बेंगलुरू: कर्नाटक में विधानसभा चुनावों को सिर्फ एक साल बचा है और लगता है कि कांग्रेस पार्टी को अपने सदस्यों को एक जुट रखने का एक नया रास्ता मिल गया है- ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोगों को अपने प्रदेश पदाधिकारियों की जमात में शामिल करना.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार शाम, 40 पार्टी उपाध्यक्षों और 109 महासचिवों की एक सूची को स्वीकृति दे दी- एक ऐसा कदम जो आम चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन के पश्चात, पार्टी द्वारा कर्नाटक इकाई की कमेटियों और उसकी सदस्य कमेटियों को भंग किए जाने के लगभग तीन साल बाद उठाया गया है.
कांग्रेस और उसके तत्कालीन सहयोगी जनता दल (सेक्युलर) को कर्नाटक में 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ दो सीटें- दोनों को एक-एक- हाथ लगीं थीं.
कांग्रेस पार्टी का अपने सामान्य कार्यकर्ताओं को खुश करने का फैसला दलबदल के कई मामलों के बाद आया है- पिछले दो वर्षों में पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर कई नेताओं को दूसरी पार्टियों के हाथों खो दिया है, जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सुष्मिता देव और कैप्टन अमरिंदर सिंह आदि शामिल हैं. अकेले कर्नाटक में 2019 में एक दर्जन से अधिक कांग्रेस विधायक, पार्टी छोड़कर बीजेपी के पाले में चले गए, जिससे जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार गिर गई और भगवा पार्टी के सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया.
सूची जारी होने से एक हफ्ता पहले ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, जो कर्नाटक के दौरे पर थे, पार्टी के भीतर निष्ठा और योग्यता के पुरस्कृत किए जाने के बारे में बात की थी.
पार्टी सूत्रों ने बताया कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी कई सूचियों पर विचार कर रही थी, जो उन्हें कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने भेजी थीं.
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विधायकों को बाहर रखा गया
मौजूदा विधायकों को इस सूची से बाहर रखने का फैसला भी महत्वपूर्ण था.
एक पदस्थ पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘विधायकों को सूची से बाहर रखा गया है, ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं को उसमें शामिल किया जा सके, जो उन्हें दी गई जिम्मेदारियों को लगातार निभा रहे हैं. इसके अलावा, विधायकों को अपने चुनाव क्षेत्रों में ध्यान लगाना पड़ेगा’.
पदाधिकारियों ने बताया कि सचिवों की एक और सूची के भी जल्द ही जारी किए जाने की संभावना है.
पार्टी के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा कि सूची के बारे में एक और गौरतलब बात ये भी है कि इसमें पार्टी के भीतर अलग-अलग गुटों के नेताओं को लगभग बराबर प्रतिनिधित्व दिया गया है.
शनिवार रात केपीसीसी की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘नए पदाधिकारियों में 53 पिछड़े वर्गों से हैं, 25 अनुसूचित जातियों से और 4 अनुसूचित जनजातियों से हैं’.
लिस्ट में, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है और जिसमें 22 अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, कुल 23 महिलाओं और एक ट्रांसजेंडर को भी जगह दी गई है.
एक पूर्व मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस तरह कोई भी नहीं छूटा. सभी समुदायों, जातियों और क्षेत्रों से हमारे कार्यकर्ताओं को इसमें जगह दी गई है’. नेता ने आगे कहा कि इससे चुनावों से पहले मतभेद पैदा होने की गुंजाइश भी नहीं रहेगी. उनका कहना था, ‘पार्टी का क्या नुकसान हो रहा है? सोच ये है कि अगर पदाधिकारियों का एक बड़ा समूह, चुनावी वर्ष में पार्टी को एकजुट रखने में मदद कर सकता है, तो फिर आखिर इसमें नुकसान ही क्या है’.
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सूची में एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता
पदाधिकारियों की सूची में एक ट्रांस महिला और जेंडर अधिकार कार्यकर्ता का नाम भी शामिल है. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी जेंडर अल्पसंख्यक को केपीसीसी में पदाधिकारी नियुक्त किया गया है.
एक जानी-मानी ट्रांस जेंडर अधिकार कार्यकर्ता अक्काई पद्मासाली ने, जो पार्टी की नवनियुक्त महासचिव हैं, दिप्रिंट से कहा, ‘ये एक बहुत बड़ा अवसर है जो कांग्रेस ने मुझे सौंपा है. मैं केवल जेंडर अधिकारों की बात नहीं करूंगी, बल्कि सभी तरह के उत्पीड़न और विभाजन के खिलाफ बोलूंगी. मुझे महासचिव नियुक्त करके कांग्रेस पार्टी ने अपनी समावेशी विचारधारा को बरकरार रखा है’.
पार्टी के अंदरूनी सूत्र इस बात को मानते हैं कि इस साल उपाध्यक्षों की संख्या असामान्य रूप से ज्यादा है- पहली बार पार्टी ने इतनी अधिक नियुक्तियां की हैं लेकिन उनका कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं है कि पार्टी के पदाधिकारियों की संख्या इतनी अधिक है. 2018 में आखिरी विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी में 300 से अधिक पदाधिकारी थे, जब कांग्रेस नेता जी परमेश्वर प्रदेश इकाई अध्यक्ष थे.
एक वरिष्ठ कांग्रेस विधायक ने कहा, ‘लेकिन वो नियुक्तियां कई महीने की अवधि में अंतराल के साथ की गईं थीं. पदाधिकारियों की नई सूची भी उसी तरह अंतराल से आनी चाहिए थी लेकिन चूंकि ऐसा नहीं हुआ, इसलिए लिस्ट लंबी लग रही है’.
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विवादास्पद समावेश
पार्टी के नए उपाध्यक्षों में एक महत्वपूर्ण समावेश है, वीएस उग्रप्पा- एक पूर्व लोकसभा सदस्य जो बदनाम हॉटमाइक स्कैंडल का हिस्सा थे.
स्कैंडल में उग्रप्पा अब निष्काषित किए जा चुके कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी मीडिया कॉर्डिनेटर एमए सलीम के साथ, एक प्रेस कॉनफ्रेंस से ठीक पहले, एक कथित भ्रष्टाचार मामले में डीके शिवकुमार के सम्मिलित होने के बारे में बातचीत कर रहे थे. टीवी चैनलों के माइक्रोफोन्स ने बातचीत को पकड़ लिया, जिसके नतीजे में सलीम को छह साल के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्काषित कर दिया गया. उग्रप्पा को भी अपने व्यवहार पर सफाई पेश करने के लिए कारण- बताओ नोटिस जारी किया गया था.
एक पूर्व मंत्री ने कहा कि ताज़ा सूची से ज़ाहिर होता है कि चुनावों से ठीक पहले पार्टी किसी को भी अपने से अलग करना नहीं चाहती.
नेता ने कहा, ‘पार्टी साफतौर पर किसी को अवसर नहीं देना चाहती, कि वो अपने आपसी झगड़े को सार्वजनिक करें. कोशिश ये देखने की लगती है कि अगर हर किसी के उम्मीदवार को शामिल किया जाए, तो क्या चीज़ें सुगमता के साथ आगे बढ़ेंगी’.
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