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Wednesday, 4 December, 2024
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रामपुर में अखिलेश ने आज़म खान को क्यों ललकारा, जामा मस्जिद के इमाम को टिकट देने की क्या है रणनीति

जब से मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी ने आज़म खान के गढ़ रामपुर से अपना नामांकन दाखिल किया है, सपा के कद्दावर नेता के समर्थकों ने पार्टी पर इस सीट पर ‘एक बाहरी व्यक्ति’ को उतारने का आरोप लगाया है.

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रामपुर/नई दिल्ली: 26 मार्च की शाम को पुराने संसद भवन के सामने मुगलकालीन जामा मस्जिद के प्रमुख मौलवी मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को अचानक एक फोन आया. यह समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव थे, जिन्होंने उन्हें उत्तर प्रदेश के रामपुर जाने और अगले दिन समय सीमा से पहले लोकसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल करने के लिए कहा.

नदवी ने दिप्रिंट को बताया, “अखिलेशजी ने मुझसे कहा कि हमें रामपुर के लिए एक नए चेहरे की ज़रूरत है और हमें (आपमें) एक नया चेहरा मिल गया है. सपा को साफ छवि वाले किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो सभी से जुड़ सके.”

तब तक लगभग अनजान नदवी को राजनीतिक परिदृश्य में शामिल कर लिया गया. इस बात ने कई लोगों को हैरान कर दिया. वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ, रामपुर को सपा के कद्दावर नेता आज़म खान का गढ़ माना जाता है — पार्टी के सबसे प्रमुख मुस्लिम चेहरे, जिन्होंने 10 बार ये विधानसभा सीट जीती है.

Madvi meets SP chief Akhilesh Yadav in Lucknow. Also pictured is late MP Shafiqur Rahman Barq | Credit: Mohibbullah Nadvi's Facebook page
नदवी ने लखनऊ में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात की. तस्वीर में दिवंगत सांसद शफीकुर रहमान बर्क भी हैं | क्रेडिट: Mohibbullah Nadvi’s Facebook page

सपा प्रमुख के फैसले ने पार्टी के भीतर संकट पैदा कर दिया है, खान के समर्थक ने पार्टी पर सीट पर “बाहरी व्यक्ति” को लाने का आरोप लगाया और गुरुवार को घोषणा की कि वे नदवी के चुनाव अभियान का बहिष्कार करेंगे.

लेकिन मूल रूप से रामपुर के रहने वाले नदवी के लिए मामला सुलझ गया है. नदवी, जो अब दिल्ली वापस आ गए हैं, ने दिप्रिंट को बताया, “पार्टी के आलाकमान ने मुझे टिकट दिया है.”


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राजनीति में कदम

1 जनवरी, 1976 को रामपुर के रज़ा नगर गांव में जन्मे नदवी के पास जामिया मिलिया इस्लामिया से इस्लामिक स्टडीज में डिग्री और हरियाणा के फरीदाबाद में अल-फलाह विश्वविद्यालय से बी.एड की डिग्री है. 2005 में दिल्ली वक्फ बोर्ड ने उन्हें जामा मस्जिद का इमाम नियुक्त किया, जिसे संसद मस्जिद भी कहा जाता है.

A political greenhorn, Maulana Nadvi faces the considerable challenge of gaining the trust of the people in Rampur in a short time | Heena Fatima | ThePrint
राजनीतिक रूप से धुरंधर मौलाना नदवी को कम समय में रामपुर में लोगों का विश्वास हासिल करने की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

हालांकि, राजनीतिक रूप से मशहूर नदवी नेताओं के लिए अजनबी नहीं हैं. उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और भाजपा के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन से लेकर संभल के दिवंगत सांसद शफीकुर रहमान बर्क तक कई लोगों को दुआ में शामिल किया है.

दरअसल, यह पिछले साल अगस्त में सपा के बर्क के साथ उनकी व्यापक चर्चाओं में से एक थी जिसके कारण उन्हें राजनीतिक सफलता मिली. भारत के अल्पसंख्यकों की स्थिति, फिलिस्तीन और इज़रायल के बीच संघर्ष और भारत में मस्जिदों पर हिंदू संगठनों के आक्रामक रुख पर नदवी के विचारों ने बर्क को यह सुझाव देने के लिए प्रेरित किया कि वे लोकसभा चुनाव लड़ें.

नदवी ने कहा, “वह (बर्क) चाहते थे कि मैं शांति का संदेश संसद में ले जाऊं, लेकिन मैंने उनसे कहा कि मैं राजनीति में नहीं आना चाहता. फिर भी, उन्होंने लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात कराने का वादा किया.”

हालांकि, कुछ दिनों बाद घटी एक घटना ने उनका मन बदल दिया. केंद्र सरकार ने दिल्ली में 123 वक्फ संपत्तियों को दोबारा हासिल करने के लिए नोटिस जारी किया है. इनमें उनकी जामा मस्जिद भी शामिल थी.

इस जनवरी में नदवी ने लखनऊ में यादव से मुलाकात की थी. उनके साथ बर्क भी शामिल हुए, जिन्होंने सपा प्रमुख को नदवी को लोकसभा चुनाव में मौका देने के लिए प्रोत्साहित किया.

तीन और बैठकों के बाद अखिलेश सहमत हुए, लेकिन तब तक बर्क का निधन हो चुका था.

SP candidate Mohibullah Nadvi is seen campaigning in Rampur. The cleric from Delhi's Parliament mosque is fighting the Lok Sabha polls from Rampur — the bastion of party leader Azam Khan | Heena Fatima | ThePrint
सपा प्रत्याशी मोहिबुल्लाह नदवी रामपुर में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. दिल्ली की संसद मस्जिद के मौलवी पार्टी नेता आज़म खान के गढ़ रामपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

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गैर-राजनीतिक चेहरा और आज़म खान फैक्टर

रामपुर, जहां 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान होना है, न सिर्फ सपा बल्कि बीजेपी के लिए भी महत्वपूर्ण सीट है.

2011 की जनगणना के अनुसार, संसदीय क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या 50.57 प्रतिशत है जबकि बाकी हिंदू हैं.

पिछले चार दशकों से आज़म खान ने इस क्षेत्र पर मजबूत पकड़ बनाई है — क्षेत्र से 10 बार विधायक होने के अलावा, वे 2019 में संसदीय सीट से चुने गए थे, लेकिन 2022 में इस्तीफा दे दिया, जब उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया.

Maulana Nadvi leads funeral prayers at a cemetery near Rampur's Humsafar Resort | Heena Fatima | ThePrint
मौलाना नदवी ने रामपुर के हमसफर रिजॉर्ट के पास एक कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार की नमाज अदा की | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

खान के इस्तीफे के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी के घनश्याम सिंह लोधी ने आज़म खान समर्थित सपा उम्मीदवार मोहम्मद आसिम राजा को 42,192 वोटों के अंतर से हराया.

हालांकि, सबसे बड़ा झटका उस साल के अंत में हुए विधानसभा उपचुनावों में लगा. नफरत फैलाने वाले भाषण मामले में तीन साल की जेल की सज़ा के बाद खान की अयोग्यता के कारण हुए उस चुनाव में भाजपा के आकाश सक्सेना ने राजा को 33,000 से अधिक वोटों से हराया था.

लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत के बावजूद, खान का क्षेत्र पर काफी प्रभाव है और नदवी के लिए जिनके आचरण, भाषण और व्यवहार उनकी गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि को दर्शाते हैं, इस पकड़ को तोड़ना एक चुनौती होगी.

ऐसा लगता है कि सपा को इस मुश्किल स्थिति का अंदाज़ा था. नदवी के अनुसार, यादव ने सुझाव दिया कि वे खान से सीतापुर जेल में मिलें, जहां वे वर्तमान में बंद हैं. इस बीच, पार्टी के महासचिव शिवपाल सिंह यादव भी रामपुर के कद्दावर नेता को खुश करने की कोशिश में जुटे हैं, जिन्होंने एक बार फिर इस सीट के लिए राजा को खड़ा किया था.

हालांकि, कोई भी नेता नरम रुख अपनाने के मूड में नहीं दिख रहा है, जबकि खान के समर्थकों ने पहले ही मौलवी के लिए प्रचार करने से इनकार कर दिया है, नदवी ने कहा कि वे पूर्व सांसद से मिलने के लिए जेल नहीं जाएंगे, बल्कि गतिरोध से निपटने के उन्हें यादव पर भरोसा है.

उन्होंने कहा, “मैं कभी जेल नहीं गया. मैंने उनसे इस मामले को संभालने के लिए कहा और वे इस पर काम कर रहे हैं.”

हालांकि, नदवी के समर्थकों के अनुसार, रामपुर और सपा दोनों ने खान के कारण अपनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है. करीबी सहयोगियों का दावा है कि क्षेत्र में रामपुर के ताकतवर नेता के खिलाफ काफी असंतोष था.

एक सहयोगी ने कहा, “यादव ने इस नुकसान को नियंत्रित करने के लिए नदवी को लाया.”

इस्लाम, धर्म और राजनीति

नदवी के मुताबिक, धर्म और राजनीति को हमेशा साथ-साथ चलना चाहिए. उन्होंने कहा, “उन्हें अलग करने का मतलब राजनीति की मौत है.”

धर्म पर अपने मजबूत विचारों के बावजूद वे राष्ट्रवाद और सांप्रदायिकता के सवालों पर सावधानी से आगे बढ़ते हैं और कहते हैं कि हर कोई “संविधान में मिले अधिकारों का हकदार है”.

लेकिन उन्होंने बीजेपी सरकार पर बिना विचार-विमर्श के नागरिकता संशोधन कानून लाने का भी आरोप लगाया. नदवी ने कहा कि नागरिकता के सवाल में धर्म को कभी नहीं लाना चाहिए.

नदवी ने भाजपा पर सीएए के कारण पैदा हुए “भ्रम” का इस्तेमाल जनता को “वास्तविक मुद्दों” से भटकाने के लिए करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “भाजपा ने इस कानून को राजनीतिक बना दिया है. उन्हें इसमें धर्म नहीं लाना चाहिए था. नागरिकता मानवीय और हाशिए के आधार पर दी जानी चाहिए.”

भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “उत्पीड़न करने वालों को माफ कर दो. जो बुरा करते हैं उनके साथ अच्छा करो. उन लोगों को दयालुता से जवाब दें जो आपको नुकसान पहुंचाते हैं. ये वो चीज़ें हैं जो एक अच्छा माहौल बना सकती हैं.”

‘बाहरी’ नदवी

नदवी तुर्क जाति से हैं — एक ऐसा समूह जिसे मुसलमानों में ऊंची जाति माना जाता है. रामपुर के 1.5 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाताओं में से लगभग 60 प्रतिशत ऊंची जाति के हैं.

रामपुर में नदवी का मुकाबला बीजेपी के मौजूदा सांसद लोधी और बीएसपी के जीशान खान से है. हालांकि, कुछ मुस्लिम निवासी अब चिंतित हैं कि दो मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में होने से वोट आपस में बंट जाएंगे, जिससे भाजपा को मदद मिलेगी.

Rampur's BSP candidate Zeeshan Khan (wearing a blue scarf) poses for a photo. Rampur's Muslim residents fear a division of votes between him and Nadvi | Heena Fatima | ThePrint
रामपुर से बसपा प्रत्याशी जीशान खान (नीला दुपट्टा पहने हुए) फोटो खिंचवाते हुए. रामपुर के मुस्लिम निवासियों को उनके और नदवी के बीच वोटों के बंटवारे का डर है | फोटो: हिना फ़ातिमा/दिप्रिंट

सूरजपुर से पांच बार पूर्व ग्राम प्रधान फिरासत अली ने दिप्रिंट को बताया, “हम बीजेपी को बिल्कुल नहीं चाहते.”

साथ ही, नदवी के “बाहरी” और पैराशूट उम्मीदवार होने की धारणा को 19 अप्रैल के चुनाव से पहले दूर करना होगा. हालांकि, नदवी उस बाधा को पार करने को लेकर आश्वस्त हैं.

उन्होंने कहा, “मेरा जन्म और पालन-पोषण यहीं इसी धरती पर हुआ. यह मेरा घर है. दुख होता है जब वे आपको बाहरी कहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे, वे मुझे जानने लगे हैं और मुझे अपना मानने लगे हैं.”

उन्होंने कहा, उनकी उम्मीदवारी “लोकतंत्र की ताकत” का प्रतीक है. मैं बदलाव लाना चाहता हूं. तभी मैं खुद को सफल मानूंगा. सभी धार्मिक लोग (रामपुर में) एक ऐसे व्यक्ति की प्रतीक्षा कर रहे थे जो उनसे जुड़ सके.” नदवी ने निष्कर्ष निकाला, “सर्वशक्तिमान ने मुझे भेजा है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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