कोलकाता: प्रदेश की राजसी नखोदा मस्जिद के एक कोने में 60-वर्षीय इमाम शफीक कासमी अपने तंग कार्यालय में मेहमानों का इंतज़ार कर रहे हैं. कोलकाता की सबसे बड़ी मस्जिद के प्रमुख और सम्मानित मुस्लिम मौलवी, जिनकी बात राज्य के मुसलमानों के बीच काफी मायने रखती है, कासमी के दिन हाल ही में असामान्य रूप से लंबे और व्यस्त होने लगे हैं.
लोकसभा चुनाव करीब आने के साथ पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों से मुस्लिम धार्मिक नेता प्रमुख सवाल पर उनसे सलाह लेने आते हैं — मुसलमानों को किसे वोट देना चाहिए?
कासमी के पास उनमें से हर एक के लिए एक ही जवाब है: “इस बार अपने वोट मत बांटो. धर्मनिरपेक्ष पार्टी के लिए वोट करो.”
कुछ लोग तुरंत समझ जाते हैं कि उनका क्या मतलब है. जो लोग ऐसा नहीं करते, कासमी उनसे कहते हैं, “तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को वोट दें.” वोट देने के लिए और कौन है?”
पश्चिम बंगाल की 42 संसदीय सीटों पर 19 अप्रैल से 1 जून तक सात चरणों में मतदान होने के साथ, कासमी की तरह, राज्य भर के इमाम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीएमसी के साथ हैं. कई लोग टीएमसी को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी हिंदुत्व राजनीति के खिलाफ ढाल के रूप में देखते हैं.
बंगाल इमाम एसोसिएशन के प्रमुख मोहम्मद याह्या — मौलवियों का एक संगठन जिसके सदस्यों में 22,000 इमाम हैं, कहते हैं, “मुसलमानों के लिए अपने वोटों के मूल्य का एहसास करना महत्वपूर्ण है. इस कारण से हम अपने समुदाय से एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी के साथ एकजुट होने का आग्रह कर रहे हैं जो उनके भविष्य की रक्षा कर सके और हमारी नज़र में टीएमसी वो पार्टी है.”
2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 27 प्रतिशत है — जो राज्य में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक है. 2011 में राज्य में पहली बार सत्ता में आने के बाद से टीएमसी ने इस बड़े मतदाता वर्ग को अपने मुख्य मतदाताओं में गिना है.
पार्टी के लिए वोट जुटाने के लिए मुस्लिम मौलवी मतदाताओं तक पहुंचने के लिए “प्रभावी तरीके” तैयार करने के लिए ईद के बाद एक केंद्रीय समिति की बैठक आयोजित करने की योजना बना रहे हैं. इस बैठक में राज्य भर की प्रमुख मस्जिदों के सात इमाम उपस्थित होंगे.
याह्या ने बताया, “विचार यह है कि इस बात पर आम सहमति बनाई जाए कि कौन सी पार्टी समुदाय के लिए फायदेमंद है. बैठक के बाद इसके मुख्य बिंदु राज्य भर के जिला इमाम निकायों को भेजे जाएंगे और प्रत्येक जिले में बैठकें की जाएंगी कि समुदाय को इस बार कैसे मतदान करना है.”
जाधवपुर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले अब्दुल मतीन इसे टीएमसी की “इमाम राजनीति” मानते हैं.
राज्य सरकार ने अगस्त 2023 में इमामों और मुअज्जिनों — मुसलमानों को नमाज के लिए बुलाने का काम करने वाले लोगों — के लिए इमामभत्ता (मानदेय) में 500 रुपये की वृद्धि की थी, जिससे उनका भुगतान क्रमशः 3,000 रुपये और 1,500 रुपये हो गया था.
मतीन के अनुसार, ऐसी नीतियों से टीएमसी ग्रामीण मुसलमानों को शामिल करने के लिए मुस्लिम मौलवियों का एक “संरचित” नेटवर्क बनाने में सक्षम रही है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “इन इमामों की जनता के बीच एक निश्चित पकड़ है, खासकर ग्रामीण बंगाली गरीबों के बीच, जो उनके भाषणों से प्रभावित होते हैं. इसलिए, वक्फ बोर्ड, भाषणों और कुरान पाठ जैसे कार्यक्रमों से टीएमसी मुसलमानों तक पहुंच रही है.”
मतिन ने टीएमसी और राज्य के इमामों के बीच संबंधों की तुलना “संरक्षक-ग्राहक संबंध” से की है.
उनका कहना है कि इमाम अक्सर टीएमसी के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं — जनवरी में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के समय आयोजित सर्व-विश्वास रैली से लेकर इसकी इफ्तार पार्टियों तक.
उन्होंने कहा, “टीएमसी जानती है कि मुसलमानों का ध्यान कैसे खींचा जाए. इस तरह, पार्टी सामाजिक न्याय जैसे वास्तविक मुद्दों से जुड़े बिना इमामों को खुश रख सकती है.”
अपनी ओर से टीएमसी का दावा है कि अल्पसंख्यक उसके साथ सुरक्षित महसूस करते हैं. टीएमसी नेता और पश्चिम बंगाल की वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा, “इसलिए वे हमें वोट देना चाहते हैं. हमारी पार्टी ने कभी भी धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया है.”
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‘टीएमसी को वोट देना मुसलमानों की मजबूरी’
2019 में टीएमसी ने राज्य की 42 संसदीय सीटों में से 22 सीटें जीतीं — 2014 में जीती गई 34 सीटों से 12 कम. दूसरी ओर भाजपा ने 2014 में दो से अधिक, 18 सीटें हासिल करके महत्वपूर्ण लाभ कमाया.
इस बीच, कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को एक भी सीट नहीं मिली.
भाजपा जिन दो प्रमुख सीटों को सुरक्षित करने में कामयाब रही, उनमें मालदा उत्तर और रायगंज थीं. दोनों में मुस्लिम आबादी लगभग 50 प्रतिशत होने का अनुमान है.
कई मुसलमानों के लिए राजनीतिक और सामाजिक विमर्श में उनकी घटती जगह गंभीर चिंता का विषय है. कासमी बंगाल में मुसलमानों की दुर्दशा को इस प्रकार समझाते हैं: “मुसलमान बीच में हैं, विभिन्न खाइयों से घिरे हुए हैं. वे जिस दिशा में भी बढ़ेंगे, गिरेंगे ही. विचार यह है कि कम से कम खतरनाक रास्ते की पहचान की जाए.”
कासमी की टीएमसी को वोट देने की सलाह कोलकाता के राज बाज़ार और किद्दरपोर में मुस्लिम मतदाताओं को रास आ गई है. वे सभी टीएमसी को चुनने का एक प्रमुख कारण बताते हैं — भाजपा के खिलाफ ममता बनर्जी का विरोध. 36-वर्षीया अब्दुल गफ्फार ने कहा, “हमारे लिए केवल ममता दीदी हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “क्या आपने किसी मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के खिलाफ शिकायत दर्ज करते देखा है? वे अकेली हैं जो अकेले दम पर बीजेपी से मुकाबला कर सकती हैं.”
वे 2022 विस्फोट मामले की जांच के दौरान इस महीने की शुरुआत में गिरफ्तार टीएमसी नेता मोनोब्रतो जाना की पत्नी से कथित तौर पर छेड़छाड़ करने के लिए एनआईए अधिकारियों के खिलाफ पश्चिम बंगाल पुलिस की एफआईआर का ज़िक्र कर रहे थे.
मतीन का मानना है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल को देखते हुए टीएमसी को वोट देना “मुसलमानों की मजबूरी” है.
उन्होंने समझाया, “धर्मनिरपेक्ष-सांप्रदायिक बाइनरी के निर्माण से टीएमसी और बीजेपी दोनों को फायदा हुआ है. इसमें पादरी वर्ग और मध्यवर्गीय मुसलमानों की भूमिका है. विचार यह है कि किसी को बड़ी और छोटी बुराई के बीच चयन करना चाहिए और पादरी वर्ग का एक बड़ा वर्ग टीएमसी के लिए ऐसा कर रहा है.”
बंटी हुई निष्ठाएं
दक्षिण 24 परगना के मुस्लिम बहुल भांगर के निवासी इस चुनाव में निराश हैं।
यह विधानसभा सीट जादवपुर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जिस पर 2009 से टीएमसी का कब्ज़ा है.
भांगौड़ के मुस्लिम निवासियों के लिए उनकी वफादारी की परीक्षा होने वाली है. एक कोने में इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) खड़ा है, जिसके अध्यक्ष मोहम्मद नौशाद सिद्दीकी ने 2021 में पार्टी की एकमात्र विधानसभा सीट हासिल की.
सिद्दीकी हुगली के फुरफुरा शरीफ में स्थित मज़ार के पीरजादा (संरक्षक) हैं — जिसे अजमेर शरीफ के बाद देश में सबसे प्रतिष्ठित मज़ार माना जाता है. उनकी पार्टी ने इस चुनाव में नूर आलम खान को मैदान में उतारा है.
दूसरे कोने में टीएमसी है, जिसका उम्मीदवार एक गैर-मुस्लिम है — फिल्म और टीवी अभिनेता सयोनी घोष.
निवासियों के लिए फैसला मुश्किल है, लेकिन स्थानीय मस्जिद के मौलाना मोहम्मद अब्दुल हलीम मुल्ला का मानना है कि केवल एक ही विकल्प है.
उन्होंने कहा, “मैं लोगों को टीएमसी को वोट देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. मैं बस एक भावुक अपील कर सकता हूं, लेकिन उन्हें (लोगों को) यह समझना होगा कि सिद्दीकी एक मुस्लिम और पीरजादा हैं, लेकिन उनकी एक सीट मुसलमानों का भविष्य सुरक्षित नहीं कर सकती. जब से वे विधायक बने हैं तब से भांगौड़ में कोई काम नहीं हुआ है. वे अपने वादे पूरे नहीं कर पाए.”
हालांकि, 25-वर्षीय मोहम्मद इससे सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि जब तक टीएमसी और उसके बाहुबली सत्ता में रहेंगे, सिद्दीकी कोई काम नहीं कर पाएंगे.
उन्होंने कहा, “वे उन्हें कुचल देंगे. वे उन्हें काम नहीं करने देंगे और यही हो रहा है.”
फिर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो विधायक पर भाजपा का “एजेंट” होने का आरोप लगाते हैं. एक दुकान के मालिक नूर इस्लाम का मानना है कि सिद्दीकी का इरादा मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने और अंततः भाजपा की जीत तय करने का है.
इस्लाम ने कहा, “और उनके पास केंद्रीय बल की सुरक्षा कैसे है? केंद्र उन्हें इतनी सुरक्षा क्यों मुहैया करा रहा है? मुसलमान किसी के बहकावे में आने वाले मूर्ख नहीं हैं. इस बार भांगौड़ टीएमसी को वोट देगा.”
भांगौड़ विधायक को पिछले साल केंद्रीय सुरक्षा प्रदान की गई थी, जब उन्होंने अपनी जान को खतरा होने का दावा करते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
मोहम्मद याह्या ने नूर इस्लाम की भावनाओं को आगे बढ़ाते हुए आईएसएफ को एक “तमाशा” कहा. उनका कहना है कि पार्टी की बंगाल में ज्यादा मौजूदगी नहीं है. उन्होंने कहा, “अगर वे अकेले भी जाते हैं, तो वे केवल उसी तरह वोट काटेंगे जैसे कि ओवैसी (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी) करते हैं.”
प्रोफेसर मतीन की तरह, मौलवी का भी मानना है कि मुसलमानों के लिए टीएमसी को वोट देना “विश्वसनीय विकल्पों की कमी” का सीधा परिणाम है.
याह्या ने कहा, “हमने देखा है कि भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है और हम पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं होने दे सकते. 34 साल के (उनके शासन के) भयावह दौर के बाद मुसलमान अब सीपीआई (एम) की राजनीति के साथ नहीं हैं. राज्य में कांग्रेस का कोई ढांचा नहीं है. इसलिए हम केवल टीएमसी के साथ बचे हैं.”
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टीएमसी और मुस्लिम वोट
2019 के बाद से भाजपा राज्य में महत्वपूर्ण बढ़त बना रही है. इस बार पार्टी द्वारा हिंदू वोटों को सुरक्षित करने के लिए अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का लाभ उठाने के साथ, मुस्लिम वोट टीएमसी के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गए हैं.
टीएमसी अपनी ओर से इस वोट बैंक को बरकरार रखने के लिए काफी कोशिश कर रही है. उदाहरण के लिए एक महत्वपूर्ण मुस्लिम आबादी वाली विधानसभा सीट सागरदिघी को कांग्रेस-वाम गठबंधन के हाथों हारने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य के अल्पसंख्यक मामलों और मदरसा शिक्षा विभागों का प्रभार संभाला.
मई 2023 में सागरदिघी से कांग्रेस विधायक बायरन बिस्वास टीएमसी में शामिल हो गए.
राजनीतिक विश्लेषक स्निग्धेंदु भट्टाचार्य के अनुसार, मुसलमानों ने 2019 में अपनी गलतियों से सीखा और 2021 के विधानसभा चुनावों में मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर के मुस्लिम-बहुल जिलों के साथ-साथ दक्षिण 24-परगना और उत्तर-24 परगना जिले नादिया, बीरभूम के मुस्लिम-केंद्रित इलाकों में निर्णायक रूप से टीएमसी के पीछे खड़े हुए.
ऐतिहासिक रूप से टीएमसी की स्थापना के बाद यह पहली बार था कि पार्टी ने कांग्रेस के पारंपरिक गढ़ मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों पर जीत हासिल की.
भट्टाचार्य ने कहा, 2021 विधानसभा चुनाव के बूथ-वार विश्लेषण से पता चला कि मुस्लिम-केंद्रित बूथों पर टीएमसी को 70-80 प्रतिशत वोट मिले.
सागरदिघी उपचुनाव ने मुस्लिम वोटों के टीएमसी से वाम-कांग्रेस गठबंधन में स्थानांतरित होने का संकेत दिया था, लेकिन सागरदिघी विधायक के बाद में टीएमसी में चले जाने और राम मंदिर निर्माण और सीएए के खिलाफ मजबूत स्थिति लेने सहित अन्य क्षति नियंत्रण उपायों के कारण उन्हें जीत मिलने की संभावना है. उन्होंने कहा, “मुसलमानों का बहुमत टीएमसी पर भरोसा करता है.”
जाधवपुर के पूर्व विधायक और सीपीआई (एम) नेता सुजन चक्रवर्ती के अनुसार, टीएमसी राज्य में “धार्मिक बाइनरी” बनाने की कोशिश कर रही है.
उन्होंने कहा, “टीएमसी वोट हासिल करने के लिए मुसलमानों में डर पैदा करने की कोशिश कर रही है. पार्टी और बीजेपी एक दूसरे को वोट बांटने में मदद कर रहे हैं और अब वे ऐसा करने के लिए मौलवियों का इस्तेमाल कर रहे हैं.”
हालांकि, उन्होंने आगे कहा कि वे “इस पर टिप्पणी नहीं कर सकते कि मौलवी ऐसा क्यों कर रहे हैं”.
पश्चिम बंगाल बीजेपी के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य भी इससे सहमत हैं और टीएमसी की राजनीति को “विभाजनकारी” बताते हैं. उनका कहना है कि मुसलमानों को पिछले नौ साल की “राजनीतिक हत्याओं” को नहीं भूलना चाहिए.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैं मुसलमानों से आग्रह करना चाहता हूं कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करने से पहले सोचें. पिछले नौ साल में राजनीतिक हत्याओं के शिकार 90 प्रतिशत मुसलमान हुए हैं. वे इसे कैसे भूल सकते हैं? उन्हें (मुसलमानों को) भारतीय के रूप में वोट देना चाहिए, न कि मुस्लिम के रूप में.”
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
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