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Monday, 2 December, 2024
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के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और भाजपा के ‘दोस्ताना रिश्ते’ अब क्यों बिगड़ रहे हैं

तेलंगाना भाजपा के नेताओं का कहना है कि टीआरएस कृषि विधेयकों का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि बीजेपी राज्य में उसके प्रमुख विपक्षी के तौर पर उभर रही है.

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नई दिल्ली: ‘किसान विरोधी’ कृषि सुधार बिलों को लेकर तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) का विरोध और विपक्षी पार्टियों के द्वारा संसद सत्र के बहिष्कार से जुड़ने ने कई लोगों को आश्चर्यचकित किया लेकिन भाजपा को नहीं जो कि इसे सहयोगी के तौर पर देखती रही है.

राज्य सभा में टीआरएस के वरिष्ठ नेता के केशव राव ने दिप्रिंट को बताया कि ये माहौल बनाना कि उनकी पार्टी की भाजपा से अच्छी बनती है ये मीडिया द्वारा किया गया है. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कृषि विधेयकों का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि ये ‘किसान विरोधी, गरीब विरोधी और कार्पोरेट के हित में है’. हालांकि भाजपा दावा कर रही है कि दक्षिण भारत में उनकी पार्टी का बढ़ता कदम टीआरएस के इस फैसले का कारण है.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा तेलंगाना की 17 सीटों में से केवल चार ही जीत पाई थी लेकिन उसके वोट प्रतिशत में 2018 के विधानसभा में 7.5 प्रतिशत हिस्सेदारी की तुलना में 2019 में काफी वृद्धि हुई जो कि 19.45 प्रतिशत पहुंच गई थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में वो 119 सीटों में से केवल एक ही जीत पाई थी. वहीं लोकसभा में उसने नौ सीटें जीतीं जबकि एआईएमआईएम जो कि उसकी सहयोगी थी उसे एक सीट मिली. कांग्रेस के खाते में केवल तीन सीटें आईं.


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भाजपा का कहना है- वो ‘विकल्प’ के तौर पर उभर रही है

तेलंगाना भाजपा के नेताओं का कहना है कि टीआरएस कृषि विधेयकों का इसलिए विरोध कर रही है क्योंकि उसे लगता है कि बीजेपी राज्य में उसके प्रमुख विपक्षी के तौर पर उभर रही है.

तेलंगाना भाजपा के प्रवक्ता कृष्ण सागर राव ने कहा, ‘2019 के संसदीय चुनावों में राज्य में भाजपा के वोट प्रतिशत में वृद्धि हुई थी. कांग्रेस जो राज्य में प्रमुख विपक्षी है वो अब खत्म होती जा रही है. उसके पास अब सिर्फ 5 विधायक रह गए हैं जो कि पहले 20 थे. बाकी टीआरएस में शामिल हो चुके हैं.’

उन्होंने कहा, ‘टीआरएस जानती है कि राज्य में भाजपा उसकी प्रमुख विपक्षी के तौर पर उभर रही है और 2023 में टीआरएस और भाजपा के बीच में सीधा मुकाबला होने वाला है. इसलिए वो विरोध कर रही है और हम पर दोष मढ़ रही है.’

2014 के लोकसभा चुनाव में टीआरएस ने 11 सीटें जीती थी लेकिन 2019 में वो 9 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी. पार्टी का वोट शेयर 2014 के 47.47 प्रतिशत से कम होकर 2019 में 41.29 प्रतिशत पर पहुंच गया था.

लोकसभा चुनाव में न केवल टीआरएस को कम सीटें मिली बल्कि राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता भी अपनी सीट नहीं बचा पाईं. भाजपा के डी अरविंद ने कविता को निजामाबाद सीट पर करीब 71 हजार वोटों से हराया.

राज्य में टीआरएस द्वारा कोविड की स्थिति संभालने को लेकर भी भाजपा हमलावर है. केंद्र सरकार ने भी पिछले पांच महीनों में राज्य सरकार को कोरोना को लेकर सही तरह से काम न करने पर फटकार लगाई है.

पार्टी कार्यकर्ताओं को वर्चुअली संबोधित करते हुए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले महीने राज्य सरकार पर अनदेखी करने का आरोप लगाया था.

कृष्ण सागर राव के मुताबिक दिसंबर में होने वाले ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कार्पोरेशन (जीएसएमसी) के चुनाव को देखते हुए टीआरएस किसान बिलों का विरोध कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘जीएसएमसी का राज्य की 119 विधानसभा सीटों में से करीब 24-25 पर प्रभाव है और यहां अगर नतीजे विपरीत आएं तो इसका असर 2023 के विधानसभा चुनावों में पड़ सकता है.’

टीआरएस के कदम को अवसरवादी बताते हुए भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी ये सोच कर भाजपा को डराना चाहती है कि संसद में फ्लोर मैनेजमेंट में वो आगे से उसका साथ नहीं देगी.

उन्होंने कहा, ‘अभी तक टीआरएस एक सहयोगी की तरह बनी हुई थी लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति और कोविड के खराब प्रबंधन ने केसीआर को उजागर कर के रख दिया है. वो सिर्फ भाजपा को दोष दे रहे हैं.’

हैदराबाद स्थित राजनीतिक विशेषज्ञ गली नागराज ने कहा कि किसान बिल पर टीआरएस का विरोध मुख्यमंत्री केसीआर के राष्ट्रीय आकांक्षा को दिखाता है.

नागराज ने कहा, ‘मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल ने राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी शून्यता पैदा की है. कांग्रेस की नेतृत्वहीनता ने ये दिखाया है कि विपक्ष में भी कोई इस शून्यता को भरने वाला नहीं है. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर केसीआर खुद को एक बड़ी भूमिका में देख रहे हैं.’


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‘भाजपा के पक्ष में नहीं’

टीआरएस के केशव राव ने कहा कि उनकी पार्टी भाजपा या किसी और पार्टी का समर्थन नहीं करती है बल्कि उनका समर्थन मुद्दा आधारित रहा है.

उन्होंने कहा, ‘हम भाजपा के खिलाफ लड़ते आए हैं और आगे भी लड़ते आएंगे. हमारा समर्थन सिर्फ मुद्दे के आधार पर रहा है. अगर मुद्दा किसानों के विरोध में है, गरीबों के विरोध में है तो हम स्वाभाविक तौर पर उस पार्टी का समर्थन करेंगे जो इसका विरोध कर रही है.’

केशव राव ने कहा कि जिस तरह संसद में बिल पास हुआ वो सरासर गलत था. उन्होंने कहा, ’18 विपक्षी सांसद चाहते थे कि बिल को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाए. लेकिन इसकी अनुमति नहीं दी गई. विपक्ष मत विभाजन चाहता था लेकिन इसे भी मान्यता नहीं मिली. नियम ये कहता है कि अगर एक सदस्य भी मत विभाजन की मांग करे तो चेयर पर उपस्थित व्यक्ति को इसकी अनुमति देनी होती है.’

टीआरएस उन पार्टियों में से रही है जो केंद्र स्तर पर भाजपा का समर्थन करती आई है. पिछले साल अगस्त में वो उन पार्टियों में शामिल थी जिसने अनुच्छेद-370 को संविधान से हटाने के लिए जम्मू और कश्मीर री-आर्गेनाइजेशन बिल पर भाजपा का समर्थन किया था. हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में टीआरएस ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया था लेकिन साथ ही पीएम मोदी के नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों पर उसकी हामी थी. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव के दौरान भी टीआरएस ने भाजपा का समर्थन किया था.


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कांग्रेस ने कहा- किसान बिल पर टीआरएस का विरोध दिखावा है

टीआरएस द्वारा मानसून सत्र के बहिष्कार करने के बाद भी कांग्रेस का मानना है कि किसान बिलों पर उसका विरोध केवल दिखावा है.

तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष एन उत्तम रेड्डी ने दिप्रिंट को बताया, ‘कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर पिछले सात सालों में टीआरएस ने भाजपा का साथ दिया है. उनके साथ हमारा यही अनुभव रहा है. लेकिन मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ रखने के लिए इसने नाममात्र का विरोध भी किया है. टीआरएस ने नोटबंदी और अनुच्छेद-370 जैसे मुद्दों पर भाजपा का समर्थन किया है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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