से 2017 तक चले चार साल के मनमुटाव को छोड़कर, जद (यू) और भाजपा पिछले 25 वर्षों में से अधिकांश समय तक एक दूसरे के सहयोगी रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस दौरान नीतीश कुमार ने एक छोटी सी अवधि (जब जीतन राम मांझी ने राज्य का नेतृत्व किया था) के अलावा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी पकड़ बरकरार रखी है.

लेकिन अब ऐसा लगता है कि नीतीश को कई मुद्दों पर अपने प्रतिद्वंद्वी दलों की तुलना में भाजपा से कहीं अधिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है, और इसमें से अधिकांश मामले में को दोनों पक्षों द्वारा इसे छुपाने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है.

बीजेपी की मजबूरियां

2020 के विधानसभा चुनावों के बाद जद (यू) की 43 सीटों (जो अब 45 हो गई है) की तुलना में 74 सीटों के साथ बीजेपी इन दो सहयोगियों के बीच एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. लेकिन फिर भी वह एनडीए सरकार के नेता के रूप में नीतीश को समर्थन देने के अपने वादे पर कायम रही.

इसके बाद से ही इन पार्टियों के बीच के गहरे मतभेद सामने आते रहें हैं, लेकिन अगर अब यह गठबंधन टूट जाता है, तो इसका मतलब होगा कि भाजपा 2019 के बाद से अपने तीन सबसे पुराने सहयोगियों – अन्य दो में शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के नाम हैं – को खो चुकी होगी.

इसके अलावा, 2024 के लोकसभा चुनावों में जाने से पहले पार्टी को नितीश कुमार जैसे मजबूत क्षेत्रीय सहयोगी की आवश्यकता होगी.

यही कारण है कि इसने आबकारी नीति, नकली शराब की त्रासदी, जातिय जनगणना और ‘पुरस्कार वापसी’ जैसे मुद्दों के बारे में आधिकारिक तौर पर चुप्पी साध रखी है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम कई मुद्दों पर तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं. यह कोई असामान्य बात नहीं है क्योंकि हम अलग-अलग विचारधारा वाले दो अलग-अलग राजनीतिक दल हैं. हम बेहतर समन्वय की आशा करते हैं लेकिन चुभने वाले मुद्दों को सुलझाया जा सकता है.’

बिहार के लिए बीजेपी के सह-प्रभारी हरीश द्विवेदी ने कहा, ‘कई मुद्दों पर हमारे बीच मतभेद हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अलग हो रहे हैं. हमारा गठबंधन बरकरार है और हमारी सरकार बिहार के गरीब-से-गरीब व्यक्ति के लिए काम कर रही है.

नीतीश कुमार की भी है अपनी मज़बूरी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जानते हैं कि बीजेपी उन्हें एक हद से ज्यादा नाराज नहीं कर सकती. उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ वाली गठबंधन सरकार चलाने के अपने पिछले अनुभव – जब वह लालू प्रसाद परिवार के लगातार दबाव में थे- से जद (यू) नेता यह भी जानते हैं कि इसकी तुलना भाजपा से साथ वाली सरकार में उन्हें अधिक स्वायत्तता प्राप्त है.

पिछले हफ्ते, राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने यह सुझाव दिया था कि नितीश को उन भाजपा मंत्रियों को पद से हटा देना चाहिए जो जातिगत जनगणना की मांग का विरोध कर रहे हैं. सिंह ने इसके बाद एक कदम आगे बढ़कर भाजपा द्वारा इस मुद्दे पर नितीश के नेतृत्व वाली बिहार सरकार से बाहर निकलने का फैसला करने की स्थिति में जद (यू) को राजद के समर्थन की पेशकश भी की थी. परन्तु, कुछ ही घंटों के भीतर, राजद के प्रमुख नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने उनकी बात का खंडन करते हुए कहा: ‘नीतीश का समर्थन करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है. जद (यू) को हमारा समर्थन जातिय जनगणना और (बिहार के लिए) विशेष दर्जे तक सीमित है.’ राजद के जानकार सूत्रों के अनुसार, जद (यू) के साथ कोई भी गठबंधन तभी संभव है जब नितीश तेजस्वी को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करें – और यह एक ऐसी शर्त है जो नितीश के लिए अस्वीकार्य है.

और इस तरह, राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी, राजद (75 सीटें) के समर्थन के बिना, नितीश केवल तभी मुख्यमंत्री रह सकते हैं जब वह भाजपा के साथ रहें.


यह भी पढ़ें : KCR की ‘थर्ड फ्रंट की कोशिश के लिए हैदराबाद गए’ तेजस्वी यादव ने क्यों नहीं दिखाया कोई उत्साह


सार्वजानिक रूप से छींटाकशी

गठबंधन के ये दोनों सहयोगी पिछले दो साल से सार्वजानिक रूप से अपनी शिकायतें जगजाहिर करते रहें हैं, लेकिन इस मामले को और ज्यादा भड़काने वाला एक बिंदु पिछले साल दिसंबर में आया जब नितीश ने भाजपा विधायक निक्की हेम्ब्रम पर उस समय तंज कसा जब उन्होंने नितीश द्वारा 2016 में लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ जाते हुए सुझाव दिया कि सरकार को महुआ संयंत्र से आदिवासियों को शराब बनाने की अनुमति देनी चाहिए.

इससे नाराज भाजपा विधायकों ने उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल दोनों के साथ एक बैठक की थी. बैठक में भाजपा के विधायकों ने पार्टी नेतृत्व पर जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की बात तो दूर एक प्रमुख नेता के अपमान पर भी मूकदर्शक बने रहने का आरोप लगाया.

दिप्रिंट के साथ बातचीत में एक बीजेपी विधायक ने दावा किया, ‘हमें कहा गया है कि हमें ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जिससे सरकार गिर जाए. लेकिन हमें शासन के खिलाफ किसी भी मुद्दे पर अपने विचार रखने की खुली छूट दी गई है.’

इस सारे मामले में एक और प्रकरण ने सबका ध्यान तब खींचा था जब भाजपा मंत्री जीवेश मिश्रा द्वारा पटना के जिला मजिस्ट्रेट को जाने देने के लिए उनकी कार को परिसर के बाहर रोके जाने के बाद जोरदार विधानसभा में हंगामा किया गया था. यह मामला जिला अधिकारी और पुलिस अधीक्षक के मंत्री के आवास पर जाकर माफी मांगने के बाद ही शांत हुआ.

जहरीली शराब वाली त्रासदी, जातिय जनगणना को लेकर जारी तीखी नोकझोंक

इसलिए इस बात में आश्चर्य नहीं कि जब नीतीश कुमार के अपने निर्वाचन क्षेत्र, नालंदा, में शराब की बड़ी त्रासदी हुई जिसमें 13 लोग मारे गए, तो भाजपा ने इसके विरोध में की जा रही आलोचना के मामले में राजद को भी पीछे छोड़ दिया. भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने दावा किया, ‘बिहार शराबबंदी कानून एक मजाक बन गया है. गरीबों को ही निशाना बनाया जाता है. पुलिस और शराब माफिया के बीच सांठगांठ है,

इन दोनों सहयोगियों के बीच का गतिरोध केवल शराबबंदी वाले कानूनों तक ही सीमित नहीं है. जातिय जनगणना पर सर्वदलीय बैठक नहीं कर पाने के लिए जद (यू) ने भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, पटेल ने कहा, ‘भाजपा विधानसभा के उस प्रस्ताव की एक पक्षकार थी जिसमें जातिय जनगणना की वकालत की गई थी. बैठक करने के लिए मुख्यमंत्री को हमारी रजामंदी की जरूरत नहीं है.‘

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की जद (यू) की मांग का भी भाजपा के मंत्रियों ने मजाक उड़ाया है, जिनका कहना है कि केंद्र सरकार बिहार के लिए पैसे देने में उदारता बरतती रही है. हाल के दिनों में उभरा एक और मुद्दा भाजपा द्वारा आगामी यूपी विधानसभा चुनावों में जद (यू) के साथ गठबंधन को ठुकराया जाना है.

भाजपा प्रवक्ता विनोद शर्मा ने कहा, ‘जद (यू) का यूपी में अस्तित्व हीं नहीं है. यह अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है.’

हाल ही में, बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने नीतीश के जद (यू) को धूल चटाने की कोशिश करते हुए मांग की कि उनकी सरकार को पद्म श्री और साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता नाटककार दया प्रकाश सिन्हा, जिन्होंने सम्राट अशोक के बारे में एक विवादास्पद टिप्पणी की थी, को गिरफ्तार कर लेना चाहिए.

जायसवाल ने इस बात पर जोर देकर कहा कि गठबंधन की राजनीति एकतरफा राह नहीं है और राज्य के 74 लाख भाजपा कार्यकर्ता इसका माकूल जवाब देंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments