चंडीगढ़: अकाल तख्त (अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में स्थित सिखों का सर्वोच्च धार्मिक निकाय) के ‘कार्यकारी समानांतर’ जत्थेदार ध्यान सिंह मंड ने इस रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को ‘तनखैया’ (गलत धार्मिक आचरण के लिए दोषी) घोषित कर दिया किया.
अमरिंदर को मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए बरगारी मोर्चा के प्रदर्शनकारियों को ‘झूठा आश्वासन’ दे कर उनका धरना खत्म करने के लिए राजी करने हेतु दोषी ठहराया गया है.
बरगारी मोर्चा, 2018 में जब अमरिंदर पंजाब के मुख्यमंत्री थे, कई सिख संगठनों द्वारा आयोजित 193 दिनों तक चलने वाला धरना-प्रदर्शन था. ‘इंसाफ मोर्चा’ के नाम से जाने जाने वाले इस धरने का आयोजन फरीदकोट जिले के बरगारी गांव में किया गया था. प्रदर्शनकारी 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के लिए जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे. ऐसी ही एक घटना बरगारी में भी हुई थी.
इस विरोध प्रद्रशन का नेतृत्व मंड ने किया था और दिसंबर 2018 में अमरिंदर द्वारा कार्रवाई के आश्वासन के बाद यह समाप्त हो गया था.
प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत में शामिल अन्य लोगों में उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा (तत्कालीन कैबिनेट मंत्री), कैबिनेट मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा और विधायक कुलबीर जीरा, कुशलदीप सिंह किक्की ढिल्लों और हरमिंदर सिंह गिल शामिल थे.
हालांकि, सिख धर्म के तहत तनखैया घोषित किया जाना एक ‘गंभीर मसला’ है, मगर विशेषज्ञों के अनुसार, अमरिंदर सिंह के मामले में, यह घोषणा एक ‘समानांतर’ जत्थेदार द्वारा की गई है – जिसका अर्थ है कि जत्थेदार के रूप में उनके अपने अधिकार ही विवादास्पद हैं.
गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के मद्देनजर नवंबर 2015 में अमृतसर में आयोजित सिखों की एक आम सभा – सरबत खालसा – के दौरान मंड को अकाल तख्त का जत्थेदार बनाया गया था.
वह सरबत खालसा कट्टरपंथी सिखों के नेतृत्व वाले एक कार्यक्रम में बदल गयी थी और इसके द्वारा पारित प्रस्तावों में अकाल तख्त के जत्थेदार के रूप में पूर्व सीएम बेअंत सिंह की हत्या के दोषी जगतार सिंह हवारा को पदस्थापित किया जाना भी शामिल थी. चूंकि हवारा फिलहाल जेल में है, इसलिए मंड को ‘कार्यकारी’ जत्थेदार घोषित किया गया. दो सिख उपदेशकों अमरीक सिंह अजनाला और बलजीत सिंह दादूवाल को भी क्रमशः तख्त केशगढ़ साहिब और तख्त दमदमा साहिब के जत्थेदार के रूप में नियुक्त किया गया था, लेकिन इसके बाद से उन्होंने अपने-अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है.
हवारा को इस सरबत खालसा द्वारा तत्कालीन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा नियुक्त अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह की जगह पर लाया गया था. ज्ञात हो कि अक्टूबर 2018 में, ज्ञानी गुरबचन सिंह द्वारा खराब सेहत का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा देने के बाद, एसजीपीसी ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह को कार्यवाहक जत्थेदार नियुक्त किया. चूंकि एसजीपीसी ही वह आधिकारिक निकाय है जिसे अकाल तख्त के लिए जत्थेदारों की नियुक्ति की जिम्मेदारी सौंपी गई है, अतः हवारा और मंड दोनों की नियुक्तियां विवादास्पद मानी जाती हैं, और मंड को ‘समानांतर’ जत्थेदार के रूप में देखा और माना जाता है.
जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के निजी सहायक जसपाल सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि समानांतर जत्थेदारों के पास अकाल तख्त के परिसर से किसी भी तरह की घोषणा करने की कोई मंजूरी अथवा अधिकार नहीं होता है. उन्होंने कहा, ‘वे अकाल तख्त के अंदर नहीं बल्कि बाहर अपनी बैठक करते हैं. वे किसी भी अन्य सिख की तरह ही अकाल तख्त पर अपना सिर झुका सकते हैं, लेकिन किसी अन्य गतिविधि के लिए इसका इस्तेमाल करने की उन्हें अनुमति नहीं है.’
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‘अमरिंदर सभाओं को संबोधित नहीं कर सकते’
सिख परंपराओं के अनुसार अकाल तख्त द्वारा ‘तनखैया’ घोषित किया गया कोई भी सिख अपने समुदाय के प्रति ‘पापी’ होता है और उसे अकाल तख्त द्वारा तय किए गए प्रायश्चित (तंखा) से गुजरना पड़ता है.
इस सजा को स्वीकार करने और इसका दंड भुगतने के लिए तन्खैया घोषित किये गए शख्श को खुद को अकाल तख्त के सामने पेश करना पड़ता है और माफी मांगनी पड़ती है. एक बार तन्खा (अकाल तख़्त द्वारा निर्धारित सजा) पूरी हो जाने पर तन्खैया को माफ कर दिया जाता है. यदि कोई तन्खैया यह सजा पूरी नहीं करता है तो उसे सिख समुदाय से बहिष्कृत करने की संभावना का सामना करना पड़ता है.
किसी सिख को तनखैया घोषित किए जाने से लेकर उसके द्वारा प्रायश्चित किए जाने तक उसे पापी ही माना जाता है.
मंड ने रविवार को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर से इस बारे में घोषणा करते हुए कहा था, ‘अमरिंदर सिंह ने बरगरी मोर्चा खत्म करने के लिए साजिश रची. उन्हें गुरुद्वारों में या अन्य किसी भी जगह किसी सभा को संबोधित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी. उन्हें सिखों द्वारा किसी भी तरह का सहयोग या पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए.’
मंड ने यह भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री को अपने आचरण के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए कई बार अकाल तख्त बुलाया गया था. उन्होंने कहा, ‘रविवार को, उन्हें एक आखिरी मौका दिया गया था, लेकिन उन्होंने खुद को अकाल तख्त के सामने पेश नहीं किया. अब उन्हें तनखैया घोषित करने का फैसला किया गया है.’
मंड ने यह भी कहा कि अकाल तख्त ने इस मामले में कैबिनेट मंत्री रंधावा और बाजवा तथा विधायकों, ढिल्लों, गिल और जीरा, को भी तलब किया था और उन्होंने गवाही दी है कि इस फैसले के लिए अमरिंदर पूरी तरह से जिम्मेदार थे.
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के तत्कालीन कैबिनेट सहयोगी, रंधावा और बाजवा कांग्रेस के उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने इस साल सितंबर में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने से पहले उनके खिलाफ पार्टी के अंदर विरोध का नेतृत्व किया था. उसके बाद से अमरिंदर ने पंजाब लोक कांग्रेस के नाम से अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी शुरू की है और राज्य में होने वाले आगामी 2022 के विधानसभा चुनावों में उनके द्वारा भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ चुनाव पूर्व सीटों का बंटवारा किये जाने की उम्मीद है.
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विशेषज्ञों की राय में इसका प्रभाव सीमित रहेगा
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि एक कार्यकारी ‘समानांतर जत्थेदार’ मंड द्वारा किये जाने की वजह से इस घोषणा का प्रभाव काफी सीमित होगा.
सिख फेडरेशन के अध्यक्ष और शुद्ध सिख परंपराओं के रक्षक माने जाने वाले सिख अध्ययन संस्था (सेमिनरी) दमदमी टकसाल के प्रवक्ता प्रोफेसर सरचंद सिंह ने कहा, ‘इस सवाल का जवाब देने के लिए कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री को तनखैया घोषित होने के बारे में चिंतित होने की आवश्यकता है और क्या इसका उनके प्रचार करने में सक्षम होने पर कोई प्रभाव पड़ेगा? हमें तनखैया की अवधारणा और ‘समानांतर जत्थेदार’ के विचार को समझने की जरूरत है.’
प्रोफेसर सरचंद सिंह ने कहा, ‘मोटे तौर पर परिभाषित किया जाये तो किसी भी सिख को जिसने रहत मर्यादा (सिख आचार संहिता) का उल्लंघन किया हो या कुछ भी ऐसा किया हो जो सिख धर्म के लिए हानिकारक है, तन्खैया घोषित किया जा सकता है. यह सदियों पुरानी परंपरा है. यह अवधारणा काफी व्यापक है और अकाल तख्त के जत्थेदार तथा अन्य चार सिंह साहिबान (सिखों के अन्य चार पवित्र तख्तों के जत्थेदार) की नजर में जो कुछ भी इस पाप के रूप में विचार किये जाने योग्य माना जाता, उसे समूचे सिख धर्म के प्रति किये गए एक पाप के रूप में स्वीकार किया जाता है.‘
इसकी सजा भी धार्मिक एवं विनम्र प्रकृति वाली होती है, जैसे स्वर्ण मंदिर के परिसर की सफाई, गुरुद्वारा में आने वाले लोगों के जूते पॉलिश करना लंगर में इस्तेमाल होने वाले बर्तन धोना या सामुदायिक रसोई के कार्यों में मदद करना.
प्रोफेसर सरचंद सिंह ने आगे कहा, ‘सिर्फ अकाल तख्त के जत्थेदार हीं चार सिंह साहिबान (अकाल तख्त, जो सिख धर्म में सत्ता का सर्वोच्च केंद्र माना जाता है के अलावा सिख धर्म के चार पवित्र तख्तों के जत्थेदार) के साथ मिलकर किसी व्यक्ति को सभी उचित प्रक्रियाओं का पालन करने के बाद तनखैया घोषित कर सकते हैं. तन्खैया घोषित किया जाना एक गंभीर मामला है क्योंकि तन्खा को नज़रअंदाज़ करने से व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार हो सकता है.’
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री के एक करीबी ने कहा कि वे उन्हें तनखैया घोषित किए जाने के बारे में कतई ‘चिंतित नहीं’ हैं, क्योंकि यह फरमान मंड द्वारा जारी किया गया है, जो अकाल तख्त के अधिकृत जत्थेदार नहीं हैं और इसलिए उनके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं हैं जिसके तहत वे अकाल तख्त की परंपराओं का लागू किये जाने का एलान कर सकें.
जत्थेदार के रूप में मंड के संदिग्ध अधिकार क्षेत्र को स्वीकार करते हुए प्रोफेसर सरचंद सिंह ने कहा,’ हां, यह सच है कि अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह हैं, जिन्हें शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा नियुक्त किया गया है. हालांकि ज्ञानी हरप्रीत सिंह भी एक कार्यकारी जत्थेदार हैं, न की पूर्ण रूप से शक्ति संपन्न जत्थेदार. उन्हें अपने अधिकार एसजीपीसी से प्राप्त हुए हैं जो सिख गुरुद्वारा अधिनियम 1925 के तहत बनाया गया था.’
वे कहते हैं, ‘ज्ञानी हरप्रीत सिंह कानूनी रूप से जत्थेदार हैं और मंड बिना किसी कानूनी अधिकार वाले जत्थेदार हैं. लेकिन कई सिख ऐसे हैं जो दोनों जत्थेदारों को स्वीकार करते हैं और उनका सम्मान करते हैं. इसके अलावा बेअदबी एक बहुत ही भावनात्मक मुद्दा है. अगर यह सामान्य समय होता तो इस एलान का ज्यादा कुछ मतलब नहीं होता. लेकिन चुनाव के समय समानांतर जत्थेदार द्वारा बेअदबी के मुद्दे पर तन्खैया घोषित किया जाना अमरिंदर के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.‘
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