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Friday, 26 April, 2024
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कौन है असली शिवसेना? ‘धनुष और तीर’ की लड़ाई में ठाकरे और शिंदे कैंप में कार्यकर्ताओं को लुभाने की कोशिश

जहां एक तरफ एकनाथ शिंदे पूरे महाराष्ट्र के शिवसेना कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे हैं, वहीं उद्धव ठाकरे मुंबई के दादर में पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं के साथ नियमित बैठक करने में लगे हैं.

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मुंबई: शिवसेना में विभाजन के एक महीने बाद प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे खेमे पार्टी के सभी रैंकों से समर्थन हासिल करने की दौड़ में हैं. दोनों की निगाहें पार्टी के चिन्ह- धनुष तीर पर हैं.

इसके लिए दोनों पक्ष पार्टी कार्यकर्ताओं और शिवसेना के निचले पायदान के कार्यकर्ताओं को लुभाने में लगे हैं.

ठाकरे अक्सर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत नहीं करने या मुंबई में पार्टी के मुख्यालय सेना भवन में पर्याप्त समय न बिताने के लिए आलोचना झेलते रहे हैं. फिलहाल वह बेटे आदित्य के साथ मैदान में उतर गए हैं.

ठाकरे परिवार शिवसेना कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों तक पहुंच बना रहा है और उन्हें समझाने में लगा है कि शिंदे गुट का ये हिस्सा शिवसेना को खत्म करने की बीजपी की कथित चाल में ‘मोहरा’ है.

पलायन को रोकने के लिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना ने अपनी कमान से एक और तीर निकाल कर चलाया, जब उन्होंने शिंदे को समर्थन करने वाले पार्टी नेताओं को हटाने के लिए पत्र लिखा.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का समर्थन करने वाले नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि एकनाथ शिंदे कार्यकर्ताओं की बड़ी सभाओं को संबोधित कर रहे हैं और उनसे कह रहे हैं कि वे ऐसे पत्रों से न डरें क्योंकि उनका गुट ‘असली शिवसेना’ है.

बागी सेना के विधायक शिंदे के साथ कुछ समय बिताने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों से पार्टी के सदस्यों को मुंबई ला रहे हैं. शिंदे उनके निर्वाचन क्षेत्रों के विकास के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हुए, महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार से बाहर निकलने के अपने फैसले की वजह बता रहे हैं.

शिंदे सोशल मीडिया पर ‘असली शिवसेना’ हैशटैग के साथ कार्यकर्ताओं के साथ अपनी बातचीत की तस्वीरें भी पोस्ट कर रहे हैं.

लोकसभा में शिवसेना के 19 सांसदों में से 12 के साथ-साथ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं आनंदराव अडसुल और रामदास कदम का समर्थन हासिल करने के बाद शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ने पार्टी के चुनाव चिह्न पर दावा करने के लिए मंगलवार शाम भारत के चुनाव आयोग से संपर्क किया.


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‘विद्रोह है, अवज्ञा नहीं’

शिंदे खेमे के एक वरिष्ठ विधायक ने दिप्रिंट को बताया कि ‘कार्यकर्ताओं थोड़े से असहज है.’

उन्होंने बताया, ‘जमीन पर काम करने वाले पार्टी की बड़ी समस्याओं को नहीं समझते हैं. वे समझ नहीं पाए कि पार्टी के अध्यक्ष जो कि मुख्यमंत्री थे, से मिलना मुश्किल क्यों था. इसी तरह शुरू में उन्हें ये भी समझ नहीं आया कि हमने जो किया वह क्यों किया? हम उन्हें समझा रहे हैं.’

शिंदे खेमे के एक दूसरे विधायक ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं को यह समझने में मदद मिल रही है कि यह एक ‘विद्रोह है, न कि अवज्ञा’

उन्होंने कहा, ‘अगर एक या दो विधायकों ने ऐसा किया होता तो लोग कुछ और ही सोचते. लेकिन जब 40 विधायक चले गए तो पार्टी कार्यकर्तओं को भी समझ में आ गया कि वास्तव में कोई मुद्दा रहा है. गद्दारों को मुंह छुपाना पड़ा है. यहां हम में से कई लोगों का रैलियों और मालाओं से स्वागत किया गया.’

विद्रोह के बाद अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में लौटने के बाद से शिवसेना के बागी विधायकों ने अपने कार्यकर्ताओं और घटकों के साथ कई रैलियां और बैठकें की हैं. इनमें एमवीए और ठाकरे खेमे के कुछ नेताओं से अपनी नाराजगी की वजह बताई गई.

21 जून को शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के विधायकों के एक खेमे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह कर दिया जिससे एमवीए सरकार गिर गई. इस त्रिपक्षीय गठबंधन एमवीए में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस पार्टी शामिल थी.

शिंदे खेमे ने शिवसेना के 55 में से 40 विधायकों के समर्थन से फिर बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया. एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री का पद संभाला और देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम का पद मिला.


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शिंदे की ताकत का प्रदर्शन

रविवार को शिंदे ने मुंबई के यशवंतराव चव्हाण केंद्र में जलगांव जिले के विधायक किशोर अप्पा पाटिल के निर्वाचन क्षेत्र के पार्टी कार्यकर्ताओं की एक सभा को संबोधित किया. उन्होंने वादा किया कि उन विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्य में कोई अड़चन नहीं आएगी, जो उनके साथ रहे और एमवीए सरकार से बाहर चले गए.

पिछले हफ्ते मुंबई में कुर्ला विधायक मंगेश कुडलकर द्वारा आयोजित कार्यकर्ताओं की एक ऐसी ही सभा में शिंदे ने कहा कि ‘विद्रोह’ स्वार्थी कारणों से नहीं, बल्कि मोहभंग वाले विधायकों को न्याय दिलाने के लिए था. मुख्यमंत्री ने यहां तक कहा कि वह उन्हें समर्थन देने वाले हर एक विधायक का फिर से चुनाव सुनिश्चित करेंगे.

औरंगाबाद पश्चिम के विधायक संजय शिरसाट और सिल्लोड के विधायक अब्दुल सत्तार ने भी पिछले सप्ताह मुंबई के रवींद्र नाट्य मंदिर में अलग-अलग सभाओं का आयोजन किया. यहां भी शिंदे ने कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया कि वह उनके निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए विधायकों की सहायता करेंगे.

ताकत के एक और प्रदर्शन में शिंदे के नेतृत्व वाले गुट ने इस सप्ताह की शुरुआत में शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग कर दिया और एकांत शिंदे के साथ ‘मुख्य नेता’ के रूप में अपना गठन किया.

निर्वाचन प्रतीक (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के अनुसार, चुनाव आयोग सिर्फ ‘मामले के सभी उपलब्ध तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए और दोनों पक्षों या समूहों के योग्य प्रतिनिधियों और अन्य व्यक्तियों को सुनने के बाद’, किसी पार्टी से अलग हुए गुट के पक्ष में फैसला सुना सकता है और उसे पार्टी के चुनाव चिह्न का उपयोग करने की अनुमति दे सकता है.’

चुनाव आयोग एक ऐसा फैसला भी दे सकता है जो न तो मूल पार्टी के पक्ष में होगा और न ही अलग हुए गुट के पक्ष में. आदेश में कहा गया, ‘आयोग के इस फैसले को सभी प्रतिद्वंदी या समूह स्वीकार करने के लिए बाध्य होंगे.’

शिवसेना मुख्यालय में ठाकरे और शाखाओं के दौरे पर बेटा आदित्य

शिवसेना के वरिष्ठ पदाधिकारी रवींद्र मिरलेकर ने कहा कि शिंदे खेमे के नेता ‘पार्टी कार्यकर्ताओं को धमकी दे रहे हैं कि वे उनका समर्थन करें.’

उन्होंने बताया, ‘लेकिन हमने ऐसे कई विद्रोह देखे हैं. हम इस बात से सहमत हैं कि यह एक बड़ा झटका था. लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं है जिससे शिवसेना उबर नहीं सकती हो.’

उन्होंने कहा, ‘हम जमीन पर काम करने वाले लोगों से सीधे जुड़ रहे हैं. ये कार्यकर्ता ही जनप्रतिनिधि को बनाते या बिगाड़ते हैं. जब चुनाव आएंगे तो सभी बागी मुंह के बल गिरे मिलेंगे.’

ठाकरे खेमे के नेताओं ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री रोजाना अपने आवास मातोश्री या मुंबई के दादर में शिवसेना भवन में पार्टी कार्यकर्ताओं के विभिन्न समूहों से मिल रहे हैं. वह अब यहां सप्ताह में कम से कम तीन दिन बैठते हैं.

मंगलवार को शिवसेना की व्यापारी इकाई के सदस्यों के साथ एक बैठक में उद्धव ठाकरे ने उन्हें आगाह किया कि शिंदे का विद्रोह भाजपा की ‘शिवसेना को मारने की साजिश’ का हिस्सा है.

इससे पहले उन्होंने पूरे महाराष्ट्र के शिवसेना जिलाध्यक्षों से मुलाकात की और उन्हें अधिक से अधिक कार्यकर्ताओं की भर्ती करके लोगों के बीच पार्टी की उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कहा.

ठाकरे ने पार्टी पदाधिकारियों से ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को अपना समर्थन देने के लिए हस्ताक्षरित हलफनामा प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है. इसमें उन्होंने कहा कि अगर इस बात पर लड़ाई होती है कि कौन-सा गुट असली शिवसेना है तो वह उनके साथ बने रहेंगे.

वहीं दूसरी तरफ आदित्य ठाकरे एक दिन में शिवसेना की एक शाखा का दौरा कर रहे हैं और कार्यकर्ताओं को बता रहे हैं कि वो ही सेना की असली ताकत हैं और जो लोग शिंदे का साथ दे रहे हैं वे ‘गद्दार’ हैं. सेना के संगठनात्मक ढांचे के भीतर शाखाएं सबसे निचली प्रशासनिक इकाई हैं.

ठाकरे के बेटे ‘शिव संवाद यात्रा’ के बैनर तले महाराष्ट्र का राज्यव्यापी दौरा भी शुरू करेंगे. इस दौरे के पहले चरण में 21 जुलाई से 23 जुलाई तक आदित्य भिवंडी, नासिक, डिंडोरी, औरंगाबाद और शिरडी में रैलियां करेंगे.

ठाकरे खेमे में एक नेता ने कहा कि पिछले साल नवंबर में हुई रीढ़ की सर्जरी से उबर रहे उद्धव ठाकरे मॉनसून के थमने के बाद राज्य का दौरा करना शुरू करेंगे.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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