नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरू (जेएनयू) छात्र संघ (जेएनयूएसयू) के पूर्व नेता कन्हैया कुमार द्वारा बिहार में पदयात्रा निकालने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराज़गी है, कई नेताओं ने हाईकमान द्वारा उन्हें राज्य में अपना ‘पोस्टर बॉय’ बनाने की कोशिश पर आपत्ति जताई है, जहां 2019 में अपनी चुनावी हार के बाद से वे काफी हद तक गायब रहे हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ‘पलायन रोको नौकरी दो’ यात्रा के पहले दो दिनों में शामिल नहीं हुए, जिसे रविवार को पश्चिमी चंपारण से शुरू किया गया और 14 अप्रैल को बी.आर. आंबेडकर की जयंती पर पटना में इसका समापन होने की संभावना है.
दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने कन्हैया से सलाह-मशविरा करने के बाद पदयात्रा की योजना बनाई. बिहार कांग्रेस के पदाधिकारियों का दावा है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं को यात्रा की योजना के बारे में पता था, लेकिन राज्य नेतृत्व को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
बताया जाता है कि बिहार इकाई के अल्पसंख्यक नेताओं ने रमज़ान के महीने में यात्रा के समय को लेकर अपनी आपत्ति जताई है. दिप्रिंट से बात करने वाले कुछ नेताओं ने इस बात पर दुख जताया कि उनकी राय लिए बिना यात्रा का समय तय कर दिया गया.
बिहार विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता शकील अहमद खान ने दिप्रिंट से कहा, “रमज़ान का महीना चल रहा है और विधानसभा सत्र (बिहार बजट सत्र) भी चल रहा है. इसलिए कई नेता, खासकर मुस्लिम, इसमें शरीक नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन, हम बाद में इसमें शामिल होंगे क्योंकि यह पार्टी का कार्यक्रम है, लेकिन हां, इसका समय हमारे कार्यक्रम से मेल नहीं खा रहा है.”
खान ने इस बात पर जोर दिया कि यात्रा किसी व्यक्ति का अभियान नहीं है, बल्कि पार्टी का कार्यक्रम है. जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष ने दिप्रिंट को बताया, “…मैंने सुना है कि कई लोग इसे ‘कन्हैया की यात्रा’ कह रहे हैं, वहीं, ऐसा नहीं है. यह कभी कन्हैया कुमार की यात्रा नहीं थी; यह पार्टी का कार्यक्रम है. यह देखना अच्छा है कि कन्हैया अपने ‘दिल्ली प्रवास’ से बिहार लौट आए हैं. उन्हें अपने गृह राज्य में और अधिक सक्रिय होना चाहिए.”
वरिष्ठ नेता तारिक अनवर ने माना कि तारीखों को लेकर कुछ मतभेद थे, लेकिन उन्होंने कहा कि यात्रा में शामिल होना “अनिवार्य नहीं” था. कटिहार के सांसद ने दिप्रिंट को बताया, “यह मूल रूप से युवाओं और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) का कार्यक्रम है. इसलिए, हम इसमें शामिल होने के लिए बाध्य नहीं हैं; हालांकि, हम अंतिम चरण में वहां पहुंचने की कोशिश करेंगे.”
अररिया के विधायक अबिदुर रहमान ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि बिहार विधानसभा में बजट सत्र चल रहा है. “इसलिए, हम वहां नहीं गए हैं; लेकिन, हमारी मर्ज़ी उनके साथ हैं.”
दिप्रिंट ने कन्हैया और अल्लावरु से टिप्पणी के लिए संपर्क किया है. उनकी ओर से जवाह आने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
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राज्य इकाई को दरकिनार?
हालांकि, तत्कालीन कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह यात्रा के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे, लेकिन कांग्रेस के हलकों में चर्चा थी कि यात्रा की योजना के बारे में जानकारी न दिए जाने से वे नाराज़ है. सिंह ने अपनी ओर से कम से कम तीन बार ऐसी बातों का खंडन किया है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया, “राजनीति में यह (सिंह का बार-बार बयान) आलाकमान को संदेश देने का एक तरीका है. बिहार कांग्रेस के हलकों में हर कोई जानता है कि वे (सिंह) लालू यादव के करीबी हैं. वे ऐसी कोई गतिविधि नहीं चाहते जिससे लालू या (लालू के बेटे) तेजस्वी को ठेस पहुंचे और वे कन्हैया कुमार को पसंद नहीं करते. यह एक खुला सच है.”
संयोग से सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत लालू की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से की थी, जिसे छोड़कर वे 2010 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
बिहार कांग्रेस के एक सांसद ने दिप्रिंट को बताया, “कन्हैया को बिहार में पोस्टर बॉय बनाने से हमें कोई मदद नहीं मिलेगी क्योंकि 2019 के चुनाव (बेगूसराय से सीपीआई उम्मीदवार के रूप में) लड़ने के बाद पिछले पांच सालों से वे पूरी तरह से गायब थे. बेगूसराय से जुड़े होने के अलावा उनका कोई स्थानीय आधार नहीं है. इसके अलावा, लालू परिवार उनकी गतिविधियों से नाराज़ हो सकता है. इससे हमारी गठबंधन वार्ता पर भी असर पड़ सकता है. पार्टी को स्थानीय नेताओं (विधायकों और सांसदों) को बढ़ावा देना चाहिए, बजाय इसके कि दिल्ली से किसी को लाया जाए.”
कांग्रेस के एक अन्य राज्य नेता ने इस बारे में खुलकर बात की कि वरिष्ठ पदाधिकारी कन्हैया के प्रवेश से “नाराज़” क्यों हैं.
इस नेता ने दिप्रिंट से कहा, “बिना किसी मेहनत या गतिविधि के उन्हें पोस्टर बॉय बना दिया गया है…यात्रा का नाम ‘पलायन रोको नौकरी दो’ यात्रा है, लेकिन यह कन्हैया की यात्रा बन गई है. जब वे पटना एयरपोर्ट पर पदयात्रा के लिए बिहार पहुंचे, तो उनके समर्थकों ने नारे लगाए, ‘हमारा सीएम कैसा हो, कन्हैया कुमार जैसा हो’. इससे कई नेताओं को ठेस भी पहुंची क्योंकि उन्हें लगा कि यह एक सुनियोजित रणनीति है.”
कन्हैया बिहार के बेगूसराय से हैं और युवाओं को लक्षित करने वाली इस यात्रा में जगह-जगह NSUI नेता के पोस्टर और तस्वीरें लगी हुई हैं. कई लोगों के लिए यह यात्रा बिहार की राजनीति में कन्हैया की फिर से एंट्री का एक मंच है. वे सितंबर 2021 में कांग्रेस में शामिल हुए और जुलाई 2023 में उन्हें NSUI प्रभारी का पद सौंपा गया.
बिहार कांग्रेस के नेताओं के एक वर्ग का कहना है कि कन्हैया के आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की भी संभावना है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “अभी तक बिहार में हमारे पास केवल 19 विधायक और तीन सांसद हैं. इसलिए अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए पार्टी को अपनी गतिविधियों को बढ़ानी चाहिए. कन्हैया कुमार के आने से कम से कम बिहार कांग्रेस मीडिया की सुर्खियों में तो आ गई है.”
कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता राजेश राठौर ने पदयात्रा में कन्हैया की प्रमुखता को लेकर बेचैनी को कम करने की कोशिश की. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “हम सभी ऐसी यात्राओं के पक्ष में हैं. अभी तक यात्रा को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है. बिहार की राजनीति में कन्हैया कुमार की एंट्री को लेकर कोई विवाद नहीं है. हमारे लिए पार्टी पहले है. अगर कोई कार्यक्रम हो रहा है तो उसका प्रचार करना हमारी जिम्मेदारी है. हम सभी इस यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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