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Wednesday, 26 June, 2024
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नायब सिंह सैनी सरकार को क्यों है विपक्ष की शक्ति परीक्षण की मांग के बावजूद सत्ता में बने रहने का भरोसा

पिछले महीने हरियाणा में सैनी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिससे 87-सदस्यीय विधानसभा में उसकी संख्या घटकर 43 रह गई.

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गुरुग्राम: हरियाणा में जब 7 मई को तीन निर्दलीय विधायकों ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से अपना समर्थन वापस लेकर कांग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा बढ़ाई, तो नायब सिंह सैनी सरकार संसदीय लोकतंत्र में शासन जारी रखने के लिए ज़रूरी बहुमत खो बैठी.

एक महीने से अधिक समय बीत चुका है और भाजपा सरकार अभी भी बहुमत से दूर है. हालांकि, विभिन्न परिस्थितियों के कारण सरकार का समर्थन करने वाले या विरोध करने वाले विधायकों की संख्या बदलती रही.

पिछले हफ्ते चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि नायब सिंह सैनी ने सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार खो दिया है और उनके इस्तीफे की मांग की. उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन की भी मांग की.

हालांकि, जब मीडियाकर्मियों ने गुरुवार को सैनी से इस मांग पर टिप्पणी करने के लिए कहा, तो सीएम ने हुड्डा का मज़ाक उड़ाया और कहा कि उन्हें पहले अपने विधायकों और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के विधायकों को एक साथ लाना चाहिए और फिर उनसे (सैनी) बहुमत साबित करने के लिए कहना चाहिए.

हरियाणा विधानसभा में कुल 90-विधायक हैं. हालांकि, हरियाणा में मतदान के दिन 25 मई को निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन के कारण गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर सीट खाली हो गई. इस बीच, रानिया (सिरसा) से निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उन्हें हिसार से भाजपा उम्मीदवार घोषित किया गया और मुल्लाना (अंबाला) से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी ने अंबाला संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया. इससे सदन की प्रभावी ताकत 87 हो जाती है.

सदन में भाजपा के 41 विधायक हैं. सत्तारूढ़ दल को सिरसा से हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा और पृथला से निर्दलीय विधायक नयन पाल रावत का समर्थन है.

इसके मुकाबले कांग्रेस के पास 29 विधायक, जेजेपी के पास 10 और इनेलो के पास 1 विधायक हैं. कांग्रेस को तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन है और महम विधायक बलराज कुंडू, हालांकि कांग्रेस का समर्थन नहीं कर रहे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा के विरोध में हैं. पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने पहले ही घोषणा कर दी है कि अगर कांग्रेस सदन में नायब सैनी की सरकार को हराकर सरकार बनाती है तो उनकी पार्टी कांग्रेस को समर्थन देगी.

तो फिर, 90-सदस्यीय सदन में 87 विधायकों की प्रभावी ताकत के बावजूद, उनकी सरकार के पास 43 विधायक होने के बावजूद, सीएम नायब सिंह सैनी हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले बचे तीन महीनों में सत्ता में बने रहने के लिए आश्वस्त क्यों हैं?

दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर हुड्डा ने कहा, “हमारी पार्टी ने पिछले महीने राज्यपाल को एक पत्र सौंपा था जिसमें राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने और नायब सैनी सरकार को सदन में अपना बहुमत साबित करने के लिए कहने की मांग की गई थी. हमारी पार्टी एक बार फिर राज्यपाल से अपनी मांग को लेकर मिलेगी.”

जेजेपी की पेशकश पर प्रतिक्रिया देते हुए हुड्डा ने कहा कि दुष्यंत चौटाला को समर्थन देने से पहले राज्यपाल के सामने अपने विधायकों की परेड करानी चाहिए.

यहीं पर पेच है.

व्यावहारिक रूप से दुष्यंत की जेजेपी के पास 10 विधायक हैं. हालांकि, उनके दो विधायकों — गुल्हा से ईश्वर सिंह और शाहबाद से राम करण काला — ने अपने बेटों को कांग्रेस में शामिल कर लिया, ताकि वे दलबदल विरोधी कानून के दायरे में आए बिना लोकसभा चुनाव में उस पार्टी का समर्थन कर सकें. टोहाना से एक अन्य विधायक देवेंद्र बबली ने सिरसा में कांग्रेस उम्मीदवार कुमारी शैलजा का खुलकर समर्थन किया और दो अन्य विधायकों, नरवाना से राम निवास सुरजाखेड़ा और बरवाला से जोगी राम सिहाग ने लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया.

सुरजाखेड़ा और सिहाग ने लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद भी सैनी से मुलाकात की और उनकी सरकार को अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया. भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि दोनों विधायक किसी भी अविश्वास प्रस्ताव में सरकार का समर्थन करेंगे और भाजपा के पक्ष में संख्याबल बढ़ाने के लिए अपनी सीटों से इस्तीफा देने में भी संकोच नहीं करेंगे. नारनौंद से जेजेपी के एक अन्य विधायक राम कुमार गौतम दुष्यंत चौटाला और उनके परिवार के कट्टर विरोधी हैं.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा कि दुष्यंत चौटाला के समर्थन को सरकार बनाने के लिए स्वीकार करना कोई विकल्प नहीं हो सकता था, भले ही उनके पास अपने समर्थक हों.

कांग्रेस नेता ने कहा, “दुष्यंत चौटाला की पार्टी ने किसानों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों से (2019 के विधानसभा चुनावों में) 10 सीटें जीतीं, जिसमें से उन्होंने भाजपा विरोधी भावनाओं का फायदा उठाया. हालांकि, नतीजों के तुरंत बाद, उन्होंने किसानों के भरोसे को तोड़ते हुए मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में शामिल हो गए. जब ​​दिल्ली की सीमाओं पर 700 से अधिक किसान सड़कों पर मर गए, तो चौटाला उनके समर्थन में नहीं आए. किसानों ने लोकसभा चुनाव में मात्र 0.87 प्रतिशत वोटों के साथ उनकी पार्टी को सबक सिखाया है. हमारी पार्टी किसी भी परिस्थिति में ऐसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं कर सकती है.”

हरियाणा सरकार के मीडिया सचिव प्रवीण अत्रेय ने कहा कि नायब सिंह सैनी सरकार को सदन में बहुमत प्राप्त है.

दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर अत्रेय ने कहा, “उन्हें अविश्वास प्रस्ताव लाने दें और हम सदन में बहुमत साबित करेंगे.”


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BJP-JJP के साथ गठबंधन खत्म करने के बाद सीटों में उतार-चढ़ाव

हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद सीटों का बंटवारा इस प्रकार था : बीजेपी 40, कांग्रेस 31, जेजेपी 10, इनेलो 1, एचएलपी 1 और निर्दलीय 7.

कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस और आदमपुर सीट से इस्तीफा दे दिया और 2022 में बीजेपी में शामिल हो गए. इस सीट पर उनके बेटे भव्य बिश्नोई ने बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की. इसके साथ ही बीजेपी की सीटें 41 हो गईं, जबकि कांग्रेस 30 पर सिमट गई और बाकी सीटें पहले जैसी ही रहीं.

12 मार्च तक सरकार को 41 बीजेपी विधायकों, 10 जेजेपी विधायकों, सात में से छह निर्दलीय (मेहम विधायक बलराज कुंडू अपवाद हैं) और एचएलपी विधायक गोपाल कांडा का समर्थन हासिल था.

12 मार्च को बीजेपी ने जेजेपी के साथ अपना गठबंधन खत्म कर दिया, जब सैनी खट्टर की जगह सीएम बने. 13 मार्च को सैनी द्वारा सदन में विश्वास प्रस्ताव जीतने के बाद खट्टर ने अपनी करनाल सीट से इस्तीफा दे दिया, जिससे भाजपा की प्रभावी ताकत 40 हो गई.

बाद में निर्दलीय विधायक रंजीत सिंह ने इस्तीफा दे दिया और उन्हें हिसार लोकसभा सीट के लिए भाजपा उम्मीदवार घोषित किया गया, जिससे सरकार को 88 के प्रभावी सदन में 46 सदस्यों का समर्थन प्राप्त हुआ.

हालांकि, 7 मई को तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद, नायब सिंह सैनी सरकार के पास 43 विधायकों का समर्थन रह गया — भाजपा के 40, निर्दलीय 2 और एचएलपी 1 — जिससे 88 के प्रभावी सदन में बहुमत के आंकड़े से दो कम रह गए.

मतदान के दिन नायब सैनी सरकार का समर्थन करने वाले दो निर्दलीय विधायकों में से एक, राकेश दौलताबाद की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई, जिससे सदन की प्रभावी ताकत 87 हो गई और सरकार का समर्थन करने वाले विधायकों की संख्या 42 हो गई.

हालांकि, जब 4 जून को लोकसभा के नतीजे आए, तो सैनी ने करनाल विधानसभा उपचुनाव जीता और भाजपा की ताकत बढ़कर 43 विधायकों की हो गई. प्रभावी सदन में अभी 88-विधायक हैं.

लेकिन इसी समय, मुल्लाना से कांग्रेस विधायक वरुण चौधरी ने अंबाला से संसदीय चुनाव जीता और उनके विधानसभा सीट खाली करने के साथ, नायब सैनी सरकार के पास 87 विधायकों की प्रभावी ताकत वाले सदन में 43 विधायक हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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