बाड़मेर: राजस्थान के चौहटन में एक उमस भरी दोपहर में, जो कि बाड़मेर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है, जहां, दुकानदारों ने सेब की तस्वीर वाले पीले स्कार्फ पहन रखे थे, जबकि तेज़ संगीत और “भाटी, भाटी” के नारे से हवा में गूंज रहे थे. लोग लंबी कतारों में इकट्ठा होने लगे, कई लोग जिन्हें जगह नहीं मिली, वे इमारतों की छतों पर चढ़ गए. वे सभी बाडमेर लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी रवीन्द्र भाटी की एक झलक देखना चाहते थे.
जैसे ही उन्होंने अपनी कार की छत से बाहर झांका, भीड़ उमड़ पड़ी, “भाटी दिल्ली जाएगा, लाल बत्ती लाएगा”.
एक उभरते हुए राजपूत नेता और विधायक, 26-वर्षीय भाटी और उनके चुनाव चिन्ह — सेब — को राजस्थान के इस हिस्से में तुरंत पहचान मिल गई.
भाजपा में केवल एक हफ्ते के कार्यकाल के बाद, उन्होंने टिकट से इनकार किए जाने के बाद 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी छोड़ दी और बाड़मेर जिले के श्यो विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा. उनकी रैलियों और रोड शो में भारी भीड़ उमड़ी, विशेषकर युवाओं की और उन्होंने 31 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर के साथ जीत हासिल की.
अब लोकसभा चुनाव में भाटी का मुकाबला बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी और कांग्रेस के उम्मेदा राम बेनीवाल से है. दोनों दावेदार जाट समुदाय से हैं, जो बाड़मेर निर्वाचन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वोटिंग ब्लॉक है, जहां 26 अप्रैल को मतदान होना है. भाटी के सहयोगी उन्हें “रेगिस्ताना का तूफान” कहते हैं और उनके समर्थक उनकी तुलना सचिन पायलट से करते हैं.
लेकिन रवीन्द्र भाटी ऐसी समानताओं को नकारते हैं. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं रवींद्र सिंह भाटी हूं और मैं भाटी ही ठीक हूं. सचिन जी एक बड़े नेता हैं और मैं उनका मुकाबला नहीं कर सकता.”
लेकिन जन नेता भाटी का उत्थान उल्लेखनीय रहा है, जिसमें कई असफलताओं के बाद जीत भी शामिल है और वे तुरंत बताते हैं कि सचिन पायलट के विपरीत, वे एक “सरल, विनम्र और लॉ-प्रोफाइल परिवार” से आते हैं, जिसमें स्कूल में शिक्षक पिता और गृहिणी मां हैं.
उन्होंने कहा, “मैं गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि का हूं, जिसका कोई राजनीतिक गॉडफादर नहीं है. इसके कारण, जहां तक टिकट दिए जाने का सवाल है, मैं हमेशा खाली हाथ रहता हूं.”
निर्वाचन क्षेत्र में कई लोग भाटी पर अपनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं, खासकर दो बार के सांसद चौधरी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बीच. हालांकि, निवर्तमान सांसद जैसे अन्य लोग सवाल उठाते हैं कि वे इतनी बड़ी रैलियां कैसे आयोजित कर पाते हैं. भाटी ने कहा, “जो लोग मुझ पर पैसे देकर भीड़ लाने का आरोप लगा रहे हैं, उनके अधीन कई एजेंसियां हैं तो वे इसकी जांच क्यों नहीं कराते और सच्चाई सामने आ जाएगी.”
यह भी पढ़ें: राजीव चन्द्रशेखर आधुनिक हैं, उदारवादी हैं, लेकिन दुखद रूप से भाजपा के धर्मांध वफादार हैं
छात्र राजनीति से लोकसभा तक की छलांग
अपने साथियों के बीच प्यार से ‘राव सा’ के नाम से प्रसिद्ध रवींद्र भाटी ने 2019 में अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की, जब उन्होंने जोधपुर की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव में अध्यक्ष पद जीता. भाजपा की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा टिकट देने से इनकार करने के बाद उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा.
इसी तरह का नज़ारा 2023 में सामने आया जब भाजपा ने शियो विधानसभा सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पार्टी के बाड़मेर जिला अध्यक्ष स्वरूप सिंह खारा के पक्ष में उनकी अनदेखी की. निडर होकर, भाटी ने विद्रोह कर दिया और निर्दलीय उम्मीदवार बनकर चुनाव लड़ा और पहले स्थान पर रहे. उस चुनाव में खारा चौथे स्थान पर रहे.
भाजपा सूत्रों के मुताबिक, भाटी ने लोकसभा चुनाव के लिए भी टिकट की पैरवी की थी, लेकिन पार्टी ने निवर्तमान सांसद कैलाश चौधरी को बाड़मेर से उम्मीदवार बनाया.
भाटी ने कहा, “एक पंडित ने कहा था तेरी किस्मत में निर्दलिया वाला योग है तो…मैंने पार्टियों में प्रयास किया, लेकिन परिस्थितियों के कारण टिकट नहीं मिला.”
इस कठिन इतिहास के बावजूद, अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाटी लंबी पारी खेल रहे हैं और जीतने पर फिर से भाजपा में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने कहा, “परिस्थितियों के आधार पर फैसला लिया जाएगा. यह लोग ही हैं जो फैसला लेंगे.”
पूरे बाड़मेर में अब भाटी की तस्वीरों वाले बिलबोर्ड और होर्डिंग्स लगे हुए हैं. 17 अप्रैल को उनका रोड शो, जो 1 किलोमीटर तक आधे घंटे का था, दो घंटे से अधिक समय तक चला, क्योंकि उनसे मिलने के लिए काफी भीड़ उमड़ पड़ी थी.
पीले झंडों और स्कार्फों के बीच, जैसे ही भाटी अपनी कार से बाहर निकले, उनके समर्थक उनके चारों ओर जमा हो गए और उन्हें लगभग 100 मीटर तक उठाकर अपने चुनाव कार्यालय तक ले गए. युवा पुरुष और महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक और यहां तक कि बच्चे भी चिलचिलाती गर्मी में उनके आगमन का धैर्यपूर्वक इंतज़ार कर रहे थे, जैसे ही उनका काफिला गुज़रा तो कुछ लोग जेसीबी पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाने के लिए खड़े हो गए. भाटी ने भीड़ को निराश नहीं किया और अधिक से अधिक लोगों से मिलने के लिए रोड शो को धीमा कर दिया.
भाटी की उम्मीदवारी इतनी चर्चा का विषय बन गई है कि न सिर्फ बाड़मेर और जैसलमेर, बल्कि जोधपुर और अन्य पड़ोसी जिलों में भी लोग इसकी चर्चा कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें: BJP में शामिल होने पर मानवेंद्र सिंह बोले — ‘बाधाएं दूर हो गईं’, राहुल गांधी से दोस्ती रहेगी बरकरार
बीजेपी के लिए अभिशाप, कांग्रेस के लिए वरदान?
सभी राजनीतिक दलों के नेता इस बात से सहमत हैं कि भाटी ने बाड़मेर निर्वाचन क्षेत्र में खेल का मैदान बदल दिया है, जिसमें जैसलमेर जिले के कुछ हिस्से भी शामिल हैं. जबकि कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि वे भाजपा के वोटों में सेंध लगाएंगे, भाजपा अपने अभियान में प्रमुख राजपूत हस्तियों को दिखाकर उनके प्रभाव का मुकाबला कर रही है.
बाड़मेर के एक कांग्रेस नेता ने कहा, “जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने जाट उम्मीदवार उतारे हैं, लेकिन राजपूत समुदाय के भाटी ने सारे समीकरण बदल दिए हैं.”
बाड़मेर लोकसभा क्षेत्र में लगभग 22 लाख मतदाता हैं. कांग्रेस नेता के मुताबिक, जाटों की संख्या 4.5 लाख, एससी-एसटी की 4 लाख, राजपूतों की 3 लाख और मुस्लिमों की संख्या 2.7 लाख है. इसके अलावा ओबीसी मतदाताओं की संख्या 6.5 लाख है.
1964 और 1999 के बीच कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर 1977 और 1989 के चुनावों को छोड़कर, इस सीट पर 2004 में पहली बार भाजपा का कब्ज़ा हुआ था. कांग्रेस ने 2009 में फिर से इस पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन 2014 और 2019 में बीजेपी की जीत के बाद यह कैलाश चौधरी के पास गई.
पाकिस्तान की सीमा से सटे होने के कारण रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र, बाड़मेर में इस चुनाव में भाजपा की ओर से आक्रामक प्रचार देखा गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और कई राज्य मंत्री पहले ही यहां प्रचार कर चुके हैं.
पार्टी सूत्रों ने कहा कि भाटी के रोड शो को मिली जबरदस्त प्रतिक्रिया से चिंतित भाजपा ने निर्वाचन क्षेत्र में अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए दिवंगत पार्टी नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह — एक प्रभावशाली राजपूत नेता, जो कांग्रेस के साथ थे — को भी शामिल किया है. सिंह इस महीने की शुरुआत में बाड़मेर में पीएम मोदी की रैली के दौरान पार्टी में शामिल हुए.
दिप्रिंट से बात करते हुए, मानवेंद्र सिंह ने स्वीकार किया कि भाटी ने बाड़मेर में एक “चुनौती” दी है और यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि भाजपा नेताओं के साथ चर्चा के बावजूद उन्होंने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया.
सिंह ने कहा, “एक अच्छी तरह से तैयार की गई स्वतंत्र मशीन विशेष रूप से सोशल मीडिया युग में स्थापित राजनीतिक प्रणालियों को हिला सकती है, जहां तक रवींद्र भाटी का सवाल है, मैं परिवार को अच्छी तरह से जानता हूं. मुझसे हस्तक्षेप करने और उनके साथ समय बिताने के लिए कहा गया था और भाजपा नेताओं से मिलने के बाद उन्होंने मुझे बताया कि वे चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ.”
राजस्थान के एक वरिष्ठ राजनीतिक विशेषज्ञ, मनोज गुजर के अनुसार, भाटी इस सीट पर जाट बनाम राजपूत टकराव की भविष्यवाणी करते हुए, कांग्रेस की तुलना में भाजपा को अधिक प्रभावित कर सकते हैं.
उन्होंने कहा, “परिसीमन से पहले, राजपूत उम्मीदवार जीतते थे क्योंकि बालेसर, शेरगढ़ और पोखरण क्षेत्र बाड़मेर में हुआ करते थे. परिसीमन के बाद, जाट उम्मीदवार जीतने लगे.” उन्होंने आगे कहा, “इस बार, आप इस सीट पर राजपूतों और जाटों के बीच संघर्ष देखेंगे. कांग्रेस को फायदा हो सकता है क्योंकि जाटों में आमतौर पर हवा (जहां बहुसंख्यक वोट जा रहे हैं) के साथ जाने का ट्रेंड रहा है. भाटी भाजपा के वोट बैंक को अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि उन्हें राजपूत समुदाय और कुछ ‘मूल’ओबीसी वोटों का भी समर्थन मिल रहा है.”
इस बीच, भाजपा और कांग्रेस दोनों उम्मीदवार आत्मविश्वास से भरे हैं.
कांग्रेस उम्मीदवार उम्मेदा राम बेनीवाल ने कहा, “भाजपा परिणाम देने में विफल रही है और भाटी केवल भाजपा के वोटों में सेंध लगाएंगे. मुझे जाटों के साथ-साथ अन्य समुदायों का भी समर्थन मिल रहा है.”
और जहां कुछ लोग भाटी को रेगिस्तानी तूफान कहते हैं, वहीं भाजपा के कैलाश चौधरी ने उन्हें मृगतृष्णा कहकर खारिज कर दिया, उन्होंने आरोप लगाया कि रैलियों में “बाहरी लोगों” की भीड़ होती है.
उन्होंने दावा किया, “बाड़मेर की जनता जानती है कि क्या काम हुआ है. जनता पीएम मोदी के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर वोट करेगी क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने देश को बदल दिया है. भीड़ को वोट बदलना है और वास्तव में उनकी रैलियों में सारी भीड़ बाहर से आती है.”
यह भी पढ़ें: ‘अग्निवीरों के लिए दुल्हन नहीं’: राजस्थान की ‘शहीदों की नगरी’ में डिफेंस कोचिंग से किनारा करने के कारण
अधिक उम्मीदें और सत्ता विरोधी लहर
पिछले हफ्ते एक रैली में सांसद चौधरी ने मतदाताओं से “मेरी कमियों के लिए मोदीजी को दंडित न करने” की अपील भी की थी. ऐसे में भाटी के समर्थक उन्हें उम्मीद की किरण बताते हैं.
बाड़मेर निर्वाचन क्षेत्र के चौहटन के निवासी खेमराज दारजी ने कहा, “वो कहते हैं कि वे (भाटी) पैसे देकर भीड़ ला रहे हैं, लेकिन आप खुद देख सकते हैं कि लोग कितने उत्साहित हैं.” उन्होंने कहा, “हमने मौजूदा सांसद को पर्याप्त समय दिया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. हमें बीजेपी या पीएम मोदी से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सांसद को जाना होगा. वर्तमान सांसद हमें बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे रहे हैं. अगर हमारे पास बुनियादी शिक्षा सुविधाएं ही नहीं होंगी तो हम कैसे विकास करेंगे?”
दारजी ने कहा कि ऐसा लगता है कि भाटी ऐसे व्यक्ति हैं जो “हमेशा उपलब्ध” रहते हैं, जबकि एक अन्य निवासी, पूर्वी ने कहा कि मतदाता किसी ऐसे नए व्यक्ति को मौका देने के लिए तैयार हैं जिसने काम करने का वादा किया हो.
जबकि भाटी की जाति की पहचान उनके अभियान का एक प्रमुख हिस्सा है, वे पानी और शिक्षा जैसे निर्वाचन क्षेत्र-विशिष्ट मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि उन्हें “36 समुदायों” का समर्थन है. चौहटन रोड शो में उन्होंने कहा, “(राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी) जादूगरों और अभिनेताओं को ला रहे हैं क्योंकि उन्होंने बोलने लायक कोई काम नहीं किया है.”
उन्होंने कहा, “मेरी लड़ाई किसी से नहीं है, मुझे लोगों का पूरा समर्थन है.” युवा नेता ने दिप्रिंट को बताया, “लड़ाई (बीजेपी और कांग्रेस के बीच) दूसरे स्थान के लिए है क्योंकि हर कोई जानता है कि पहला स्थान कौन लेगा.”
भले ही भाटी को “बाहर” से फंडिंग मिलने की अफवाहें उड़ रही हों, लेकिन उनके सहयोगियों का कहना है कि यह अभियान उनके करीबी लोगों और युवा समर्थकों के छोटे दान से संचालित है.
भाटी के अभियान से जुड़े एक सहयोगी ने कहा, “राष्ट्रीय पार्टियों के पास एक प्रणाली, लोग और कैडर होते हैं. उनके पास केवल उनके दोस्त, सहपाठी और रिश्तेदार थे जिन्होंने आगे बढ़ने का फैसला किया.”
उन्होंने कहा कि कुछ समर्थक अपनी इच्छा से मुफ्त सेवाएं भी दे रहे हैं, जिनमें एक पेशेवर फोटोग्राफर/वीडियोग्राफर भी शामिल हैं.
अभियान सहयोगी ने दावा किया, “जब युवा फोटोग्राफर को पता चला कि भाटी मदद की तलाश में है, उसने उनकी मदद करने का फैसला किया, लेकिन उसे कहा गया कि वो अपनी नौकरी न छोड़े क्योंकि हम लोग मैनेज कर लेंगे. कुछ दिनों के बाद, देखा कि फोटोग्राफर अपने काम पर नहीं जा रहा था और बाद में उन्होंने उसे भाटी के अभियान में तस्वीरें खींचते हुए पाया.”
उन्होंने आगे कहा, इसी तरह, लोगों ने कारों, पोस्टरों, बिलबोर्डों और अन्य खर्चों में भी मदद की पेशकश की है.
उन्होंने घोषणा की, “भाटी जीतें या न जीतें, लेकिन उन्होंने राज्य में रेगिस्तानी तूफान पैदा कर दिया है. जोधपुर से जैसलमेर तक, चाहे आप ट्रेन, फ्लाइट या यहां तक कि सड़कों से यात्रा करें, उनके और उनके अभियान के बारे में जिज्ञासा है.”
जहां तक भाटी का सवाल है, तो वे बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ खड़े होने के बावजूद अभी भी पीएम मोदी की तारीफ कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री इस उम्र में भी इतनी कड़ी मेहनत कर रहे हैं. यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: ‘आग से बपतिस्मा’ — कटक में पूर्व कॉर्पोरेट प्रमुख संतरूप मिश्रा की चुनावी शुरुआत