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Thursday, 25 April, 2024
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जाति आधारित जनगणना पर PM मोदी के साथ नीतीश की मुलाकात को लेकर बिहार BJP क्यों है बंटी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार का एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जाति जनगणना पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात करेगा. अब तक जनगणना की मांग को खारिज करती रही भाजपा असमंजस की स्थिति में है.

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पटना: जाति आधारित जनगणना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की सोमवार को होने वाली बैठक से पहले प्रदेश भाजपा बंटी दिख रही है. भाजपा के कई नेता जहां जाति जनगणना के खिलाफ हैं, वहीं पार्टी के कुछ ओबीसी नेता इसके पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं.

बिहार में भाजपा के मंत्री राम सूरत राय ने दिप्रिंट को बताया, ‘जाति जनगणना और जनसंख्या नियंत्रण कानून दोनों आवश्यक हैं. और इन्हें लागू करने का अधिकार केंद्र के पास है. अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी इस मुद्दे पर बैठक करेंगे.’

वहीं, भाजपा सांसद राम कृपाल यादव ने मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी कोटा का जिक्र करते हुए कहा कि पार्टी ‘ओबीसी के अधिकारों की रक्षा के मामले में दूसरे दलों से आगे रही है.’


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नीतीश कुमार और सहयोगी दल भाजपा

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि उन्होंने जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए 23 अगस्त को पीएम मोदी से मिलने का समय मांगा है. उन्होंने संकेत दिया कि सहयोगी दल भाजपा, जो अब तक जनगणना की मांग का विरोध करती रही है, के नेता भी इस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा होंगे. हालांकि भाजपा नेता इस पर चुप्पी साधे रहे.

हालांकि, भगवा पार्टी ने शनिवार को साफ किया कि वह अपने सदस्यों को प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने पर विचार करने को तैयार है.

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भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, ‘मुख्यमंत्री प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं और अगर वह चाहते हैं तो हम अपने सदस्य को शामिल करेंगे. अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बैठक बुलाई है. इससे इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य के रुख में स्पष्टता आएगी.’

भाजपा सूत्रों के मुताबिक नीतीश के नेतृत्व वाले 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल में मंत्री जनक राम शामिल होंगे. अन्य सदस्यों में राजद नेता और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी शामिल हैं.

सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व की योजना पर 30 जुलाई को नीतीश, तेजस्वी और राज्य के अन्य नेताओं के बीच हुई एक बैठक के दौरान विचार किया गया था.

इस बैठक से भाजपा न केवल दूर रही, बल्कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने यह भी कहा कि जाति जनगणना से सामाजिक तनाव पैदा होगा.

इस बीच, भाजपा विधायक संजय पासवान और हरिभूषण ठाकुर बचाओल ने कहा कि जनगणना के लिए जाति को आधार बनाए जाने की बजाय आर्थिक पिछड़ेपन का मानदंड अपनाना चाहिए.

भाजपा की दुविधा

केंद्र सरकार की तरफ से अपने सहयोगी दल समेत विभिन्न पार्टियों की मांग को खारिज किए जाने के बाद भाजपा के अधिकांश नेताओं ने जाति जनगणना का विरोध किया. भाजपा द्वारा 2008 में बिहार विधानसभा में इस आशय का एक प्रस्ताव पास होने के दौरान जाति जनगणना का समर्थन किए जाने की याद दिलाते हुए भाजपा के सांसद ने टिप्पणी की, ‘लेकिन पार्टी को यह अहसास हो गया है कि वह एक ऐसी अलग-थलग पार्टी के रूप में नहीं दिखना चाहेगी जो जाति जनगणना का विरोध करती हो. केंद्र की तरफ से 2011 की जाति जनगणना के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं कराए गए.

भाजपा 1990 तक बिहार में हाशिए पर रहने वाली पार्टी थी और उसे शहरी पार्टी माना जाता था. हालांकि, 1998 में कांग्रेस के लालू प्रसाद यादव के समर्थन में आने के बाद सवर्ण जातियां कांग्रेस को छोड़ भाजपा के पाले में आ गईं.

लेकिन, नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ गठबंधन के बाद भाजपा को ओबीसी के बीच अधिक स्वीकृति मिली और इसी तथ्य को ध्यान में रखकर राज्य का नेतृत्व सुशील कुमार मोदी और नंद किशोर यादव जैसे ओबीसी नेताओं को दिया गया था.

2015 में भाजपा जब लालू और नीतीश की संयुक्त ताकत के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरी थी तब उसने जिन 168 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था उनमें उसने औसतन 60,000 वोट पाए. बहरहाल, राज्य की उच्च जातियां अब भी मुख्यत: भाजपा को ही वोट देती हैं.

भाजपा और जदयू के बीच सीट बंटवारे के समझौते से साफ था कि भगवा पार्टी सवर्ण जातियों को तरजीह दे रही है, जबकि जदयू का फोकस ओबीसी वोटबैंक पर है.

जाति जनगणना की मांग ने भाजपा को दुविधा में डाल दिया है. यह जदयू और राजद की तरह ओबीसी राजनीति का खुलकर समर्थन नहीं कर सकती, क्योंकि इससे सवर्ण जातियों के नाराज होने का जोखिम है. यही नहीं ये अपनी छवि ओबीसी विरोधी पार्टी के तौर पर भी नहीं बना सकती क्योंकि इसने राज्य में ओबीसी और दलित वोट बैंक के एक बड़े तबके के बीच अपनी पैठ बना ली है.

2015 के विधानसभा चुनाव ने भाजपा को लंबे समय तक परेशान किया है, कारण, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी के बाद आरएसएस और भाजपा को आरक्षण प्रणाली खत्म करने की चुनौती दी थी. यह गलती पार्टी दोहराना नहीं चाहेगी. यही वजह है कि आधे-अधूरे मन से ही सही भाजपा ने जनक राम को प्रतिनिधिमंडल का सदस्य नियुक्त कर दिया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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