scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमराजनीतिपंजाब चुनाव में किसानों के अकेले मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा नुकसान AAP को क्यों होने वाला है

पंजाब चुनाव में किसानों के अकेले मैदान में उतरने से सबसे ज्यादा नुकसान AAP को क्यों होने वाला है

किसानों के संयुक्त समाज मोर्चा का दावा है कि संभावित गठबंधन के लिए उसकी आप के साथ बातचीत चल रही थी लेकिन उम्मीदवारों पर असहमति के कारण बात नहीं बनी. हालांकि, आप ने ऐसी किसी भी बातचीत से इनकार किया है.

Text Size:

चंडीगढ़: नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से 2020 में लाए गए और अब रद्द हो चुके कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर तक आंदोलन चलाने वाले 32 किसान संगठनों में से 22 के लिए साझा मंच रहे संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) ने पंजाब में किसी भी स्थापित राजनीतिक दल के साथ चुनाव पूर्व कोई गठंबधन किए बिना अकेले ही मैदान में उतरने का इरादा जताया है.

एसएसएम ने रविवार को साथ ही यह ऐलान भी किया कि वह 14 फरवरी को होने वाले चुनावों में सभी 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगा.

एसएसएम के पास तैयारी के लिए सिर्फ एक महीना बचा है, विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब की राजनीति में इस नए मोर्चे का आना चुनावी टक्कर को और रोचक बना देगा. उनका मानना है कि कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन और भाजपा-अमरिंदर गठबंधन की तुलना में सबसे ज्यादा नुकसान आम आदमी पार्टी (आप) को होने के आसार हैं क्योंकि इनका वोट वैंक साझा है.

एसएसएम की तरफ से दावा किया जा रहा है कि पंजाब में संभावित गठबंधन के बारे में उसकी आप के साथ बातचीत चल रही थी, जिस दावे को आप के पंजाब अध्यक्ष भगवंत सिंह मान ने खारिज कर दिया है.

एसएसएम नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आप के साथ बातचीत सफल नहीं हुई क्योंकि पार्टी उन उम्मीदवारों को बदलने को तैयार नहीं थी जिनकी उम्मीदवारी की घोषणा वह पहले ही कर चुकी थी और जिन पर एसएसएम को आपत्ति थी.

राजेवाल ने आरोप लगाया, ‘हमें आप की तरफ से चुने गए उम्मीदवारों में से कई को लेकर मेरिट की बजाये अन्य कारणों से आपत्ति थी. उनमें से कई की आपराधिक पृष्ठभूमि है. हमने अपने आरोपों के सबूत अरविंद केजरीवाल को सौंप दिए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने हमसे कहा था कि हमारे मन मुताबिक अपने उम्मीदवारों को बदल देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और ऐसे में अब गठबंधन की कोई संभावना नहीं है.’

राजेवाल ने रविवार को यह भी बताया कि एसएसएम की संभावित गठबंधन के लिए अब हरियाणा किसान संघ के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी के संयुक्त संघर्ष मोर्चा के साथ बातचीत चल रही है. चढ़ूनी ने कई महीने पहले घोषणा की थी कि उनका संगठन पंजाब चुनाव में हिस्सा लेगा.

संयुक्त समाज मोर्चा छोटे किसान निकायों, कर्मचारी संघों, श्रमिक संघों और उद्योग श्रमिक संघों को भी अपने साथ लाने का प्रयास कर रहा है. राजेवाल ने कहा, ‘हम केवल किसान ही नहीं, बल्कि समाज के सभी वर्गों से जुड़े संगठनों को साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं.’

एसएसएम आगामी चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा अगले हफ्ते कर सकता है.


यह भी पढ़ें: MSP का हिसाब लगाना किसी चुनौती से कम नहीं, कानूनी गारंटी देने पर हो रही देरी वाजिब


‘आप’ को नुकसान होगा

चंडीगढ़ के एसजीजीएस कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. हरजेश्वर सिंह ने बताया कि एसएसएम के चुनाव मैदान में उतरने का पंजाब की राजनीति पर क्या असर पड़ सकता है.

उन्होंने कहा, ‘एसएसएम मोटे तौर पर वामपंथी और दक्षिणपंथी दोनों ही तरह के कुछ किसान संगठनों को मिलाकर बना एक संगठन है. इसने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है और तमाम मशहूर हस्तियों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और छोटी पार्टियों को साथ लाने की कोशिश कर रहा है. इसका मुख्य जनाधार ग्रामीण मालवा, माझा और दोआबा और कस्बों में होने के आसार हैं.’

उन्होंने कहा, ‘एसएसएम के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा राज्य में ‘बदलाव समर्थक’ उन मतदाताओं का हो सकता है, जिनकी संख्या राज्य में आप के आने के बाद से लगातार बढ़ रही है. यह वोट बैंक मौजूदा समय में 30-40 प्रतिशत के बीच होना चाहिए. मेरा मानना है कि एसएसएम के आने से सबसे ज्यादा नुकसान आप को ही होगा क्योंकि आप भी इसी ‘बदलाव के पक्षधर’ वोट बैंक पर निर्भर है. आप और एसएसएम के मुख्य क्षेत्र भी समान ही हैं- पूर्वी और मध्य मालवा.’

डॉ. हरजेश्वर सिंह ने कहा कि एसएसएम के मैदान में आने से अकाली दल की संभावनाओं पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है.

उन्होंने कहा, ‘आप के अलावा, एसएसएम अकाली दल को भी नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि ग्रामीण जाट सिख और किसान समुदाय अकाली दल के पारंपरिक मतदाता रहे हैं और यही वर्ग एसएसएम का नेतृत्व करने वाला और समर्थकों दोनों है. कांग्रेस को भी नुकसान होगा लेकिन कुछ हद तक ही क्योंकि कांग्रेस विशेष रूप से किसी एक वोट बैंक पर निर्भर नहीं है.’

चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख प्रो. आशुतोष कुमार ने भी उनकी राय से सहमति जताई, जिन्होंने यह भी कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसान आप के वोट बैंक में सेंध लगाएंगे.

प्रो. कुमार ने कहा, ‘लेकिन यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि जीत की संभावना कितनी है. अगर मतदाताओं को लगा कि चुनाव जीतकर एसएसएम सत्ता में आ सकता है और सरकार बना सकता है, तो वे इसे वोट देना चाहेंगे. लेकिन अगर जरा भी संदेह रहा तो हो सकता है कि वे अपना वोट बर्बाद ना करना चाहें.’

प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. चमन लाल के मुताबिक, एसएसएम के चुनाव जीतने या सत्ता शीर्ष तक पहुंचने की संभावना कम ही है और यह ऐसी बात है जिसे लेकर पार्टी को खुद भी कोई भ्रम नहीं पालना चाहिए.

प्रो. लाल ने कहा, ‘उन्हें पहले सांकेतिक तौर पर चुनाव में हिस्सा लेना चाहिए और अपनी सीमित जीत के साथ आधार मजबूत करना चाहिए. सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने के बजाये, उन्हें पांच से सात निर्वाचन क्षेत्रों का चयन करना चाहिए, जहां उन्हें अपने सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधियों को मैदान में उतारना चाहिए और चुनाव में उन सभी की जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगानी चाहिए.’

लाल ने कहा, ‘इसके अलावा, वे किसी भी गैर-भाजपा पार्टी या निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर सकते हैं, जिन्होंने इतने लंबे समय तक चले किसान आंदोलन में हिस्सा लिया हो और खुलकर उनका समर्थन किया हो. हालांकि, ऐसे उम्मीदवार बहुत कम होंगे.’


यह भी पढ़ें: कैंसर का इलाज, मरे को जिंदा करना : चमत्कार में डेरों से मुकाबला कर रहे पंजाब के ईसाई प्रॉफेट, पादरी


सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं

हालांकि, हर कोई चुनाव मैदान में एसएसएम के प्रवेश को केवल प्रतीकात्मक तौर पर नहीं देखता है.

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर में पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. सतनाम सिंह देओल ने कहा, ‘प्रेशर ग्रुप राजनीतिक दलों के बनने की वजह होते हैं. यह पहले भी हुआ है. राजनीतिक दल विरोध से जन्म लेते हैं.’

देओल ने कहा, ‘सवाल यह है कि क्या हम परंपरागत राजनीतिक अभिजात्य वर्ग से संतुष्ट हैं जो हमारा प्रतिनिधित्व कर रहा है? यदि हां, तो हमें किसी को नया मौका देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम ‘गलत’ लोगों से खुश हैं. लेकिन लोकतंत्र में प्रयोग होते रहते हैं और ‘अभी सही होने’ वालों के लिए हमेशा जगह बनी रहती है.’

उन्होंने भी माना कि एसएसएम के इस कदम से आप पर सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है.

देओल ने कहा, ‘चुनावी राजनीति में दो प्रकार के मतदाता होते हैं- परंपरागत और मुखर. पंरपरागत मतदाताओं का वोट तो पहले से ही तय होता है, जबकि मुखर या प्रयोगाधर्मी वोटर आम तौर पर असंतुष्ट या सत्ता विरोधी होता है. पंजाब चुनावों में यही वोट बैंक किसानों और आप- जो पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़े आंदोलन से जन्मी थी- के बीच बंट सकता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: हरियाणा के ESIC हॉस्पिटल का सर्कुलर- सिर्फ 3 दिनों के लिए ही डॉक्टर हो सकेंगे क्वारेंटाइन


 

share & View comments