चंडीगढ़: 1 जून को होने वाले पंजाब चुनाव से एक सप्ताह पहले शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने पार्टी के हितों के खिलाफ काम करने के आरोप में अपने बहनोई आदेश प्रताप सिंह कैरों को पार्टी से बाहर कर दिया है.
यह फैसला खडूर साहिब से एसएडी के उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा की शिकायत के बाद लिया गया, जिन्होंने आरोप लगाया था कि कैरों उनके कैंपेन को कमजोर कर रहे हैं और उनके खिलाफ काम कर रहे हैं. वल्टोहा, एक पूर्व मिलिटैंट हैं जो राजनीति में चले गए थे, और 2007 में वल्टोहा से व 2012 में परिसीमन के बाद खेमकरण से विधायक चुने गए थे.
65 वर्षीय कैरों की शादी बादल की बहन परनीत कौर से हुई है और वे पंजाब के एक सम्मानित पूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के पोते हैं. एक अनुभवी राजनेता, कैरों ने पट्टी से चार बार विधायक के रूप में कार्य किया है और प्रकाश सिंह बादल के शासनकाल में दो बार कैबिनेट मंत्री के पद पर रह चुके हैं.
खडूर साहिब सीट पर होने वाले कड़े चुनावी मुकाबले से पहले उन्हें हटाया गया है. इस सीट पर शिरोमणि अकाली दल के वल्टोहा, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मनजीत सिंह मन्ना, कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा, आम आदमी पार्टी (आप) के लालजीत सिंह भुल्लर और निर्दलीय सिख एक्सट्रीमिस्ट अमृतपाल सिंह के बीच पांच-तरफा मुकाबला है.
कैरों को हटाए जाने के कुछ घंटों बाद वल्टोहा ने फेसबुक पर एक वीडियो बयान जारी कर सुखबीर बादल के फैसले की तारीफ की. बयान में वल्टोहा ने कहा, “एक भाई के लिए अपनी इकलौती बहन के पति के खिलाफ इस तरह का फैसला लेना आसान नहीं है, लेकिन उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा था.”
उन्होंने कहा, “हम सभी जानते हैं कि कैरों साहब को पार्टी से क्यों हटाया गया है. सुखबीर जी ने उन्हें निर्वाचन क्षेत्र में मेरा विरोध करने से रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनके सभी प्रयासों के बावजूद जब कुछ नहीं बदला तो यह फैसला लेना पड़ा.” वल्टोहा ने आगे कहा कि पंजाब में घंटों यात्रा करने के बाद, “सुखबीर जी चंडीगढ़ जाकर बार-बार कैरों साहब से मिलते थे, लेकिन उन्होंने पार्टी के बेहतरी की अनदेखी की.”
पार्टी के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, कैरों अपने निर्वाचन क्षेत्र पट्टी में लोगों से खुलेआम वल्टोहा के अलावा किसी और को वोट देने के लिए कह रहे थे. उन्होंने कहा कि कैरों ने वल्टोहा की उम्मीदवारी पर जोरदार विरोध किया था और पार्टी हाईकमान को पंथिक अकाली नेताओं के दो नाम भी सुझाए थे, जिन्हें खारिज कर दिया गया था.
वल्टोहा बनाम कैरों
वल्टोहा और कैरों के बीच 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद से ही दुश्मनी चल रही है. पार्टी के सूत्रों ने कहा कि कैरों चाहते थे कि उनकी पत्नी परनीत कौर खेमकरण से उम्मीदवार बनें. चुनाव से लगभग एक साल पहले मार्च 2021 में कैरों ने खेमकरण में अकाली कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें शुरू की थीं. ऐसी कई बैठकों में उन्होंने यह भी घोषणा की कि उनके परिवार का एक सदस्य खेमकरण के लोगों की सेवा करेगा.
इसके जवाब में वल्टोहा ने कैरों और परनीत कौर के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू कर दिया और कहा कि दोनों का खेमकरण में चुनाव लड़ने का स्वागत है, लेकिन अकाली टिकट पर नहीं.
जबकि कैरों को पट्टी से टिकट दिया गया, लेकिन उनकी पत्नी को खेमकरण से टिकट न देकर वल्टोहा को दिया गया. हालांकि, कैरों और वल्टोहा दोनों ही अपनी विधानसभा सीटें AAP उम्मीदवारों के सामने हार गए.
पट्टी और खेमकरण दोनों ही खडूर साहिब संसदीय क्षेत्र का हिस्सा हैं.
कैरों के दादा प्रताप सिंह कैरों पंजाब के तीसरे मुख्यमंत्री थे और विभाजन के बाद पंजाब में एक प्रमुख व्यक्ति थे. शुरुआत में अकाली दल के नेता रहे प्रताप सिंह कैरों 1941 में कांग्रेस में शामिल हो गए और विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख शरणार्थियों के पुनर्वास में पुनर्वास मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1966 में हरियाणा के अलग होने से पहले वह आठ साल (1956-1964) तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे. उन्हें दोनों राज्यों में कई आधुनिक संस्थानों के निर्माण का श्रेय दिया जाता है. हालांकि, उनके परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और भले ही एक जांच में उन्हें बड़े आरोपों से बरी कर दिया गया, लेकिन उन्होंने 1964 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
उसके अगले साल हरियाणा में प्रताप सिंह कैरों की हत्या कर दी गई, जब वे दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे थे. हत्यारों, जो कथित तौर पर उनसे व्यक्तिगत दुश्मनी रखते थे, को 1969 में फांसी दे दी गई.
प्रताप सिंह कैरों के बेटे – सुरिंदर सिंह और गुरिंदर सिंह – उनके राजनीतिक पदचिन्हों पर चले. गुरिंदर कांग्रेस में रहे, जबकि विधायक और सांसद दोनों रहे सुरिंदर ने शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन किया और अपने बेटे आदेश प्रताप सिंह कैरों की शादी प्रकाश सिंह बादल की बेटी परनीत कौर से कर दी.
अमेरिका से एमबीए करने वाले इंजीनियर आदेश कैरों ने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया.
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