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Wednesday, 24 April, 2024
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प्रज्ञा ठाकुर, हेगड़े और रमेश बिधूड़ी -हिंदुत्व के फायरब्रांड नेताओं का आखिर क्यों टिकट काट रही बीजेपी

टिकट कटने वालों की सूची में शामिल होने वाला सबसे नया नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री और छह बार के सांसद अनंतकुमार हेगड़े का है. हालांकि, शोभा करंदलाजे और माधवी लता जैसे कुछ लोग चुनाव टिकट पाने में कामयाब रहे हैं.

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नई दिल्ली/बेंगलुरु: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जारी की गई 407 लोकसभा उम्मीदवारों की सूची में अब ‘फायरब्रांड’ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री व छह बार से सांसद अनंतकुमार हेगड़े का नाम गायब है.

अक्सर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाले अपने उग्र भाषणों के लिए जाने जाने वाले हेगड़े कर्नाटक में हिंदुत्व के शुरुआती पोस्टर बॉय में से एक थे. लेकिन राजनीति करने का उनका तरीका, जिससे उनकी बदनामी भी हुई और पहचान भी मिली और यहां तक कि जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में जगह भी दिलाई, वही उनके पतन का कारण भी बनी. इस बार उत्तर कन्नड़ लोकसभा सीट के लिए विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया है.

इस सूची में या इससे पहले जारी की गई अन्य सूची में मध्य प्रदेश से प्रज्ञा ठाकुर, दिल्ली से परवेश साहिब सिंह और रमेश बिधूड़ी, कर्नाटक से प्रताप सिम्हा और नलिन कुमार कतील शामिल हैं, जिन्होंने ध्रुवीकरण से संबंधित नैरेटिव को ज़ोर-शोर से हवा दी या विवादों को जन्म दिया.

भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इनका टिकट कटने का एक प्रमुख कारण यह है कि इनमें से कुछ ने अपने कुछ बयानों की वजह से खुद को और पार्टी को मुश्किल में डाल दिया था.

एक केंद्रीय भाजपा नेता ने कहा, “निश्चित रूप से पार्टी का फोकस पूरी तरह से जीत पर है, लेकिन हाईकमान ने यह भी सुनिश्चित किया कि जिन लोगों ने अपने भड़काऊ बयानों के कारण पार्टी को मुश्किल में डाला और अनावश्यक विवाद पैदा किया, उन्हें भी सूची से बाहर रखा गया. इसमें चाहे भोपाल से सांसद प्रज्ञा ठाकुर हों या फिर सार्वजनिक रूप से अथवा फिर संसद में भी अपनी विवादित टिप्पणियों को लेकर हमेशा सुर्खियों में रहने वाले रमेश बिधूड़ी. पार्टी ने उन सभी सांसदों को भी टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण उसे बैकफुट पर आना पड़ा.”

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‘मर्यादा की सीमा’

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले, प्रज्ञा ठाकुर ने अशोक चक्र विजेता और महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख हेमंत करकरे की तुलना रावण और कंस से की थी. उन्होंने कहा था कि 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान करकरे की मौत इसलिए हो गई थी क्योंकि 2008 के मालेगांव विस्फोट से संबंधित मामले में उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उन्होंने करकरे को ‘शाप’ दे दिया था.

चाहे वह अपने घरों पर हमला करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हिंदुओं से घर पर हथियार रखने की बात कहने वाला बयान हो या नाथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ कहने वाला बयान, प्रज्ञा ठाकुर कभी पीछे नहीं हटीं.

अब कांग्रेस में शामिल हो चुके और अमरोहा से तत्कालीन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद दानिश अली के खिलाफ लोकसभा में सांप्रदायिक टिप्पणी करने के लिए बिधूरी की आलोचना की गई थी.

बीजेपी के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, “कैबिनेट मीटिंग और संसदीय दल की बैठकों के दौरान या यहां तक कि भाजपा की आंतरिक बैठकों में भी, पीएम इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि फोकस उन पर नहीं बल्कि सरकार द्वारा किए जा रहे विकास के कार्यों और उसकी नीतियों पर होना चाहिए.

“चाहे वह प्रज्ञा ठाकुर हों, बिधूड़ी हों या वर्मा हों, तीनों ने न केवल बाहर बल्कि संसद के भीतर भी अनावश्यक विवाद पैदा कर दिया. इन बड़े नामों को हटाने की कार्रवाई यह दिखाने के लिए है कि हर किसी को कुछ नियमों का पालन करना होगा और ऐसे समय में जब पार्टी संयुक्त विपक्ष का सामना कर रही है, तो वह कोई जोखिम नहीं लेगी.

इस महीने की शुरुआत में हेगड़े ने कहा था कि बीजेपी को राज्यसभा में बहुमत हासिल करने और संविधान बदलने के लिए 400 सीटों की ज़रूरत है. भाजपा ने इस टिप्पणी से खुद को अलग करते हुए कहा कि यह पार्टी की नहीं बल्कि उनकी निजी राय है.

दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, हेगड़े ने कहा कि वह संविधान को बदलने की अपनी 2017 की टिप्पणी पर कायम हैं, उस मुद्दे पर अपना रुख नरम करने को तैयार नहीं हैं जिसके कारण उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ा.

राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि यह पीएम मोदी का एक तरीका है जिससे एक निश्चित स्तर की मर्यादा कायम रहे और ध्यान किसी शख्स पर नहीं बल्कि सरकार और पार्टी पर रहे.

गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद में राजनीतिक विश्लेषक और प्रोफेसर बद्री नारायण ने दिप्रिंट को बताया, “पीएम मोदी काफी समय से इस ओर इशारा कर रहे हैं और यहां तक कि अपनी कैबिनेट बैठकों और संसदीय दल की बैठकों में भी उन्होंने बीजेपी सांसदों से कहा है कि वे कोई भी विवादास्पद बयान न दें. उन्होंने उनसे पॉलिसी संबंधी मुद्दों और विकास के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा है. यह वास्तव में भाजपा के राजनीतिक डिजाइन का एक हिस्सा बन गया है. वास्तव में, प्रधानमंत्री सांसदों से भाजपा की राजनीति की बुनियादी आचार संहिता का पालन करने के लिए कह रहे हैं, जिसमें कोई भी भड़काऊ बयान नहीं देना है.”

“एक समय में निर्वाचित सांसदों ने यह सोचना शुरू कर दिया था कि वे कुछ भी कर सकते हैं और वे इससे बच जाएंगे क्योंकि वे चुनाव जीतने की स्थिति में हैं. ऐसे कई विवादास्पद सांसदों को टिकट देने से इनकार करके, प्रधानमंत्री ने विवादास्पद बयान देने वालों के प्रति जीरो टॉलरेन्स दिखाया है. एक तरह से, पीएम एक उदाहरण पेश कर रहे हैं और यह सुनिश्चित करेगा कि सांसद इसका पालन करें. किसी चीज का विरोध करना ठीक है, लेकिन इसे ‘मर्यादा’ के दायरे में रखना होगा. सांसद न केवल अपना बल्कि पार्टी और प्रधानमंत्री का भी प्रतिनिधित्व करते हैं.

एक तीसरे भाजपा नेता ने कहा कि कई मामलों में, मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों ने देश के बाहर संबंधों पर असर डाला. उदाहरण के लिए, भारत और यूएई ने बहुत करीबी साझेदारी विकसित की है. वास्तव में, भारत सभी खाड़ी देशों के साथ बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है. विवादित बयान इन रिश्तों को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे समय में जब पार्टी को सत्ता में लौटने का भरोसा है, वह यह बोझ नहीं उठाना चाहती और इसलिए इन नेताओं को हटा दिया गया.”


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‘फायरब्रांड नेता बीजेपी के लिए बेशकीमती नहीं’

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि तथाकथित फायरब्रांड नेताओं के एक वर्ग के प्रति उदासीनता महज एक संयोग है और यह भाजपा के भीतर उसकी ध्रुवीकरण रणनीति किए जा रहे किसी पुनर्विचार को नहीं दिखाता है.

उदाहरण के लिए, तेजस्वी सूर्या और शोभा करंदलाजे को बेंगलुरु से टिकट मिल गया है. एक प्रमुख हिंदुत्व चेहरा, माधवी लता हैदराबाद में बीजेपी की उम्मीदवार हैं जो कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी को टक्कर देंगी.

राजनीतिक विश्लेषक और बेंगलुरु के अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के संकाय ए.नारायण ने दिप्रिंट को बताया, “मुझे नहीं लगता कि उनमें से कुछ को हटाने के पार्टी के फैसले का उनके तेजतर्रार होने से कोई लेना-देना है. प्रत्येक मामले में, कारण अलग-अलग हैं.”

उन्होंने कहा कि बीजेपी के भीतर ‘एक दर्जन’ फायरब्रांड नेता हैं और जो नेता बड़े पैमाने पर कट्टर हिंदुत्व की छवि रखते हैं, वे “बेशकीमती नहीं हैं”.

हटाए गए अधिकांश नेता पहली बार सांसद नहीं बने हैं और विवादों में रहने के बावजूद पिछले चुनावों में टिकट हासिल कर चुके हैं.

नारायण ने जोर देकर कहा, “सिर्फ इसलिए कि भाजपा ने उनमें से कुछ को हटा दिया है इसका मतलब यह नहीं है कि वह इस तरह की राजनीति से दूर रहेगी. उनके पास कई लोग हैं जो इन स्थानों को भर सकते हैं.”

हालांकि, भाजपा नेताओं में से एक ने दावा किया कि सत्ता विरोधी लहर को ध्यान में रखते हुए टिकट देने से इंकार किया गया है, न कि नेताओं के बयानों के कारण, क्योंकि पार्टी ‘400 पार’ के लक्ष्य को पूरा करना चाहती है.

नेता ने जवाब दिया, “हर सीट मायने रखती है और सत्ता विरोधी लहर के कारण, यह महसूस किया गया कि कुछ मौजूदा सांसदों को बदला जाना चाहिए. इसका उनकी टिप्पणियों से कोई लेना-देना नहीं था. उदाहरण के लिए, विवाद के बाद रमेश बिधूड़ी को राजस्थान के एक जिले की चुनावी जिम्मेदारी दी गई थी. इसी तरह, प्रवेश वर्मा को राजस्थान चुनाव का सह-प्रभारी बनाया गया है, और बिधूड़ी को उत्तर प्रदेश का भी सह-प्रभारी बनाया गया है, जो पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य है.”

“हां, जहां तक प्रज्ञा ठाकुर की बात है तो उनके बारे में राज्य इकाई से ही शिकायतें मिली थीं.”

भाजपा का यह भी कहना है कि इनमें से कई नेताओं को वास्तव में पार्टी को मुश्किल में डालने के लिए “सज़ा” दी गई है.

भाजपा के राष्ट्रीय पार्टी प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने कहा, “कुछ दिशानिर्देश और मानदंड हैं जिनका पालन सभी को करना होगा चाहे आप सांसद हों, मंत्री हों या पार्टी पदाधिकारी हों. आपको पार्टी लाइन का पालन करना होगा और यदि आप इसका उल्लंघन करते हैं तो पार्टी उस पर कार्रवाई करती है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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