नई दिल्ली: कांग्रेस ने बुधवार को कहा कि वह चुनाव पूर्व गठबंधन के बावजूद अपने इंडिया के सहयोगी नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के नेतृत्व वाली नई जम्मू-कश्मीर कैबिनेट का हिस्सा नहीं होगी, जबकि नए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि पार्टियां अभी भी बातचीत कर रही हैं.
कांग्रेस की यह घोषणा उस दिन हुई जब अब्दुल्ला ने कांग्रेस और अन्य इंडिया ब्लॉक पार्टियों के शीर्ष नेताओं राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, प्रियंका गांधी वाड्रा, अखिलेश यादव, कनिमोझी, सुप्रिया सुले और प्रकाश करात की मौजूदगी में सीएम पद की शपथ ली.
कांग्रेस सूत्रों ने इस कदम का श्रेय नेशनल कॉन्फ्रेंस की दो कैबिनेट बर्थ देने की अनिच्छा को दिया. सरकार से बाहर रहकर कांग्रेस अनुच्छेद 370 की बहाली के सवाल पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा निशाना साधे जाने से भी बचना चाहती है, जिसके लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रतिबद्ध है.
अब्दुल्ला सरकार का बने रहना कांग्रेस के समर्थन पर निर्भर नहीं करेगा क्योंकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को पहले ही चार निर्दलीय विधायकों ने अपना समर्थन दे दिया है, जिससे 90-सदस्यीय विधानसभा में इसकी संख्या 46 हो गई है, साथ ही आम आदमी पार्टी (आप) विधायक भी इसके साथ है.
एक आधिकारिक बयान में जम्मू और कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के प्रमुख तारिक हमीद कर्रा ने पार्टी के इस फैसले के लिए केंद्र से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की लंबित मांग को जिम्मेदार ठहराया, जिसे अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था.
कर्रा ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैलियों के दौरान बार-बार यह वादा किया है कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा, लेकिन, ऐसा नहीं किया गया है. हम नाखुश हैं, इसलिए फिलहाल हम मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो रहे हैं.” साथ ही उन्होंने कहा कि कांग्रेस जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए लड़ाई जारी रखेगी.
हालांकि, पीटीआई से बात करते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि दोनों पार्टियां अभी भी बातचीत कर रही हैं. अब्दुल्ला ने कहा, “यह कांग्रेस को तय करना है. हम उनके साथ चर्चा कर रहे हैं. मुख्य रूप से इस तथ्य के इर्द-गिर्द कि एक सदन वाले केंद्र शासित प्रदेश के रूप में हमारे पास उच्च सदन नहीं है. इसलिए, सरकार का आकार बहुत सीमित है…जैसा कि मैंने कहा कि हम कांग्रेस के साथ बातचीत कर रहे हैं, लेकिन अपनी टीम के भीतर से भी. देखते हैं हम कैसे आगे बढ़ते हैं.”
अब्दुल्ला के साथ, पांच विधायकों — सकीना मसूद (इत्तू), जावेद डार, जावेद राणा, सुरिंदर चौधरी और सतीश शर्मा ने मंत्री पद की शपथ ली. शर्मा, जिन्होंने कांग्रेस द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, उन चार निर्दलीय विधायकों में से हैं जिन्होंने जीतने के बाद नेकां को अपना समर्थन दिया है.
उनके समर्थन से 90-सदस्यीय विधानसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस की संख्या 46 हो गई, जिससे कांग्रेस को वह लाभ नहीं मिल पाया जो उसे सरकार के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उसके छह विधायकों के समर्थन पर निर्भर होने की स्थिति में मिलता. कांग्रेस, जिसने चुनावों में 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था, केवल छह सीटें जीतने में सफल रही, जबकि 2014 के विधानसभा चुनावों में जब जम्मू-कश्मीर एक राज्य था, तब उसने 12 सीटें जीती थीं.
एनसी विधानसभा में हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस पर निर्भर थी, लेकिन भाजपा ने हिंदू बहुल सीटों पर जीत हासिल की, जिससे गठबंधन की उम्मीदें धराशायी हो गईं. एनसी के दो हिंदू विधायकों — चौधरी और अर्जुन सिंह राजू — में से एक को कैबिनेट में शामिल किया गया है, जबकि दिवंगत पूर्व कांग्रेस सांसद मदन लाल शर्मा के बेटे शर्मा अब्दुल्ला सरकार में दूसरे हिंदू चेहरा होंगे.
कांग्रेस के छह विधायकों में से कोई भी हिंदू नहीं है.
जम्मू-कश्मीर में पार्टी के प्रचार अभियान में शामिल रहे कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस सरकार में दो सीटें चाहती थी, लेकिन वह एनसी के साथ सौदेबाजी करने की स्थिति में नहीं थी. उन्होंने कहा, “एनसी को चार निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिलने के बाद, वास्तव में किसी सौदेबाजी की कोई गुंजाइश नहीं थी. साथ ही, हमारे अधिकांश विधायक पहले भी मंत्री रह चुके हैं. इसलिए उनमें से किसी एक को चुनना मुश्किल है.”
अनुच्छेद-370 की बहाली के लिए एनसी की स्पष्ट मांग पर कांग्रेस की बेचैनी, एक ऐसा मुद्दा जिस पर पार्टी ने चुप्पी साधे रखी, अब्दुल्ला कैबिनेट में शामिल होने में उसके संकोच का एक कारण भी था. चुनाव प्रचार के दौरान, भाजपा ने अनुच्छेद-370 पर कांग्रेस को घेरा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्षी पार्टी और पाकिस्तान इस मुद्दे पर एक ही पृष्ठ पर हैं.
कांग्रेस नेतृत्व के एक वर्ग के बीच यह भावना थी कि चूंकि पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया, इसलिए सरकार से बाहर रहने से कम से कम अन्य राज्यों में भाजपा के ऐसे हमलों का खतरा कम होगा.
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