गुरुग्राम: इस पर जारी बहस के बीच कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संविधान बदल देगी, विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस, इसे हरियाणा के दलितों के बीच एक मुद्दा बना रही है.
दलित वोट भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं, न केवल एनडीए के लिए 400 से अधिक सीटें हासिल करने के अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, बल्कि 2014 और 2019 के आम चुनावों से अपनी सफलता को दोहराने के लिए भी.
हालांकि, आंशिक रूप से विपक्ष के अभियान के कारण और बड़े पैमाने पर अरुण गोविल, ज्योति मिर्धा, अनंत कुमार हेगड़े और लल्लू सिंह सहित भाजपा नेताओं के बयानों के कारण, दलितों के बीच संविधान में संभावित बदलाव का डर मजबूत हो गया है.
इस साल मार्च में अपने निर्वाचन क्षेत्र उत्तर कन्नड़ में एक रैली को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद अनंत कुमार हेगड़े ने दावा किया कि उनकी पार्टी को “कांग्रेस द्वारा हिंदू धर्म को अपमानित करने के लिए किए गए जोड़ और विकृतियों को खत्म करने” के लिए 400 से अधिक सीटों की ज़रूरत है.
जबकि भाजपा ने खुद को भाषण से दूर कर लिया और हेगड़े को मौजूदा लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने से इनकार कर दिया, गोविल, मिर्धा और लल्लू सिंह जैसे अन्य पार्टी नेताओं ने भी इसी तरह के दावे किए.
तब से भाजपा — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ — विपक्षी कांग्रेस पर दलितों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने की कोशिश करने का आरोप लगाकर इसका मुकाबला करने की कोशिश कर रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि नुकसान पहले ही हो चुका है: हरियाणा के विभिन्न दलित नेताओं के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जातियों के बीच डर है कि भाजपा उन्हें दिए गए मौजूदा आरक्षण को खत्म करने पर विचार कर सकती है.
दलित नेताओं और कार्यकर्ताओं जिनसे दिप्रिंट ने बात की, उनके अनुसार, विभिन्न कारक इस आशंका को जन्म दे रहे हैं — जिसमें यह धारणा भी शामिल है कि देश में आरक्षण विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं, साथ ही यह विचार भी शामिल है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम , 1989, का दुरुपयोग किया जा रहा है.
रेवाड़ी के एक वकील और दलित कार्यकर्ता राजवंत दहिनवाल ने दिप्रिंट को बताया, “पहले भी कईं बार संविधान में संशोधन किए गए हैं, लेकिन यह पहली बार है कि भाजपा के सांसदों और लोकसभा उम्मीदवारों ने खुद रिकॉर्ड पर कहा है कि संविधान को बदलने के लिए पार्टी को 400 से अधिक सीटों की ज़रूरत है. इससे एससी और एसटी समूहों में डर फैल गया है कि अगर भाजपा बड़े जनादेश के साथ फिर से सत्ता में आती है तो उन्हें दिया गया आरक्षण बरकरार नहीं रखा जाएगा.”
यह एक ऐसी भावना है जिसे कई दलित नेता दोहराते हैं. हालांकि, भाजपा अपनी ओर से इन आशंकाओं को निराधार बताकर खारिज कर रही है.
हरियाणा में भाजपा के एससी मोर्चा के महासचिव सुरेश दानोदा ने कहा, “संविधान को ऐसे ही नहीं बदला जा सकता. पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार कहा है कि दलितों के लिए चिंता का कोई कारण नहीं है.”
लेकिन दलित नेता इस बात से कोसों दूर हैं. फतेहाबाद में वाल्मीकि समुदाय के नेता शम्मी रत्ती के अनुसार, ये चिंताएं केवल आरक्षण खोने से परे हैं और हरियाणा की अनुसूचित जातियों के बीच इसके लाभों के असमान वितरण की एक अधिक बुनियादी समस्या से उपजी हैं.
रत्ती ने भजन लाल सरकार के तहत राज्य में लागू की गई अधिक स्तरीय आरक्षण प्रणाली की वकालत करते हुए कहा, “अनुसूचित जातियों में वाल्मीकि, धनक, बाजीगर, सांसिस, देहास और सपेरा जैसी कई वंचित जातियां वर्तमान आरक्षण का लाभ पाने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि इन लाभों पर बड़े पैमाने पर रविदासिया जैसी सामाजिक रूप से बेहतर स्थिति वाली जातियों का कब्ज़ा है.”
“1994 में, भजन लाल सरकार ने अनुसूचित जाति की आबादी को दो श्रेणियों — ए और बी में विभाजित किया — ब्लॉक ए वंचित जातियों को अधिमान्य आधार पर 50 प्रतिशत आरक्षित सीटों की पेशकश की. हालांकि, इसे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद रद्द कर दिया गया था.” उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी का “जितनी जिसकी आबादी, उतना उसका हक” का वादा वंचित एससी जातियों की मदद कर सकता है.
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इस डर का कारण क्या है?
अनुसूचित जातियां हरियाणा की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं — 2011 की जनगणना के अनुसार, वह राज्य के 2.53 करोड़ लोगों में से 20.2 प्रतिशत हैं.
फतेहाबाद जिले में सबसे अधिक एससी आबादी (30.2 प्रतिशत) है, इसके बाद सिरसा (29.9 प्रतिशत) और अंबाला (26.3 प्रतिशत) हैं.
राज्य में दलित वोट अहम हैं. उदाहरण के लिए 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटों में से पांच पर जीत हासिल की — 2014 में जीती गई नौ सीटों में से दो कम. दूसरी ओर, कांग्रेस ने 2014 में अपनी जीती हुई चार सीटों की तुलना में सात सीटें जीतीं.
कार्यकर्ताओं के अनुसार, छह कारण हैं कि राज्य के दलित समूह अपने डर को दूर करने के ठोस प्रयासों के बावजूद भाजपा से आशंकित हैं.
पहला, देश में आरक्षण विरोधी भावना में कथित वृद्धि. इसके लिए एक अन्य वकील और दलित कार्यकर्ता, रजत कलसन, जंतर मंतर पर 2018 के आरक्षण विरोधी विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हैं, जहां आरक्षण विरोधी पार्टी नामक एक अल्पज्ञात आरक्षण विरोधी समूह ने संविधान की प्रतियां जलाई थीं. उन्होंने कहा कि दलितों ने इसे वास्तव में संविधान बदलने से पहले भाजपा द्वारा “परीक्षण” के रूप में देखा.
कलसन ने कहा, “संविधान के इस दुरुपयोग का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. ये सब दिल्ली पुलिस की मौजूदगी में हुआ. काफी हंगामे के बाद ही पुलिस ने मामला दर्ज किया.”
यह डर अपने बजट भाषण के दौरान प्रधानमंत्री के वादे से और भी बढ़ गया था कि उनकी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान “बड़े फैसले” करेगी, साथ ही अन्य भाजपा नेताओं द्वारा की गई टिप्पणियों ने भी आग में घी डालने का काम किया.
कलसन ने कहा, “जब पीएम ने (इस साल अपने भाषण के दौरान) बड़े फैसले को बीजेपी के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 से ज्यादा सीटों से जोड़ा, तो उन्होंने किसी को संदेह नहीं होने दिया कि उनका मतलब वही था जो हेगड़े और अन्य ने बाद में कहा था.”
यह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के प्रमुख सरकारी भर्ती वेब पोर्टल — हरियाणा कौशल रोजगार निगम (एचकेआरएन) — के दो साल बाद राज्य में विवाद का मसला बन गया. 2021 में लॉन्च किए गए वेब पोर्टल का उद्देश्य विभिन्न सरकारी विभागों, बोर्डों और विश्वविद्यालयों में संविदा कर्मचारियों को नियुक्त करना है.
अनुभवी कांग्रेसी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर हुड्डा जैसे विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया है कि इस प्रणाली का उद्देश्य अन्य चीज़ों के अलावा “आरक्षण को खत्म करना” था.
दलित कार्यकर्ताओं का भी मानना है कि यही मामला है, क्योंकि एचकेआरएन के तहत भर्ती के लिए चयन मानदंड में जाति-आधारित आरक्षण नहीं है.
उन्होंने कहा, “राज्य सरकार पोर्टल लॉन्च होने के बाद से हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) और हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (एचएसएससी) को टाल रही है.”
फिर, यह डर है कि भाजपा सरकार, राज्य की पुलिस के माध्यम से यह धारणा पैदा कर रही है कि दलितों और आदिवासी लोगों के खिलाफ घृणा अपराधों को रोकने के लिए बनाए गए एससी/एसटी अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा दिनांक 3 मार्च, 2018 की हरियाणा राज्य समीक्षा (पुलिस) के अनुसार, 2014-15, 2015-16 और 2016-17 में कानून के तहत मामलों में सजा की दर क्रमशः 0 प्रतिशत, 6.97 प्रतिशत और 7.74 प्रतिशत थी. इसके अलावा, बैठक के निष्कर्ष में कहा गया है कि लगभग 25 प्रतिशत मामले पुलिस द्वारा बंद कर दिए गए.
कार्यकर्ताओं के अनुसार, ऐसी आशंका है कि यह सुनिश्चित करने के लिए एक कहानी बनाई जा रही है कि वर्तमान में सख्त कानून को या तो कमजोर कर दिया जाए या पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाए.
कलसन ने कहा, “एक डर यह भी है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए मोदी सरकार के दबाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि 80 प्रतिशत भारतीय राज्यों पर भाजपा का नियंत्रण हो ताकि संविधान को आसानी से बदला जा सके.”
भारतीय युवा कांग्रेस की हरियाणा इकाई के अनुसंधान विंग के प्रमुख नीलेश बहानी, स्थिति के बारे में कार्यकर्ता के आकलन से सहमत थे.
उन्होंने कहा, “दलितों को वास्तव में डर है कि भाजपा के सत्ता में लौटने से संविधान खतरे में पड़ जाएगा. अब भी (हरियाणा में) दलितों को नौकरियां नहीं मिल रही हैं क्योंकि रिक्तियां ही नहीं हैं और अधिकांश (सरकारी) नियुक्तियां एचकेआरएन के माध्यम से होती थीं.”
लेकिन बीजेपी एससी मोर्चा के अध्यक्ष दानोदा की तरह, पार्टी के पूर्व राज्य प्रमुख और इसके वर्तमान राष्ट्रीय सचिव ओ.पी. धनखड़ इन आशंकाओं को खारिज करते हैं, उनका कहना है कि “साजिश भाजपा को बदनाम करने के लिए विपक्ष द्वारा रची जा रही हैं”.
हेगड़े और मिर्धा जैसे भाजपा नेताओं द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर धनखड़ ने कहा, “केवल उन लोगों के बयानों पर भरोसा किया जाना चाहिए जो भाजपा की ओर से बोलने के लिए अधिकृत हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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