scorecardresearch
Monday, 3 November, 2025
होमराजनीतिलालू-तेजस्वी ने सीवान में डॉन शाहाबुद्दीन के ‘लंदन-रिटर्न’ बेटे पर क्यों लगाया दांव

लालू-तेजस्वी ने सीवान में डॉन शाहाबुद्दीन के ‘लंदन-रिटर्न’ बेटे पर क्यों लगाया दांव

चुनाव प्रचार में बीजेपी के बड़े नेता अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने आरजेडी के ‘जंगल राज’ का मुद्दा उठाया. शाहाबुद्दीन का बेटा उसामा परिवार की किस्मत तीसरी बार आज़माने मैदान में है.

Text Size:

सीवान (बिहार): सीवान की बरहरिया सरफरा रोड के चाय ठेलों पर आज भी मोहम्मद शाहाबुद्दीन का नाम चर्चा, यादें और बंटी हुई भावनाओं को जगा देता है.

सड़क पर लगे चुनावी पोस्टरों की तरफ देखते हुए स्थानीय शिक्षक आतिफ अनवर ने कहा, “शाहाबुद्दीन को लोग सिर्फ चुनाव के वक्त याद करते हैं.”

कभी बिहार की राजनीति में बेहद प्रभावशाली और विवादित रहे शाहाबुद्दीन का निधन 2021 में दिल्ली के एक अस्पताल में कोविड के दौरान हुआ था. अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने उनके बेटे उसामा शाहाब को रघुनाथपुर सीट से उम्मीदवार बनाया है — एक ऐसा इलाका जो इस परिवार के नाम से गहराई से जुड़ा हुआ है.

31-वर्षीय उसामा का मुकाबला जनता दल (यूनाइटेड) (जद(यू)) के विकास कुमार सिंह और जन सुराज पार्टी (जेएसपी) के राहुल कीर्ति से है. रघुनाथपुर सीट पर पहले चरण में 6 नवंबर को मतदान होगा. उसामा के लिए यह ‘घर की सीट’ है क्योंकि उनका पैतृक गांव प्रतापपुर इसी विधानसभा क्षेत्र में आता है. शाहाबुद्दीन परिवार का राजनीति में दोबारा आना आरजेडी खेमे में “घर वापसी” माना जा रहा है. शाहाबुद्दीन, आरजेडी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बेहद भरोसेमंद माने जाते थे.

सीवान में और पटना की राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा चल रही है, वह सिर्फ उसामा के वादों या आरजेडी-जद(यू) की संभावनाओं तक सीमित नहीं है — चार साल गुजर जाने के बाद भी शाहाबुद्दीन का असर और नाम अब भी गूंजता है.

सीवान में चुनाव प्रचार के दौरान RJD समर्थक ब्रेक लेते हुए | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
सीवान में चुनाव प्रचार के दौरान RJD समर्थक ब्रेक लेते हुए | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

आरजेडी ने इस चुनाव में एक बड़ा दांव खेला है — पार्टी ने शाहाबुद्दीन की पत्नी और बेटे दोनों को फिर से शामिल किया और अपने मौजूदा विधायक हरि शंकर यादव की जगह उसामा को टिकट दिया. 2020 के चुनाव में हरि शंकर यादव ने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की थी और जद(यू) उम्मीदवार को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया था. इसका एक बड़ा कारण था लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी), जिसने करीब 50,000 वोट खींच लिए थे, लेकिन इस बार एलजेपी और जद(यू) दोनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के साथ हैं. इसलिए एनडीए खेमे में आत्मविश्वास है और वह ‘जंगल राज’ का मुद्दा उठाकर आरजेडी पर निशाना साध रहा है.

बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पिछली बार एलजेपी की वजह से जद(यू) तीसरे नंबर पर चली गई थी, लेकिन अब हालात अलग हैं और हम जीत के प्रति आश्वस्त हैं.”

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, 2020 में इस क्षेत्र में 23% मुस्लिम, करीब 9.6% यादव और 11.5% अनुसूचित जाति मतदाता थे. एक विशेषज्ञ ने कहा, “यह समीकरण हर बार चुनाव को पेचीदा बना देता है और आरजेडी की उम्मीदवार चुने जाने की रणनीति इसी को दर्शाती है.”

इस हाई-प्रोफाइल सीट पर भाजपा ने पूरा जोर लगाया है — केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां जद(यू) उम्मीदवार विकास सिंह के लिए प्रचार किया. वहीं, आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मतदाताओं से उसामा के पक्ष में मतदान की अपील की.

दो पहलू

1990 में जीरादेई से निर्दलीय विधायक चुने जाने के साथ ही शाहाबुद्दीन ने अपने इलाके से ही राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. बाद में लालू प्रसाद यादव ने उन्हें पुराने जनता दल में शामिल किया. इसके बाद उन्होंने 1995 में विधानसभा और 1996 में लोकसभा चुनाव दोनों में जीत हासिल की.

जब 1997 में सीबीआई की कार्रवाई के बाद लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) बनाई, तो शाहाबुद्दीन पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे.

लंबे समय तक शाहाबुद्दीन और सीवान का नाम एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे. 1990 के दशक में अपने समर्थकों के बीच वे ‘साहेब’ कहलाते थे. अपराध की दुनिया में उनका नाम काफी पहले जुड़ गया था — एक समय बिहार में उनके खिलाफ कम से कम 45 मामले दर्ज थे, जिनमें किडनैपिंग, हत्या और रंगदारी जैसे आरोप शामिल थे.

स्थानीय निवासी सुरेंद्र यादव ने कहा, “आजकल डॉक्टर लोग कैसे लूटते हैं पता है? उनके समय में 100 रुपए से ज़्यादा फीस कोई नहीं लेता था…सिस्टम बनाए थे वो. गरीबों के मसीहा थे वो. ये गैंगस्टर वाली बात बाद की है और अगर कुछ किया तो जेल गए ना. अब उनके बेटे को उस बात पर क्यों निशाना बनाना?”

लेकिन सीवान के सभी लोग इस तर्क से सहमत नहीं हैं. व्यापारी नसरे आलम ने कहा, “शाहाबुद्दीन से ही सीवान को नहीं जाना जाता.”

उन्होंने कहा, “राजेंद्र प्रसाद भी सीवान के थे. बहुत से स्वतंत्रता सेनानी यहीं से थे. सीवान की धरती ने अच्छे-अच्छे लोग दिए हैं. इसे सिर्फ शाहाबुद्दीन के नाम से नहीं जाना जाता. वो बीते कल की बात है. अब तो वो दुनिया में नहीं रहे, बात वहीं खत्म हो गई.”

राजेंद्र प्रसाद, जो भारत के पहले राष्ट्रपति थे, सीवान के जीरादेई गांव में पैदा हुए थे.

हालांकि, ऐसे लोग भी हैं जो शाहाबुद्दीन के कार्यकाल में अच्छाई देखते हैं और उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. आतिफ अनवर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “लोग सिर्फ उनकी नकारात्मक छवि याद रखते हैं.”

उन्होंने कहा, “उनकी जो छवि पेश की गई, वो जनता की नज़रों में नकारात्मक लगती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर जब वो सीवान के सांसद थे, तब यहां मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज की सीमाएं तय हुईं और शिक्षा व्यवस्था बेहतर हुई.”

अनवर ने कहा, “पर कोई इन बातों पर चर्चा नहीं करता. सब सिर्फ यही कहते हैं कि शाहाबुद्दीन ने ये किया, वो किया.” वो बाहुबली नेताओं जैसे अनंत सिंह और आनंद मोहन (जिनके बेटे चेतन आनंद इस बार जद(यू) के उम्मीदवार हैं) का भी ज़िक्र कर रहे थे.

अनवर कहते हैं कि वह उसामा शाहाब को एक अलग और नए नज़रिए से देख रहे हैं. उनके मुताबिक, “उसामा युवाओं के लिए नई उम्मीद हैं.” उन्होंने कहा, “लंदन से लॉ किया है. युवाओं के लिए एक उम्मीद है.”

दिप्रिंट ने जब उसामा से उनके चुनावी दृष्टिकोण पर बात करने की कोशिश की, तो इस पहली बार चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार ने सिर्फ इतना कहा, “मैं इंटरव्यू नहीं देता.”

फोटो: बिहार के सीवान में शाहाबुद्दीन परिवार का घर | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
फोटो: बिहार के सीवान में शाहाबुद्दीन परिवार का घर | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

शांति नगर में जब दिप्रिंट उसामा के घर का पता पूछने पहुंचा, तो ज़्यादातर लोगों को समझ नहीं आया—जब तक “शाहाबुद्दीन के बेटे” का नाम नहीं लिया गया. फल बेचने वाले एक बुजुर्ग मुस्कुराते हुए बोले, “ऐसा कहिए ना शाहाबुद्दीन का घर…बस थोड़ी दूर पर ही है, दूर से दिख जाएगा.”

उनके शब्द सही साबित होते हैं—इस विधानसभा क्षेत्र में जहां-जहां जाएं, उसामा की पहचान उनके पिता शाहाबुद्दीन की विरासत से गहराई से जुड़ी हुई दिखती है.

आनंद मोहल्ले की एक पान की दुकान के पास खड़े एक बेरोज़गार संजय ने कहा, “मैंने तो सिर्फ शाहाबुद्दीन का नाम सुना है. उनकी पत्नी को जानते हैं, बेटे को नहीं. जब वो थे तो लोग कहते हैं कि बाज़ार में सब अच्छा चल रहा था.”

पंडित शिवकुमार पाठक ने कहा कि उन्हें शाहाबुद्दीन के दिन याद हैं, लेकिन अब वह दौर बीत चुका है—अब ध्यान सिर्फ विकास पर है.

एक स्टूडेंट दानीश रज़ा ने कहा कि ज़मीनी हकीकत उसामा के बारे में फैली अफवाहों से अलग है. उन्होंने कहा, “हमारे पास एक युवा उम्मीदवार है जो अपनी किस्मत आज़मा रहा है, हमें उसी के आधार पर उसे आंकना चाहिए. अगर छवि की बात करें तो कई नेता हैं जिन पर कई केस हैं, फिर भी वे चुनाव लड़ते हैं.”

कुछ लोगों के लिए, शाहाबुद्दीन की याद पुरानी बेचैनी भी लेकर आती है. पंडित संतोष कुमार तिवारी का कहना है कि शाहाबुद्दीन की याद में चुनाव लड़ना गलत संदेश देता है.

उन्होंने कहा, “हम उस समय को याद करते हैं—पूरा जंगल राज था. वो वापस नहीं आना चाहिए. विकास होना चाहिए और किसी को जीने में तकलीफ नहीं होनी चाहिए. नीतीश कुमार ने विकास किया है.”

इसी बात को दोहराते हुए एक अन्य स्थानीय निवासी शिवकुमार पाठक ने कहा, “हमको सिर्फ शांति और विकास चाहिए, जो विकास करेगा, हम उसी को वोट देंगे.”

पान की दुकान चलाने वाले संजय कुमार भी तिवारी से सहमत हैं, हालांकि, वो बेरोजगारी को क्षेत्र का बड़ा मुद्दा बताते हैं. उन्होंने कहा, “सरकार ने काम तो किया है, लेकिन उस रफ्तार से नहीं किया है.”

एक अन्य बेरोज़गार युवक श्याम प्रसाद ने कहा कि उसामा की अपनी अलग पहचान है. “बेटे की अपनी छवि है, अपने क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे हैं, उनका अपना मुद्दा है. सबको चुनाव लड़ने का अधिकार है.”

आरजेडी भी शाहाबुद्दीन की छवि और प्रभाव को भुला नहीं सकी. इसी कारण, लोकसभा चुनाव में करारी हार के कुछ महीनों बाद, अक्टूबर पिछले साल पार्टी ने शाहाबुद्दीन की पत्नी हिना शाहाब और बेटे उसामा दोनों को फिर से पार्टी में शामिल कर लिया.

2024 के लोकसभा चुनाव में हिना शाहाब ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जद(यू) की विजयलक्ष्मी देवी (जो एक और बाहुबली नेता रमेश सिंह कुशवाहा की पत्नी हैं) और आरजेडी के अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ मैदान में उतरकर मुकाबला किया.

हालांकि, हिना शाहाब जीत नहीं सकीं, लेकिन उन्होंने करीब तीन लाख वोट हासिल कर लिए — जिससे आरजेडी का परंपरागत वोट बैंक बंट गया और चौधरी तीसरे स्थान पर पहुंच गए.

हिना शाहाब का कहना है कि उनका फोकस साफ है — शिक्षा और रोजगार के अवसरों पर. उन्होंने कहा, “हमारा मकसद साफ है — मौजूदा सरकार युवाओं की चिंताओं पर बात नहीं करती, न ही रोजगार के अवसरों पर चर्चा होती है. हम ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं.”

आरजेडी ने भले ही शाहाबुद्दीन परिवार की वापसी का यह कारण सार्वजनिक रूप से नहीं बताया हो, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को संदेश साफ दिखता है.

आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी इसे शाहाबुद्दीन परिवार की ‘राजनीतिक घर वापसी’ बताते हैं. अब जब उसामा चुनाव प्रचार में एक जगह से दूसरी जगह जा रहे हैं, तो उनके साथ अक्सर आरजेडी के मौजूदा विधायक हरिशंकर यादव रहते हैं.

तिवारी और यादव दोनों मानते हैं कि उसामा को टिकट उनके जीतने की क्षमता और जनता में शाहाबुद्दीन के प्रति भावनात्मक जुड़ाव की वजह से मिला है.

हरिशंकर यादव ने कहा, “तेजस्वी जी ने मुझसे पूछा था कि मैं फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी में हूं या नहीं, लेकिन मैंने खुद कहा कि जनता की ज़ोरदार मांग है कि इस बार उसामा को आरजेडी का सिंबल दिया जाए. मुझे पूरा भरोसा है कि उसामा बड़ी जीत हासिल करेंगे और अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाएंगे.”

शाहाबुद्दीन की यादें और उनका इतिहास, एनडीए के लिए आरजेडी पर निशाना साधने का बड़ा हथियार बन गए हैं. पिछले हफ्ते सारण ज़िले की एक रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “उसामा को नहीं जीतने देंगे, शाहाबुद्दीन की विचारधारा को नहीं जीतने देंगे.”

योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी रैली में आरजेडी पर उसामा को मैदान में उतारने को लेकर हमला बोला.

भाजपा का चुनावी नैरेटिव इस बार ‘विकास बनाम जंगल राज’ पर टिका है. सीवान में योगी की रैली से पहले ही मंच के पास कई बुलडोज़र खड़े कर दिए गए थे, जो उनके ‘माफिया विरोधी’ रुख का प्रतीक माने गए.

आरजेडी ऑफिस की दीवारें चुनावी पोस्टरों से पटी हुई हैं | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
आरजेडी ऑफिस की दीवारें चुनावी पोस्टरों से पटी हुई हैं | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

आरजेडी इस बार खासतौर पर युवाओं और उनके लिए शिक्षा व रोजगार के अवसरों की कमी पर ध्यान दे रही है.

आरजेडी के जिला अध्यक्ष अदनान अहमद सिद्दीकी ने कहा, “ओसामा साहब यूके से पढ़ाई करके आए हैं, युवाओं की आकांक्षाओं को समझते हैं. जो भी विकास सीवान में हुआ, वह 20 साल पहले हुआ था. पिछले 20 सालों से भाजपा यहां जीतती आ रही है और जानबूझकर विकास नहीं किया गया. मौजूदा आरजेडी विधायक ने अपनी पूरी कोशिश की, लेकिन जब सत्ता में नहीं होते तो फंड्स की कमी रहती है और काम मुश्किल हो जाता है.”

हालांकि, चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ओसामा के हलफनामे में कानून (लॉ) की डिग्री का कोई ज़िक्र नहीं है. उसमें बस यह दिखता है कि उनकी पत्नी एमबीबीएस कर चुकी हैं.

जब शहाबुद्दीन के अतीत के बारे में पूछा गया तो सिद्दीकी ने कहा कि ओसामा को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा, “ओसामा पर कोई आरोप है क्या? मोका में एनडीए उम्मीदवार पर तो मर्डर चार्ज है.”

महागठबंधन के सहयोगी दल सीपीआई(एमएल) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ओसामा की उम्मीदवारी का समर्थन किया है. हालांकि, उन्होंने साफ किया कि ओसामा और उनके पिता शहाबुद्दीन को एक साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि ओसामा की उम्मीदवारी को शहाबुद्दीन के साथ जोड़ा जाना चाहिए. शहाबुद्दीन का तो अपना आपराधिक रिकॉर्ड था. चंद्रशेखर की हत्या के बाद हमने उनके खिलाफ लड़ाई लड़ी. वह जेल गए. अब वे इस दुनिया में नहीं हैं. चंद्रशेखर और बिहार में आतंक के सभी पीड़ितों को आखिरकार न्याय मिला.”

सीपीआई(एमएल) के कार्यकर्ता और पूर्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष चंद्रशेखर की 1997 में सीवान में हत्या कर दी गई थी. उस समय वाम दलों ने शहाबुद्दीन पर हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था. हालांकि, चार्जशीट में उनका नाम नहीं था. 2012 में चार लोगों को इस हत्याकांड में दोषी ठहराया गया.

दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “यह एक नया व्यक्ति है, ओसामा. मुझे नहीं लगता कि सभी को एक ही श्रेणी में रखना ठीक है. ओसामा का मूल्यांकन उनके अपने काम से होगा.”

लेकिन इतिहास शाहाबुद्दीन परिवार के लिए अशुभ संकेत देता है. 2007 में सीपीआई(एमएल) कार्यकर्ता छोटे लाल गुप्ता के अपहरण और हत्या के मामले में उम्रकैद की सज़ा मिलने के बाद शहाबुद्दीन चुनाव लड़ने के अयोग्य हो गए थे. इसके बाद उन्होंने राजनीति में बने रहने के लिए अपनी पत्नी को मैदान में उतारने का आजमाया हुआ तरीका अपनाया.

शहाबुद्दीन ने 2009 और 2014 में अपनी पत्नी हिना को सीवान से लोकसभा चुनाव में उतारा, लेकिन दोनों बार हार का सामना करना पड़ा. 2009 में हिना को एक निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव ने हराया. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन और उनके लोग अपने चरम दौर में कभी यादव पर हमला कर चुके थे. यादव ने 2014 में एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हिना को दोबारा हराकर शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत को और कमजोर कर दिया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘बिहार में महागठबंधन की जीत मोदी के अंत की शुरुआत होगी’—भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य


 

share & View comments